रहस्य और रोमांचक किस्सागोई की शृंखला-
Mystery and Thriller Story Telling Series:1. “वो सफ़ेद अरबी घोड़ा और वो घुड़सवार”
डॉ .स्वाति तिवारी
मित्रों हम इस बार एक नयी शृंखला शुरू करने जा रहे हैं ” रहस्य और रोमांच के किस्से -कहानियां ” .इन्हें आप बचपन में सुने उन किस्सों से जोड़ सकते हैं जिन्हें डरते हुए भी सुनाने और सुनने की जिज्ञासा बनी रहती थी .रात घर का परदा हवा से भी हिले तो आप चीख पड़ते थे “भूत -भूत “–!अगर आप कमजोर दिल वाले हैं तो निस्संदेह इन्हें ना पढ़े ,लेकिन अगर आप परा मनोविज्ञान और आलौकिक या पारलौकिक दुनिया और घटनाओं में रूचि रखते हैं तो आप स्वयं तय करें!
सनातन धर्म के अनुसार भूत-प्रेत और आत्माएं आदि को लोककथा और संस्कृति में आलौकिक अदृश्य प्राणी बताया गया है,जो किसी मृतक की आत्मा से बनते हैं। ऐसा माना जाता है कि जिस किसी की मृत्यु से पहले कोई इच्छा पूर्ण नहीं हो पाती और वो पुनर्जन्म के लिये स्वर्ग या नरक नहीं जा पाते वो भूत बन जाते हैं. भारत समेत दुनियाभर में आज 21वीं सदी में भी काला जादू, तंत्र-मंत्र, भूत-प्रेत, आत्मा और पुनर्जन्म में विश्वास रखते हैं. एक शोध के अनुसार पूरी दुनिया में ऐसे लोगों की तादाद 40 प्रतिशत से अधिक है. यह विश्वास पीढ़ियों से भारत के लोगों के दिमाग में गहराई से जुड़ा हुआ है और यह आधुनिक तकनीक और वैज्ञानिक विकास के युग में भी बना हुआ है. किसी ना किसी रूप में अधिकाँश लोग नकारात्मक शक्तियों और पैरानॉर्मल ऐक्टिविटीज के अस्तित्व में विश्वास रखतें है. चाहे भूतडी अमावस्या हो ,चाहे हेलोवीन .और इसीलिए हम घर इत्यादि को वास्तु के अनुसार सकारात्मक उर्जा देख कर लेते हैं .लेकिन कई बार अनजाने में नेगेटिव एनर्जी के बारे में जानने के उत्सुक भी होते हैं.
इस शृंखला में वे किस्से हैं जो अनसुने हैं !आइये चर्चित कथाकार डॉ स्वाति तिवारी की कलम से रहस्य और रोमांचक किस्सागोई की शृंखला –
1. वो सफ़ेद अरबी घोड़ा और वो घुड़सवार
कई साल पहले केवल एक किस्से में सुने मध्यप्रदेश के एक किले को मैं उस शहर से गुजरते हुए देखने के लिए रुकी थी ,चंदेरी जाते हुए यह जगह रास्ते में पड़ी थी ,और संयोग देखिये हमने दोपहर की चाय और सुस्ताने के लिए इस जगह को चुना था ,वहां रुकते हुए ड्राइवर ने कहा था “दीदी चाय के लिए रुक जाते हैं”,मैने हाँ कहते हुए पूछ था कौन सी जगह हैं ?नाम सुनते ही वह दृश्य जैसे एक पल में मेरी आँखों के सामने से गुजर गया ,हक्का बक्का सी मैं अपने हाथों पर हाथ फेरने लगी रोंगटे जो खड़े हो गए थे.
याद आया लम्बे समय से मैं उस किले को देखना चाहती थी ,जिसका किस्सा मैंने अपने पिता पंडित दीनानाथ जी से सुना था, जब वे छोटे थे और उनके पिता इस शहर में आबकारी इन्स्पेक्टर हुआ करते थे.वह ज़माना अंग्रेजों के शासन काल का था .सुनानेवाले चले गए पर जगह सदियों तक बनी रहती हैं भग्नावशेषों में,इतिहास में ,किस्से और कहानियों में .क्योंकि स्मृतियाँ भी तो किस्से बन कर मुंहबोली कहानी बन जाती हैं.
