High Court Imposed a Cost of Rs 1.5 lakh : याचिका निरस्त करते हुए हाई कोर्ट ने तीन पर 50 -50 हजार की कॉस्ट लगाई!
इंदौर। दुकान बेदखली के एक मामले में दायर एक याचिका पर कड़ी टिप्पणी करते हुए हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता, आपत्तिकर्ता और प्रतिवादी पर 50-50 हजार रुपए की कॉस्ट लगाई। कोर्ट ने ये डेढ़ लाख रुपए 15 दिन में हाई कोर्ट कर्मचारी यूनियन के खाते में जमा कराने के लिए कहा है। जस्टिस सुबोध अभ्यंकर की खंडपीठ ने यह फैसला किया। हाई कोर्ट ने कहा कि लगता है पक्षकारों ने कोर्ट को खेल का मैदान समझ रखा है। वहीं कोर्ट ने पक्षकारों के वकीलों से भी कहा कि वे जिम्मेदारी से कोर्ट के सामने बहस करें, खानापूर्ति के लिए नहीं।
यह प्रकरण किराए की एक दुकान का है। गिरीश मेहता ने जेठमल सोनी को दुकान किराए पर दी थी। जेठमल ने केस दर्ज कराया कि गिरीश ने जबरन दुकान खाली करके सामान बाहर फेंक दिया। गिरीश ने अग्रिम जमानत हासिल कर ली, फिर एफआईआर निरस्त कराने के लिए हाई कोर्ट में अर्जी दायर की।
दिलचस्प बात यह है कि गिरीश के परिजन भारती और उत्पल मेहता ने एफआईआर निरस्ती की अर्जी पर आपत्ति दर्ज करवा दी। गिरीश और जेठमल के बीच निचली अदालत में भी केस चल रहा है। वहीं भारती और उत्पल ने भी दुकान पर अपना दावा लगा रखा है।
हाई कोर्ट में जब यह मामला सुनवाई के लिए आया तो केस डायरी ही उपलब्ध नहीं थी। इस पर गिरीश के अधिवक्ता ने बगैर डायरी के ही केस समझाने की बात कोर्ट से कही। हाई कोर्ट ने जब विस्तृत रूप से केस की हड़ताल की, तो पाया कि दस्तावेज याचिकाकर्ता, आपत्तिकर्ता और प्रतिवादी द्वारा पेश किए गए दस्तावेज कोर्ट का विषय ही नहीं है। बेदखली को लेकर पहले निचली कोर्ट में प्रकरण विचाराधीन है। इन तथ्यों की जानकारी होने के बावजूद कोर्ट को नहीं बताया गया। कोर्ट ने इस प्रकरण को अद्वितीय मानते हुए तीनों पर 50-50 हजार रुपए की कास्ट लगाई। हाई कोर्ट ने यह राशि 15 दिन में हाई कोर्ट कर्मचारी यूनियन में जमा कराने के भी निर्देश दिए हैं।