Amazing: Living Root Bridge Meghalaya- जीवित पौधों की जड़ों से निर्मित

1712

Amazing: Living Root Bridge Meghalaya- जीवित पौधों की जड़ों से निर्मित

                                        चेरापूंजी भ्रमण

महेश बंसल

हम ऐसे पुल पर चल रहे थे जो कंक्रीट या धातु से बना निर्जीव नहीं था , बल्कि भारतीय रबर के पेड़ों (फ़िकस इलास्टिका )की प्राकृतिक रूप से उगने वाली जीवित जड़ों से बना था। उस पुल में जीवन था, जिस पर हमारे ही ग्रुप सहित अन्य लोग जिनकी संख्या लगभग 50 के आसपास थी, चल रहे थे अथवा रूक कर फोटो क्लिक कर रहे थे, किसी के भी मन में डर का भाव नहीं था। उबड़-खाबड़ पहाड़ी ढलान पर चट्टानी पत्थरों से निर्मित सैकड़ों फीट नीचे उतरने के बाद, नीचे बहती पहाड़ी नदी पर बने जड़ों के जंजाल से निर्मित पुल को देखकर हम सभी चमत्कृत थे ।

दशरथ मांझी की कथा तो हमने सुनी थी कि अकेले व्यक्ति ने वर्षों के अथक एकाकी परिश्रम से पहाड़ काटकर सड़क बनाई थी। लेकिन चेरापूंजी भ्रमण में हमें मालूम हुआ कि यहां के आदिवासीयों ने भारी बरसात से पहाड़ी नदी में आए पानी से आवागमन बंद हो जाने के परिणाम के उपचार हेतु रबर के पौधे की जड़ों से पुल का निर्माण किया, जिसमें रास्ता व रेलिंग जीवित जड़ों से बनाई है ।

14living root bridge aadhan2 431486393 7465394683522438 9031528505193173386 n

जीवित जड़ों से बने पुल मेघालय के सबसे खूबसूरत मूर्त विरासत स्थलों में से एक हैं। इन स्थलों को हाल ही में यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल सूची में शामिल किया गया है। वे आपस में जुड़ी जड़ों से बने हैं जो एक तरह का जादू है, लेकिन वे काल्पनिक नहीं हैं। इन पुलों का निर्माण सदियों से इस भूमि के मूल निवासियों (खासी और जैंतिया) द्वारा किया जाता रहा है। इनका उपयोग इन लोगों द्वारा मानसून के मौसम में उफनती नदियों को पार करने के लिए भी किया जाता रहा है।

भारत के हर राज्य का अपना अनूठा समृद्ध प्राकृतिक इतिहास है जो किसी न किसी तरह से उसकी पहचान को आकार देता है। उत्तराखंड की फूलों की घाटी से लेकर महाराष्ट्र की लोनार झील, आंध्र की गंडिकोटा घाटी से लेकर मध्य प्रदेश की संगमरमर की चट्टानें और लद्दाख की मैग्नेटिक हिल से लेकर केरल की साइलेंट वैली तक, भारत प्राकृतिक चमत्कारों से भरा पड़ा है। ऐसे ही प्राकृतिक चमत्कारों से भरे हैं मेघालय की खासी जनजाति के लोगों के द्वारा निर्मित 72 गांवों में 100 से अधिक जीवित जड़ पुल ।

431505698 7465396000188973 1279882513251313009 n

मेघालय को मानसून के दौरान भारी बारिश के लिए जाना जाता हैं। कुछ शताब्दियों पहले, स्थानीय लोगों ने देखा कि रबर के पेड़ की जड़ें तेज़ बहने वाली नदियों के आस-पास की चट्टानों से जुड़ जाती हैं और मिट्टी के कटाव को रोकती हैं। इसलिए उन्होंने सुपारी के ताड़ के पेड़ों के खोखले तने के ज़रिए नदी के किनारों पर और पेड़ लगाने का फैसला किया।

जनजातियों ने देखा कि विपरीत छोर पर स्थित पेड़ों की जड़ें नदी के पार आधी दूरी पर जाकर मिलती हैं। जनजातियों को इस घटना से प्रेरणा मिली और उन्होंने जड़ों को हाथ से बुनना शुरू कर दिया एवं हवाई जड़ों का उपयोग करके पूर्ण विकसित पुल बनाने की कला में सिद्धहस्त हो गए ।

जड़ों को आकार लेने में लगभग 10-15 साल लगते हैं। हालाँकि, निर्माण के बाद उन्हें ज़्यादा रख-रखाव की ज़रूरत नहीं होती क्योंकि जड़ों का मोटा होना लगातार पुल को मज़बूत बनाता है।
लिविंग रूट ब्रिज, जिनकी लंबाई 15 फीट से लेकर 250 फीट तक है, वे भयंकर तूफान और अचानक आई बाढ़ से भी बचे हुए हैं। ऐसे 100 पुलों में से, चेरापूंजी का डबल-डेकर लिविंग रूट ब्रिज सबसे लोकप्रिय है कहा जाता है कि यह 180 साल से भी ज़्यादा पुराना है । दुर्गम रास्तों के कारण हालांकि हम डबल डेकर ब्रिज नहीं गये थे , सिंगल ब्रिज पर ही गए थे।
ये पुल लचीले होते हैं, जिससे वे भार और दबाव को सहन कर सकते हैं।
इन वृक्षों की जड़ें प्राकृतिक रूप से आपस में जुड़ती और मिलती रहती हैं। ये पेड़ उबड़-खाबड़ और पथरीली मिट्टी में भी उग सकते हैं।
आवश्यकता आविष्कार की जननी है अतः मनुष्य इच्छा शक्ति के बल क्या कुछ नहीं कर सकता, यह इसका उत्कृष्ट उदाहरण है ।इस पुल का सांस्कृतिक महत्व भी बहुत बड़ा है। ऐसा इसलिए है क्योंकि प्रत्येक पुल को डिजाइन करने, प्रबंधित करने और बनाए रखने के लिए पूरे समुदाय को सहयोग करना चाहिए। इन पर काम करने के लिए एक से अधिक पीढ़ियों का समय लगता है। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि इन पुलों का उपयोग उन लोगों की भावी पीढ़ियों द्वारा भी किया जा सके जो वर्तमान में छोटे पुलों की देखभाल कर रहे हैं

431518079 7465395290189044 2024516341941496104 n 1

महेश बंसल, इंदौर

Ficus Benghalensis: कुछ ख़ास है कुछ पास है: बगल में छोरा और शहर में ढिंढोरा ” माखन कटोरी पेड़” 

Amazing Travelogue : अमेरिका का “यलो स्टोन नेशनल पार्क” जहाँ ज्वालामुखी से निकले रंगीन लावा में भारत के राष्ट्रीय ध्वज के तीनों रंग दिखाई देते हैं