टिप्पणी: प्राण प्रतिष्ठा समारोह में अयोध्या न जाने वालों के पास अपने अकाट्य तर्क!

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टिप्पणी: प्राण प्रतिष्ठा समारोह में अयोध्या न जाने वालों के पास अपने अकाट्य तर्क!

इन दिनों अयोध्या में होने वाली श्री राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा का देश में जबरदस्त माहौल है। चारों तरफ मानों धार्मिक आस्था बरस रही है। सदियों पहले जब त्रेता युग में अयोध्या में राम जन्म हुआ था, कुछ वैसी ही खुशियां प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा में भी मनाई जाने की तैयारियां हैं। इस समारोह को भव्य बनाने में सरकार भी कोई कसर रखना नहीं चाहती। अयोध्या आने के लिए विशेष विमान और ट्रेनें चलाई जाएंगी। लेकिन, धर्म के प्रति आस्था का अपना अलग मनोभाव होता है। जरूरी नहीं कि जो धर्म के प्रति आस्तिक हो, वो पूजा-पाठ में विश्वास रखता हो! इसलिए कई लोगों ने अलग-अलग कारणों से अयोध्या आने इनकार किया है।

देशभर के विशिष्ट लोगों को आमंत्रण पत्र दिए गए। लेकिन, सभी अतिथि नहीं आ रहे। नहीं आने के राजनीतिक कारण भी हैं और धार्मिक भी। विपक्षी पार्टी कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के नेताओं ने आमंत्रण स्वीकारने के बावजूद न आने का एलान किया। सबसे चौंकाने वाली बात है कि चारों शंकराचार्यों भी अयोध्या नहीं आ रहे। इसके पीछे उन्होंने जो कारण बताए वो सोचने पर मजबूर तो करते हैं। लेकिन, भाजपा ने अयोध्या के इस महा-उत्सव को लगता है अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया! इसे अब तक का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन भी कहा जा रहा है।

प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में शंकराचार्यों के न जाने का मुद्दा काफी अहम माना जा रहा है। इस बारे में स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती और स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने कहा राम मंदिर उद्घाटन में शास्त्रीय विधान का पालन नहीं किया जा रहा, इसलिए वे नहीं जाएंगे। जबकि, पुरी के गोवर्धन पीठ के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने सनातन धर्म के नियमों के उल्लंघन की बात कही। उन्होंने कहा कि राम जी शास्त्रीय विधि से प्रतिष्ठित नहीं हो रहे, इसलिए राम मंदिर उद्घाटन में मेरा जाना उचित नहीं है। आमंत्रण आया कि आप एक व्यक्ति के साथ उद्घाटन में आ सकते हैं। हम आमंत्रण से नहीं कार्यक्रम से सहमत नहीं हैं। लोकमत हमारे साथ है, शास्त्र मत भी हमारे साथ है, साधु मत भी हमारे साथ है तो हमने संकेत किया कि सब तरह से हम बलवान हैं, इसलिए हमें कोई दुर्बल ना समझे!

उन्होंने कहा कि प्राण प्रतिष्ठा के लिए मुहूर्त का ध्यान रखना चाहिए। कौन मूर्ति को स्पर्श करे, कौन ना करे, कौन प्रतिष्ठा करे, कौन प्रतिष्ठा ना करे। स्कंद पुराण में लिखा है कि देवी-देवताओं की जो मूर्तियां होती हैं, जिसको श्रीमद्भागवत में अरसा विग्रह कहा गया है। उसमें देवता के तेज प्रतिष्ठित तब होते हैं, जब विधि-विधान से प्रतिष्ठा हो! उन्होंने कहा कि विधिवत प्रतिष्ठा ना हो, तो मूर्ति में भूत-प्रेत, पिशाच प्रतिष्ठित हो जाते हैं। आरती या पूजा में विधि का पालन न किया जाए तो देवी-देवता का तेज तिरोहित हो जाता है। ऐसे में भूत-प्रेत, पिशाच उस प्रतिमा में प्रतिष्ठित होकर पूरे क्षेत्र को तहस-नहस कर देते हैं। प्राण प्रतिष्ठा, मूर्ति प्रतिष्ठा खिलवाड़ नहीं है। इसमें दर्शन, व्यवहार और विज्ञान तीनों का एकत्व है।

स्वामी अविमुक्तेश्वर महाराज का कहना है कि शंकराचार्य वहां नहीं जा रहे। इसके पीछे कोई राग-द्वेष नहीं है। बल्कि, शंकराचार्यों का दायित्व है, कि वह शास्त्र विधि का पालन करें और करवाएं। वहां पर शास्त्र विधि की उपेक्षा हो रही है। पहली उपेक्षा यह कि मंदिर अभी पूरा बना नहीं और प्रतिष्ठा की जा रही है। कोई ऐसी स्थिति नहीं है कि अचानक यह करना देना पड़े। किसी समय 22 दिसंबर की रात को वहां पर मूर्तियां रख दी गई थी, क्योंकि तब समय की बात नहीं थी। रात को 12 बजे जाकर के सब कुछ किया गया। 1992 में जब ढांचा ढहाया गया उस समय भी कोई मुहूर्त थोड़ी देखा जा रहा था। भगवान की मूर्ति गायब हो गई थी, तो राजा साहब के घर से उनकी दादी जी के यहां से मूर्ति लाकर करके रख दिया गया और उसकी पूजा होती रही। लेकिन, अभी ऐसी क्या जल्दबाजी है कि 22 तारीख को ही सब होना है जबकि मंदिर पूरा नहीं बना।

