Entitled to Alimony : सुप्रीम कोर्ट ने कहा ‘गुजारा भत्ता पाने की हकदार मुस्लिम महिलाएं भी!’
New Delhi : मुस्लिम महिलाओं के हक में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि मुस्लिम महिलाएं भी CrPC की धारा 125 के तहत अपने पति से गुजारा भत्ता लेने के लिए याचिका दाखिल करने की हकदार हैं। तेलंगाना के एक मुस्लिम शख्स ने अपनी तलाकशुदा पत्नी को भत्ते के रूप में 10,000 रुपये देने के हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने ये बड़ा फैसला सुनाया।
जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह ने अलग-अलग लेकिन एकमत से फैसला सुनाते हुए कहा कि धारा 125 CrPC सभी महिलाओं पर लागू होती है। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि अगर किसी मुस्लिम महिला को धारा 125 CrPC के तहत आवेदन के दौरान तलाक दे दिया जाता है, तो वह मुस्लिम महिला (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 के तहत गुहार लगा सकती है, जो अतिरिक्त उपाय प्रदान करता है।
बार एंड बेंच ने जस्टिस नागरत्ना के हवाले से कहा कि हम इस आपराधिक अपील को इस अहम निष्कर्ष के साथ खारिज कर रहे हैं कि धारा 125 CrPC सभी महिलाओं पर लागू होगी, न कि केवल विवाहित महिलाओं पर। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि अगर मुस्लिम महिला तलाकशुदा है और उसने धारा 125 CrPC के तहत आवेदन किया है, तो वह मुस्लिम महिला (विवाह पर अधिकारों की सुरक्षा) अधिनियम, 2019 का सहारा ले सकती हैं, जो अतिरिक्त राहत प्रदान करता है।
शाह बानो वाले मामले पर ही फैसला
शीर्ष अदालत ने मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों की सुरक्षा) अधिनियम, 1986 के बावजूद तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं पर आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 125 के लागू होने की फिर से पुष्टि की। यह कानून ऐतिहासिक शाह बानो केस का नतीजा है, जहां अदालत ने धारा 125 CrPC को एक धर्मनिरपेक्ष प्रावधान के रूप में मान्यता दी थी, जो मुस्लिम महिलाओं पर भी लागू होता है।
अब तक पर्सनल लॉ के आधार पर बनाए गए कानून के तहत तलाक हो जाने के बाद 90 से 100 दिनों की इद्दत यानी एकांतवास की अवधि तक ही मुस्लिम महिलाएं अपने पूर्व शौहर से गुजारा भत्ता पाने को हकदार हैं। इसके बाद उन्हें गुजारा भत्ता नहीं मिलता। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने शाहबानो के मामले में फैसला सुनाया था कि मुस्लिम महिलाएं भी अन्य महिलाओं की तरह गुजारा भत्ता मांगने की हकदार हैं।