Congress Candidate surrendered:कांग्रेस के जहाज को डुबोते कांग्रेसी
इस बार के लोकसभा चुनाव में किसकी सरकार बने और भाजपा को 370 या अधिक सीटें मिलेंगी या नहीं, यह तो एक तरफ रह गया, लेकिन अब पूरा ध्यान तो इस बात पर रहता है कि कांग्रेस या अन्य विपक्षी दल से कौन,कब भाजपा में जा रहा है? भाजपा को अब इससे परहेज नहीं रह गया कि आने वाला कौन और कैसा है। हाल ही के दिनों की बात करें तो अकेले कमलनाथ ऐसे नेता रहे हैं, जिन्हें दहलीज से लौटा दिया गया, अन्यथा तो सभी के लिये भाजपा ने वंदनवार सजा रखे हैं। यहां बड़ा सवाल यह है कि आखिरकार ऐसी क्या बात है , जो खास तौर से कांग्रेसी जहाज से कूद-कूद कर भाजपा की पतवार थाम रहे हैं? इस कड़ी में सबसे सनसनीखेज मामला इंदौर लोकसभा क्षेत्र के कांग्रेस के अधिकृत प्रत्याशी अक्षय बम का रहा,जिन्होंने नाम वापसी के आखिरी दिन अपना नामांकन तो वापस लिया ही, वे भाजपा में भी चले गये। मप्र में पहले गठबंधन की ओर से सपा प्रत्याशी का अपनी गलती से खजुराहो में नामांकन निरस्त होना,फिर सूरत में कांग्रेस सहित सभी प्रत्याशियों द्वारा नाम वापस लेना और अब इंदौर के प्रत्याशी का घुटने टेक देना कांग्रेस जैसी पार्टी के लिये बड़ा और गहरा सदमा है।
इंदौर की इस घटना को लेकर राजनीतिक क्षेत्र में हलचल मची हुई है। कोई इसे लोकतंत्र में विपक्ष के खात्मे की तरह ले रहा है तो कहीं खरीद-फरोख्त की राजनीति की बात की जा रही है। कुछ इसे बिना विपक्ष के लोकतंत्र के महत्वहीन हो जाने जैसा बता रहे हैं तो कहा यह भी जा रहा है कि भाजपा अब साम-दाम-दंड-भेद से प्रतिपक्ष को निपटा रहा है। बातें जो भी कही जा रही हों, इतना तो तय है कि एक समय था, जब देश में कांग्रेस ही प्रमुख राजनीतिक दल था और जैसा नाच वह नचाती थी, शेष राजनीतिक दल नाचते थे। इतनी जल्दी ऐसा नाच नाचने को कांग्रेस को बाध्य होना पड़ेगा,इसकी कल्पना जरूर नहीं की गई थी।
ऐसा लगता है,यह एक नई तरह की राजनीति का दौर है, जहां किसी भी तरह से वर्चस्व की स्थापना प्रमुख हो गया है। दशकों तक केंद्र से लेकर तो राज्यों तक कांग्रेस ने किसी को पनपने नहीं दिया । वे भी दिन थे, जब छोटी-छोटी बातों पर राज्य सरकारें बर्खास्त कर दी जाकर राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाता था। तब न मजबूत विपक्ष था, न सक्षम मीडिया,न संचार के अनगिनत साधन और न ही राजनीतिक चेतना । इसलिये प्रौढ़ और बुजुर्ग पीढ़ी को कांग्रेसी शासनकाल की तमाम ज्यादतियां और अलोकतांत्रिक कार्रवाइयां याद होने के बावजूद भी उसकी तीव्र प्रतिक्रिया सामने नहीं आ पाती थी। यदि आपातकाल के दौर को छोड़ दिया जाये, जिसका जनता,मीडिया व राजनीतिक दलों ने मुख्रर प्रतिकार किया था तो कांग्रेस अपने हिसाब से देश,शासन चलाती रही। इन दिनों सोशल,इलेक्ट्रॉनिक,डिजिटल मीडिया के दौर में राई का पहाड़ बन जाता है और सूचना जंगल की आग की तरह फैल जाती है।
इंदौर,सूरत और खजुराहो में जो कुछ हुआ वह राजनीति का ऐसा स्वरूप है,जिसे सत्तर के दशक से गढ़ा जा रहा था, किंतु उसका अक्स ऐसा होगा,यह अंदाज नहीं था। हमें याद है,जब हरियाणा में भजनलाल पूरा मंत्रिमंडल लेकर कांग्रेस में आ गये थे और गुजरात में केशु भाई की सरकार गिराकर शंकर सिंह वाघेला भाजपा के विधायकों को खजुराहो लेकर आ गये थे, ताकि कांग्रेस के सहयोग से सरकार बना सके, जो बनाई भी थी। तो यह देन तो कांग्रेस की ही है। बस भूमिका बदल गई,खेल तो वही जारी है। अब हर हाल में शिकस्त और हर हाल में जीत के बीच कुछ भी नहीं है। राजनीति के इस खेल का एक ही नियम है-जीत। इसीलिये भाजपा कांग्रेसियों को थोक में प्रवेश दे रही है और कांग्रेस मुक्त भारत के अपने अभियान को मूर्त रूप दे रही है।
इन घटनाओं पर यदि गंभीरता से किसी को चिंतन-मनन करना है तो कांग्रेस को। उसके नेतृत्व की दिशाहीनता,तुष्टिकरण का अड़ियल रवैया, बहु संख्यक की उपेक्षा,गांधी परिवार की छत्र छाया से दूर न होना और चाटुकारिता के आधार पर पद,प्रतिष्ठा देने का जो अनवरत सिलसिला चला आ रहा है, वह कांग्रेस के पतन की दिशा में तेजी से बढ़ने की मुख्य वजह है। मप्र की यदि बात करें तो विधानसभा चुनाव में पराजित हो जाने के बावजूद जिस तरह से कम अनुभवी जीतू पटवारी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया,उससे कांग्रेसजन में जबरदस्त विरोध और कुंठा थी। एक के बाद एक नेताओं का कांग्रेस छोड़ने में यह भी प्रमुख कारण रहा। सुरेश पचौरी(पूर्व प्रदेश अध्यक्ष),संजय शुक्ला,विशाल पटेल(दोनों पूर्व विधायक),पंकज संघवी,अक्षय बम,अंतर सिंह दरबार तो वे चंद नाम हैं, जो भाजपा में चले गये,इनके पीछे-पीछे बड़ी संख्या में कार्यकर्ता भी चले गये और यह क्रम अभी थमा नहीं है।
जिस तरह से किसी का ओर-ठोर न होने पर हम कहते हैं ना कि इसका तो अब भगवान मालिक है, वैसे अब कहा जाना लगा है कांग्रेसियों का तो अब एक ही ठिकाना है-भाजपा। लोकसभा चुनाव के दौरान और बाद में भी राष्ट्रीय स्तर पर बड़े धमाकों के लिये हमें तैयार रहना चाहिये।