किस्सा मेरे बचपन से थोड़ा बाद का है ,तब का जब हमारी रूचि बाल मन – बाल पन से हटने लगती हैं ,और रहस्य और रोमांच ,भय और तर्क के मिले-जुले अनुभवों की और आकर्षित होने लगती है. लेकिन मेरे पिताजी के साथ घटित यह किस्सा उनके बचपन का है. जब वे यह किस्सा अपने एक मित्र को सुना रहे थे,पास के कमरे में बैठी मैं कौतुहल वश उठी और खिड़की से उन्हें यह बताते हुए देख रही थी ,फिर एक दिन उनसे पूछ ही लिया था सुनाइये ना वो घटना भूत वाली ,तब उन्होंने पहले पूछा “डरोगी तो नहीं ,क्योंकि जो डर गया वो —–!”
किस्सा सुनाने की कला मैंने उन्ही से सीखी है ,वे हर किस्सा ऐसे सुनाते थे कि कल्पनाओं का दूरदर्शन कहो या चित्रपट अपने आप बन जाता था .फिर वह राधारानी की कहानी हो या सफ़ेद घोड़े का किस्सा .सुनाते हुए उनकी ऑंखें जैसे उस दृश्य को अन्दर ही अंदर दुबारा देख रही होती थी ,वही रोमांच ,वही भय ,वही अनकही अनूभूति जो वे बताना चाहते और दुविधा के स्वर शायद कहने में असमर्थ मनोदशा का भाव,इतनी तल्लीनता श्रोता की कि, ‘सुई गिरे’ तो वह भी सुन सकते थे !
क्या अनुभूति होगी एक आठ साल के बच्चे की उस घटना को देख कर ?.सोचती हूँ तो मेरे रोंगटे खड़े होने लगते हैं आज भी . इस किस्से के माध्यम से अपने खोये हुए उस दोस्त को याद कर रहे होते थे,जो उस किले में एक दृश्य देख कर हमेशा के लिए चला गया था .आप जरूर जानना चाहेंगे कि कौन सा दृश्य ?
उस घटना को जब हम सुन रहे थे तब बिलकुल वैसी ही घौड़े की चाल हम देख ,सुन और अनुभव कर रहे थे जिसमें बिलकुल चार खुर एक ही समय में जमीन छोड़ते हैं, जब घोड़े के पिछले पैर आगे के पैरों के पास झूल रहें हैं,और सरपट दौड़ता वह घोड़ा जो चारों पैर फैलाकर हवा में उड़ते हुआ सा लगता है.हाँ बिलकुल सरपट घोड़े की सबसे तेज़ चाल होती है।जो कैंटर के समान कही जाती है लेकिन इसमें प्रत्येक पैर स्वतंत्र रूप से चलने के साथ चार-बीट की लय लिए हुए ,वह घोड़ा और उसकी सुनी हुई चाल जिसे मैंने कभी देखा ही नहीं केवल एक व्यक्ति के द्वारा शब्दों से सुनते हुए महसूस किया था .वह चाल मेरे मस्तिष्क में मेरी मैमोरी में फिट हो गई थी.आप सुन पा रहे हैं ना सरपट दौड़ते हुए उस घोड़े के पैरों और खुरों का वह तेज फोर्जिंग (जब पिछला खुर सामने वाले खुर से संपर्क करता है)शोर को ! घोड़े की चाल की लयबद्ध धात्विक क्लिकिंग ध्वनि को —देखिये घोड़ा दौड़ा रहा था !सफ़ेद घोड़ा दिवार से उतरता हुआ और अचानक बहुत पास बहुत पास आता हुआ –!
घोड़े की वह चाल निश्चय ही अनुभवी सवार के हाथ में पकड़ी लगाम का ही परिणाम होगी,होगी भी क्यों नहीं ?उस पर बैठा वह सवार इस धरती का आदमी तो था नहीं ये तो उन्होंने देखा था . पर यहां पर तो सुनाने वाले की कला जिसने सरपट दौड़ते घोड़े का रोमांचित करता एक दृश्य रेखांकित हो रहा था। सरपट दौड़ता वह सफ़ेद अरबी घोड़ा जैसे बेलगाम हो हवा से बातें कर रहा था ,मेरा किशोर उम्र मानस पटल उस शाम के धूँधल्के ,सरपट भागते बेलगाम से घोड़े की सफेदी ,हवा में झूलते उसके रेशमी मुलायम फर जैसे बाल.सरसराती डराती सांज, नदी किनारे वाली हवा और उस भय भरे सन्नाटे को देख सुन और महसूस कर रहा था .
