मध्यप्रदेश में भाजपा और कांग्रेस के लिए 27 फ़ीसदी अन्य पिछड़े वर्गों को आरक्षण देने का वायदा किसी बड़ी मुसीबत से कम नहीं है। अन्य पिछड़े वर्गों को आरक्षण के मुद्दे को लेकर मध्यप्रदेश में दलित, अन्य पिछड़ा वर्ग और आदिवासी नजदीक आते नजर आ रहे हैं। फिलहाल इन वर्गों के जो भाजपा विरोधी मानसिकता के नेता हैं एकजुट होकर इन वर्गों को संगठित करने के प्रयास में लगे हुए हैं ताकि एकजुट होकर इस मुद्दे पर यदि जरूरत पड़ी तो लंबी लड़ाई लड़ी जा सके।
फिलहाल तो प्रदेश में नए साल के दूसरे दिन 2 जनवरी रविवार को प्रदर्शन हुआ उसमें जो युवा नेता सक्रिय नजर आए वह सभी भाजपा विरोधी मानसिकता वाले हैं। प्रदेश में चूंकि कांग्रेस विपक्ष में हैं और कोई दूसरा अन्य विपक्षी दल मजबूत नहीं है इसलिए कांग्रेस इसे अपने पक्ष में मान कर खुश हो सकती है लेकिन देश के अन्य राज्यों में जहां इन वर्गों की आबादी के हिसाब से निर्णायक भूमिका रहती है वहां इस प्रकार की एकजुटता आगे चलकर भाजपा के साथ ही साथ कांग्रेस के लिए भी खतरे की घंटी बन सकती है। इसलिए यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या आगे चलकर चुनावी और अन्य राजनीतिक गतिविधियों में एक साथ खड़े हुए दिखाई देंगे।
अन्य पिछड़ा वर्ग भी आरक्षित वर्ग में ही है। लेकिन चुनावी राजनीति में उसे अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की तरह आरक्षित वर्ग में नहीं देखा जाता। इसका कारण यह है कि लोकसभा और विधानसभाओं में अन्य पिछड़े वर्गों के लिए किसी भी तरह की आरक्षण की व्यवस्था संविधान में नहीं की गई है। ओबीसी को शासकीय सेवाओं में आरक्षण जरूर दिया गया है। चुनावी राजनीति में ओबीसी के समीकरण जातीय आधार पर देखे जाते हैं। लेकिन अब अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग का तालमेल बैठाने की कवायद चल रही है। इस कवायद में सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या इन वर्गों में तालमेल बैठ पाएगा या फिर उसी तरह की अलग राह चलते रहेंगे, जिस तरह अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग की रहती है।
आरक्षण की राजनीति का केंद्र बनता मध्यप्रदेश
राजनीतिक गलियारों में यह सवाल उठना लाज़िमी है कि आखिरकार मध्यप्रदेश आरक्षण की राजनीति का केंद्र बिंदु क्यों बन रहा है। इस साल चुनाव तो उत्तरप्रदेश में होना है लेकिन, आदिवासी, ओबीसी और अनुसूचित जाति वर्ग को एक साथ लाने की कवायद मध्यप्रदेश में हो रही है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने मध्यप्रदेश के पंचायत चुनाव में ओबीसी को दिए जाने वाले आरक्षण पर रोक लगाई है। रोक महाराष्ट्र के निकाय चुनाव में भी प्रभावी है।
दोनों राज्यों ने ओबीसी आरक्षण के बिना चुनाव न कराने का फैसला किया है। मध्यप्रदेश में पंचायत के चुनाव निरस्त हो गए हैं। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में आरक्षण बहाल किए जाने के लिए आवेदन भी लगाया है। इसके बाद भी ओबीसी का आरक्षण बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन चुका है।कांग्रेस-भाजपा दोनों ही एक-दूसरे पर ओबीसी विरोधी होने का आरोप लगा रहे हैं। राज्य में भाजपा की सरकार है और शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री हैं और चुनाव के समय वही भाजपा का असली चेहरा होते हैं ।
शिवराज स्वयं भी ओबीसी हैं। कांग्रेस ओबीसी महासभा द्वारा किए जा रहे विरोध प्रदर्शन का समर्थन कर रही है। इस महासभा से कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य राजमणि पटेल अप्रत्यक्ष तौर पर जुड़े हुए हैं। पटेल को कांग्रेस ने उत्तरप्रदेश के ओबीसी वोटरों के बीच सक्रिय किया हुआ है। पटेल कुर्मी ओबीसी हैं। रविवार 2 जनवरी 2022 को भोपाल में महासभा ने विरोध प्रदर्शन का कार्यक्रम रखा था, लेकिन सरकार ने सभी बड़े नेताओं को एक दिन पहले ही नजरबंद कर दिया। वे प्रदर्शन में शामिल भी नहीं हो सके। भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर आजाद रावण भी मध्यप्रदेश में सक्रिय हो गए हैं और सवाल यही है कि आखिर उनकी सक्रियता का राज क्या है।
