आम चुनाव से भी ज्यादा चुनौतीपूर्ण होते पंचायत चुनाव

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हाल ही में पंचायत चुनावों की घोषणा हो गयी है , उम्मीद है कि अब शीघ्र ही प्रदेश में त्रिस्तरीय ढाँचे के प्रथम स्तम्भ के चुनाव सम्पन्न हो जाएँगे । भले ही हमारे यहाँ ये निर्वाचन दलीय आधार पर नहीं होते , पर गहमागहमी का माहौल इनमें आम चुनावों से कम नहीं होता ।

नौकरी के इतने वर्षों में चुनाव प्रक्रिया से हमारा जुड़ाव रहा आया है और सेवा निवृत्ति के बाद भी प्रेक्षक के रूप में हम जैसे अधिकारियों का उपयोग राज्य चुनाव आयोग करता रहता है । चुनाव के बाद अब तो ई.व्ही.एम .बड़ी सुरक्षा में रखी जाने लगी हैं , फिर भी दृढ़ कक्ष के बाहर निगरानी करने की सुविधा मिलने से , दृढ़ कक्ष के बाहर खाट बिछा कर भी नेता लोगों के सोने की प्रवृत्ति धीमे धीमे बढ़ रही है |

हमारे प्रदेश में पहले पंचायत चुनाव हुए 1990 के बाद , तब मैं नरसिंहपुर में डिप्टी कलेक्टर था । चुनाव के तुरंत बाद ढेर सारी याचिकाएँ हाईकोर्ट में लग गयीं । हम टिन के डब्बों से बनाई मतपेटियों को पंचायत भवन में बनाए स्ट्रॉंग रूम में सहेज कर रखे रहे और इंतज़ार करते रहे । आख़िरकार माननीय न्यायालय ने आदेश दिया कि मतगणना तो कर ली जावे पर परिणाम ना घोषित किए जायें ।

इस उलझन भरे आदेश के बाद सरकार ने निर्णय लिया की गणना ही ना करें और कुछ दिनों बाद चुनाव ही निरस्त हो गए । स्थानीय निकायों के निर्वाचन के लिए तब आयोग के आयुक्त श्री एन.बी. लोहानी साहब ने बड़ी मेहनत से निर्वाचन के स्पष्ट निर्देश और नियम बनाए और 1992 के बाद पहली बार पंचायत चुनाव सम्पन्न हुए । तब तक मैं सीहोर स्थानांतरित हो कर सीहोर अनुविभाग का एस.डी.एम. बन चुका था ।

पहले पहल हुए इस चुनाव में बहुत होचपोच हुई , पर धीमे धीमे पंचायत चुनावों की अपनी लय तय हो गयी और केवल एक मुसीबत को छोड़ कर , कि पंचायत स्तर के पँच और सरपंच की मतगणना बूथ में ही की जाती थी शेष कठिनाइयाँ समाप्त हो गयीं । मतगणना की इस दुविधापूर्ण अवस्था का अनुभव मैंने तब किया , जब इंदौर में अपर कलेक्टर रहते हुए मैंने पंचायत चुनाव करवाये ।

इंदौर शहर से लगी हुई पंचायतों के चुनाव , विधानसभा के चुनावों की तरह ही चुनौती पूर्ण होते थे । ख़ासकर जब हार जीत का फ़ासला दो-चार वोटों का हो तब तो गणना करने वाला दल जो सामान्यतः मतदान दल ही होता था , बड़े पशोपेश और तनाव में रहा करता था । मुझे याद है इंदौर के उस दौर के पंचायत चुनावों में ऐसे ही शहर से लगी एक पंचायत में शाम को तनाव की शिकायत मिलने पर मैं अपने साथी पुलिस अधिकारी आकाश जिन्दल के साथ , जो एक नवजवान आइ.पी.एस. अधिकारी थे , मौक़े पर पहुँचा ।