हाँ तो बात शुरू हुई है ,चंदेरी जाते हुए हम जब चाय के लिए रुके थे तो सामने ही वह किले का खण्डहर दिखाई दिया जिसे मैंने गेट से ही पहचान लिया था ,मैं दुनिया के हर उस स्थान को देखने जा रही हूँ जो मेरे पिताजी ने मुझे सुना कर दिखाई थी ,जो उन्होंने देखी या ना देखी हो .खैर–
किले का भग्नावशेष आज अत्यंत बुरी स्थिति में है,पर स्मृति मेरी मजबूत मैंने उसे पहचान लिया । उस किले के गेट {मुख्य दरवाजे ]की विशेषता यह थी कि पुराने किले का यह दक्षिण दरवाजा कलात्मक है , एक प्रकार से वास्तुकला का एक प्रत्यक्ष प्रमाण कहा जा सकता है। इस दरवाजे के दोनों तरफ झरोखे युक्त दो विशाल घुमावदार मीनारें हैं। दरवाजे की मेहराबदार छत की दोनों तरफ काले व लाल पत्थर से बनी दो छतरियां है।बड़ा सा जाली दार दरवाजा जो दिवार के बराबर सी उंचाई लिए हुए है , लेकिन उस बड़े दरवाजे को केवल हाथी या राजा की सवारी के लिए ही खोला जाता रहा होगा क्योंकि उस किले के दरवाजे के अन्दर ही एक छोटा दरवाजा भी है जो कोई भी खोलकर अन्दर बाहर आवाजाही कर सकता था.बड़ा गेट जंग लगे सदियों पुराने ताले से बंद दिखाई दिया बिलकुल वैसे ही बंद जैसे किस्सा सुनाते हुए पिताजी ने बताया था .बड़ा सा ताला इतना बड़ा की खोलने के लिए दो-तीन आदमी तो लगते ही होंगे .शायद राज घराने ख़त्म होने के बाद वह कभी खुला ही ना हो .
दरवाजा किले के दक्षिण में है ,और नकारात्मक शक्तियां दक्षिण से ही आया करती हैं यह कहा जाता हैं तभी तो पिताजी जब भी मकान देखने जाते तो सबसे पहले दिशा देखते थे,दक्षिण मुखी घर कभी नहीं पसंद किया उन्होंने .क्या पता इस घटना का ही मानसिक प्रभाव रहा हो .दरवाजे की ऊंची दीवारों पर उत्तरण घोड़ों की दो सफेद आकृतियां बनी हुई हैं.
मैं भी जब पंहुची शाम होने को थी और सूरज अस्ताचल की और चल पड़ा था ,एक उदास सिंदूरी आभा वहां फ़ैल रही थी .बाहर निकल रहे एक सैलानी ने मुझे कहा भी कि “शाम गहराए उसके पहले आप लोग गेट से बाहर निकल जाइयेगा.”जी ,बिलकुल हम तो आगे जानेवाले है ,रास्ते में रुक गए हैं बस निकल ही रहे हैं .मैं किला देख रही थी और सम्मोहित सी अन्दर घूमने लगी थी ,मैं उस जगह को खोज रही थी शायद जो मैंने पिताजी के अनुभव में शब्दों से अनुभूत की थी .मेरा अचेतन कह रहा था ,मैं उस जगह को पहचान लूंगी .और देखिये वह जगह मुझे अँधेरे के फ़ैल जाने के बाद भी मिल गई थी .
OTT platform Disney+Hotstar:’Baipan Bhari Deva’ यह कथा पारिवारिक जीवन की एक तस्वीर है!
