Administrative Initiative of CM Dr Mohan Yadav: इंदौर की हुकुमचंद मिल विवाद का हुआ समाधान,जानिए उन 15 बिंदुओं को,कैसे मिला मजदूरों को उनका हक 

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Administrative Initiative of CM Dr Mohan Yadav: इंदौर की हुकुमचंद मिल विवाद का हुआ समाधान,जानिए उन 15 बिंदुओं को,कैसे मिला मजदूरों को उनका हक 

 

भोपाल : मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने मुख्यमंत्री पद ग्रहण करने के 15 दिनों में ही ठोस सकारात्मक पहल करते हुए जिस प्रकार हुकुमचंद मिल इंदौर के मजदूरों को उनका हक दिलाया है वह मध्य प्रदेश के लिए एक ऐतिहासिक पहल है।

 

हुकुमचंद मिल के विवाद से सम्बंधित 15 बिंदुओं से मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की इस पहल के महत्व को समझा जा सकता है कि कैसे 30 वर्षों से ज्यादा समय से लंबित इस प्रकरण का समाधान हुआ। लगभग 5 हजार मजदूरों को उनके हक़ की राशि मिलेगी।

 

1. कपड़ा मिल संचालन के लिए सेठ हुकुमचंद को वर्ष 1923 में तत्कालीन शासन द्वारा 17.52 हे. भूमि लीज पर आवंटित की गई थी, जिस पर हुकुमचंद मिल संचालित थी।

 

2. हुकुमचंद मिल में उच्च गुणवत्ता का कॉटन कपड़ा उत्पादित होता था, जिसका विदेशों में भी निर्यात किया जाता था। इस मिल में लगभग 7000 मजदूर एवं कर्मचारी अधिकारी कार्यरत थे।

 

3. मिल का संचालन वर्ष 1991 तक चलता रहा, परन्तु वर्ष 1992 के बाद विभिन्‍न कारणों से मिल प्रबंधन को मिल बंद करना पड़ा।

 

4. मिल प्रबंधन द्वारा मिल लगाने के लिए एवं मिल संचालन के लिए लिया गया ऋण चुकता न होने के कारण एवं मजदूरों को वेतन एवं अन्य देनदारियों का भुगतान न होने के कारण, मिल प्रबंधन के विरूद्ध कई न्यायालयीन वाद वित्तीय संस्थानों एवं मजदूरों द्वारा लगाये गये। शासन शासन को भी पक्षकार बनाया गया।

 

5. मान. उच्च न्यायालय ने वर्ष 2001 में शासकीय परिसमापक नियुक्त किया एवं ऋण वसूली प्राधिकरण (डी.आर.टी.) को नीलामी के आदेश दिए गए एवं देनदारियों का निपटान करने के निर्देश दिए गए।

 

ऋण वसूली प्राधिकरण (डी.आर.टी.) के द्वारा कई बार नीलामी के प्रयास किये गये, परन्तु सफलता नही मिली.

 

6. भूमि के स्वामित्व को लेकर म.प्र. शासन एवं नगर पालिका निगम, इंदौर के मध्य न्यायालयीन विवाद मान. सर्वोच्च न्यायालय तक पहुँचा। कुछ समय बाद नगर निगम, इंदौर द्वारा अपना दावा हटाने का आवेदन दिया गया। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा कोई निर्णय नही दिया गया। सर्वोच्य न्यायालय के द्वारा वर्ष 2017 में प्रकरण पुनः उच्च न्यायालय, इंदौर को नये सिरे से सुनवाई कर निर्णय करने के लिए भेजा गया।

 

उच्च न्यायालय, इंदौर द्वारा आदेश दिनांक 22.05.2018 से भूमि स्वामित्व नगर निगम, इंदौर का घोषित किया गया।

 

7. म.प्र. शासन के द्वारा सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालय के सामने यह आवेदन वर्ष 2016 में लगाया गया कि भूमि पर परियोजना की अनुमति दी जाती है तो म.प्र. शासन के द्वारा सभी देनदारियों का निपटान किया जायेगा।

