Political Drama of Kamalnath :कमलनाथ के ‘कमल’ थामने की योजना आखिर क्यों खिसकी!

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Political Drama of Kamalnath:कमलनाथ के ‘कमल’ थामने की योजना आखिर क्यों खिसकी!

– हेमंत पाल

कमलनाथ अब कांग्रेस छोड़कर भाजपा में नहीं जा रहे। उनके सांसद बेटे नकुलनाथ और समर्थकों ने भी पार्टी बदलने का विचार त्याग दिया। घोषणा हो गईं कि अब कोई कहीं नहीं जा रहा, जो जहां था वहीं रहेगा। इस खबर से मध्यप्रदेश कांग्रेस में उत्साह चरम पर है। चार दिनों से जो मातमी सन्नाटा छाया था, वो कुहासा हट गया। पार्टी के नेता बल्ले-बल्ले उछल रहे हैं। ख़ुशी इतनी है मानो दिल्ली फतह कर ली हो। इसके बाद इस कथित राजनीतिक अफवाह का सारा ठीकरा मीडिया के माथे फोड़ दिया गया कि ऐसा तो कुछ था ही नहीं, जो प्रचारित किया गया। ये हमेशा ही होता आया है, इस बार भी हुआ। मीडिया को विलेन बनाने की प्रवृत्ति एक बार फिर सफल हुई।

मध्यप्रदेश कांग्रेस में चार दिन से भारी हंगामा था। छिंदवाड़ा और भोपाल से लगाकर दिल्ली तक पर सबकी नजरें टिकी थी। लग रहा था कि कांग्रेस में कमलनाथ गुट का विदाई संगीत बज रहा है और उधर भाजपा ने स्वागत गीत गाना शुरू कर दिया। कांग्रेस को ज्योतिरादित्य सिंधिया प्रसंग का कड़वा अनुभव है, इसलिए पार्टी का दुःख ज्यादा बड़ा था। कमलनाथ और नकुलनाथ ने इस घटनाक्रम पर कोई टिप्पणी नहीं की। पर, इस राजनीतिक गुट से जुड़े विधायक और नेता कुंचाले भरने लगे थे। यहां तक कि नकुलनाथ की देखा-देखी उन्होंने भी सोशल मीडिया पर अपनी पहचान से ‘पंजा’ हटा दिया था। ये बात अलग है कि इसके अलावा उनकी कोई पहचान भी नहीं है। लेकिन, अब वे सभी यू-टर्न ऐसे ले रहे हैं, जैसे उन्होंने रास्ता बदलने की कभी बात ही नहीं की थी।

सवाल उठता है कि आखिर ये हालात क्यों बने कि कमलनाथ जैसे सीनियर नेता को भाजपा में जाने जैसा विचार करना पड़ा और चार दिन मीडिया की सुर्खियां बने रहे। अब उन्होंने भले ही इसे अफवाह बताने की कोशिश की हो, पर वास्तव में जो सामने दिखाई दे रहा था वही सच था। यदि ऐसा नहीं था, तो पहले ही दिन उन्होंने इस अफवाह का खंडन क्यों नहीं किया? घर के ऊपर भगवा ध्वज क्यों लगाया और बाद में निकाल भी दिया। खुद कमलनाथ ने मीडिया के सवालों के जवाब में कहा कि ‘यदि कुछ हुआ तो सबसे पहले आपको बताऊंगा!’ वे तभी इसे अफवाह बताकर खंडन कर सकते थे। लेकिन, नहीं किया इसलिए कि कहीं कोई खिचड़ी तो पक रही थी जो पकी नहीं सकी।
कमलनाथ इतने अपरिपक्व नेता नहीं हैं कि वे मीडिया की सुर्खी बनने के लिए ऐसा कोई हथकंडा करें। पूरे घटनाक्रम की गंभीरता को भी वे समझ रहे थे, इसलिए उन्होंने खुद आगे होकर कुछ नहीं कहा और सज्जन वर्मा को प्रवक्ता की तरह आगे कर दिया। सज्जन ने मामले को बखूबी संभाला और मीडिया में अपने नेता की तरफ से सफाई देते रहे। जबकि, चार दिन पहले जब ये खबर परवान चढ़ी थी, तब सज्जन वर्मा समेत कई नेताओं ने सोशल मीडिया पर अपनी पहचान से पंजा गायब किया था। जबकि, जानकारी के मुताबिक, कमलनाथ, नकुलनाथ समेत इस पूरे गुट का भाजपा में जाना तय था। लेकिन, इस ‘पार्टी बदल योजना’ का गर्भपात हो गया और सारा दोष मीडिया पर ढोल दिया गया।