देवास रोड पर कुछ आगे चल कर स्कूल में जब हम पहुँचे तो मतगणना स्थल पर बड़ा तनाव था । हार जीत एक वोट की थी और मतों की पुनर्गणना का आवेदन आ चुका था । जो सज्जन जीत चुके थे , उनका लिखित में पुनर्मतगणना ना कराने का और कराई जाय तो ब्लॉक मुख्यालय में कराने का अनुरोध आ चुका था । दल प्रभारी पशोपेश में थे , क्योंकि भारी भीड़ मतदान केंद्र के सामने जमा हो चुकी थी ।

मैंने दल प्रभारी से पूछा , यदि आप पुनर्गणना का आवेदन स्वीकार कर लेते हो तो फिर से गणना कराने में कितना समय लगेगा ? दल प्रभारी बोले ये तो आधे घंटे में हो जाएगा , लेकिन ऐसी भीड़ के समक्ष गणना करना ख़तरे से ख़ाली न होगा । मैंने उन्हें सलाह दी कि आप गणना की तैय्यारी करो और दोनों प्रत्याशियों से कहा कि गणना के समय या तो आप स्वयं या आपके प्रतिनिधि ही उपस्थित रह सकेंगे बाक़ी नहीं और इस तरह दो लोगों के अलावा सारे समर्थक सौ मीटर की परिधि से स्कूल बाउंड्री के बाहर कर दिए ।

भीड़ ख़त्म होते ही दल में विश्वास लौट आया और फुर्ती से पुनर्गणना प्रारम्भ हो गयी , कुछ ही देर में उसी परिणाम के साथ गणना समाप्त हुई और मैंने देखा कि हारे हुए प्रत्याशी के चेहरे पर भी संतोष का भाव था । गणना यदि वहाँ ना करा कर बाद में करते , तो हारने वाले को कुछ शंकाएँ हो सकती थीं , पर यहाँ सामने ही दूध का दूध और पानी का पानी हो गया । हमने मतदान दल को अपने सामने परिणाम और मतपेटी के साथ ज़िला मुख्यालय रवाना किया और पीछे पीछे हम भी कलेक्टरेट आ गए ।

भारत निर्वाचन आयोग ने अब सुरक्षा के मद्देनज़र ये फ़रमान कर दिया है कि मतों की गणना में प्रत्याशियों के एजेंट एक निर्धारित सुरक्षा घेरे में रहेंगे , वरना पुराने ज़माने में जब मतपेटियों को खोल कर मतपत्र गिने जाते थे , तब मुझे याद है कि कुछ प्रारम्भिक सतर्कता के बाद तो एजेंट लोग भी गिनती में सहयोग करने लगते थे |

बाहर चाहे जो भी माहौल हो मतगणना केंद्र के अंदर तो अधिकतर सारे दलों के लोग मिलजुलकर ही गणना में सहयोग करते थे । पिछले वर्षों में गुजरात के विधान सभा चुनावों में जब मैं राजकोट में प्रेक्षक बन कर गया तो मतगणना के दौरान कुछ देर बाद , जब कि लगभग तय हो गया कि कौन प्रत्याशी जीत रहा है , विधान सभा के दोनों प्रमुख दलों के प्रत्याशी एक साथ ही कुर्सी पर बैठे आपस में गप्प मारने लगे ।

मुझे आश्चर्य हुआ और मैंने पूछा कि आप लोग तो परस्पर विरोध में चुनाव लड़ रहे हो और विरोधी हो , तो इनके जीतने पर आपको बुरा नहीं लग रहा ? जो सज्जन हार रहे थे , वे बोले साहब मैं एक बार सांसद और तीन बार एम.एल.ए. रह चुका हूँ , मंत्री भी रहा हूँ , तो कोई बात नहीं मैंने अपने हिस्से की सेवा कर ली अब इनका समय आया है तो इन्हें शुभकामनाएँ , गिला करने से क्या ? मैंने मन ही मन उनके हृदय की विशालता और महात्मा गांधी की इस भूमि को प्रणाम कर लिया और जल्द ही परिणाम घोषणा के बाद इंदौर के लिए रवाना हो गया ।