राज- काज: शिवराज जी, अब आपके लिए यह शोभा नहीं देता….

राज- काज: शिवराज जी, अब आपके लिए यह शोभा नहीं देता….

– यह ठीक है कि शिवराज सिंह चौहान के साथ व्यापम जैसा हुआ। फार्म किसी ने भरा, परीक्षा किसी ने दी, पास कोई हुआ और नौकरी किसी अन्य की लग गई। बावजूद इसके भाजपा ने 2018 में हार के बावजूद उन्हें फिर मुख्यमंत्री बनाया था। इसलिए अब पार्टी ने कोई निर्णय लिया है तो शिवराज को उसे सहर्ष स्वीकार करना चाहिए। आखिर, उन्हें हमेशा मुख्यमंत्री तो नहीं बना कर रखा जा सकता था। छपने की भूख के चलते उन्होंने जो नाटक-नौटंकी प्रारंभ कर रखी है, उन्हें यह शोभा नहीं देता। उन्हें यह सब तत्काल बंद कर देना चाहिए।

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सब जानते हैं कि खेत जोतना और बुआई करना, सिर्फ मीडिया में बने रहने के लिए ही है। वे हमेशा के लिए किसान बन कर खेती करने वाले नहीं हैं। इसी प्रकार चाहे जहां वे महिलाओं के बीच जाकर सहानुभूति हासिल करते दिखते हैं। रोती महिलाओं को गले लगाते, सिर पर हाथ फेरते हैं। भीड़ के बीच जाकर मामा-मामा के नारे लगाने वालों से हाथ मिलाते हैं। इसके पीछे की मंशा पार्टी नेतृत्व जानता है। मतगणना के बाद छिंदवाड़ा, श्योपुर और राघौगढ़ जाकर भी वे यही दिखा रहे थे। यह दबाव बनाने का ही एक तरीका था, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। नेतृत्व को जो निर्णय करना था, वही किया। इसलिए शिवराज जी को यह सब बंद कर मिलने वाली अगली जिम्मेदारी का इंतजार करना चाहिए।

मुख्यमंत्री जी, फैसलों के अमल पर भी रखनी होगी नजर….

– मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के साथ डॉ मोहन यादव का आगाज शानदार है। उन्होंने जो निर्णय लिए, इन्हें देखकर कोई प्रदेश में योगीराज आने की बात कर रहा है, कोई सनातनी सरकार की आहट महसूस करने लगा है। धार्मिक स्थलों में लाउडस्पीकारों पर पाबंदी और बाजारों में खुले मांस, मछली, अंडों की बिक्री पर प्रतिबंध जैसे निर्णयों से यह ध्वनि निकली है। आदतन अपराधियों की जमानत रद्द करा कर कार्रवाई, जमीन की रजिस्ट्री के साथ नामांतरण, खुले पड़े बोरबेल बंद करने अिभयान और शराब-खनन माफिया के खिलाफ कार्रवाई के निर्देश भी जनता के दिलों को छूने वाले निर्णय हैं। ये निर्णय तभी सार्थक होंगे, जब इन पर बिना भेदभाव अमल हो।

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काम पर सतत निगरानी रखी जाए, क्योंकि ऐसे निर्णय पहले भी होते रहे हैं। भ्रष्टाचार और अपराध पर जीराे टालरेंस नीति की बातें की जाती रही हैं। कुछ समय के लिए इनको लेकर अभियान चलते और बाद में ठंडे बस्ते में डाले जाते रहे हैं। मुख्यमंत्री मोहन यादव की सफलता लिए जाने वाले निर्णयों के अमल पर ही निर्भर होगी। धार्मिक स्थलों से लाउडस्पीकर हटाने और खुले में मांस, मछली, अंडा की दुकाने बंद कराई जाने लगी हैं। खनन माफिया पर भी कार्रवाई शुरू हुई है, लेकिन यह ध्यान रखना यह अभियान कभी बंद न हो। ऐसी व्यवस्था बनाना होगी ताकि शुरू कोई अभियान ठंडे बस्ते में न जा पाए।

सीएम के लिए इनके नाम पर भी हुआ था विचार….

– तीन जनवरी को मतगणना हो जाने के बाद से ही प्रदेश के नए मुख्यमंत्री को लेकर कयास लगाए जाने लगे थे। भाजपा के दिग्गज कैलाश विजयवर्गीय, प्रहलाद पटेल, नरेंद्र सिंह तोमर, ज्योतिरादित्य सिंधिया , गोपाल भार्गव और वीडी शर्मा अपने-अपने ढंग से कोशिश कर रहे थे। शिवराज सिंह चौहान तो थे ही स्वाभाविक दावेदार। वे प्रदेश का दौरा कर अपने ढंग से दबाव बना रहे थे। पर आप जानकर हैरान होंगे, भाजपा नेतृत्व ने मुख्यमंत्री पद के लिए इनमें से किसी नाम पर विचार ही नहीं किया। डॉ मोहन यादव के अलावा एक और नाम था, जिस पर विचार हुआ। वे हैं, राजधानी की हुजूर सीट से विधायक रामेश्वर शर्मा।

