परिसंवाद
पंडित दीनानाथ व्यास स्मृति प्रतिष्ठा समिति का आयोजन : भारतीय संस्कृति के लोकजीवन में रचा बसा लोक पर्व “संजा”
विशेष रिपोर्ट -रूचि बागड़ देव
भोपाल: पंडित दीनानाथ व्यास स्मृति प्रतिष्ठा समिति भोपाल द्वारा निमाड़ -मालवा के लोक जीवन के पर्व संजा और महाराष्ट्र का गुलाबाई पर्व को संरक्षित किये जाने के उद्देश्य से एक परिसंवाद आयोजित किया है .मालवा की संस्कृति के लोक जीवन का यह लोक पर्व संजा का कलात्मक वैभव समूचे भारत की संस्कृति को आल्हादित करता है। कार्यक्रम का संचालन करते हुए प्रतिष्ठा संस्था की संस्थापक डॉ .स्वाति तिवारी ने बीज वक्तव्य देते हुए कहा कि लोक पर्व का कलात्मक पक्ष पर्यावरण ,धर्म साहित्य, अध्यात्म, गीत-संगीत एवं चित्रांकन कला के ये सभी उपादान गहराई से भारत की लोक जीवन एवं संस्कृति से जुड़े हैं। यह पर्व तब शुरू हुआ होगा जब लड़कियों को अपनी कलात्मक अभिरुचि की अभिव्यक्ति के लिए कोई कैनवास ,ब्रश ,रंग और मंच उपलब्ध नहीं हुआ करते होंगे तब स्त्री ने अपनी अभिव्यक्ति दीवारों पर उपलब्ध संसाधनों से उकेरी होगी और वहीँ से उन्ही भित्ति चित्रों से कला ने अलग अलग प्रदेशों में अलग अलग नामों से अपनी विकास यात्रा शुरू की होगी .
मन खुश हो जाता है यह देख कर कि गोबर से उकेरी और फूलों से सजी आकृतियों को देखकर लड़कियाँ किसी कलाकार की तरह प्रसन्न होती हैं। उनके सुमधुर कंठों से संजा के गीत फूट पड़ते हैं। घेरदार घाघरा और गुलाबदार साड़ी पहनने वाली, गहनों से सजी, खीर-पूड़ी खाने की शौकीन, नाजुक सलोनी संजा कल्पना में तैरती है।पहला गीत संजा तू थार घर जा हो या संजा को पूजती किशोरियाँ ‘पेली आरती राई रमझोर’ का जैसे ही अलाप लेती हैं तो पहले से ही चौकस बैठी लड़कियाँ भी इस ले पर ताल पर गाने लगाती होंग , मनोरंजन को ध्वनि ज्ञान से जोड़ने के लिए बंद डिब्बों में बजाकर प्रसाद पहचानने की प्रतियोगिताएं शुरू हुई होंगी .
कार्यक्रम की मुख्य अतिथि लोक संस्कृति मर्मज्ञ डॉ .सुमन चौरे ने अपने निमाड़ अंचल के अपने गाँव और अपने बचपन के उस नीले आकाश को देखनेवाली लड़की के भाव व्यक्त करते हुए निमाड़ में संजा कैसे बने जाती है और उस समय बरसात के बाद उगनेवाली वनस्पतियों को और उन फूल पत्तों को याद करते हुए कहा कि गणेश विसर्जन के दूसरे दिन यानी पूनम को मालवा, निमाड़ और राजस्थान की किशोरियों की सखी-सहेली संजा मायके पधारती हैं। ‘संजा’ यानी स्मृतियों और आगत के अद्भुत संगम का पर्व। एक ओर पुरखों की यादें तो दूसरी ओर किशोरियों के मन में विवाह की कामना। योग्य वर की चाहत रखने वाली कुँवारी किशोरियाँ सृजन और विसर्जन के इस पर्व को पितृपक्ष के सोलह दिनों तक बड़े चाव से मनाती हैं.उन्होंने निमाड़ में गाये जानेवाले संजा गीत गा कर कार्यक्रम को संगीतमय बना दिया .
कार्यक्रम की विशेष अतिथि प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश बैतूल श्रीमती निहारिका सिंह ने अपने मायके के गाँव की निमाड़ी संस्कृति को और लेपन कला को लेकर बात की .उन्होंने कहा कि संजा सिर्फ एक परंपरा नहीं है। संजा के मांडनों तथा गीतों में महिलाओं के विवाहित जीवन से जुड़े कई जीवन सूत्र छिपे होते हैं, जिन्हें बचपन में ही कुंवारी कन्याओं के जीवन में संजा पर्व के दौरान समझने का मौका मिलता है। हालांकि बदलते समय के साथ इस परंपरा का ह्रास अवश्य हुआ है, लेकिन आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में कुंवारी कन्याएँ बहुत ही उत्साह व उमंग के साथ संजा पर्व मनाती हैं। और इन पर्व त्योहारों से मन आनंदित होता है जो एक स्त्री के, एक लड़की के तनाव को उसके संघर्ष को भी कम कर देता है .
कार्यक्रम में मुख्य वक्ता शिक्षिका ,लेखिका श्रीमती वंदना दुबे ने मालवा की संजा पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि श्राद्ध पक्ष की आमद होते ही मालवा के क्षेत्रों में एक बिटिया के अपने मायके आने के उत्सव की शुरुआत हो जाती है।इस बिटिया का नाम है संजा, जो सोलह दिनों के लिए हर घर में आती है और लड़कियों की सहेली बन जाती है।
“संजा” मालवा क्षेत्र में युवा लड़कियों के समूह द्वारा गाये जाने वाले गीत, लोक संगीत एक पारंपरिक मधुर और लुभावना उत्सव है। समृद्धि और खुशी का आह्वान करने हेतु लड़कियां गाय के गोबर से संजा की मूरत बनाती है और उसे पत्ती और फूलों के साथ सजाती है तथा शाम के दौरान संजा की पूजा करती है। 16 दिन के बाद, अपने साथी संजा को विदाई देते हुए यह उत्सव समाप्त होता है। | लोक परंपरा व लोककला के कारण ही मालवा क्षेत्र की देश में एक विशिष्ट पहचान है.
लेखिका वंदना शास्त्री ने उज्जैन में मनाये जानेवाले उमा सांझी महोत्सव के बारे बताते हुए कहा की माता पार्वती को समर्पित यह पर्व विश्व प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग महाकाल मंदिर में धर्म, संस्कृति व लोककला का महापर्व उमा सांझी महोत्सव का आयोजन किया जाता है. पांच दिवसीय आयोजन में मंदिर के सभा मंडप में धार्मिक झांकियां सजाई जाती है और लोक कलाकारों द्वारा अपनी लोक कलाओं का प्रदर्शन किया जाता है.
इस अवसर पर महाराष्ट्र में गुला बाई बैठने की परम्परा है .ग्रामीण क्षेत्रों में माता पार्वती अपने पति भोले नाथ के साथ गुलाबाई ?भुला बाई और भुलोजी के आगमन का त्यौहार है .बेटी के रूप में गुला बाई अपने मायके आती है .
मंच पर संजा और गुलाबाई के सुन्दर गीतों के मुखड़े भी गाये गए .कार्य्रकम में सभी अतिथियों का आभार सुषमा व्यास राजनिधी ने व्यक्त किया .