World Non-Violence Day: गाँधी एक सतत बहती विचारधारा
महिमा श्रीवास्तव वर्मा
‘’भूतपूर्व राष्ट्रपति डॉ० सर्वपल्ली राधाकृष्णन का कथन है कि संसार के इतिहास में कुछ ही ऐसे महापुरुष हुए हैं,जिनकी देन राष्ट्रीयता और समय का अतिक्रमण कर जाती है और युगों-युगों तक मानवता का मार्ग प्रकाशित करती रहती है।महात्मा गाँधी ऐसे ही युगपुरुषों में से एक हैं।‘’
गाँधी की प्रासंगिकता पर विचार करने के पूर्व यह जानना आवश्यक है कि गाँधी के व्यक्तित्व एवं विचार दर्शन का मूल आधार क्या है?
व्यक्तित्व की दृष्टि से विचार करें तो गाँधीजी राजनीतिज्ञ हैं, दार्शनिक हैं, सुधारक हैं, आचारशास्त्री हैं, अर्थशास्त्री हैं, क्रान्तिकारी हैं। समग्र दृष्टि से गाँधी के व्यक्तित्व में इन सबका सम्मिश्रण है।इस व्यक्तित्व का मूल आधार धार्मिकता है।
पर गाँधी का धर्म परम्परागत धर्म नहीं है। गाँधी का धर्म विभाजक दीवारें खड़ी नहीं करता। गाँधी का धर्म बाँटता नहीं है।उनके ईश्वर का अर्थ है- सत्य/सत्याचरण। गाँधीजी ने बार-बार कहा- सत्य के अतिरिक्त अन्य कोई ईश्वर नहीं है। इस ईश्वर की या इस सत्य की प्राप्ति तथा अनुभव का आधार है- प्रेम एवं अहिंसा।
गाँधी जी ने कहा था :
‘लाखों-करोड़ों गूँगों के हृदयों में जो ईश्वर विराजमान है, मैं उसके सिवा अन्य किसी ईश्वर को नहीं मानता। वे उसकी सत्ता को नहीं जानते, मैं जानता हूँ। मैं इन लाखों-करोड़ों की सेवा द्वारा उस ईश्वर की पूजा करता हूँ जो सत्य है अथवा उस सत्य की जो ईश्वर है।’
यह देखकर हैरानी होती है कि गाँधी जितने अप्रासंगिक दिखते हैं, आज के समय में उतने ही ज़रूरी हुए जा रहे हैं। आधुनिकता से आक्रांत दुनिया में कम से कम पाँच मुद्दे ऐसे हैं, जहाँ गाँधी का रास्ता अपनाने के अलावा कोई चारा नज़र नहीं आ रहा। उनमें से मुख्य हैं –शांति,अहिंसा, समानता, जातिभेद-त्याग, आत्मनिर्भरता,संग्रह की प्रवृत्ति का त्याग आदि।
चरम उपभोक्तावाद जो इस धरती को तबाह करने के कगार पर ले रहा है, उसकी सीमाओं को सबसे क़रीने से गाँधी जी ने ही पहचाना था। उन्होंने कहा था कि यह धरती हर आदमी की ज़रूरत पूरी कर सकती है, लेकिन एक आदमी के लालच के लिये छोटी है। इसी तरह न्याय की तार्किकता को वे करुणा की संवेदना के साथ जोड़ने के हामी रहे। उन्होंने कहा कि आँख के बदले आँख का तर्क पूरी दुनिया को अंधा बना देगा।
कविता :”खोज रही हूं गांधी तुमको”
ध्यान से देखें तो आधुनिक माने जाने वाले कई मुद्दे गाँधी विचार की कोख से ही निकले हैं। इनमें पर्यावरण, मानवाधिकार और सांस्कृतिक बहुलता भी शामिल है। गाँधी की पर्यावरणीय ज़िदों को कभी एक बेतुके विचार की तरह देखा जाता था- उनकी बकरी का मज़ाक बनाया जाता था। इसी तरह दुनिया भर में मानवाधिकारों की कई लड़ाइयाँ गाँधी जी के रास्ते पर चल कर ही जीती गई हैं। नेल्सन मंडेला और मार्टिन लूथर किंग जूनियर जैसे नेताओं के नाम याद दिलाने की ज़रूरत नहीं है.। इस उत्तर आधुनिक समय में सांस्कृतिक अस्मिताओं को लेकर चल रहे झगड़ों के बीच तमाम धर्मों और जीवन पद्धतियों को पूरा सम्मान और पूरी स्वतंत्रता देने की तजबीज आधुनिक समय में गाँधी की ही थी।