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पार्टी सूत्रों के अनुसार कट्टर हिंदूवादी छवि, क्षेत्र में सक्रियता और काम के प्रति उनकी ललक के कारण मुख्यमंत्री के लिए उनके नाम पर भी डिस्कशन हुआ। संघ भी उन्हें चाहता था लेकिन प्रदेश भाजपा अध्यक्ष पद पर ब्राह्मण वीडी शर्मा के होने से उनका नाम अलग हो गया। यहां पिछड़े वर्ग के मोहन यादव मुख्यमंत्री बन गए और राजस्थान में दूसरे ब्राह्मण की ताजपोशी कर दी गई। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने एक साक्षात्कार में बता दिया है कि नेतृत्व किस तरह अपने एक-एक कार्यकर्ता और नेता पर नजर रखता है। रामेश्वर के साथ मोहन यादव का नाम भी नेतृत्व की स्क्रूटनी से ही निकला।

प्रोटेम स्पीकर बनते ही इस चर्चा में आ गए गोपाल….

– अपने अलग अंदाज के लिए पहचाने जाने वाले गोपाल भार्गव जैसे ही प्रोटेम स्पीकर बने, अलग तरह की चर्चा में आ गए। चुनाव के दौरान उनकी चर्चा इसलिए थी क्योंकि क्षेत्र में प्रचार के लिए निकले बिना वे चुनाव जीतते हैं। इस बार तो वे लगभग 73 हजार वोटों के बड़े अंतर से जीते। प्रोटेम स्पीकर का दायित्व हालांकि उन्हें सबसे वरिष्ठ विधायक होने के नाते मिला है। वे लगातार 9 चुनाव जीत चुके हैं। लेकिन इस पद को उनके मंत्री पद से जोड़कर देखा जाने लगा है। कहा जाने लगा है कि कहीं प्रोटेम स्पीकर बनने का यह संकेत तो नहीं कि उन्हें मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया जाएगा। राजधानी के हुजूर सीट के विधायक रामेश्वर शर्मा के साथ ऐसा हो चुका है।

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वे वरिष्ठ नहीं थे फिर भी भाजपा ने उन्हें प्रोटेम स्पीकर बनाया था। वे सबसे लंबे समय तक इस पद पर रहे, लेकिन जब मंत्रिमंडल का गठन हुआ तो उनका नाम नदारद था। हालांकि रामेश्वर और गोपाल भार्गव के कद में बड़ा अंतर है। भाजपा में वे बड़े ब्राह्मण चेहरा भी हैं। सरकार में काम करने का उन्हें लंबा अनुभव है। उन पर कभी कोई आरोप नहीं लगे, वे बेदाग हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उन्हें पसंद भी करते हैं। इसलिए मंत्रिमंडल में वे न हों, यह सोचा नहीं जा सकता लेकिन भाजपा में इस समय वरिष्ठों को घर बैठाने का दौर चला रहा है। पार्टी नेतृत्व कब क्या निर्णय ले ले, कोई नहीं जानता।

विधायक का नाम लेकर यह धमकी कितनी उचित….!

– प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा का एक वायरल वीडियो खासा चर्चा में है। उसमें वे कांग्रेेस के एक विधायक का नाम लेकर धमकी देते दिख रहे हैं। एक सवाल के जवाब में वे बोलते हैं कि ‘सुन ले आरिफ मसूद, हम आपकी गुंडागर्दी को जल्दी ठिकाने लगा देंगे।’ यह कह वे पत्रकारों के बीच से उठकर चले जाते दिखते हैं। आरिफ मसूद का ऐसा कोई काम अथवा कथन सामने नहीं आया, जिसमें वे गंडागर्दी करते या वैसी भाषा बोलते नजर आ रहे हों।

याद रखा जाएगा प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा का यह फैसला ...

एक भाजपा कार्यकर्ता की हथेली कटन के मामले में उनका अधिकृत बयान था कि हमलावरों के साथ उनका कोई संबंध नहीं है। उन्होंने उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की थी। धार्मिक स्थलों से लाउडस्पीकर हटाने और बाजारों से खुला मांस, मछली बेचे जाने के मामले में भी उन्होंने राजनीतिक बयान ही दिया था, जैसा कमलनाथ सहित कांग्रेस के अन्य नेताओं ने दिया। इसलिए वीडी शर्मा के बयान की ज्यादा चर्चा है। कहा जा रहा है कि प्रदेश भाजपा अध्यक्ष जैसे जिम्मेदार पद पर बैठे नेता को किसी विधायक का नाम लेकर ऐसी भाषा का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। खुद वीडी को ही सामने आकर स्पष्ट करना चाहिए कि उन्होंने आरिफ मसूद के लिए ऐसी भाषा का इस्तेमाल आखिर क्यों किया। यह उनकी और पद क गरिमा के अनुकूल भी होगा।