Discussion on Story Collection : गोपाल शर्मा के कहानी संग्रह पर चर्चा में हरीश पाठक ने इसे यथार्थ का लेखन कहा!
Mumbai : कहानीकार गोपाल शर्मा के नए कहानी संग्रह ‘उलझे रेशम’ पर चर्चा हुई। इसमें भाग लेने वाले अधिकांश चर्चाकारों ने कहा कि इसे मार्क्सवादी का रचना संग्रह न मानते हुए इसे रुमानियत से भरा कहानी संग्रह बताया। गोपाल शर्मा खुद को मार्क्सवादी कहते हैं, पर इन कहानियों को पढ़कर लगता है कि उन्होंने विचारधारा नहीं, यथार्थ को पन्नों पर उतारा है। उनके इस संग्रह ‘उलझे रेशम’ की 20 कहानियाँ उनके व्यक्तित्व की तरह खिलंदड़ हैं। भाषा और शिल्प ऐसा है कि बार बार पढ़ने को मन करता है। यही इन कहानियों की ताकत है।
यह विचार कथाकार, पत्रकार हरीश पाठक ने मुंबई विश्वविधालय के शंकरराव चव्हाण भवन में ‘शोधावरी’ द्वारा आयोजित गोपाल शर्मा के कहानी संग्रह ‘उलझे रेशम’ पर आयोजित विमर्श में व्यक्त किए। वे कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे थे।
अवधेश कुमार राय ने कहा कि इन कहानियों में रुमानियत ज्यादा है, मार्क्सवादी चिंतन कहीं नहीं दिखता। रमन मिश्र ने कहा कि कहानी पढ़ना आसान है, गोपाल को पढ़ना मुश्किल।सांस्कृतिक दुनिया में हम एक दूसरे के दुश्मन हैं। सर्वेश यादव ने कहा कि कहानियों में मार्क्सवाद नहीं, पत्रकार दिखता है। रागिनी कांबले ने कहा कि कहानियां पठनीयता से भरपूर हैं।
अपनी बात रखते हुए गोपाल शर्मा ने कहा कि लेखक को यथार्थजीवी होना ही पड़ता है। मैं जो लिख रहा हूँ वह जिंदा रहेगा। कार्यक्रम का संचालन आमना आजमी ने व आभार रोहित ने व्यक्त किया। इस मौके पर डॉ हूबनाथ पांडेय, राकेश शर्मा, प्रज्ञा पद्मजा, डॉ अंजू शर्मा, प्रतिमा चौहान, रीता दास राम, शिवदत्त शर्मा, प्रेमा गोपाल शर्मा, जाहिद अली रियासत, साजिदा खान, सारिका नागर, आशिया शेख, प्रमोद यादव, नितिन विद्यार्थी, आशुतोष शुक्ला आदि उपस्थित थे।