लोक के राम
डॉ सुमन चौरे
भगवान विष्णु के दशावतार की अवधारणा में नरावतार में नरसिंहावतार के बाद वामन और ऋषि परशुराम के अवतारों की कथाएं तो पुराणों सहित अन्य शास्त्रों के माध्यम से समाज में प्रचलित रहीं किन्तु आदर्शावतार प्रभु राम और पूर्णावतार श्रीकृष्ण ने लोक के रोम-रोम में वास किया और लोक जीवन के हर पहलू को प्रभावित किया है
सोलह कलाओं से पूर्ण भगवान श्री कृष्ण पूर्णावतार हुए कितु उनके बाल रूप लीला रूप ही लोने अधिकाधिक गृहण किंतु अवसर-अवसर पर उन्होंने अपने भक्तों निज रूप-विराट के दर्शन करा दिए तुलना की बात नहीं, परंतु राम ने अपने इस स्वरूप का अहसास तो कराया किंतु कभी चमत्कार प्रकट नहीं किए। श्रीरामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदासजी ने कहा है-
लोचन अभिरामा तनु घनश्यामा निज आयुध भुज चारी
भूषण वनमाला नयन विशाला सोभा सिंधु खरारी
भावार्थ: नेत्रों को आनंद देने वाले, मेघ के समान श्याम शरीर था; चारों भुजाओं में अपने खास आयुध धारण किए हुए थे दिव्या भूषण और वनमाला पहने थे। बड़े बड़े नेत्र थे। इस प्रकार शोभा के समुद्र तथा राक्षस को मारने वाले भगवान प्रकट हुए ।
गोस्वामी जी ने बालकाण्ड में यह वर्णन उस अवसर का किया जब माता कौशल्या के गर्भ से बाल रूप में राम ने जन्म लिया और तुरंत अपना चतुर्भज रूप प्रकट किया। माता कौशल्या ने बड़े ही सहज भाव से विनती की, हे प्रभु अपने इस रूप को त्याग कर बाल रूप में मेरी गोदी में आओ। आगे गोस्वामी इस छंद में कहते हैं-
माता पुनि बोली सो मति डोली तजहु तात यह रूपा।
कीजै सिसुलीला अति प्रियसीला यह सुख परम अनूपा॥
भावार्थ: माता की बुद्धि बदल गयी, तब वह बोली- हे तात यह रूप छोड़कर अत्यंत बाललीला करो। माता के वचन सुनकर देवताओं के स्वामी भगवान स्वामी सुजान ने बाल रूप होकर रुदन करना शुरू कर दिया।
कौशल्या की कोख से राम ने जन्म लिया और जन्म से ही माता का मातृत्व, वात्सल्य प्रेम भाव हृदय से नि:सृत हुआ। रानी कौशल्या भूल गई कि उन्होंने भगवान को अपनी कोख से जन्म लेने के लिए साधना जप, तपस्या की किंतु शिशु के जन्म से ही उसे देखकर अपनी गोद में दूध पीते हुए किलकारियां भरते बाललीलाएं देखने की कामना जागृत हो उठी। लोक के अन्तर्मन में जागृत हुई श्रद्धा और आस्था भरी कामना ही लोकव्यवहार का मूल है। यहां लोक लालसा लोक कामना, लोक दर्शन, लोकनंद है जो लोक अपने आपको राममय पाता है। इस धरा पर पुरुषोत्तम राम के आदर्श जीवन और उनके राम राज्य को अनुभूत कर भारतीय लोक संस्कृति राममय है। उठी है।राम का हर रूप हर अवस्था लोक अपनत्व का बोध कराता है, लोक ने अपने संस्कारों में राम को हर पल, हर क्षण अपने निकट पाया है। निमाड़ की लोग संस्कृति राममय है, निमाड़ में जन्म संस्कार से पूव एक लोक व्यवहार होता है। गर्भाधान के सातवें मास या नवमें मास में गर्भिणी की गोद भरी जाती है, इस अवसर पर साथ गीत याने संतान पाने की कामना और अभिलाषा के गीत गाए जाते हैं। इन गीतों में तो कामना होती है कि हमारे घर पर जो संतान आने वाली है, जन्म लेने वाली संतान राम जैसी ही हो या राम ही हो। लोक में जन्मे शिशु को राम-कृष्ण के रूप में ही देखा जाता है।