उन्होंने स्वराज की कल्पना की, जिसका उद्देश्य प्रत्येक व्यक्ति को स्वावलंबी बनाना था।वर्तमान समय में भारत सरकार की योजना ‘मेक इन इंडिया’ को देखिए ,जिसे गाँधी की आत्मनिर्भर आर्थिक व्यवस्था के साथ स्पष्ट रुप से जोड़ा जा सकता हैं। मेक इन इंडिया का यही उद्देश्य हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था अधिकतम रुप मे उत्पादन करें और अपनी आवश्यकता की पूर्ति के साथ साथ निर्यात भी करें।
Gandhi in Cinema: सिनेमा में भी छायी रहीं गांधी की आंधी
वे दहेज प्रथा के विरोधी थे ।इसके समाधान के लिए उन्होंने जातिप्रथा को तोडने पर बल दिया। साम्प्रदायिक कट्टरता के इस दौर मे गाँधी के विचारों की प्रासंगिकता बहुत बढ जाती हैं।इसे समाप्त करने के लिए उन्होंने सभी धर्मों को साथ लेकर चलने की जरूरत बतायी।
भारतीय राजनीति मेंधरना, प्रदर्शन, अनशन और भूख हड़ताल, असहयोग, सविनय अवज्ञा आदि तरीकों से विरोध होना आम बात हैं।ये तरीके गाँधी के बताये हुए हैं। कुछ लोगों का तर्क हैं कि इससे आम जनजीवन और आधुनिक विकास अवरुद्ध होता हैं। लेकिन अगर हम इन उपायों की गहराई में जायें तो यह स्पष्ट दिखता है कि यदि यह तरीके नहीं होते तो सरकार को नियंत्रित करने और उसके तानाशाही को रोकने के लिए हिंसात्मक तरीके प्रयोग किये जाते, जिनसे हुए नुकसान की भरपाई कभी संभव नहीं हो पाती । मंजिल भी प्राप्त नहीं हो सकती थी।
आधुनिक विश्व परमाणु हथियारों का विश्व हैं।यदा कदा वैश्विक शक्तियों के टकराने से परमाणु युद्ध का खतरा मडराता रहता हैं।पूरे विश्व मे आतंकवाद अपने सबसे घिनौने रुप मे प्रकट हुआ हैं।कई देश अपने स्वार्थ सिद्धि के लिये आतंकवादी संगठन को सहायता उपलब्ध कराते हैं।ऐसे परिस्थिति मे वैश्विक स्तर पर शांति स्थापित करने के लिए गाँधीके विचार सबसे उपयुक्त दिखाई देते हैं।गाँधी के सत्य और अहिंसा के विचार इस हिंसात्मक वैश्विक परिदृश्य को बदलने के लिए सबसे अधिक प्रासंगिक हैं।प्रत्येक व्यक्ति, समुदाय और देश को यह समझना ही पडेगा कि हिंसा से शांति कभी स्थापित नहीं हो सकती। सच ही कहा है उन्होने ’आँख के बदले आँख’ की प्रवृत्ति सम्पूर्ण विश्व को अंधा बना देगी।
अतः ‘गाँधी जी का संघर्ष भारत को स्वतंत्र कराने’ तक सीमित था ,ऐसा सोचना हमारी बडी भूल हैं।यदि हम अवलोकन करेंगे तो उनके संघर्ष की एक बडी तस्वीर उभर कर सामने आती हैं, जिसमें संभवतः मानवीय सभ्यता के किसी भी प्रश्न को छोडा नहीं गया हैं। वह सामाजिक स्तर पर जातिवाद, रंगभेद, नस्लवाद जैसे विभेदकारी सिद्धांतों के कट्टर विरोधी थे,वहीं आर्थिक दृष्टि से आत्मनिर्भरता उनके विचारों के केन्द्र मे रहती थी।उनके सपनों के भारत मे प्रत्येक व्यक्ति को समान अधिकार और आर्थिक न्याय प्रदान करने वाले समाज की रुपरेखा दिखाई देती हैं। इन्हीं बानगियों को देखकर उनके विचारों की सार्थकता वर्तमान दौर मे भी सिद्ध होती हैं।
