Loksabha Election 2024:बयानों के तीरों के घाव 4 जून के बाद दिखेंगे

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Loksabha Election 2024:बयानों के तीरों के घाव 4 जून के बाद दिखेंगे

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लोकसभा चुनाव बहुत सारे कारणों से उल्लेखनीय रहेगा। सात चरणों के लिये, प्रचार अभियान के लिये,असंयत जुबानी जंग के लिये,असंगत बयानों के लिये,विकास कार्यों या इरादों की बजाय निजी आरोपों के लिये, वर्ग संघर्ष की आशंका को प्रबल बनाने के लिये और अपने काले कारनामों पर परदा डालने के लिये समुदायों के बीच वैमनस्य को बढ़ावा देने के लिये। ये नेता अपने इरादों में कितने कामयाब होते हैं,यह नतीजों पर निर्भर करेगा,इसका अनुमान तो हम लगा ही सकते हैं।बस थोड़ी प्रतीक्षा कीजिये। वैसे तस्वीर तो साफ हो ही चुकी है।

आइये,कुछ प्रमुख बयानों की बात करते हैं। प्रचार अभियान में चर्चित मोड़ उस समय आया,जब पारदेशीय कांग्रेस समिति के अध्यक्ष सैम पित्रोदा ने कहा कि भारत में भी अमेरिका जैसा कानून बनना चाहिये, जिसके तहत किसी की मृत्यु होने पर मृतक की संपत्ति का करीब 60 प्रतिशत सरकार के पास जमा होना चाहिये और शेष परिवार के सदस्यों को दी जाना चाहिये। सैम के बोल वचन तब हदें पार कर गये,जब उन्होंने कहा कि पूरब,पश्चिम,उत्तर,दक्षिण के लोगों के चेहरों की बनावट चीन,अफ्रीका आदि देशओं के लोगों से मिलती है। इस तरह बीच चुनाव बात इतनी बगड़ी कि सैम को इस्तीफा देना पड़ा और कांग्रेस ने इन बयानों से पल्ला झाड़ लिया। फिर भी कमान से निकला तीर भला कब लौटा है, जो इस बार बात बन जाती।

वैसे इन चुनावों में कांग्रेस नेता राहुल गांधी,जो पूर्व में अध्यक्ष जैसी जवाबदारी निभा चुके हैं, वे भी हमेशा की तरह असंगत,तर्कहीन,भड़काऊ और बेसिर पैर के बयान देने से बाज नहीं आये। जो व्यक्ति 20 वर्ष के राजनीतिक जीवन में चार बार से सांसद है,पार्टी का उपाध्यक्ष व अध्यक्ष रहा,वह न तो किसी शिष्टाचार को अपनाता है, न सामान्य बुद्धि का उपयोग करता है। इस बार राहुल ने चुनाव अभियान में दलित-पिछड़ों के लिये कहा कि उनकी जितनी आबादी है,उतने संसाधन उनके पास नहीं है। याने वे यदि 50 प्रतिशत हैं तो संपन्नता भी 50 प्रतिशत होना चाहिये। अब कोई उनसे पूछे कि उनकी पैतृक पार्टी कांग्रेस अलग-अलग समय को मिलाकर करीब 60 साल तक राज करती रही,तब उसने इस बात पर गौर क्यों नहीं किया? नहीं भी किया तो राहुल इसके लिये जवाहरलाल नेहरू,इंदिरा गांधी,राजीव गांधी,मनमोहन सिंह को दोषी ठहराने का साहस कर पायेंगे?ठीक वैसे ही जैसे वे देश में अभी-भी गरीबी होने का आरोप लगाते हैं तो 60 साल में गरीबी दूर करने के लिये उनकी सरकारों ने क्या किया, ये बता दें। राहुल पिछले बरस यह भी कह चुके हैं कि केंद्र सरकार में दलित अधिकारी इक्का-दुक्का ही सचिव पद पर हैं। जिसे इतना नहीं मालूम कि न्यूनतम 20 वर्ष के सेवाकाल के बाद अधिकारी इस पद पर पहुंच पाता है तो ऐसी असंगत बात नहीं कहते,क्योंकि 2014 से पहले तक ऐसे कितने अधिकारी थे, जो अब वरिष्ठता क्रम में सचिव बन पाते? वे आदिवासियों को समुचित प्रतिनिधित्व न देने की बात कहते समय भूल जाते हैं कि मप्र में ही शिवभानुसिंह सोलंकी के पक्ष में विधायकों का समर्थन होने के बावजूद अर्जुनसिंह को मुख्यमंत्री कांग्रेस ने ही बनाया था। कभी-भी कांग्रेस ने दिलीप सिंह भूरिया और कांतिलाल भूरिया को मुख्यमंत्री नहीं बनाया।