गीत-
कुल देवी सी करुं अरदास
म्हारा घर राम जलम
राम जलम न भरत जलम
हमारा घर राम जलम
राम जलम ते ऋषि आज्ञा पाल
आज्ञा पाल तो ताड़का मार….राम जलम
राम जलम तो पितु आज्ञा पाल
अज्ञा पाल तो वन सिधार
वन सिधारी रावणा मार…. राम जलम
राम जलम तो सबरी अहिल्या तार
जग को कर उद्धार …. राम जलम
राम जलम तो राम राज चलाव
दीन दुखियाँ को कर उद्धार … राम जलम
कुल देवी सी करा अरदास हमारा घर राम जलम
भावार्थ- हे कुल देवी माता, आप से प्रार्थना है, अरज है कि हमारे घर राम जैसा और भरत जैसा पुत्र उत्पन्न हो। राम जन्म होगा तो ऋषि की आज्ञा से ताड़का सुबाहु का वध करेगा। राम जन्म लेना तो पिता की आज्ञा पालकर, वन जाएगा, रावण और राक्षसों का नाश करेगा। राम जन्मेगा तो शबरी अहिल्या का उद्धार करेगा। राम राज चलाएगा और दीन दुखियों का पालन कर जगत का उद्धार करेगा।
लोकगीतों में राम जैसे पुत्र की कामना और राम जैसे आचरण को तीव्र लालसा, उसकी अपनी संतान के लिए रहती है। यह भाव लोक का राम अपनत्व भाव है, राम जैसे पारिवारिक, सामाजिक व्यावहारिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक जीवन की अपेक्षा और आज्ञापालक संतान की कामना लोक माता करती है।
आज्ञाकारी पुत्र या संतान की आशा लोक कामना का एक उदात्त स्वरूप है। श्री पीताम्बरा पीठाधीश्वर स्वामीजी महाराज ने अपने वैदिक उपदेश गंथ के 32 वें मंत्र में लिखा है-
अनुव्रत: पितु: पुत्रों माता भवतु संमना:।
जत्या पत्ये मधुमतीं वा वाचं बदतु शांतिवाम।
अथर्ववेद 3-30-2
शब्दार्थ: पुत्र पिता के अनुकूल चलने वाला हो, माता सुंदर मन वाली हो पति के प्रति सुखकारक मीठे वचन बोलने वाली धर्मपत्नी हो, अर्थववेद के उपर्युक्त मंत्र की व्याख्या करते हुए पूज्यपाद स्वामी जी महाराज ने लिखा है- सुखकर व्यवहार अपने परिवार में मनुष्य को कैसे करना चाहिए, इस मंत्र में बताया गया है। माता पिता, पुत्र धर्मपत्नी ही परिवार में मुख्य होते हैं। पुत्र का मुख्य धर्म माता-पिता की अनुकूलता प्राप्त करना हे। इसी मंत्र की व्याख्या करते हुए आगे स्वामी जी लिखते हैं श्री राम ने कैकयी को सर्वथा प्रतिकूलता होने पर भी अपनी माता के समान ही उनका आदर करते हुए वनवास को स्वीकार किया था, ऐसा उदाहरण विश्व में ढूढने पर भी नहीं मिल सकता है। राम के इसी आचरण के कारण लोक राम जैसे पुत्र की कामना करता है।
लोक में संतानोत्पत्ति के अवसर पर जो बधाईयां गाईं जाती हैं। उनमें दशरथ को दी बधाई पहले गायी जाती है। महल हो अट्टालिका हो, या झोपड़ी हो, संतान के जन्म पर जो बधाई गाई जाती है वह एक ही भाव की होती है।
