Terror of Neelgay : मालवा के खेतों में नीलगाय का आतंक, फसल बर्बादी से कई किसान परेशान!

मंदसौर, रतलाम सहित कई जिलों में प्रदर्शन, देपालपुर एसडीएम के नाम ज्ञापन!

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Terror of Neelgay : मालवा के खेतों में नीलगाय का आतंक, फसल बर्बादी से कई किसान परेशान!

Depalpur (Indore) : नीलगाय (रोज़डा) के आतंक से पूरे मालवा के किसान परेशान है। ये जानवर झुंड बनाकर खेतों में घुस जाते हैं और पूरी फसल बर्बाद कर देते हैं। हर बीघा में दो से तीन क्विंटल प्रति बीघा का नुकसान होता है। मक्का,चना, लाल तूवर व मटर की फ़सल की तो इस वजह से किसानों ने बोवनी ही बंद कर दी। फसल खाने के साथ ये पूरी फसल को रौंद कर बर्बाद कर देते हैं। वन विभाग से किसानों ने कई बार इस जंगली जानवर पर रोक लगाने की मांग की लेकिन वन विभाग कोई कार्रवाई करने को तैयार नहीं है।

पूरे मालवांचल के किसान नीलगाय (रोजड़ा) की समस्या से परेशान होकर आक्रोशित हैं। लेकिन, सरकार कोई कार्रवाई नहीं कर रही। कई इलाकों में इसे नीलगाय कहा जाता है। संयुक्त किसान मोर्चा के नेता रामस्वरूप मंत्री और बबलू जाधव ने बताया कि इस समस्या को कई बार सरकार के सामने रखा गया। लेकिन, किसान हितेषी सरकार का दावा करने वाले मुख्यमंत्री भी समस्या को हल करने की ओर कोई कार्रवाई नहीं कर रहे। इस समस्या को लेकर पूर्व में मंदसौर, रतलाम सहित कई जिलों में प्रदर्शन हो चुके हैं। इंदौर जिले में भी खास करके सांवेर और देपालपुर तहसील में यह समस्या अधिक है और इससे परेशान किसान परेशान है।

संयुक्त किसान मोर्चा ने बताया कि देपालपुर तहसील के बिरगोदा ,बनेडिया, मुंदीपुर, शिवगढ़, फरकोदा, काई, मेंढकवास,खेड़ी कडोदा, शाहपुरा, सुमठा, सगडोद, बिरगोदा, बनेडिया, मुंदीपुर, फरकोदा, काई, मेंढकवास, खेड़ी कडोदा, कटकोदा, शाहपुरा, सुमठा, बछोड़ा, जलोदिया पंथ खड़ी ,बरोदा पंथ, हरनासा, बेगंदा, सगडोद चादेर जैसे अन्य कई गांव हैं ,जहाँ के किसान घोड़ की नुकसानी से त्रस्त हैं। किसानों का कहना है कि पहले सीमित दायरे में दिखाई देते थे। लेकिन, अब इनकी संख्या बढ़ती जा रही है और खेतों में झुंड के झुंड कभी भी देखे जा सकते हैं। किसान भगवान भरोसे खेती करने को मजबूर हैं। प्रकृति की मार का सामना करने वाले किसानों को अब घोड़ा रोज के आतंक से रोज रूबरू होना पड़ रहा है।

हर गांव में नील गाय (रोजड़ा) का आतंक है जो फसलों को बर्बाद कर रहे हैं। ये पकी फसल का नुकसान कर रहे हैं। फसल कच्ची हो या पक्की इनको उससे कोई मतलब नहीं, इनको तो बस फसल उजाड़ने से काम है। चाहे लहसुन के खेत हों, प्याज की खेती या गेहूं के, खेतों में इनका नुकसान बढ़ता ही जा रहा है। हर गांव में इनकी संख्या बढ़ती ही जा रही है। झुंड के झुंड नजर आते हैं, पहले किसी सीमित दायरे में रहते थे अब पूरे जंगलों में घूमते-फिरते रहते हैं। घोड़ा रोज से किसानों की फसल बर्बाद होने के साथ ही वाहनों से टकराने से दुर्घटना भी हो रही है।