 

ठोस प्रस्ताव नही दिए जाने के कारण म.प्र. शासन के इस आवेदन पर न्यायालय द्वारा कोई निर्णय नही दिया गया।

 

8. उच्च न्यायालय, इंदौर दिनांक 28.03.2017 एवं दिनांक 20.04.2017 सर्वोच्च न्यायालय के आदेश दिनांक 20.04.2017 के पालन में उद्योग विभाग म.प्र. शासन द्वारा रू. 50.00 करोड़ का भुगतान शासकीय परिसमापक को इस शर्त पर किया गया कि सम्पत्ति के निपटान के समय इस राशि की प्रतिपूर्ति शासन को की जायेगी।

 

9. म.प्र. शासन द्वारा उच्च न्यायालय, इंदौर के आदेशानुसार वर्ष 2019 में मिल की भूमि का भूमि-उपयोग वाणिज्यिक (60 प्रतिशत) एवं आवासीय (40 प्रतिशत) निर्धारित किया गया। भूमि-उपयोग उपांतरण के बाद भी शासकीय परिसमापक द्वारा नीलामी के प्रयास किये गये, परन्तु सफलता नहीं मिली।

 

म.प्र. शासन द्वारा जुलाई 2022 में एम.पी.आई.डी.सी. को मिल भूमि का शहर हित में समुचित उपयोग हो, इस उददेश्य से मिल भूमि पर परियोजना के माध्यम से देनदारियों का निपटान करने के निर्देश दिए गए।

 

10. म.प्र. शासन द्वारा अप्रैल 2023 में एम.पी.एच.आई.डी.बी. को मिल के देनदारों से समझौता वार्ता करने एवं सहमति प्राप्त करने के निर्देश दिए गए, जिससे शासन की बहुमूल्य भूमि भारमुक्त होकर शहर के उपयोग में आ सके।

 

11. शासकीय परिसमापक द्वारा वर्ष 2001 की स्थिति में अंतिम की गई देनदारियों के आधार पर मण्डल के द्वारा सभी सम्बंधित पक्षकारों को सहमति के लिए प्रस्ताव दिए गए। मण्डल के द्वारा सभी पक्षकारों से कई बैठकें की गई एवं प्राप्त सहमति शासन के अनुमोदन के लिए भेजी गई।

 

12. मंत्री-परिषद्‌की बैठक दिनांक 04.10.2023 में इस समझौता प्रस्ताव का अनुमोदन किया गया एवं उच्च न्यायालय में प्रस्तुत करने के निर्देश दिए गए।

 

मण्डल के द्वारा उच्च न्यायालय में समझौता प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया, जिसमें उच्च न्यायालय द्वारा दिनांक 20.10.2023 द्वारा प्रस्ताव स्वीकार किया गया एवं समझौता राशि रू. 435.89 करोड़ दो सप्ताह में भुगतान करने के निर्देश दिए गए और शासकीय परिसमापक को भुगतान होने पर भूमि मण्डल को सौपने के निर्देश दिए गए।

 

13. मंत्रि-परिषद्‌द्वारा दी गई भुगतान की अनुमति के आधार पर मण्डल द्वारा दिनांक 19.12.2023 को सभी पक्षकारों को भुगतान किया गया। उच्च न्यायालय द्वारा दिनांक 20.12.2023 को आदेश दिए गए कि भूमि का कब्जा मण्डल को दो सप्ताह में परिसमापक के द्वारा सौपा जाये।

 

14. मण्डल द्वारा बहुमूल्य भूमि पर महत्वाकांक्षी योजना के के लिए देश एवं विदेश के वास्तुविद/ टाऊन प्लानर/मास्टर प्लानर नियुक्ति के लिए निविदा बुलाई गई है।

 

15. शहर की भविष्य की आवश्यकताओं को देखते हुए उत्कृष्ट प्लानिंग की जायेगी एवं अगले तीन माह में इसे अंतिम रूप देकर अधोसंरचना के कार्य शुरू किये जायेंगे।