गीत बधाई:
आज तो बधाई, राजा दशरथ राय क्याँ
चम्पो फूल्यो मोंगरो फूल्यो अति सुख पाय के
राणी कौशल्या असी फूली, रामचंद्र जाय के
राणी कैकेयी असी फूली भरत लाल जाय के
गेंदो फू्ल्यो, दवणों फूल्यो, अति सुख पाय के
राणी सुमित्रा असी फूली लखन लाल जाय के
राणी सुमित्रा असी फूली सत्रुहन जाय के
आज ेतो बधाई राजा जनक राय के क्याँ
जाही फली- जूही फूली अति सुख पाय के
राणी सुनैना असी फूली सीता उर्मिला जाय के
केवड़ों फूल्यों मोंगरों फूल्यों अति सुख पाय के
मोठी ववू असी फूली, नानी ववू असी फूली
पुत्र सुख पाय के, दीय सुख पाय के
आज तो बधाई मोठा जी भाई रायक्याँ
आज तो बधाई नाना जी भाई रायक्याँ
भावार्थ: राजा दशरथ के यहां आज बधाई आ गई है। चम्पा फूल उठा है, मोंगरा फूल उठा है अति सुख पाकर, रानी कौशल्या अति आनंद से फूल उठी हैं, रामचंद्र जैसे पुत्र को जन्म देकर। राणी कैकेयी ऐसी ही आनंदित हो गई हैं भरत जी को जन्म देकर । गेंदा फूल उठा है, दवणा फूल उठा हस्, ऐसे ही राणी सुमित्रा आनंदित हो उठी हैं। लक्ष्मण और शत्रुहन जैसे पुत्रों को जन्म देकर, पाकर। चमेली फूल उठी, जुही फूल उठी उति सुख पाकर ऐसे ही राणी सुनैना सीता उर्मिला पुत्रियोंजन्म देकर प्रसन्न हो उठी हैं। आज राजा जनक के घर बधाई है। केवड़ा फूल उठा है, चमेली फूल उठी है। अति सुख पाकर ऐसे ही मोठी बहू, छोटी बहू प्रसन्न हो गई है। पुत्र पाकर, पुत्री पाकर। आज बड़े भाई, छोटे भाई के घर बधाई है।
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लोक अपने आराध्य देवी-देवताओं के साथ तादात्म्य भाव स्थापित कर उन्हें अपने साथ सदैव रखते हैं। राम तो जैसे लोक के रोम-रोम में रमता है, इसलिए लोक अपनी संतान की बधाई में सबसे पहले राजा दशरथ को बधाई देते हुए गाते हैं।
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बधावा गीत:
काई बधाई छे जी आज राजा दसरथ घर
छाइ बधाई छे जी आज राजा दसरथ घर
कौशल्या की कूख प्रभु न जलम लिया छे
दुष्ट दलन दुख हार राजा दसरथ घर
एक लक्ष गौआ राजा दसरथ नदीवी
माणी मठाासा दियो अन्न राजा दसरथ घर।
हीरा माणिक रतन कौशल्या न दीया
गला का हरवा दीया दान राजा दसरथ घर
भावार्थ: आज क्या बधाई है? क्या आनंद है? आज राजा दसरथ घर आनंद बधाई छा रही है। राणी कौशल्या की कोख से प्रभु रामचंद्र जी ने जन्म लिया है। इसी आनंद में राजा दशरथ ने स्वर्ण जडित सींगों वाली एक लक्ष गायें दान दे दी है। और माणी मणासा अन्न का दान कर दिया है। माता कौशल्या ने हीरा माणिक रत्न तो दिये, अपने पुत्र की खुशी में कण्ठ की प्रिय कण्ठी तक दान कर दी है। सर्वत्र राम जन्म की बधाई छा गई है और सब लोग दान लेकर, खुशी से आशीष दे रहे हैं।
गोस्वामी तुलसीदास के साहित्य में राम का स्वरूप—-
