Dhar Loksabha Constituency: भाजपा की सावित्री का कांग्रेस के राधेश्याम से कड़ा मुकाबला,भाजपा के लिए संघ, कांग्रेस के लिए उमंग मोर्चे पर डटे

Dhar Loksabha Constituency: भाजपा की सावित्री का कांग्रेस के राधेश्याम से कड़ा मुकाबला,भाजपा के लिए संघ, कांग्रेस के लिए उमंग मोर्चे पर डटे

दिनेश निगम ‘त्यागी’ की ग्राउंड रिपोर्ट 

भाजपा को उम्मीद है कि जिस तरह पार्टी ने विधानसभा में कम सीटें जीतने के बावजूद 2019 में धार लोकसभा सीट का चुनाव जीत लिया था, 2024 में भी यही इतिहास दोहराया जाएगा। भाजपा के पक्ष में प्रचार के लिए 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी धार आए थे, इस बार भी आ चुके हैं। मोदी के आने से भाजपा के हौसले बुलंद हैं। हालांकि इस बार राजनीतिक हालात पिछली बार जैसे नहीं हैं। भाजपा ने पिछला चुनाव डेढ़ लाख से ज्यादा वोटों के अंतर से जीतने वाले पार्टी के कद्दावर सांसद छत्तर सिंह दरबार का टिकट काट कर पूर्व सांसद सावित्री ठाकुर को दिया है। इसकी वजह से छत्तर नाराज हैं। 11 मई को प्रचार समाप्त होने तक वे कहीं दिखाई नहीं पड़े। क्षेत्र की दूसरी कद्दावर नेता हैं पूर्व मंत्री रंजना बघेल। वे मनावर क्षेत्र से विधायक रही हैं और कुक्षी उनका गृह क्षेत्र है। मोदी जी की सभा को छोड़कर वे भी प्रचार में नहीं दिखाई पड़ीं। बताया गया कि स्वास्थ्य खराब है, इसलिए विश्राम कर रही हैं। भाजपा को इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है।

भाजपा की सावित्री का मुकाबला कांग्रेस के राधेश्याम मुवेल से है। सावित्री के लिए भाजपा और संघ ने पूरी ताकत झोंकी है जबकि राधेश्याम के चुनाव की पूरी बागडोर नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार के हाथ रही है।

 *0 धार में उमंग ने जगा दी कांग्रेस की उम्मीद* 

– नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार धार जिले की गंधवानी सीट से विधायक हैं और लोकसभा चुनाव के प्रभारी भी। उनकी सिफारिश पर ही राधेश्याम को चुनाव लड़ाया गया है। इसलिए सिंघार ने चुनाव प्रचार में पूरी ताकत झाेंकी। प्रारंभ में राधेश्याम का टिकट बदले जाने की चर्चा चल पड़ी थी। कांग्रेस कार्यकर्ताओं में निराशा का भाव था। तब उमंग सक्रिय हुए। कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाया और पार्टी के सभी विधायकों को सक्रिय किया। इस तरह धार में उमंग की सक्रियता ने कांग्रेस में उम्मीद जगा दी। क्षेत्र की 8 विधानसभा सीटों में से 5 पर कांग्रेस का कब्जा है। कई सीटें कांग्रेस ने बड़े अंतर से जीती थीं। गंधवानी में कांग्रेेस ने 22 हजार और कुक्षी में लगभग 50 हजार वोटों की बढ़त ली थी। भाजपा के पास महू अंबेडकर नगर ही ऐसी सीट है जहां भाजपा की ऊषा ठाकुर लगभग 34 हजार वोटों के अंतर से जीती। शेष 2 सीटों में उसकी जीत का अंतर कम था। बहरहाल, उमंग के साथ सभी विधायकों के सक्रिय होने से भाजपा और कांग्रेस के बीच कांटे का मुकाबला दिखाई पड़ने लगा है।

