देश को हर साल चुनावों से स्वतंत्रता मिलना जरूरी है…
कोई मुद्दा एनडीए सरकार का है, इसलिए विपक्ष को अनिवार्य रूप से विरोध करना ही है। पर ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ जैसे मुद्दे पर विपक्ष का विरोध शायद उतनी प्रशंसा नहीं पा सकेगा, जितनी विपक्ष ने उम्मीद की होगी। क्योंकि न तो यह मुद्दा सांप्रदायिक है और न ही देश का अहित करने वाला है। पर यह बात अवश्य है कि पिछले महीने ऐतिहासिक तीसरी बार शपथ लेने के बाद अपने स्वतंत्रता दिवस के संबोधन में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ का जिक्र किया था। उन्होंने जोर देकर कहा था कि लगातार चुनाव देश के विकास को धीमा कर रहे थे। और मोदी-3 कार्यकाल में ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ को लागू करके रहेंगे। तो देखना अब यह है कि विपक्ष के विरोध के बीच देश को हर साल होने वाले चुनावों से स्वतंत्रता मिल पाती है या नहीं। या फिर संविधान संशोधन की स्थिति तक पहुंचने से पहले ही सरकार की मंशा को विपक्ष का ग्रहण लग जाएगा।
मुद्दे का विस्तार यही है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने एक साथ निर्वाचन कराने के मुद्दे पर पूर्व-राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में गठित उच्च स्तरीय समिति की सिफारिशें स्वीकार कर ली हैं। उच्च स्तरीय समिति की सिफारिश है कि एक साथ निर्वाचन कराए जाएं। तर्क भी हैं कि 1951 से 1967 के बीच एक साथ निर्वाचन संपन्न हुए हैं। तो विधि आयोग की 170वीं रिपोर्ट (1999) का हवाला है कि पांच वर्षों में एक लोकसभा और सभी विधानसभाओं के लिए एक निर्वाचन हो।संसदीय समिति की 79वीं रिपोर्ट (2015) का हवाला है जिसमें चरणों में एक साथ निर्वाचन कराने के तरीके सुझाए गए हैं।रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली उच्च स्तरीय समिति ने राजनीतिक दलों और विशेषज्ञों सहित व्यापक तौर पर हितधारकों से विस्तृत परामर्श किया।परिणाम यह निकला कि देश में एक साथ निर्वाचन कराने को लेकर व्यापक समर्थन है।
सिफारिशें और आगे का रास्ता यह सुझाया गया है कि प्रक्रिया को दो चरणों में लागू किया जाए। पहले चरण में लोकसभा और विधानसभा का निर्वाचन एक साथ कराया जाए। दूसरे चरण में आम चुनावों के 100 दिनों के भीतर स्थानीय निकाय के लिए निर्वाचन (पंचायत और नगर पालिका) कराना सुनिश्चित हो। सबसे अच्छी बात यह है कि सभी निर्वाचनों के लिए एकसमान मतदाता सूची बने। सिफारिश है कि पूरे देश में विस्तृत चर्चा शुरू की जाए। एक कार्यान्वयन समूह का गठन कर इस दिशा में आगे बढ़ा जाए।
एक पक्ष है कि संसद और राज्य विधानसभाओं के चुनाव पांच साल में एक बार होना चाहिए, ताकि देश में विकास के कार्यक्रम चलते रहें, अनावश्यक खर्चों से बचा जा सके और कानून व्यवस्था प्रभावित न हो। चुनावी प्रक्रिया सरल और प्रभावी बनेगी। लोकतंत्र को और मजबूती मिलेगी। यदि सभी चुनाव एक साथ होते हैं तो इससे राजनीतिक स्थिरता को बढ़ावा मिलेगा और सरकारों को कार्य करने का अधिक समय मिलेगा।
तस्वीर सामने है कि भाजपा और एनडीए के दलों समेत 32 पार्टियों ने ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ का समर्थन किया है। जबकि कांग्रेस समेत 15 दलों ने ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ का विरोध किया है। वहीं, 15 दलों ने इस पर कोई राय नहीं दी है। संभावना है कि मोदी सरकार संसद के शीतकालीन सत्र में ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ पर बिल पेश कर सकती है।भाजपा ने कहा, “वन नेशन वन इलेक्शन से देश में स्थिरता आएगी। इससे आर्थिक विकास में तेजी आएगी। एक राष्ट्र एक चुनाव से सत्ताधारी पार्टियों को शासन में फोकस करने, नीति निर्माण में सुधार करने में मदद मिलेगी। साथ ही इससे मतदान में बढ़ोतरी के रास्ते खुलेंगे। मतदान की प्रक्रिया भी आसान हो जाएगी। बार-बार चुनाव के बजाय एक ही बार में चुनाव कराने से पैसे और समय की बचत भी होगी। तो कांग्रेस का कहना है कि वन नेशन वन इलेक्शन अव्यावहारिक है। इंडिया अलायंस की अगुवाई करने वाली पार्टी कांग्रेस ने कहा, ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ को देश कभी स्वीकार नहीं करेगा। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि देश के लोग इसे मानने वाले नही हैं। ये सिर्फ चुनाव के लिए मुद्दा बनाकर लोगों को डॉईवर्ट करते हैं। ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ प्रैक्टिकल है ही नहीं।तो ओवैसी को संघवाद के खत्म होने का डर है।
यानि साफ है कि बहुत कठिन है डगर पनघट की। ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ का आगे का सफर आसान नहीं है। इसके लिए संविधान संशोधन और राज्यों की मंजूरी भी जरूरी है, जिसके बाद ही इसे लागू किया जाएगा। ऐसे में मोदी कैबिनेट का यह फैसला मंजिल तक पहुंच पाएगा, इसको लेकर संशय बरकरार है। पर यदि पक्ष-विपक्ष की सोच से परे जाकर विचार हो तो ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ का मुद्दा राष्ट्रहित में है। देश को हर साल चुनावों से स्वतंत्रता मिलना जरूरी है…ताकि कम से कम ‘एक साल चुनाव और पांच साल विकास’ की उम्मीद तो की ही जा सकती है…।