राम लोक जीवन की श्वास प्रश्वास में ऐस समाए हैं कि निमाड़ क्षेत्र में तो संबोधन, अभिवान भी जे राम की की कहकर किया जाता है। यहां के जन मन के अचेतन मन में भी राम ऐसे समाए हैं कि नन्हें बालक-बालिकाएँ भी राम की आपत्ति-विपत्ति पीड़ा से स्वानुभूत हो उठते हैं। बालपन से ही राम की इसी संवेदना के बीत बालगीतों में सुनाई देते है। यह घर-घर में सुनाई जाने वाली राम कथा राम लीला और मंदिरों में रामायण पाठ का असर ही है। राम को वे अपने जैसे समझते हैं। और उस वेदना से वे व्यथित हो गाते हैं-
गीत- राम चल्या वन खS माता
हम भी चली जावांगा
बेटा तूख तीस लगड गा
पाणी फॉ पावगां
लई जावांगा झारी कलथ्या
पीता चली जावांगा
बेट तूख भूख लगइगा
भोजन कॉ पावँड गा
तोड़ी लेवाँगा वन फल लग्या
खाता चली जावॉगा
बेट तूख नींद आव गा
सोवणू काँ कर गा
बिछई लवाँगा सूख पान्टा
भूमि मS सूता जावाँगा
व्हॉज हमख राम मिलन
बाण छोड़ता जावाँगा
राक्कस मारता जावाँगा
राम खS नी छोड़ाँगा
भावार्थ: हे माता, रामचंद्र वन को जा रहे हैं, हम भी उनके सथ चले जायँगे। माता पूछती है। हे पुत्र तुम्हें प्यास लगेगी तो पानी कैसे पीयोगे? तुम को भूख लगेगी तो भोजन क्या करोगे? नींद आयेगी तो कहां सोवोगे? हे माता हम लोटा झारी ले जाएंगे, उसी से जल भरकर पानी पीत पीते चले जाएंगे। वन में जो वन फल लगे हैं, उन्हीं को तोड़कर खाते चले जाएंगे। हे माता वन की सूखी घास पत्तों का बिस्तर बनाकर जमीन पर ही सो जाएंगे। वहीं रामचंद्र जी के साथ बाण तोर चला कर राक्षसों को मार डालेंगे, किंतु राम को अकेला नहीं छोड़ेंगे। उनके साथ ही वन चले जाएंगे।
राम के प्रति अगाध श्रद्धा दर्शाते हुए बालकों के झूले के बहुत से गीत हैंं।
गीत-
दुखी मत हुजो रेS परभु राम
वन मS संगात हम भी रहवाँगा
जद सीता मैया राँहाणी करS गा
लाकड़ी कण्डा, नS पाणी हमद भराँगा
जद सीता मैया थाल परोसगा
थाल परोस नS रामलखन जीमड़
जीमता वीरा नS खS हम भी देखाँगा
मुदिन मन हम भी रमाँगा
वन मS संगात हम भी चलाँगा।
भावार्थ: हे राम दुखि मत होइये। हे प्रभु हम भी तुम्हारे साथ वन में चलेंगे। जब सीता मैया भोजन बनाएंगी तो हम लकड़ी कण्डा चूल्हा जलाने और पीने को पानी भर कर ला देंगे। जब सीता मैया भोजन बना कर थाल पसोसेगी, थाल परोसते ही राम लक्षन वीर भोजन करेंगे। जिन भाइयों को देखकर हम मन ही मन आनंदित हो जाएंगे। हम आपके संगात वन में चलेंगे, अकेले नहीं जान देंगे।
हम बाल सुलभ भाव गीतों में नर नारायण का भेद तनिक भी नहीं बूझता है। यहीं लोक देवता हैं, जहां हर अवसर पर पहले राम को स्मरण किया जाता है। विवाह के अवसर पर जम लग्न टीम लिचाी जाती है उस अवसर पर जो बधाई गयो जाते हैं, उसमें सबसे पहले सीता-राम के लिए ही बधावा गया जाता हे।
गीत-
खुशी भई नS म्हारा मन की
आज बधाई सीया राम की
राजा दशरथ नS रत्न लुटाया
हाथी घोड़ा पालकी
राजा जनक नS गौआ छोड़ी
स्वर्ण सींग जटित दा की
आज बधाई सीया राम की।
राणी कौशल्या नS माण्कि लुटाया
हीरा मोती थाल लाल भी
राणी सुनैना नS वस्त्र लुटाया