मेरा ड्राइवर बार बार कह रहा था ‘दीदी अब चलिए ,रात को गाडी चलाने में उसे दिक्कत होती है. फिर उसने कहा उसे ठीक नहीं लग रहा यहाँ .’लेकिन मैं यह भूल रही थी कि मुझे आगे जाना है और यहाँ रात से पहले निकल जाना है ,मैं उस समय एक जुनून से गुजर रही थी , मैं पेशेवर पैरानॉर्मल इन्वेस्टिगेटर्स की तरह सधे कदमों से उस जगह की तरफ बढ़ रही थी .सीढियों के निचे वह स्थान था जहाँ आठ साल के तीन दोस्त शाम के धूँधलके वक्त कंचे खेलते हुए रुके रह गए थे.और कंचे के लिए लड़ रहे थे कि उन्हें तेज सरपट दौड़ते घोड़ों की और फिर घोड़ों के हिनहिनाने की आवाज आई ,वे डर गए और तेजी से सीढियों के निचे बने कमरे में दरवाजे के पीछे छुप गए थे.उन्हें लगा कोई घुड सवार चौकीदार है जो उन्हें देख कर पकड़ लेगा और फिर पिताजी को बुला लायगा ,तब आगे क्या होगा ?लेकिन दरवाजे आड़ से और टूटे दरवाजे की दरार से वे आँखे फाड़ कर जो देख रहे थे वह उनके लिए अकाल्पनिक था .दिवार पर बना घोड़ा हिनहिनाते हुए अपने बाल झटकते सफ़ेद अरबी घोड़े में बदल गया और अपने आप बड़ा गेट चरमराता हुआ खूल गया और उछलकर कोई सैनिक पोशाक पहने घोड़े पर चढ़ा और लगाम खिंच कर उसने घोड़ा दौड़ा दिया ,सरपट .उसके खुरों से उड़ी घूल और उनकी चाप को वे देख भी रहे थे और सुन भी रहे थे .
घोड़ा दौड़ता हुआ पूरे किले का चक्कर लगा कर सीढियों के पास रुका और फिर दौड़ता हुआ गेट तक पंहुचा गेट खुला और उन्हें लगा वह घोडा किले के पास बहती नदी को छपाक छपाक कर क्रास कर दूसरी तरफ चला गया .भयभीत कांपते वे तीन बच्चे भाग कर गेट से बाहर निकले लेकिन उनमे से एक गिर पड़ा ,उसे उठाया तो उसकी नेकर गीली थी और वह काँप रहा था ,उसे उसके घर छोड़ वे अपने अपने घर चले गए थे.उस रात वे बच्चे सो नहीं पाए थे. अगले दिन बुखार से तपा हुआ उनका वह मित्र नदी किनारे बेहोश मिला था जिसे फिर कभी होश नहीं आया था .
मैंने यह किस्सा सुना कम और जैसे शब्दशः देखा ज्यादा था .मैंने उस जगह उस दरवाजे को और उन दरारों को देख लिया था .बाहर निकल रही थी अभी शाम की लालिमा पूरी तरह गई नहीं थी उजाले की किरणें जालीदार दरवाजे से बाहर बुला रही थी ड्रायवर मेरे साथ चल रहा था. “दीदी क्या चंदेरी में भी आप यूँ ही किले महल देखेंगे ?”पुरुष भी डरते हैं उसकी आवाज का भय मैं महसूस कर रही थी.
“नहीं “
“तो आप चंदेरी क्यों जा रही हैं ?”
मुझे अपने बुटीक के लिए चंदेरी के बुनकरों से मिलना है ,कुछ नए डिजाइन बनाना हैं इसलिए ! क्यों तुम किले महल नहीं देखना चाहते ?मैंने सहज ही पूछ लिया था .
“नहीं दीदी दिन में देखना अच्छा लगता है.”
“ठीक है,चलो गाड़ी निकाली .अब हम सीधे चंदेरी जायेंगे.”
“जी, दीदी !”उसकी आवाज में जोश वापस आ गया था .
मैं गाड़ी में बैठ ही रही थी कि,मुझे घोड़े की हिनहिनाहट सुनाई दी . मेरा एक पैर अन्दर था और दुसरा बाहर .यह वही हिनहिनाहट थी जो किस्से में सुनाई दी थी.हाथ पैर के रोंगटे झूर झूरी के साथ खड़े हो गए थे . पलट कर देखने ही वाली थी कि पिताजी के शब्द याद आ गए “कभी भी डरना मत .जो डर गया –वो — .”
मैंने बिना पलटे दूसरा पैर भी अन्दर रखा और पूरी ताकत से आवाज निकलते हुए कहा चलो, सुन्दर काण्ड की सीडी हो तो संध्यापाठ के लिए लगा लो . सुन्दर काण्ड उसने फुल वाल्यूम से लगा दिया था , हम निकल गए थे भय को पीछे छोड़ कर .
डॉ .स्वाति तिवारी ,भोपाल
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