हमारे शिक्षक- कुछ विचार
शिक्षक वह होता है जो आपको सिखाता है कि कैसे जीना है।
पंडित दीनानाथ व्यास स्मृति प्रतिष्ठा समिति भोपाल द्वारा शिक्षक दिवस पर हमारे बाबूजी आदर्श शिक्षक स्व. पंडित रामानंद तिवारी, स्व. पंडित दीनानाथ व्यास एवं आदर्श प्रधान शिक्षिका स्व. पुष्पावती व्यास को समर्पित पटल पर शिक्षक दिवस मनाया .इस अवसर पर सदस्यों ने अपने विचार रखे चुनिन्दा विचार यहाँ प्रस्तुत हैं ——
संयोजन -रुचि बागड़देव
1.जो व्यक्ति विवेक या बुद्धिमत्ता दे उसे गुरु कहा जाता है
राघवेंद्र दुबे
टीचर्स डे आ गया है। अंग्रेजी में एक ही शब्द है टीचर ।परंतु हिंदी में कई शब्द है जैसे शिक्षक अध्यापक, उपाध्याय, आचार्य ,पंडित ,गुरु आदि।
अंग्रेजी का यह दुर्भाग्य है कि एक ही शब्द टीचर हिंदी के इन सभी शब्दों के वास्तविक अर्थ की पूर्ति नहीं कर पाता है। पुराणों में कहा गया है कि वह व्यक्ति जो सिर्फ जानकारी देता है उसे अध्यापक कहा जाता है। जो व्यक्ति उसमें ज्ञान भी जोड़ दें उससे उपाध्याय कहते हैं ।जो व्यक्ति कौशल भी दे उसे आचार्य कहते हैं। जो गहरी समझ प्रदान करें उसे पंडित कहते हैं ।
और जो व्यक्ति विवेक या बुद्धिमत्ता दे उसे गुरु कहा जाता है ।
इन सब पदों के लिए अंग्रेजी में एक ही शब्द टीचर कुछ अधूरा सा लगता है इस सबके उपरांत भी जो टीचर का कार्य कर रहे हैं उन सबको बधाई।
2 .शिक्षक हमारे जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं
डां. दविंदर कौर होरा
शिक्षक हमारे जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे हमें ज्ञान देते हैं, हमारे चरित्र को आकार देते हैं, और हमें भविष्य के लिए तैयार करते हैं।शिक्षक हमारे मार्गदर्शक हैं, जो हमें सही रास्ते पर चलने में मदद करते हैं। वे हमारी प्रतिभा को पहचानते हैं और उसे विकसित करने में मदद करते हैं।शिक्षक का सम्मान करना हमारा कर्तव्य है। हमें उनके प्रति कृतज्ञता दिखानी चाहिए और उनके योगदान को स्वीकार करना चाहिए।टीचर डे हमें शिक्षकों के प्रति आभार व्यक्त करने का अवसर प्रदान करता है। हमें इस दिन शिक्षकों का सम्मान करना चाहिए और उनके योगदान को याद करना चाहिए।
पर्यावरण शिक्षक के रूप में
पर्यावरण भी हमारा एक महत्वपूर्ण शिक्षक है। यह हमें प्रकृति के नियमों और सिद्धांतों को सिखाता है, हमें जीवन के महत्वपूर्ण सबक सिखाता है, और हमें अपने जीवन को संतुलित और सार्थक बनाने में मदद करता है।
पर्यावरण हमें सिखाता है:
– जीवन का महत्व और सार्थकता
– प्रकृति के साथ सामंजस्य और संतुलन
– संसाधनों का सही उपयोग और संरक्षण
– जिम्मेदारी और सावधानी का महत्व
– बदलावों को स्वीकार करने और अनुकूलन की कला
पर्यावरण के माध्यम से हम प्रकृति के करीब आते हैं, अपने जीवन को सार्थक बनाते हैं, और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक बेहतर भविष्य का निर्माण करते हैं।
इसलिए, पर्यावरण को भी हमारे शिक्षकों के रूप में सम्मानित किया जाना चाहिए और इसके महत्व को स्वीकार किया जाना चाहिए।
माता- पिता पहले शिक्षक
माता-पिता भी हमारे पहले और सबसे महत्वपूर्ण शिक्षक होते हैं। वे हमें जीवन के मूल्यों और सिद्धांतों को सिखाते हैं, हमारे चरित्र को आकार देते हैं, और हमें इस दुनिया में जीने के लिए तैयार करते हैं।
माता-पिता के प्यार, समर्थन और मार्गदर्शन से हम अपने जीवन के लक्ष्यों को प्राप्त करने में सफल होते हैं। वे हमें अच्छे और बुरे के बीच का अंतर सिखाते हैं, हमें स्वतंत्र और जिम्मेदार बनाते हैं, और हमारे जीवन को सार्थक बनाने में मदद करते हैं।
इसलिए, माता-पिता को भी हमारे शिक्षकों के रूप में सम्मानित किया जाना चाहिए और उनके योगदान को स्वीकार किया जाना चाहिए।
महान जन्म से महान पैदा नहीं होते, वरन उनके जीवन में उनके शिक्षकों की मेहनत, सूझबूझ उन्हें महान बनाती है |
इनके विचारों से हमें यह समझने में मदद मिलती है कि शिक्षक हमारे जीवन में कितने महत्वपूर्ण होते हैं। वे हमें सिखाते हैं, मार्गदर्शन करते हैं, और हमारे भविष्य को आकार देते हैं।
निष्कर्ष एक अच्छा टीचर वह होता है जो न केवल ज्ञान प्रदान करता है, बल्कि छात्रों के जीवन को सार्थक बनाने में मदद करता है। वह छात्रों को प्रेरित करता है, उन्हें सिखाता है, और उनके भविष्य को आकार देता है।
एक अच्छे टीचर में ज्ञान, धैर्य, संचार कौशल, सहानुभूति, प्रेरणा, निष्पक्षता, अद्यतन, और अनुशासन जैसे गुण होने चाहिए। ये गुण एक टीचर को अपने छात्रों के साथ प्रभावी ढंग से जुड़ने और उन्हें सफल बनाने में मदद करते हैं।
इसलिए, हमें अपने टीचर्स का सम्मान करना चाहिए और उनके योगदान को स्वीकार करना चाहिए। वे हमारे जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और हमें भविष्य के लिए तैयार करते हैं।
आप सब को शिक्षक दिवस की
हार्दिक शुभकामनाएं
3. वह शिक्षक दिवस जब एक 7- 8 वर्ष की बच्ची बेशर्म के फूलों का गुच्छा लेकर आई
विनीता तिवारी
आज शिक्षक दिवस है.पढ़ते थे तब समझ नहीं आता था अपने मन में शिक्षक के प्रति जो सम्मान है , उसे कैसे व्यक्त करें? फिर भी पूरा जोर लगा देते थे .सामूहिक कार्यक्रम तो होता ही था ,व्यक्तिगत रूप से भी फूल , वेणी अपनी शिक्षक को देते थे ,बड़े हो गए तो ग्रीटिंग बनाने लगे, फिर टीचर को टाईटल देते थे पर आज समझ में आता है की हम जिनसे कुछ सीखते हैं वे सभी हमारे शिक्षक हैं ,वह ईश्वर प्रदत्त कुछ भी हो सकता है!