रेशम जरी नS मसरू थान की
आज बधाई सीया राम की
भावाथर्: मेरे मन में आनंद हर्ष छा रहा है। आज सीता राम के विवाह की बधाई इस अवसर पर राजा दशरथ ने रत्न हाथी घोड़ा पालकी सब लूटा दिये।
राजा जनक ने गौशाला में बँधी स्वर्ण सींग जडि़त दूध देनी एक लक्ष गाये सीया राम के विवाह की बधाई में दान कर दीं। राणी कौशल्या ने माणिक मोती और हीरे जवाहर लाल थाल भर-भर कर लूटा दिये हैं। राणी सुनैना ने जरी मशरू रेशम के वस्त्रों के थान के थान ही दान कर दिये। आज राम सीता के विवाह की हर्ष और आनंद की बधाई है।
आत्मा परमात्मा का जहां भेद न हो वहीं लोक तो राम मय है, हर जगह राम है। सब कुछ राम ही है, लोक में कहा जाता है-
मुड़ा मे राम न हाथ मS काम
उठत राम बठत राम पड़त राम
जीवत राम भरत राम राम मय
राम सी जीवन सकाम राम राम
भावार्थ- बोल चाल में कहते हैं कि भगवान की भक्ति या पूजा में क्या विधान? मुंह से राम का नाम लो और हाथ से काम करो। उठते -बैठते, सोते- जागते, जीते मरते राम का नाम लें तो जीवन सार्थक होगा।
लोक ने राम नाम के जाप को सरल साथ ना का मंत्र माना है। राम नाम से संबंधित बहुत से रिवाज लोकाचार, लोकव्यवहार और लोकाचरण जीवन को प्रभावित करते हैं। सत्याचरण, मातृभक्ति, पितृाज्ञा भ्रात प्रेम राज्य शासन और एक पत्नी धर्म की बात होती है तो लोक में उदाहरण दिया जाता है कि बेटा पुत्र हो तो राम जैसा, इस धर्म पर से लोक में कैणात भी बनी है जैसे-
राम की लाकड़ी मड आवाज नी होती।
राम नाव की लाकड़ी मड जीभ नी हाँई,
अगर किसी का जीवन अनाचरण से भरा होता है तो यही कहते हैं कि राम की सीख गुपत (गुप्त) रहती है। राम शक्ति और शक्ति संचार का घोलक भी है, निर्बल शक्ति के लिए यह न कहकर कि वह अशक्त है उसके लिए एक लोक सूक्त है-ओकS सरी मS राम नी हाँइ
अर्थात उसके शरीर में राम नहीं हैं, शक्ति ही राम है। राम राम नी होय तो जीव नी होय
राम ही जीवात्मा है। लोक ऐसा रमा है राम में।
जब किसी में मतभेद हो जाता है तो कहते हैं थारो राम, ओको राम कोई भेदयो नी हाँई अर्थात तेरा रक्षक उसका रक्षक एक है, उसमें भेद नहीं है।
राम को आदर्श राजा मर्यादा पुरुषोत्तम कहते हैं, किंतु जब भावना की बात आती है तो राम एक सामान्य आचरण करते हुए दुखी नजर आते हैं। राम के आदर्श का सम्बल भाई भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न रहे हैं। सीता की खोज में हनुमन्त ने जो भक्ति भाव का परिचय दिया, ऐसा ही भाव लक्ष्मण का भी वनवास काल में साथ रहा। जब लक्ष्मण को शक्ति लगी, तब राम विकल हो उठे। करुणावतार करुणा केनसागर इतन द्रवित हो उठे कि भाई को गोद में लेकर विलाप कर रहे थे। उस रुदन को सुनकर लग रहा था कि स्वयं करुणा भी करुण हो उठी है। वे पछतावा कर रहे थे कि ऐसा भाई इस संसार में फिर पैदा नहीं होगा, ऐसी माता जिसने अपने पुत्र को भाई के लिए न्यौछावर कर दिया ऐसी माता नहीं होगी दूसरी….
