Male Poet: सुप्रसिद्ध कवि विष्णु नागर की स्त्री विषयक कविताएं
पाठकों के लिए प्रस्तुत हैं वरिष्ठ कवि विष्णु नागर जी की स्त्री को विशेषता प्रदान करती उनकी कविताएं, जो तय करेंगी उनकी कविताओं में होना ‘स्त्री’ विशेष का।
– रीता दास राम
1.किसी दिन उनकी स्त्री बनकर रहना
———-
हां, मुझे स्त्रियां अच्छी लगती हैं
उनकी सुंदरता, उनका यौवन, उनका उत्साह
उनका आग्रह, उनकी मुस्कुराहट
उनकी बातें, उनका संग- साथ
उनके पास से गुजर जाना, उनका स्पर्श पा जाना
उनके सपने में चले आना, उनकी याद में खो जाना
उन्हें कनखियों से देखना, आड़ में छुप कर देखना
कभी उनके साथ चलना, कभी उनके पीछे-पीछे
उनके नेतृत्व में चलने में गौरव महसूस करना
कभी उनके साथ चाय पीना
कभी उनकी शिकायतें सुनना
उनके साथ गाना
उन्हें देर तक संगीत की तरह सुनते चले जाना
उनके क्रोध ,उनकी निराशा में साझा करना
उनके मौन में ,उनकी मुखरता में उनका साथ देना
उनकी बातों में छिपे अर्थ खोजने में
कभी-कभी बहुत दूर चले जाना
कभी जल्दी हार जाना, कभी उन्हें समझ कर न समझना कभी उनसे उलझना- लड़ना और हारना
कभी उनका पहल करना, कभी उनका भ्रम में रखना कभी उनके साथ भावुक हो जाना, कभी रोने लग जाना उनके लिए इंतजार करना ,उनसे कभी इंतजार करवाना उनके संघर्षों में साथ देना
उनके लिए जगह बनाने के लिए खड़े हो जाना
उनके आजादियों पर खुश होना
उनकी गुलामियों के खिलाफ खुल कर बोलना
उनके कंधे पर हाथ रखना ,
उन्हें अपने में समेट लेना,उनमें सिमट जाना
और कभी-कभी उनके साथ खुद भी
स्त्री की तरह सोचने- देखने लग जाना
किसी दिन खुद भी उनकी स्त्री बनकर उनके साथ रहना।
——————————–
2मां सब कुछ कर सकती है
मां सब कुछ कर सकती है
रात-रात भर बिना पलक झपकाए जाग सकती है
पूरा-पूरा दिन घर में खट सकती है
धरती से ज्यादा धैर्य रख सकती है
बर्फ़ से तेजी से पिघल सकती है
हिरणी से ज्यादा तेज दौड़कर खुद को भी चकित कर सकती है
आग में कूद सकती है
तैरती रह सकती है समुद्रों में
देश-परदेश शहर-गांव झुग्गी-झोंपड़ी सड़क पर भी रह सकती है
वह शेरनी से ज्यादा खतरनाक
लोहे से ज्यादा कठोर सिद्ध हो सकती है
वह उत्तरी ध्रुव से ज्यादा ठंडी और
रोटी से ज्यादा मुलायम साबित हो सकती है
वह तेल से भी ज्यादा देर तक खौलती रह सकती है
चट्टान से भी ज्यादा मजबूत साबित हो सकती है
वह फांद सकती है ऊंची-से-ऊंची दीवारें
बिल्ली की तरह झपट्टा मार सकती है
वह फूस पर लेटकर महलों में रहने का सुख भोग सकती है
वह फुदक सकती है चिड़िया की मानिंद
जीवन बचाने के लिए वह कहीं से कुछ भी चुरा सकती है
किसी के भी पास जाकर वह गिड़गिड़ा सकती है
तलवार की धार पर दौड़ सकती है वह लहुलुहान हुए बिना
वह देर तक जल सकती है राख हुए बगैर
वह बुझ सकती है पानी के बिना
वह सब कुछ कर सकती है इसका यह मतलब नहीं
कि उससे सब कुछ करवा लेना चाहिए
उसे इस्तेमाल करनेवालों को गच्चा देना भी खूब आता है
और यह काम वह चेहरे से बिना कुछ कहे कर सकती