गाँधी जी के बारे में आइन्सटीन ने कहा था:
” आने वाली पीढियों को इस बात पर यकीन करना मुश्किल होगा कि गाँधी जैसा कोई व्यक्ति इस धरती पर कभी चला करता था।”
दुनिया में जगह-जगह पर भयानक हिंसक त्रासदी देखने के बाद आइंस्टीन ने अपने घर में लगे ’आइजेक न्यूटन और जैम्स मैक्सवेल’ के पोर्ट्रेट के स्थान पर दो नई तस्वीरें टाँग दीं। इनमें एक तस्वीर थी महान मानवतावादी ‘अल्बर्ट श्वाइटज़र’ की और दूसरी थी ‘महात्मा गाँधी की’। इसे स्पष्ट करते हुए आइंस्टीन ने उस समय कहा था-
“समय आ गया है कि हम ’सफलता की तस्वीर’ की जगह ‘सेवा की तस्वीर’ लगा दें।“
उनका यह कृत्य निश्चित रूप से सही दिशा को इंगित करने वाला था। क्योंकि गाँधी जी का कथन था:
‘’मैं मरने के लिए तैयार हूँ, पर ऐसी कोई वज़ह नहीं है,जिसके लिए मैं मारने को तैयार हूँ। ‘’
गाँधी का प्रिय भजन है ‘वैष्णव जन तो तैने कहिए” जो दूसरों को अपने समदृश समझ उनकी पीड़ा को अनुभूत करने की प्रेरणा देता है। उन्हें महात्मा होने की ओर अग्रसर करता है।
कभी अपने एक भाषण में महान समाजवादी विचारक राम मनोहर लोहिया ने कहा था कि इक्कीसवीं सदी में या तो गाँधी बचेंगे या एटम बम बचेगा। पहली नज़र में ऐसा लगता है कि वाकई हमारी सदी में एटम बम बचे हुए हैं और गाँधी ख़त्म हो गए हैं। एटम बम बनाने वाले देशों की संख्या बढ़ रही है, एटम बमों का ज़ख़ीरा बड़ा हो रहा है और गाँधी का विचार सिकुड़ता जा रहा है।
“पर सच तो यह है कि यह विचारणीय प्रश्न है कि गाँधी के बिना हम कैसे बचेंगे?”
वैश्विक स्तर पर गाँधी के सत्य और अहिंसा के विचारों को व्यापक रुप से स्वीकार किया गया हैं।तभी तो गाँधी जयंती को ‘विश्व अहिंसा दिवस’ के रुप मे मनाया जाता हैं।यदि कोई व्यक्ति या समाज उनके विचारों को प्रासंगिक नहीं मानता हैं तो यही माना जायेगा कि वह व्यक्ति या समाज व्यक्तिगत स्वार्थ सिद्धि को प्राथमिकता देता है तथा ऐसे व्यक्ति या समाज के विचारों में सार्वभौमिक सामाजिक व वैश्विक हित मायने नहीं रखते।
गाँधी एक ऐसी विचार धारा है, जिससे हम रोजमर्रा की जिंदगी में कहीं न कहीं स्वयं को जुड़ा हुआ पाते है। हमें यह जानकर गर्व होता है कि बाहर के देशों में लोग उनकी विचारधारा के कायल है और उस पर चलने की कोशिश करते है।
पर अफसोस होता है कि अपने ही देश के लोग उनकी छवि को खराब कर रहें है। उन्हें यह समझना चाहिए कि गाँधी एक सोच है जो विचार के रूप में आज भी जिंदा है और हमेशा रहेगी।
गाँधी जी पर जितना लिखा जाये कम है। उनकी कही हर बात हम सबके जीवन में प्रेरणा स्रोत है।
हमारी प्राचीन संस्कृति, सिद्धान्त और धर्म-ग्रन्थों में वर्णित सीख कभी अप्रासंगिक नहीं होगी। हर युग को उनकी ज़रूरत ,उनकी महत्ता को अक्षुण्ण रखेगी ।
इसी तरह ,यही सच है कि गाँधी कभी अप्रासंगिक नहीं होंगे। उनकी सोच ,उनके विचार एक सतत बहती विचारधारा के रूप में युगों-युगों तक मानवता का मार्ग प्रशस्त करते रहेंगे।
@महिमा श्रीवास्तव वर्मा