समान नागरिक संहिता की जननी बनती देवभूमि…!

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समान नागरिक संहिता की जननी बनती देवभूमि…!

उत्तर प्रदेश में अयोध्या में भगवान राम का मंदिर बनने और बाल स्वरूप राम की प्राण प्रतिष्ठा के बाद ज्ञानवापी मस्जिद में पूजा की शुरूआत हो चुकी है। और अब देवभूमि उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता का रास्ता साफ हो चुका है।उत्तराखंड सरकार के मंत्रिमंडल ने समान नागरिक संहित यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड के ड्रॉफ्ट को मंजूरी दे दी है। इसी के साथ इस बिल को विधानसभा में पेश होने का रास्ता साफ हो गया है। अब यह तय है कि उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की सरकार आगामी विधानसभा सत्र में इस बिल को पेश करेगी। आम चुनाव से पहले उत्तराखंड सरकार की यह खास पहल यह साबित करने के लिए काफी है कि विधानसभा चुनाव में हार के बाद भी पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने क्यों लिया था। पुष्कर ने सीएम बनने के बाद ही समान नागरिक संहिता पर ध्यान केंद्रित कर दिया था और अब परिणाम सामने है। जो काम कोई नहीं कर पाया, वह धामी ने कर दिखाया। उनका यह‌ कदम लोकसभा चुनाव से पहले मोदी विजन को मजबूती से मतदाताओं के सामने रखेगा। और इस सोच के साथ सामंजस्य रखने वाले मतदाताओं को खासा उत्साहित और प्रेरित करेगा। वैसे तो राम लहर ही काफी है, पर समान नागरिक संहिता का असर भी सिर चढ़कर बोलने वाला है।
दो फरवरी को यूनिफॉर्म सिविल कोड पर गठित कमेटी ने उत्तराखंड सरकार को मसौदा सौंप दिया था। और जैसा कि सुनिश्चित है कि विधानसभा से ये बिल पारित होगा, तब आजादी के बाद उत्तराखंड इस कानून को लागू करने वाला पहला राज्य बन जाएगा। फिर हो सकता है कि उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान, गुजरात, छत्तीसगढ़ सहित भाजपा शासित राज्यों में समान नागरिक संहिता को लागू करने की होड़ लग जाए।  उत्तराखंड के यूसीसी के मसौदा की प्रमुख सिफारिशों में बहुविवाह और बाल विवाह पर पूर्ण प्रतिबंध,सभी धर्मों की लड़कियों के लिए विवाह योग्य समान आयु और तलाक के लिए समान आधार व प्रक्रियाएं शामिल होने के प्रावधान शामिल हैं।
अन्य प्रावधानों में लड़कों और लड़कियों को समान विरासत का अधिकार, विवाह का पंजीकरण अनिवार्य और लड़कियों के लिए विवाह योग्य आयु बढ़ाना, ताकि वे शादी से पहले स्नातक तक की पढ़ाई कर सकें आदि शामिल हैं। प्रावधानों का उल्लंघन सबको महंगा पड़ेगा। जिन जोड़ों की शादियां पंजीकृत नहीं हैं, उन्हें कोई सरकारी सुविधा नहीं मिलेगी। पंजीकरण की सुगमता के लिए ग्रामीण स्तर पर विवाह पंजीकरण की व्यवस्था की जाएगी। तो मुस्लिम महिलाओं को भी गोद लेने का अधिकार होगा और इसकी प्रक्रिया को सरल बनाया जाएगा। हलाला और ‘इद्दत’ की प्रथाओं पर प्रतिबंध लगाया जाएगा। ‘लिव-इन रिलेशनशिप’ की जानकारी सरकार को देना अनिवार्य होगा। पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए तलाक के मामले में समान आधार और बाल विवाह की प्रथा को समाप्त करने की सिफारिश की गई है। समान नागरिक संहिता में वैसे तो बहुत सारे प्रावधान होंगे, जिनके जरिए सबके लिए कानून समान हो जाएगा। समान नागरिक संहिता राज्य में सभी नागरिकों के लिए एक समान विवाह, तलाक, भूमि, संपत्ति और विरासत कानूनों के लिए एक कानूनी ढांचा प्रदान करेगी और महत्वपूर्ण यह है कि सभी धर्मों के नागरिकों पर यह समान रूप से लागू होगा।
पृष्ठभूमि पर गौर करें तो 1962 में जनसंघ ने हिंदू मैरिज एक्ट और हिंदू उत्तराधिकार विधेयक वापस लेने की बात कही। इसके बाद जनसंघ ने 1967 के उत्तराधिकार और गोद लेने के लिए एक समान कानून की वकालत की। 1980 में भाजपा का गठन हुआ और पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष अटल बिहारी वाजपेयी बने। पार्टी को 1984 में पहले चुनाव में केवल दो सीटें मिलीं।1989 में 9वां लोकसभा चुनाव हुआ, जिसमें भाजपा ने राम मंदिर, यूनिफॉर्म सिविल कोड को अपने चुनावी घोषणा-पत्र में शामिल किया। पार्टी की सीटों की संख्या बढ़कर 85 पहुंची। 1991 में देश में 10वां मध्यावधि चुनाव हुआ। इस बार भाजपा की सीटों की संख्या बढ़कर 100 के पार हो गई। इन लोकसभा चुनावों में भाजपा ने यूनिफॉर्म सिविल कोड, राम मंदिर, धारा 370 के मुद्दों को जमकर उठाया। ये सभी मुद्दे बीजेपी के चुनावी घोषणापत्र में शामिल थे, मगर संख्या बल के कारण ये पूरे नहीं हो पाए थे। इसके बाद 1996 में भाजपा ने 13 दिन के लिए सरकार बनाई।
1998 में पार्टी ने 13 महीने सरकार चलाई। 1999 में बीजेपी ने अपने सहयोगियों के साथ बहुमत से सरकार बनाई। तब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने। तब भी गठबंधन धर्म ने भाजपा के घोषणापत्र के ऐसे प्रावधानों को अटल रेखा के अंदर सिमटे रहने को मजबूर रखा। पर वर्ष 2014 में पहली बार भाजपा प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता पर काबिज हुई और केंद्र में मोदी सरकार आई। मोदी सरकार ने पूरे जोर-शोर से अपने चुनावी वादों पर काम करना शुरू किया। अब जम्मू-कश्मीर में धारा 370 का अंत हो गया है, अयोध्या में राम मंदिर बन गया है। और अब केंद्र की मोदी सरकार समान नागरिक संहिता को लागू करने की दिशा में काम कर रही है। भाजपा के घोषणापत्र के इस प्रावधान को पूरा करने की अगुवाई देवभूमि के हिस्से में आई है। उत्तराखंड में 2022 में भाजपा ने वादा किया था कि सरकार बनते ही समान नागरिक संहिता पर काम किया जाएगा। धामी सरकार ने यूसीसी के लिए कमेटी का गठन किया। जिसने डेढ़ साल में यूसीसी का ड्राफ्ट तैयार किया। अब विधानसभा का विशेष सत्र आज यानि पांच फरवरी 2024 से शुरू होने जा रहा है, जिसमें विधेयक पारित होने के बाद समान नागरिक संहिता लागू करने वाला उत्तराखंड देश का पहला राज्य बन जाएगा। और इसके साथ ही भारत में देवभूमि समान नागरिक संहिता की जननी बनने का गौरव हासिल कर लेगा…। और पूरा देश पुष्करमय हो जाएगा।