चंद्रशेखर ने अपने संगठन का विस्तार मध्यप्रदेश में 17 जिलों में कर लिया है और इनमें अधिकांश वही जिले हैं जो कि उत्तर प्रदेश की सीमा से लगे हुए हैं। देवास में बीते वर्ष उन्होंने एक बड़ा कार्यक्रम किया था। राजमणि पटेल, मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी के कार्यकारी अध्यक्ष रह चुके हैं। 2018 में पार्टी ने उन्हें राज्यसभा की सीट के लिए नामांकित कर सभी को चौंका दिया था। पटेल विंध्य क्षेत्र से हैं। वे 1972 में पहली बार विधायक बने थे। पटेल ओबीसी के आरक्षण की लड़ाई लंबे समय से लड़ रहे हैं। पटेल खुद महासभा के कार्यक्रम में मौजूद नहीं थे। लेकिन भीम आर्मी के चंद्रशेखर आजाद रावण जरूर महासभा के प्रदर्शन में हिस्सा लेने के लिए भोपाल पहुंच गए।
दरअसल पिछड़ा वर्ग के आरक्षण के बहाने अप्रत्यक्ष तौर पर कांग्रेस अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग को एक मंच पर लाने की कोशिश करती दिखाई दे रही है। चंद्रशेखर को पुलिस ने एयरपोर्ट से बाहर ही नहीं निकलने दिया। वे अनुसूचित जाति वर्ग का चेहरा हैं। अभी तक उनकी गतिविधियां उत्तरप्रदेश तक ही सीमित थीं। लेकिन इसके साथ ही उन्होंने मध्यप्रदेश में भी कुछ पैर पसार रखे हैं और अब यहां भी खुद सक्रिय हुए हैं। चंद्रशेखर को प्रदेश में सक्रिय कराने के पीछे भी कांग्रेस के नेता ही दिखाई देते हैं। ओबीसी महासभा का दावा है कि प्रदर्शन में शामिल होने के लिए चंद्रशेखर को कोई औपचारिक न्योता नहीं दिया गया। महासभा के महेंद्र सिंह लोधी ने ट्वीट के जरिए आंदोलन की सफलता के लिए भीम आर्मी के कार्यकर्ताओं को धन्यवाद जरूर दिया। इससे यह संकेत तो मिल ही जाता है कि ओबीसी और अनुसूचित जाति व जनजातीय वर्ग अब एक साथ आ रहे हैं। कांग्रेस इसमें अपना बड़ा राजनीतिक लाभ देख रही है और उसे पूरी उम्मीद है कि इससे उत्तर प्रदेश में भी उसे कुछ मजबूती मिलेगी।
ओबीसी राजनीति को मजबूत करती भाजपा
मध्यप्रदेश में अनुसूचित जाति वर्ग की आबादी सत्रह प्रतिशत है। सरकारी दावों पर यकीन किया जाए तो ओबीसी की आबादी 54 प्रतिशत है। अभी तक तो मध्यप्रदेश में ओबीसी एकतरफा किसी राजनीतिक दल के पक्ष में वोटिंग नहीं करता है। जाति, उपजाति के अनुसार वोटिंग का पैटर्न रहा है। लेकिन इन वर्गों पर भाजपा की मजबूत पकड़ बनाए रखने के लिए भाजपा इन्हें काफी तरजीह देती है। 2003 से उसके तीनों मुख्यमंत्री उमा भारती, बाबूलाल गौर और शिवराज सिंह चौहान ओबीसी वर्ग से हैं।
विंध्य क्षेत्र में ओबीसी का वोटर लंबे समय से बसपा के पक्ष में वोट करता रहा है। यही कारण है कि पिछले विधानसभा चुनाव में वोटों के इस विभाजन का फायदा भाजपा को मिला था। मालवा, मध्य भारत में ओबीसी वोटर भाजपा के पक्ष में ज्यादा वोटिंग करता है। बुंदेलखंड और महाकौशल में ओबीसी और उसमें भी लोधी समाज भाजपा के पक्ष में सामान्यत: मतदान करता रहा है। इन इलाकों में आदिवासी वोटरों का भी दबदबा है। जयस के पदाधिकारियों ने भी ओबीसी के प्रदर्शन में हिस्सा लिया था। राज्य में लगभग 21 प्रतिशत वोटर आदिवासी वर्ग का है। राजनीति तेजी से आरक्षित और गैर आरक्षित वर्ग में बंट रही है।
और यह भी
पंचायत चुनावों में सुप्रीम कोर्ट द्वारा ओबीसी आरक्षण समाप्त करने को लेकर कांग्रेस और भाजपा एक दूसरे पर आरोप लगा रही हैं। इस मुद्दे पर आरोप-प्रत्यारोप के बीच जब पूर्व मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ अपना पक्ष रखते हैं तो इसके साथ ही वह उनके खुद के द्वारा की गई कवायद को भी विस्तार से बताते हैं। भाजपा नेता और राज्य सरकार में वरिष्ठ मंत्री भूपेंद्र सिंह का आरोप है कि कांग्रेस हमेशा ही ओबीसी वर्ग की विरोधी रही है।
उनका दावा है कि दरअसल में भाजपा द्वारा ओबीसी के लिए किए गए कामों की वजह से कांग्रेस की कलई खुलने लगी है। उन्होंने कहा कि मेरा समस्त ओबीसी समाज से आग्रह है कि कांग्रेस की साजिश को समझें और कांग्रेस से बच कर रहे हैं। यह वही कांग्रेस है जिसने पिछड़े वर्ग को छलने और उसको वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल करने का ही काम किया है। कमलनाथ सरकार में मंत्री रहे पिछड़ा वर्ग के युवा नेता कमलेश्वर पटेल का कहना है कि भाजपा सरकार ने आज तक ओबीसी के लिए कुछ नहीं किया है।
कांग्रेस सरकार ने पहले 14 प्रतिशत और बाद में 27 प्रतिशत नौकरियों में आरक्षण दिया था और पंचायतों में 25 प्रतिशत आरक्षण देने का काम किया था। कांग्रेस ने रामजी महाजन आयोग बनाया था और ओबीसी के पक्ष में कई कदम उठाए जबकि भाजपा कुछ नहीं कर रही है।/इति/