——————————–
3.मोटरसाइकिल के पीछे बैठी वह
मोटरसाइकिल के पीछे बैठी वह
कभी अपने प्रेमी के कंधों को
दोनों बांहों से जकड़ती है
कभी उसकी पीठ पर अपना पूरा बोझ डालकर
आंखें मूंदने का सुख लेती है
कभी उसके कानों में कुछ कहती है
कभी उसकी पीठ को अपने दोनों बाहों में समेट लेती है
कभी उसकी जांघों पर रख देती है अपनी हथेलियां
कभी हवा में लहराते अपने बालों को पीछे करती है अदा से
देखना चाहे तो कोई देख ले उसे इस तरह
चाहे तो जले, मरे, आहें भरे
कभी वह क्या सोचती है, कभी क्या
कभी लाल बत्ती पर पास खड़े दूसरे जोड़े को देखती है उसके प्रेमी में ढूंढती है अपना प्रेमी
कभी उसकी प्रेमिका को ज्यादा सुंदर पाकर
अपने प्रेमी के कान को होठों से काटने का अभिनय करती है
उसे क्या पता कि मैं उसकी ये हरकतें देख रहा हूं
और पता हो तो भी क्या
वह जानती है इन बूढ़ों को ईर्ष्या होती है ये देखकर
इन्हें कहां मिला ये सुख जिंदगी में कभी
इसलिए अंकल जी लोग, ऐसे ही घूरते हैं
अतृप्त, हिंसक तरीके से
इनकी क्या परवाह करना
ये तो है सड़े आलू से भी ज्यादा बदबूदार हैं
मरने दो इन्हें
ओ, बुड्ढे तू मर क्यों नहीं जाता
ले मेरी मोटरसाइकिल तो चली, ये चली, वो चली
उड़ गई, मैं उड़ गई
ये गई, वो गई, चली गई ऐ देख,
हवा हो गई मैं।
——–
4.मालिक आपकी चाय तैयार है
—————
एक स्त्री
आईने में अपने को देखती है
और पति से पूछती है –
‘ ऐ मैं सुंदर हूं न ‘
पति कहता है-
‘हां सुंदर हो, बहुत सुंदर
प्लीज़ अब जरा चाय तो बना दो’
‘न पहले ठीक से कहो मैं सुंदर हूं
तब चाय बनाऊंगी ‘
पति कहता है कहा न, सुंदर हो
बहुत सुंदर हो
जाओ, प्लीज़ अब चाय बना दो’
स्त्री अभिमानिनी कहती है-
‘ नहीं ,तुमने अभी मन से कहां कहा
मन से कहो तो बनाएंगे
वरना कहे देते हैं कतई नहीं बनाएंगे
हमारे पति की आज की चाय की छुट्टी हो जाएगी’
पति ने इसका कोई जवाब नहीं दिया
वह रोकती रही
लेकिन पति चला गया
रास्ते में पति ने सोचा कि
क्या वाकई मेरी पत्नी सुंदर है
वह किसी से पूछने में शरमाया
उसने पेड़ से पूछा तो कोई जवाब नहीं आया
एक पत्ता तक नहीं हिला
खुद पत्नी का चेहरा याद किया
तो कुछ समझ में नहीं आया
उसने आसमान से पूछा तो वह ज़रा सा मुस्कुराया
उसने शाम को आकर पत्नी से कहा-
‘हां वाकई तुम सुंदर हो ‘
पत्नी ने जवाब दिया-
‘ मालिक आपकी चाय तैयार है।
कवि परिचय –
विष्णु नागर। जन्म 14 जून 1950। बचपन और छात्र जीवन शाजापुर, मध्य प्रदेश। 1971 से दिल्ली में स्वतंत्र पत्रकारिता। नवभारत टाइम्स तथा दैनिक हिंदुस्तान, कादंबिनी, नई दुनिया, और ‘शुक्रवार’ समाचार साप्ताहिक से जुड़े रहे। इस बीच 1982 से 1984 तक जर्मन रेडियो ‘डोयचे वैले’ की हिंदी सेवा में रहे। भारतीय प्रेस परिषद के पूर्व सदस्य एवं महात्मा गांधी अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा की कार्यकारिणी के पूर्व सदस्य। इस समय स्वतंत्र लेखन।
स्त्री दर्पण से साभार
.