मैंने भी 18 वर्ष तक बच्चों को पढ़ाया है ,अलग-अलग तरह के विषम परिस्थितियों में जीवन बसर करने वाले बच्चे ,कचरा बीनने वाले, कैदियों के बच्चे (यह तो अभी भी हमारे पास पढ़ रहे हैं )जब मैं अपने मनु मेमोरियल स्कूल जाती थी राजेंद्र नगर से पटरी पर चलते हुए आनंद नगर तक जाना होता था, और रोज 10-12 बच्चे मुझे लेने आते थे,रैली की शक्ल में रोज स्कूल जाती थी .रास्ते में बच्चों से बतिया ना ऊर्जा से भर देता था.स्कूल पहुंचने पर बच्चों के अभिवादन के तरीके से ही मन भर आता ,नमस्ते तो कभी कहते ही नहीं थे दौड़ते हुए आकर इस तरह लिपट जाते कि उनसे अलग होना या करना मुश्किल था !पढ़ाने से पहले आधा घंटा इनसे व्यक्तिगत बात करती थी, उनके सुख-दुख सुनकर कंठ अवरुद्ध हो जाता था !लगता था एक ऐसी दुनिया भी है बच्चों की !सोचती थी ऐसी विषम परिस्थितियों में बच्चे कैसे रहते होंगे ?मन ही मन हर रोज प्रण करती थी ,इन्हें जहालत की जिंदगी से निकालना है .लगता था यह पढ़ लिख कर कुछ ना बने बस एक इंसान बन जाएं.जहां हम सोचते हैं प्यार मिलना हमारा हक है वही इन बच्चों से सीखा जो भी प्यार मिला है वह कितना अमूल्य है!!जब किशोरवय बच्चे मेरे आसपास घूमते हुए गुनगुनाते थे “प्यार का नाम मैंने सुना था मगर प्यार क्या है यह मुझको नहीं थी खबर “सोचती रह जाती प्यार मिश्रित सहानुभूति उफन रही होती बच्चों के लिए.
आज भी याद है वह शिक्षक दिवस जब एक 7- 8 वर्ष की बच्ची बेशर्म के फूलों का गुच्छा दोनों हाथों से पीछे छुपाए मुझे देख रही थी .मैंने उसे अपने पास बुलाया उसके नन्हें- नन्हें हाथों ने मुझे फूलों का गुच्छा दिया !!मुझसे ज्यादा प्यार मुझे बच्चों ने दिया ,सम्मान के काबिल बनाया.सभी बच्चों को बहुत -सा प्यार और ढेरों आशीर्वाद!!!
4.न ही पहले जैसे गुरू रहे ना ही पहले जैसे शिष्य
मधूलिका श्रीवास्तव
गुरु और शिष्य परंपरा हमारे यहाँ सदियों से चली आ रही है ।राम और कृष्ण के वक्त भी गुरु और शिष्य परंपरा का बहुत महत्व था ।गुरु का दर्जा माता पिता से भी बढ़कर माना गया है पर अब धीरे-धीरे गुरु शिष्य का संबंध व्यवसायिक होता जा रहा है ।न ही पहले जैसे गुरू रहे ना ही पहले जैसे शिष्य !अब शिक्षा व्यवसाय बन गया है जितनी ज्यादा फीस होगी स्कूल को उतना ही अच्छा माना जाता है ।ऊपरी तामझाम ही उच्च शिक्षा का स्तर समझा जाने लगा है ।आजकल पढ़ाई से ज्यादा इन्हीं बातों पर ज़्यादा ध्यान दिया जाने लगा है ।आजकल महंगे स्कूल में पढ़ाना स्टेटस सिंबल हो गया है माता-पिता को लगता है कि हम इतना पैसा दे रहे हैं तो हमारे बच्चे को मारने का अधिकार या सख्ती करने का अधिकार किसी को नहीं है ।यह भी एक कारण है शिष्य और शिक्षक में आत्मीयता नहीं बन पाती वह भी मशीन की तरह स्कूल आते हैं और अपना कोर्स खत्म करके अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाते हैं ।
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सीख:Never Take Any Risk Without Having Complete Information- जिसका काम उसी को साजे…*