गीत करुण भावश
गीत:
तुख कुण नS मारयो बाण
बतई दS रेS लछमण वीरा
ओको करुँ धरती सीS नास
बतई दS रेS लछमण वीरा
हाऊँ अजुध्या कसो जाऊँगा
थारा बिनस्कसो हाऊँ रहूँगो
माता खS स् काई कऊँगा वातS
बतई दS रेS लछमण भाई
हाऊँ मह्यल मS कसो जाऊँगा
माता खS काई समझाऊँगा
उर्मिला खS काई दई समझाऊँगा
रडग़ सुनैना मात
बदई दS रेS लछमण वीरा
एक वारी उचाड़ी दS… वाच… लछमण वीरा
बतई दS रेS लछमण वीरा…
भावार्थ: हे मेरे अनुज, तुझे किसने बाण मारा है? तू मुझे बता दे, मैं उसका धरती से नाश कर दूँगा। हे भाई, तेरे बिना मैं अयोध्या कैसे जा सकता हूँ? और तेरे बिना मेरा जीवन कटेगा भी कैसे? मैं माता को क्या उत्तर देकर समझाऊँगा? ऊर्मिला के सामने कैसे खड़ा हो सकूँगा। उसे उसकी माता सुनैना (सुनयना) भी तो पूछेगी, कि उसकी बेटी का पति कहाँ है? क्या उत्तर दूँगा मैं? हे भाई, तू एक बार तो आँख खोल और कुछ शब्द तो बोल, तुझे किसने बाण मारा है?
भाई से भाई का ऐसा प्रेम संबंध निज भाव देखने को सुनने को नहीं मिलता है। इस प्रसंग के बाद घोर युद्ध हुआ। राम ने रावण पर विजय प्राप्त की। राम अपने साथ सीता और लक्ष्मण सहित लंका से अयोध्या लौटे। उन्होंने वचन का पालन किया। उनका राज्याभिषेक हुआ। फिर राम लोकापवाद से घिर गए। उस समय राम ने अपना सर्वस्व त्याग दिया। हर संकट की घड़ी में साथ खड़ी रहने वाली सीता तक का त्याग कर दिया। फिर भी लोक ने क्षमा नहीं किया। किन्तु राम का जीवन लोक हित में समर्पित रहा।
लोक ने राम को अवतार रूप में या देव रूप में नहीं देखा, ना ही स्वीकारा। लोक ने राम को लोक मानव मान कर अपनी कसौटी पर कसा। राम को अपने ही बीच पाया और अपना ही समझा। लोकदृष्टि सूक्ष्म भी है, विराट भी है। वह राम के बिना नहीं रह सकता। इसलिए अन्त में कह उठता है- राम नाम सत्य है।
डॉ सुमन चौरे, लोक संस्कृति विद् एवं लोक साहित्यकार, भोपाल
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