ऐसे में सहज ही यह सोचने में आता है कि राहुल गांधी केंद्र में भाजपा सरकार आने के परिप्रेक्ष्य में देश में सामाजिक समरसता बिगाड़ने की साजिश रच रहे हैं। वे वर्ग संघर्ष के लिये उकसा रहे हैं। एक चुनावी सभा में राहुल ने बेहद स्पष्ट तौर पर कहा कि 4 जून को यदि केंद्र में भाजपा सरकार आई तो 7 जून को देखना,देश में आग लगने वाली है। इसका क्या आशय है,राहुल बतायेंगे? क्या वे देश में दंगे भड़काने की भूमिका तैयार कर रहे थे? राहुल एक और बात लगभग हर मंच से कहते हैं कि देश का पैसा 20-25 लोगों के पास है,बाकी लोग गरीब हैं। क्या यही सच है? क्या किसी भी देश में अति धनवानों की संख्या लाखों-करोड़ों में रहती है? क्या कांग्रेस सरकारों के कार्यकाल में लाखों लोगों के पास देश का ज्यादातर धन था, जो भाजपा सरकार आने पर कंगाल हो गये? आखिरकार कितनी बेअक्ली की बातें राजनेता कर सकते हैं, यह राहुल के बयानों को सिलसिलेवार देखने से मालूम चलता है।

इन चुनावों में भी गैर भाजपा दलों ने मुस्लिम तुष्टिकरण का कोई मौका नहीं छोड़ा। अब तो ऐसा लगता है,जैसे कांग्रेस का एकाधिकार खत्म कर दूसरे दल भी मुस्लिम हितैषी दिखाने की होड़ में लगे हैं। बीतच चुनाव में जब पश्चिम बंगाल उच्च न्यायालय ने एक फैसले में एकतरफा दिया मुस्लिम आरक्षण समाप्त कर फिर से इसका निर्धारण करने का आदेश दिया तो मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी ने खुले तौर पर उस आदेश को मानने से इनकार कर दिया और कहा कि वे पूर्ववत आरक्षण देती रहेंगी। उन पर न्यायालय ने अवमानना का मामला दर्ज नहीं किया, जबकि छोटी-छोटी सी बात पर अदालतें नकद जुर्माना और जेल की सजा सुना देती है। ममता का यह बयान देश के संवैधानिक ढांचे को चुनौती देने वाला है। संभव है कि बंगाल के बिगड़े हालात और ताजे आरक्षण प्रकरण के परिप्रेक्ष्य में आगे-पीछे बंगाल में राष्ट्रपित शासन लगाने की नौबत आ जाये।

इंडी गठबंधन के अनेक नेताओं ने लगातार अमर्यादित बयानबाजी की है, जिसकी चर्चा तक फिजूल है। ये लोग राजनीतिक सौजन्य के मायने तक नहीं जानते और गली-मोहल्ले के छिछोरों की तरह देश के प्रधानमंत्री तक के बारे में टिप्पणी करते रहे हैं। अब जबकि चुनाव खत्म होकर नतीजों की दहलीज पर हम आ गये हैं, तब एकबारगी पलटकर देखते हैं तो पाते हैं कि सार्वजनिक जीवन में सम्मान,शिष्टाचार,संयम और सिद्धांतों की तिलांजलि दे दी गई है, जो आने वाले समय में समाज और देश का बड़ा नुकसान है।