*0 भाजपा के लिए मोदी-मोहन, कांग्रेस से कोई नहीं* 

– प्रचार अभियान की दृष्टि से धार में भाजपा की तुलना में कांग्रेस कमजोर दिखाई पड़ी। भाजपा के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आए। मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा सहित पार्टी के कई नेताओं ने दौरे किए लेकिन कांग्रेस की ओर से किसी बड़े नेता की सभा नहीं हुई। न राहुल गांधी आए, न प्रियंका और न ही मल्लिकार्जुन खरगे। प्रदेश में पार्टी के बड़े नेता दिग्विजय सिंह और कमलनाथ ने भी प्रचार नहीं किया। धार में दिग्विजय और कमलनाथ समर्थक नेताओं की कमी नहीं है। इसकी वजह यह भी हो सकती है कि इन दोनों नेताओं की उमंग के साथ पटरी नहीं बैठती। दिग्विजय के खिलाफ उमंग कई गंभीर आरोप तक लगा चुके हैं। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी जरूर नामांकन दाखिल कराने धार आए थे। तब उनके साथ पार्टी के सभी नेताओं, विधायकों ने एकजुटता दिखाई थी। साफ है कि धार में कांग्रेस ने उमंग की अगुवाई में चुनाव लड़ा और पार्टी के अन्य विधायकों ने उनका साथ दिया। कांग्रेस यहां मुकाबले में भी है।

*0 भील, भिलाला समाज बना कांग्रेस की ताकत* 

– आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित धार लोकसभा क्षेत्र में कांग्रेस की ताकत है भील और भिलाला समाज। इन दो समाजों की क्षेत्र में बहुलता है। इनकी बदौलत ही कांग्रेस विधानसभा की ज्यादा सीटें जीत जाती है। यदि लोकसभा चुनाव में भी यह कांग्रेस के पक्ष में रहे तो भाजपा के सामने मुसीबत आ सकती है। हालांकि कई जगह भील-भिलाला समाज साथ नहीं जाता। जैसे रतलाम-झाबुआ सीट में भील कांग्रेस के साथ है और भिलाला भाजपा के साथ। धार में पाटीदार, सिरवी, जाट और ब्राह्मण समाज भी बड़ी तादाद में है। यह भाजपा के पक्ष में दिखाई पड़ता है। समस्या यह है कि कांग्रेस आर्थिक तंगी की शिकार दिखती है जबकि भाजपा के पास धन की कोई कमी नहीं है। इससे भी प्रचार में भाजपा आगे है।

*0 चुनावी सीन से नदारद आदिवासी संगठन जयस* 

– आदिवासी संगठन जयस धार सहित आसपास के आदिवासी बहुल क्षेत्रों में बड़ी ताकत है। जयस के हीरालाल आलावा कांग्रेस से विधायक हैं। बावजूद इसके इस चुनाव में जयस सीन से गायब दिख रहा है। जयस में उसी तरह टूट-फूट देखने को मिली है जैसे कभी गोंगपा में हुई थी। एक नेता लाल सिंह वर्मन खुद को जयस का प्रदेश अध्यक्ष कहते हैं और आम आदमी पार्टी से विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं। वर्मन अब भाजपा में हैं। डॉ आनंद राय भी खुद को जयस के एक गुट का नेता कहते रहे हैं। बहरहाल, गुट कितने भी क्यों न हों लेकिन कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा चुनाव जीते हीरालाल आलावा ही चुनाव प्रचार में कहीं दिखाई नहीं पड़े। कांग्रेस को जयस से जो उम्मीद थी, चुनाव प्रचार के दौरान वह पूरी होती दिखाई नहीं पड़ी। कांग्रेस प्रत्याशी राधेश्याम मुवेल खुद एक आदिवासी संगठन के प्रमुख हैं। वे आदिवासी युवाओं के बीच ज्यादा सक्रिय रहते हैं।

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