Tough Fight Between Shivraj and Pratapbhanu: विदिशा में ब्राह्मणों की दम पर शिवराज को कड़ी टक्कर दे रहे प्रतापभानु

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Tough Fight Between Shivraj and Pratapbhanu: विदिशा में ब्राह्मणों की दम पर शिवराज को कड़ी टक्कर दे रहे प्रतापभानु

दिनेश निगम ‘त्यागी’ की ग्राउंड रिपोर्ट 

पूरे दो दशक के बाद शिवराज सिंह चौहान विदिशा से भाजपा के टिकट पर फिर मैदान में हैं। इससे पहले वे यहां से चार बार सांसद रहे हैं और इसके बाद लगभग साढ़े 16 साल तक प्रदेश के मुुख्यमंत्री। वातावरण भाजपा के पक्ष में हैं। इसलिए उनकी जीत पर संकट नहीं है लेकिन कांग्रेस ने उनके सामने अपने पूर्व सांसद प्रतापभानु शर्मा को उतार कर मुकाबले को रोचक बना दिया है। अब चुनाव भाजपा के पक्ष में एकतरफा नहीं रहा। प्रतापभानु भी विदिशा से दो बार सांसद रहे हैं। 1991 के चुनाव में वे पूर्व प्रधानमंत्री स्व अटल बिहारी वाजपेयी से पराजित हो गए थे। कांग्रेस ने लगभग 33 साल बाद उन्हें फिर मौका दिया है।

प्रतापभानु की छवि ईमानदार एवं स्वच्छ छवि के नेता की है। लोग उन्हें गंभीर नेता भी मानते हैं, जो बिना सोचे समझे कभी नहीं बोलते। क्षेत्र में ब्राह्मण मतदाताओं की तादाद अच्छी खासी है। इसकी बदौलत भाजपा और कांग्रेस के बीच रोचक मुकाबला देखने को मिल सकता है।

 

 *0 शिवराज की मंशा पर पानी फेर सकते प्रतापभानु* 

 

– विदिशा लोकसभा क्षेत्र में ब्राह्मण मतदाता दलीय राजनीति से अलग हटकर समाज के प्रत्याशी के पक्ष में मतदान करता है। इसके दो उदाहरण हैं। पहला, 2004 में मुख्यमंत्री बनने के बाद शिवराज सिंह चौहान ने संसद की सदस्यता से इस्तीफा दिया। इसके बाद हुए लोकसभा के उप चुनाव में भाजपा ने रामपाल सिंह और कांग्रेस ने राजश्री सिंह को मैदान में उतारा। उमा भारती की नई पार्टी भाजश से रघुनंदन शर्मा प्रत्याशी बनाए गए। उप चुनाव में भाजपा जीती लेकिन रघुनंदन शर्मा 1 लाख 37 हजार से ज्यादा वोट ले जाने में सफल रहे। यह ब्राह्मण मतदाताओं की बदौलत हुआ। दूसरा उदाहरण पिछला 2019 का चुनाव, इसमें भाजपा ने रमाकांत भार्गव को प्रत्याशी बनाया और कांग्रेस ने देवेंद्र पटेल को। रमाकांत भार्गव 5 लाख से ज्यादा वोटों के रिकार्ड अंतर से जीते। इतनी बड़ी जीत अटलजी और शिवराज की भी कभी नहीं हुई। इसकी वजह रमाकांत का ब्राह्मण होना माना जा रहा है। इस बार उनका टिकट काट कर शिवराज को भाजपा प्रत्याशी बनाया गया है। इससे ब्राह्मण वर्ग में नाराजगी देखने को मिल रही है। इसीलिए शिवराज सिंह का इरादा भले रिकार्ड वोटों के अंतर से चुनाव जीतने का है लेकिन उनकी इस मंशा पर प्रतापभानु शर्मा पानी फेर सकते हैं। इसकी वजह प्रतापभानु की बेहतर छवि और उनका ब्राह्मण होना है।

 

 *0 ब्राह्मण मतदाताओं के कारण मिली रिकार्ड जीत* 

– विदिशा लोकसभा को वीआईपी क्षेत्र भी माना जाता है। यहां से अटल विहारी वाजपेयी, शिवराज सिंह चौहान के अलावा केंद्रीय मंत्री रहीं स्व सुषमा स्वराज भी दो बार सांसद रहीं। 2009 में जब सुषमा स्वराज पहला चुनाव लड़ रही थीं, तब उनके सामने कांग्रेस का उम्मीदवार ही नहीं था। कांग्रेस ने राजकुमार पटेल को टिकट दिया था लेकिन वे समय पर अपना बी फार्म नहीं जमा कर सके थे। इस एकतरफा चुनाव में भी सुषमा स्वराज की जीत का अंतर 4 लाख वोट ही था। अर्थात 2019 में जीते रमाकांत भार्गव से एक लाख कम। सुषमा स्वराज 2014 का चुनाव भी 4 लाख 10 हजार वोटों के अंतर से जीती थीं। इससे साफ है कि रमाकांत भार्गव की सबसे बड़ी जीत की वजह ब्राह्मण मतदाता ही रहे। इस बार भाजपा प्रत्याशी शिवराज सिंह चौहान बड़ा चेहरा हैं, क्योंकि वे 4 लोकसभा का चुनाव जीतने के साथ लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहे हैं। वे कभी कोई चुनाव हारे भी नहीं। उनके मुकाबले कांग्रेस के प्रतापभानु शर्मा ब्राह्मण हैं और छवि भी अच्छी है लेकिन 33 साल बाद लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं। फिर भी मुकाबले को रोचक बताया जा रहा है। यह कांग्रेस की उपलब्धि है।