कांग्रेस को सिंधिया की बगावत का जो अनुभव था, उसे याद करते हुए पार्टी ने अपने स्तर पर गंभीर प्रयास तो किए, पर उसे मीडिया में नहीं उछाला। डैमेज कंट्रोल के लिए प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार को मोर्चे पर लगाया गया। उनके प्रयास सफल भी रहे। ऐसे समय में दिग्विजय सिंह ने गजब का आत्मविश्वास से भरा बयान देकर अपना बड़प्पन दिखाया। उन्होंने स्पष्ट कहा कि कमलनाथ कहीं नहीं जा सकते। लेकिन, कई कमलनाथ समर्थकों के बचकाने बयान भी सामने आए कि हमारे नेता का अपमान हुआ है, इसे सहन नहीं करेंगे। कई विधायकों के मोबाइल बंद होने से भी आशंका को बल मिला। पर, गुट के सभी लोग साथ नहीं दिखे। कमलनाथ के नजदीकी कहे जाने वाले हुकुमसिंह कराड़ा ने कहा कि कांग्रेस हमारी मां है, पार्टी ने मुझे बहुत कुछ दिया, मैं कहीं नहीं जा रहा। देखा जाए तो इस पूरे घटनाक्रम ने कांग्रेस की हदबंदी को भी उजागर कर दिया। ये साफ़ दिखाई दे गया कि ये कांग्रेस के लोग नहीं, बल्कि ‘कमलनाथ गुट’ है, जिसके लिए पार्टी कोई मायने नहीं रखती।

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जब कांग्रेस के किसी बड़े नेता के भाजपा में जाने की बात देशभर में बड़ी राजनीतिक खबर बनी हो, तो यह बात भी मायने रखती है कि इसका भाजपा में क्या असर हुआ! निश्चित रूप से भाजपा के इशारे के बिना कमलनाथ के पार्टी बदल की बात को बल नहीं मिला होगा। यदि ऐसा नहीं था, तो भाजपा को खंडन करना था कि ऐसा कुछ नहीं है। इसीलिए लगता है कि यह सब अचानक नहीं हुआ। निश्चित रूप से इसकी पटकथा महीनेभर पहले से लिखी जा रही होगी, जब कमलनाथ को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाकर उनकी जानकारी के बिना जीतू पटवारी को उनकी कुर्सी सौंप दी गई थी। भाजपा ने भी कमलनाथ की भूमिका तय की होगी, लेकिन योजना के असफल होने के बाद सबने चुप्पी साध ली!

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राजनीतिक सनसनी बताती है कि कमलनाथ के भाजपा प्रवेश में उनके सिख नेता आड़े आ गए और बाजी पलट गई। भाजपा के एक नेता का तो विरोधी बयान भी सामने आया। उन्होंने कहा कि जिस कमलनाथ पर 84 के दंगों में शामिल होने का आरोप हो, उन्हें भाजपा में कैसे लिया जा सकता है! कहा जाता है कि इस सिख नेता के उग्र बयान के बाद ही पटकथा बदली और कमलनाथ गुट के कदम फिर कांग्रेस के पाले में आ गए। कहा यह भी जा रहा है कि मध्यप्रदेश भाजपा भी नहीं चाहती थी कि सिंधिया की तरह कमलनाथ गुट को भी भाजपा में लाया जाए!

यह बात भी उठी कि नकुलनाथ समर्थकों के साथ भाजपा में जाएं और कमलनाथ कांग्रेस में ही रहें, पर ये फार्मूला भी नहीं चला। बताते हैं कि कांग्रेस हाईकमान इसके लिए राजी नहीं हुआ। पटकथा के क्लाइमैक्स में कमलनाथ के प्रवक्ता के रूप में सज्जन वर्मा फिर सामने आए और साफ़ किया कि कोई कहीं नहीं जा रहा है। जो सुना गया सब अफवाह थी। यानी मीडिया को विलेन घोषित करके कांग्रेस फिर एक हो गई। लेकिन, इस सच से इंकार नहीं किया जा सकता कि इस पूरे प्रसंग से कमलनाथ गुट संदेह के घेरे में जरूर आ गया। उनकी विश्वसनीयता तो संदिग्ध हो ही गई!