Film Review Yudhra: एक्शन के नाम पर हिंसा का अतिरेक

Film Review Yudhra: एक्शन के नाम पर हिंसा का अतिरेक

 

युध्रा देखी | समझ में नहीं आया कि-

एनिमल और किल से भी ज्यादा हिंसा वाली इस फ़िल्म को फ़िल्म प्रमाणन बोर्ड ने ‘A’ सर्टिफिकेट क्यों नहीं दिया?

– फ़िल्म में ईमानदार पुलिसवाला अक्सर राजपूत ही क्यों होता है?

– तस्करों के नाम मुस्लिम ही क्यों रखे जाते हैं?

– हीरोइन को अच्छी पढ़ाई के लिए विदेश में ऐसी जगह ही स्कालरशिप कैसे मिल जाती है, जहां सुंदर समुद्र तट होते हैं। बेचारे आम विद्यार्थी तो यूक्रेन, रूस, चीन और यहां तक कि बांग्लादेश जाकर पढ़ाई करते हैं। इस फ़िल्म से पता चला कि डॉक्टरी की पढ़ाई करनेवाली को पुर्तगाल में भी स्कॉलरशिप मिल जाती है जिसके बूते पर हीरोइन सुंदर सुंदर बीच पर नहाती है।

– हीरो को विदेश जाने के लिए इतनी जल्दी वीसा कैसे मिल जाता है? क्या वह बिना वीसा के जाता है? उसे कभी विदेशी मुद्रा की दिक्कत नहीं होती? वह महंगे कपड़े पहनता है, महंगे शौक पालता है। उसे कभी कानूनी पचड़ों में नहीं पड़ना पड़ता!

– यहां तो मामूली ज़ख्म भरने में हफ्तों लग जाते हैं, हीरो का ज़ख्म यूं, चुटकी बजाते ही भर जाता है। क्या जादू है भाई? कुछ भी हो, हीरो को कुछ नहीं होता। हीरो अमृत पीकर आता है क्या?

– हर फिल्म में नेता गद्दार, लालची, दुष्ट, जल्लाद टाइप क्यों होता है?

– युध्रा का मतलब कितनों को पता है? इस फ़िल्म में ड्रामा, एक्शन, नाच गाना, बदले की आग, अच्छे पुलिसवाले, गद्दार पुलिसवाले, धोखेबाज़ नेता, वफादार गर्लफ्रेंड, ईमानदार बाप का ईमानदार बेटा, नरपिशाच टाइप विलेन और मौका आने पर वैसा ही हीरो है। पूरा टेम्पलेट अच्छा है, लेकिन कहानी? होती तो बेहतर होता!

– ये डॉयलाग अच्छा है कि कसाई का काम गल्ले पे बैठना नहीं, काटना होता है। अगर वो काटेगा नहीं तो उसके औजार (हथियार) पर जंग लग जायेगी।

-युध्रा देखना ही हो तो कई बार विभत्स मारकाट में आंखें बंद करनी पड़ सकती है। इतनी निरघृण मारपीट। तौबा तौबा!! देखनेवालों को कौन रोक सका है भला!

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डॉ. प्रकाश हिन्दुस्तानी

डॉ. प्रकाश हिन्दुस्तानी जाने-माने पत्रकार और ब्लॉगर हैं। वे हिन्दी में सोशल मीडिया के पहले और महत्वपूर्ण विश्लेषक हैं। जब लोग सोशल मीडिया से परिचित भी नहीं थे, तब से वे इस क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं। पत्रकार के रूप में वे 30 से अधिक वर्ष तक नईदुनिया, धर्मयुग, नवभारत टाइम्स, दैनिक भास्कर आदि पत्र-पत्रिकाओं में कार्य कर चुके हैं। इसके अलावा वे हिन्दी के पहले वेब पोर्टल के संस्थापक संपादक भी हैं। टीवी चैनल पर भी उन्हें कार्य का अनुभव हैं। कह सकते है कि वे एक ऐसे पत्रकार है, जिन्हें प्रिंट, टेलीविजन और वेब मीडिया में कार्य करने का अनुभव हैं। हिन्दी को इंटरनेट पर स्थापित करने में उनकी प्रमुख भूमिका रही हैं। वे जाने-माने ब्लॉगर भी हैं और एबीपी न्यूज चैनल द्वारा उन्हें देश के टॉप-10 ब्लॉगर्स में शामिल कर सम्मानित किया जा चुका हैं। इसके अलावा वे एक ब्लॉगर के रूप में देश के अलावा भूटान और श्रीलंका में भी सम्मानित हो चुके हैं। अमेरिका के रटगर्स विश्वविद्यालय में उन्होंने हिन्दी इंटरनेट पत्रकारिता पर अपना शोध पत्र भी पढ़ा था। हिन्दी इंटरनेट पत्रकारिता पर पीएच-डी करने वाले वे पहले शोधार्थी हैं। अपनी निजी वेबसाइट्स शुरू करने वाले भी वे भारत के पहले पत्रकार हैं, जिनकी वेबसाइट 1999 में शुरू हो चुकी थी। पहले यह वेबसाइट अंग्रेजी में थी और अब हिन्दी में है।

डॉ. प्रकाश हिन्दुस्तानी ने नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने पर एक किताब भी लिखी, जो केवल चार दिन में लिखी गई और दो दिन में मुद्रित हुई। इस किताब का विमोचन श्री नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के एक दिन पहले 25 मई 2014 को इंदौर प्रेस क्लब में हुआ था। इसके अलावा उन्होंने सोशल मीडिया पर ही डॉ. अमित नागपाल के साथ मिलकर अंग्रेजी में एक किताब पर्सनल ब्रांडिंग, स्टोरी टेलिंग एंड बियांड भी लिखी है, जो केवल छह माह में ही अमेजॉन द्वारा बेस्ट सेलर घोषित की जा चुकी है। अब इस किताब का दूसरा संस्करण भी आ चुका है।