 

 *0 राष्ट्रीय, प्रादेशिक के साथ स्थानीय मुद्दों का भी असर* 

– विदिशा भोपाल से सटा है और सीट हाईप्रोफाइल। इसलिए यहां राष्ट्रीय, प्रादेशिक के साथ स्थानीय मुद्दों का भी असर है। शिवराज सिंह राम लहर और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम के साथ प्रदेश सरकार द्वारा कराए गए काम भी गिना रहे हैं। उनका दावा है कि उन्होंनेे क्षेत्र का कायाकल्प किया है। दूसरी तरफ कांग्रेस के प्रतापभानु अपने कार्यकाल के काम गिना रहे हैं। वे यह भी बता रहे हैं कि शिवराज ने विदिशा की हमेशा उपेक्षा की। शिवराज पर आरोप है कि उन्होंने किसी नेता को उठने नहीं दिया। यही वजह है कि राघवजी और गौरीशंकर शेजवार जैसे नेता किनारे हो गए और लक्ष्मीकांत शर्मा जैसे संभावना वाले नेता अब इस दुिनयां मे ंही नहीं हैं। क्षेत्र में इसे भी मुद्दा बनाया जा रहा है। कांग्रेस घोषणा पत्र में शामिल 5 न्याय और 24 गारंटियों का जमकर प्रचार कर रही है। किसान कर्जमाफी की याद दिलाई जा रही है। जांच एजेंसियों के बंधक होने का मुद्दा उठाया जा रहा है।

 

 *0 विधानसभा में भाजपा ने हासिल की बड़ी बढ़त* 

– चार माह पहले हुए विधानसभा चुनाव को आधार माने तो भाजपा ने बड़ी बढ़त ली है। विदिशा लोकसभा क्षेत्र की 8 में से 7 विधानसभा सीटों में भाजपा ने जीत दर्ज की है। अकेले बुधनी सीट से शिवराज सिंह चौहान ने लगभग 1 लाख 5 हजार वोटों की बढ़त ली थी। वे मुख्यमंत्री रहते विधानसभा चुनाव लड़ रहे थे। सभी सात सीटों को मिला कर भाजपा की जीत का अंतर 2 लाख 57 हजार 45 वोटों का रहा जबकि कांग्रेस एक सीट महज 11,454 वोटों से ही जीती। इस तरह विधानसभा के लिहाज से भाजपा को लगभग ढाई लाख वोटों की बढ़त हासिल है। इसे कवर करना कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती है। इसी आधार पर शिवराज सिंह चौहान रिकार्ड बनाने की मंशा काे लेकर प्रचार अभियान चला रहे हैं। 2014 में भी विधानसभा चुनाव के नतीजे लगभग इसी तरह के थे और भाजपा ने 2019 में रिकार्ड अंतर से लोकसभा चुनाव जीत लिया था।

 

 *0 विदिशा का राजनीतिक मिजाज भाजपाई* 

– भौगोलिक दृष्टि से विदिशा जिले का क्षेत्रफल प्रदेश के चार जिलों तक फैला है। इसके तहत विदिशा, रायसेन, सीहोर और देवास जिले की विधानसभा सीटें आती हैं। क्षेत्र में विदिशा जिले की विदिशा, बासौदा, रायसेन जिले की भोजपुर, सांची, सिलवानी, सीहोर जिले की बुधनी इछावर और देवास जिले की खातेगांव विधानसभा सीट आती है। जहां तक क्षेत्र के राजनीतिक मिजाज का सवाल है तो 1991 से लगातार भाजपा का ही कब्जा है। 1991 में अटल विहारी वाजपेयी, 1996 से 2004 तक लगातार शिवराज सिंह चौहान, उप चुनाव में रामपाल सिंह और 2009 एवं 2013 में सुषमा स्वराज यहां से सांसद रहीं। 2019 का चुनाव भाजपा के रमाकांत भार्गव जीते। अब शिवराज सिंह चौहान मैदान में हैं। 1991 से पहले 1980 और 1985 में कांग्रेस से प्रतापभानु शर्मा सांसद रहे। शर्मा 33 साल बाद फिर कांग्रेस की ओर से मैदान में हैं।

 

*0 विदिशा में टूटते रहे हैं जातीय समीकरण*

– हाईप्रोफाइल सीट होने के कारण विदिशा में जीतीय समीकरण के बंधन तोड़कर वोटिंग होती रही है। यह भाजपा के गढ़ के रूप में तब्दील है। यहां पछड़े वर्ग की सभी जातियों को मिला दें तो उनकी तादाद सबसे ज्यादा है। इसके बाद दलितों और ब्राह्मण मतदाताओं की संख्या है। ब्राह्मण आमतौर पर समाज के प्रत्यााशी के पक्ष में ही वोट करते हैं। इसी तरह पिछड़ों में जिस समाज का प्रत्याशी होता है, वह समाज उसके पक्ष में जाता है। अलग-अलग विधानसभा सीटों में अलग-अलग जातियों का दबदबा है। बुधनी में किरार, ब्राह्मण ज्यादा है तो इछावर और खातेगांव में खाती, यादव मतदाता ज्यादा। सिलवानी और बासौदा में रघुवंशी, जैन समाज ज्यादा बताया जाता है। विदिशा में दांगी, ब्राह्मण बड़ी तादाद में हैं। इसके अलावा लोधी, मीना, कोरी समाज भी काफी है। कई समाज सामाजिक बंधन तोड़कर दलीय आधार पर मतदान करते हैं।