Motivational Incident: मैं कायल हुआ इंदौर के ऑटो चालक की सत्यनिष्ठा पर !
विक्रमादित्य सिंह ठाकुर
मैं यहाँ “ईमानदार” शब्द का उपयोग न कर, उसके स्थान पर सत्यनिष्ठ शब्द का उपयोग कर रहा हूँ। इसका एक विशेष कारण है, वह यह कि संप्रदाय विशेष की एक किताब एवं उसके ईश्वर के दूत पर ईमान लाने वाले व्यक्ति को “ईमानदार” कहते हैं, अतः हम तो ईमानदार नहीं हैं, हाँ सत्यनिष्ठ अवश्य है। ईमानदार यह शब्द आम बोलचाल में सत्यनिष्ठ का पर्यायवाची बन गया है, जबकि वस्तुतः ऐसा नहीं है,अतः हमें ईमानदार के स्थान पर सत्यनिष्ठ शब्द का प्रयोग करना चाहिए। अब आते हैं विषय पर।
विगत दिनों मुझे इंदौर में एक स्थान विषेश से दूसरे स्थान पर जाना था। मुझे वास्तविक दूरी का भान नहीं था। मैंने एक ऑटो लिया। ऑटो वाले को भी मेरे ठीक गन्तव्य की दूरी स्पष्ट नहीं थी अतः किराया पूछने पर उसने १५० रुपये में वहाँ तक पहुँचाने की सहमति दी, जब मैं अपने गन्तव्य पर पहुंचकर उसे १५० रुपये देने लगा, तो उसने कहा कि “मैं आपसे केवल १०० रुपये लूंगा, दूरी के अनुसार १५० रुपये ज़्यादा है” मुझे सुखद आश्चर्य हुआ। पहला ऐसा ऑटो वाला मिला है जो स्वेच्छा से कम राशि लेना चाहता है ।
मैंने उससे आग्रह किया कि बात १५० रुपये की हुई थी, अतः इतना तो मैं दूँगा ही, तो उसने कहा कि “मैं वास्तविक से अधिक राशि लेकर भगवान को क्या जवाब दूँगा?” मुझे ऑटो चालक के व्यवहार से आश्चर्यमिश्रित प्रसन्नता हुई और मैंने निश्चय किया कि जितनी राशि तय हुई थी, उतना ही इसे देना है, अतः बहुत आग्रह करने के बाद उसने १५० रुपये स्वीकार किए। निश्चित रूप से सभी ऑटो वाले ऐसे ही नहीं होते, कई लोग ऐसे भी होते हैं, जो अनजान व्यक्ति को ठगने का प्रयत्न भी करते हैं।
ऐसा अक्सर समाज में देखने में आता है, जो आर्थिक रूप से सुदृढ़ नहीं है, वे ही सत्यनिष्ठ ज़्यादा होते हैं, आर्थिक रूप से सुदृढ़ व्यक्ति तो यह देखता है,कि कहाँ से मैं अधिक से अधिक पैसे प्राप्त कर लूँ । ऐसे सत्यनिष्ठ लोगों की पर्याप्त संख्या समाज में है, इसी कारण समाज सुचारु रूप से आगे बढ़ रहा है।
विक्रमादित्य सिंह ठाकुर
सेवा निवृत अपर संचालक अनुसूचित जाति,जनजाति विभाग मध्यप्रदेश शासन ,भोपाल