Bhagoriya: परिणय पर्व या वैलेंटाइन डे नही, मस्ती और उल्लास का पर्व है भगोरिया
अनिल तंवर की विशेष प्रस्तुति
जनजाति समुदाय का प्रसिद्ध पर्व भगोरिया है भोंगर्या का अपभ्रंश शब्द।
आदिवासी अंचल में प्रति वर्ष मनाया जाने वाला यह पर्व जनजाति समाज का मुख्य त्योहार हैं .इसे आलीराजपुर , झाबुआ, धार, खरगोन जिले और समीपस्थ गुजरात के आदिवासी बहुल क्षेत्र के ग्रामों में निकटतम साप्ताहिक हाट या कहीं पर जहाँ हाट भी नहीं लगता है वहाँ वर्ष में एक दिन मनाया जाता हैं .
मान्दल की थाप और बांसुरी की मदमाती धुन, जब महुआ के फूल की मादक खुशबू महकने लगती है , बौराए हुए आम की एक खास महक और ताडी का भरपूर सुरूर अपने यौवन पर आ जाता है और होली का सप्ताह करीब हो तो समझ लो कि भोंगर्या आ गया .
होलिका दहन का दिन आखिरी भगोरिया पर्व और इसके 6 दिन पूर्व के यानी पूरे 7 दिन यह पर्व होता हैं .
वर्ष में एक बार मनाए जाने वाले इस पर्व के कारण हफ्ते भर तक क्षेत्र में उल्लास छाया रहता है। पर्व मनाने के लिए पलायन स्थलों से भी ग्रामीण बड़ी संख्या में अपने गांव लौटेंगे। लगभग पांच दर्जन स्थानों पर भगोरिया मेला चल रहा है।
जिस दिन का संस्कृति प्रेमी बेसब्री से इंतजार करते है, वह पर्व अब प्रारम्भ हो गया है। इसमें मस्ती व उल्लास तो है ही, साथ ही आदिवासी संस्कृति की झलक भी नजर आएगी।
पेट की आग बुझाने के लिए क्षेत्र की 60 प्रतिशत जनता पलायन करती है। रोजगार की तलाश में दूर-दूर तक जाने वाले ग्रामीण जहां कहीं भी होंगे, भगोरिया की महक उन्हें अपने गांव लौटने के लिए वापस मजबूर करती है।
वार्षिक मेले भगोरिया की प्रमुख विशेषता यह है कि 7 दिनों तक लगातार यह चलता है। हर दिन कहीं न कहीं भगोरिया मेला रहता है। इन मेलों में गांव के गांव उमड़ पड़ते है। छोटे बच्चे से लेकर वृद्ध तक इसमें सहभागिता करते है। ढोल, मांदल, बांसुरी जैसे वाद्य यंत्रों की मीठी ध्वनि और लोक संगीत के बीच जब सामूहिक नृत्य का दौर भगोरिया मेले में चलता है तो चारों ओर उल्लास ही उल्लास बिखर जाता है। साथ ही होती है झूला-चकरी की मस्ती व पान तथा अन्य व्यंजनों की भरमार। चाहे जितने जीवन में संघर्ष हो लेकिन सब कुछ भूलकर हर ग्रामीण भगोरिया की मस्ती में डूबा दिखाई पड़ता है।
*रियासत काल से चल रहा है —*
धुलेंडी के सात दिन पहले से यह पर्व आरंभ हो जाता है। रियासत काल से ही यह पारंपारिक त्योहार यहां चल रहा है। पर्व को लेकर अलग-अलग इतिहास भी बताए जाते है। कुछ इतिहासकार कहते है कि ग्राम भगोर से यह पर्व आरंभ हुआ, इसलिए इसका नाम भगोरिया पड़ गया। कुछ लोगों का मानना है कि होली के पूर्व लगने वाले हाटों को गुलालिया हाट कहा जाता था। इसमें खूब गुलाल उड़ती थी। बाद में होली के पूर्व मनाए जाने वाले इन साप्ताहिक हाटों को भगोरिया कहा जाने लगा। मान्यता चाहे जो हो, लेकिन मैदानी हकीकत यह है कि यह वार्षिक पर्व अपनी संस्कृति की सुगंध हमेशा से चारो ओर बिखेर रहा है।
कुछ लोग (गैर-आदिवासी और मीडिया) द्वारा आदिवासियों को बदनाम करने के लिए भोंगर्या हाट को परिणय पर्व या वैलेंटाइन डे से सम्बोधित करते हैं जो एक सोची-समझी साजिश के तहत पूरे आदिवासी समाज को बदनाम करने की कोशिश की जा रही हैं . इस पर्व में कभी भी पान खिलाकर और गुलाल लगाकर लड़की भगाने का जो मिथ्या प्रचार किया जाता रहा है वह केवल सस्ती लोकप्रियता हासिल करने तथा आदिवासी संस्कृति को बदनाम करने की साजिश रही हैं.
आदिवासी समाज के युवक और युवतियां अब जागृत हो चुके हैं और उनका कहना है कि गैर आदिवासी इस प्रकार का भ्रम फैलाना बंद करें..!!
यह न तो कोई परिणय पर्व है और न ही कोई त्यौहार है यह सिर्फ होली पूर्व एक विशेष हाट हैं जिसमें आदिवासी बच्चों से लेकर बुजुर्ग उत्साह और जोश के साथ भोंगर्या हाट में जाकर ढोल-मांदल, थाली,बांसुरी की मिश्रित मधुर ध्वनि के साथ नाच गान कर एन्जॉय करते हैं और होली पूजन के लिए आवश्यक सामग्री की ख़रीदारी करते हैं..!!
*झाबुआ-आलीराजपुर जिले के भगोरिया पर्व*
18 मार्च सोमवार : आलीराजपुर, आजादनगर, पेटलावद, रंभापुर, मोहनकोट, कुंदनपुर, रजला, बडगुड़ा और मेड़वा।
19 मार्च मंगलवार : बखतगढ़, आम्बुआ, अंधारवड़, पिटोल, खरड़ू, थांदला, तारखेड़ी और बरवेट।
20 मार्च बुधवार : चांदपुर, बरझर, बोरी, उमरकोट, माछलिया, करवड़, बोरायता, कल्याणपुरा, खट्टाली, मदरानी और ढेकल।
21 मार्च गुरूवार : फुलमाल, सोंडवा, जोबट, पारा, हरिनगर, सारंगी, समोई और चैनपुरा।
22 मार्च शुक्रवार : कठ्ठीवाड़ा, वालपुर, उदयगढ़, भगोर, बेकल्दा, मांडली और कालीदेवी।
23 मार्च शनिवार : मेघनगर, रानापुर, नानपुर, उमराली, बामनिया, झकनावदा और बलेड़ी।
24 मार्च रविवार : झाबुआ, छकतला, सोरवा, आमखूंट, झीरण, ढोलियावाड़, रायपुरिया, काकनवानी, कनवाड़ा और कुलवट।
आलीराजपुर के भगोरिया
18 मार्च : आलीराजपुर, आजादनगर, — सोमवार
19 मार्च : बखतगढ़, आम्बुआ, — मंगलवार
20 मार्च : चांदपुर, बरझर, बोरी, — बुधवार
21 मार्च : फुलमाल, सोंडवा, जोबट,— गुरूवार
22 मार्च : कठ्ठीवाड़ा, वालपुर, उदयगढ़, — शुक्रवार
23 मार्च : नानपुर, उमराली — शनिवार
24 मार्च : छकतला, सोरवा, आमखूंट, झीरण, कनवाड़ा और कुलवट — रविवार