राजनीतिक पार्टियों की आपत्ति
यह तो हुई धार्मिक कारणों से शंकराचार्यों के अयोध्या न आने का मुद्दा। लेकिन, कई राजनीतिक पार्टियों के नेताओं ने भी अयोध्या आने से मना किया। सबसे पहले समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने अयोध्या के उत्सव में जाने से इनकार किया। उसके बाद कांग्रेस के नेताओं ने भी अयोध्या का आमंत्रण स्वीकारने के बाद आने से कन्नी काट ली। मल्लिकार्जुन खरगे, सोनिया गांधी और अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि भगवान राम की पूजा-अर्चना करोड़ों भारतीय करते हैं। धर्म मनुष्य का व्यक्तिगत विषय होता है। लेकिन, भाजपा और आरएसएस ने अयोध्या में राम मंदिर को एक राजनीतिक परियोजना बना दिया। एक अधूरे मंदिर का उद्घाटन केवल चुनावी लाभ उठाने के लिए ही किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि 2019 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को स्वीकार करते हुए और लोगों की आस्था के सम्मान में हम इस आयोजन के निमंत्रण को ससम्मान अस्वीकार करते हैं।

दिग्विजय सिंह के अपने तर्क
कांग्रेस के वाकपटु नेता और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने कहा कि कितने ही आमंत्रितों ने निमंत्रण स्वीकार किया है। किसी भी स्थापित धर्म गुरु ने भी निमंत्रण स्वीकार नहीं किया। उन्होंने अपने तर्कों में धर्म सम्मत आपत्ति जताई। धर्म शास्त्र के अनुसार जिस मंदिर का निर्माण अधूरा हो, वहां किसी भी मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा नहीं की जा सकती। यह अशुभ माना जाता है। कांग्रेस ही नहीं बल्कि सभी राजनीतिक दल जिन्हें निमंत्रण मिला है। शिवसेना, राजद, जदयू, टीएमसी, सीपीएम, सीपीआई (एम) कोई भी तो इसमें भाग नहीं ले रहा! भगवान राम सबके आराध्य देव हैं और हमें मंदिर जाकर खुशी होगी। लेकिन पहले मंदिर का निर्माण तो पूरा हो जाए। उन्होंने कहा कि भाजपा ने इसे अपना निजी आयोजन बना दिया।

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कांग्रेस पार्टी सभी धर्मों का सम्मान करती है। इसलिए कि हम न तो हिंदू और न किसी अन्य धर्म के विरोधी है। कांग्रेस ने कभी भी धर्म का इस्तेमाल राजनीति के लिए नहीं किया। ये लोग छुपकर औवेसी से समझौता करते हैं और बाहर कुछ और बोलते हैं। हम धर्म का उपयोग राजनीति में नहीं करते, वोट मांगने में धर्म को बीच में नहीं लाते। कांग्रेस के अयोध्या न जाने के दो कारण हैं। पहला यह कि किसी भी अधूरे मंदिर में मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा गलत है। दूसरा, जितने भी स्थापित धर्मगुरु हैं, चाहे किसी भी संप्रदाय के हो, किसी ने भी इस प्रक्रिया को और इसके राजनीतिकरण को सही नहीं ठहराया।

दिग्विजय सिंह ने कहा कि वहां निर्मोही अखाड़ा सेवा करता रहा। लेकिन, उनको हटाकर विश्व हिंदू परिषद के वहां लोग बैठ गए। चंपत राय जैसा आदमी हमें और शंकराचार्यों को चुनौती दे रहा है। राम मंदिर आंदोलन में जो शहीद हुए वे कहां हैं। घोटालेबाज सर्वेसर्वा हो गए। ये धार्मिक परंपरा पर भी भाजपा का हमला है। ये लोग शास्त्रों के विपरीत काम कर रहे हैं। रामालय ट्रस्ट, धर्मगुरु, शंकराचार्य इनको प्राण प्रतिष्ठा में हिस्सेदार क्यों नहीं बनाया गया। कांग्रेस पार्टी ने बहुत सोच-समझकर न जाने का फैसला किया है। शिवसेना जो बाबरी विध्वंस में सबसे आगे थी, वे भी मना कर चुके। इसलिए कि इसे भाजपा और विश्व हिंदू परिषद का आयोजन बना दिया।

अयोध्या न जाने वाले आमंत्रितों को नास्तिक, अधार्मिक और इस तरह के नामों से पुकारा जा रहा है। जबकि, धर्म बेहद वैयक्तिन क विषय है, इसे जबरन मानने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। न आने वाले नेताओं ने जो भी राजनीतिक कारण गिनाए हों, लेकिन शंकराचार्यों के शास्त्र सम्मत तर्कों को नकारा नहीं जा सकता। भाजपा इसे सहज रूप से स्वीकार न करे, किंतु शंकराचार्यों की आपत्तियों को हाशिए पर नहीं रखा जा सकता। क्योंकि, प्राण प्रतिष्ठा को लेकर उनका विरोध नहीं है, पर वे इस प्राण प्रतिष्ठा समारोह को विधि विधान के मुताबिक नहीं मान रहे। ऐसी स्थितियों में अयोध्या के बहाने एक महाभारत जरूर शुरू हो गई।