Congress leaders joining Bjp: …..तो संजय शुक्ला,आकाश विजयवर्गीय विधायक होते
बड़ी देर कर दी हुजूर आते-आते। यह निश्चय ही संजय शुक्ला जैसों के लिये ही कहा गया होगा। मसला फिर मोहब्बत का हो या राजनीति का। मप्र भाजपा के प्रमुख नेता जानते हैं कि विधानसभा चुनाव(नवंबर 2023) से पहले अक्टूबर में इंदौर क्षेत्र क्रमांक 1 के तत्कालीन कांग्रेस विधायक संजय शुक्ला को भाजपा में आकर उसी क्षेत्र से चुनाव लड़ने का प्रस्ताव दिया था,जिसे उन्होंने नकार दिया था। वह भी इसलिये कि वे महज विधायकी को तो जेब में मान रहे थे। बताते हैं तब उन्होंने भाजपा की सरकार आने पर मंत्री पद की आश्वस्ति चाही थी, जो न मिलने पर कांग्रेस में ही रुक गये थे। भरोसा तो यह था कि कांग्रेस सरकार बस आ ही रही है और वे मंत्री तो बना ही दिये जायेंगे। खैर,ये तो वक्त-वक्त की बात है। अब, जब भाजपा में आये हैं तो न विधायकी है, न मंत्री पद। माया मिली न राम।फिर भी बोलो जय श्री राम। संतोष है तो इस बात का कि वे न सही, परिवार से दूसरा भाई गोलू शुक्ला भाजपा से ही लॉटरी के तौर पर विधायकी पा चुके हैं।इस तरह साढ़े चार साल इस तसल्ली के साथ बिताने हैं।
अब इस पर बात करते हैं कि तब संजय भाजपा में आ जाते तो क्या होता? सबसे पहली बात तो यह कि भाजपा के तत्कालीन राष्ट्रीय महामंत्री कैलाश विजयवर्गीय को विधानसभा चुनाव नहीं लड़ना पड़ता या इंदौर-1 से तो कतई नहीं लड़ते। संभव है, तब कहीं और से पार्टी उन्हें आजमाती या यह भी संभव था कि इस समय वे इंदौर से लोकसभा के प्रत्याशी होते। कुछ भी हो सकता था। इससे इंदौर-3 से उनके बेटे आकाश का टिकट नहीं कटता। तीसरा,क्षेत्र क्रमांक-3 से तब गोलू शुक्ला को टिकट नहीं मिलता। अब संजय की राह आसान नहीं है। 2028 के विधानसभा चुनाव में यदि संजय को टिकट देना है तो गोलू का काटना पड़ेगा। यह इक्कीसवीं सदी की भाजपा है, जो एक ही शहर से दो भाई या पिता-पुत्र को टिकट नहीं देती। अगली बार महापौर भी पुरुष सामान्य नहीं रहेगा। इंदौर विकास प्राधिकरण में भी इतनी जल्दी तो नंबर लगने से रहा।याने उन्हें भाजपा कार्यकर्ता बनकर गली-मोहल्ले नापने होंगे। दुविधापूर्ण स्थिति तो उनके अपने क्षेत्र में ही होना है, जहां कल तक वे कैलाशजी को कोसते घूम रहे थे, आज कैसे उनकी शान में कसीदे पढ़ेंगे? राजनीति में यूं यह कोई इतनी बड़ी बात भी नहीं,बस आपमें वो हूनर होना चाहिये।
यह भी एक दिलचस्प संयोग है कि भाजपा में कैलाश विजयवर्गीय की राजनीति संजय के पिता विष्णुप्रसाद शुक्ला के उत्तराधिकारी के तौर पर ही हुई थी,जो बड़े भैया के नाम से पहचाने जाते थे। उनकी जड़ें संघ,जनसंघ में थी। वे क्षेत्र क्रमांक-2 से चुनाव लड़े, लेकिन कभी विजयी नहीं हो पाये। उनकी वरिष्ठता की वजह से ही कैलाशजी को विधानसभा का पहला चुनाव 1989 में क्षेत्र क्रमांक-4 से लड़ना पड़ा था और विजयी भी हुए थे। दूसरे चुनाव (1993) में इंटक और कांग्रेस प्रभावित क्षेत्र क्रमांक-2 से उन्हें टिकट दिया और नतीजतन आज तक यह क्षेत्र भाजपा का गढ़ है।पिछला चुनाव उन्होंने संजय शुक्ला को उनके गृह क्षेत्र क्रमांक-1 में जाकर हराया।
बचे देपालपुर के पूर्व कांग्रेस विधायक विशाल पटेल तो वे इतने महत्वाकांक्षी नहीं । फिर भी 2028 की जमीन तैयार करने में कसर तो नहीं छोड़ेंगे। वहां से मनोज पटेल लगातार दो चुनाव हारने के बाद कमतर तो हो गये हैं, लेकिन मैदान नहीं छोड़ने वाले। संभव है, विशाल के आने के बाद दुगने जोश से मैदान पकड़ लें।वैसे अभी काफी वक्त दोनों के लिये है।
कुल मिलाकर इंदौर में भाजपा की राजनीति में काफी पेंच पड़ गये हैं। यहां तमाम पदों के लिये वैसे ही होड़ मची रहती है,ऐसे में संजय-विशाल का आगमन खलबली तो मचायेगा। संजय शुक्ला भी अति महत्वाकांक्षी नेता नहीं माने जाते और अपने नेता के अनुसरण में विश्वास रखते हैं। पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पचौरी के प्रति उनकी निष्ठा दशकों पुरानी है। भाजपा में भी उनके पीछे-पीछे ही आये हैं। पचौरी ढलती राजनीति के वाहक हैं। उनके साथ भाजपा की सौदेबाजी जैसा भी कुछ नहीं रहा होगा। तब संजय-विशाल के हिस्से में कुछ बड़ा आने का तो अभी सोचना भी नहीं चाहिये। जब, जो मिलेगा,उसे प्रसाद समझ कर ग्रहण करना होगा। धार के पूर्व सांसद गजेंद्र राजूखेड़ी के हिस्से में कुछ आ सकता है। उनके आने से धार जिले की राजनीति में रंजना बघेल घराने(पति मुकाम सिंह कराड़े,भतीजा जयदीप पटेल) का एकाधिकार जरूर प्रभावित हो सकता है।