New Culture:अंतत: वे आ गये, मंगल गीत गाइये

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New Culture:अंतत: वे आ गये, मंगल गीत गाइये

जिन्हें आना था,जिनका इंतजार था, वे आ ही गये। वे तो आते ही,क्योंकि उनका तो काम ही आना-जाना है। वे न तो आने के लिये व्यग्र थे, न ही न आने का कोई हठ पकड़ रखा था। वे वहां थे तो काम कर रहे थे और यहां आ गये तो भी काम ही करेंगे। वे न आते तो कोई दूसरा आता। आता अवश्य। तीसरा,चौथा या पांचवा भी आ सकता था। ज्यादा हल्ला तो पांचवें के आने का ही था। यह और बात है कि पांचवां आने को लेकर यूं कोई जल्दबादी में नहीं था। आता तो आ जाता और नहीं आया तो आ जायेगा। याने आना तो उसकी भी नियति है ही तो जल्दी क्यों?

 

वे न तो कोई राजा-महाराजा हैं, न फिल्मी हीरो। न कोई विदेशी अतिथि हैं, न ही अंतरिक्ष यान के यात्री। वे विदेश से उच्च शिक्षा लेकर लौटे किसी छोटे-से गांव के कोई होनहार विद्यार्थी भी नहीं हैं। फिर भी उनके होने और आने का खूब हल्ला मचा । ना, उन्होंने नहीं मचाया। वे तो चुपचाप अपना काम कर रहे थे, क्योंकि वे तो यही करते हैं। वे कोई विवाह योग्य प्रत्याशी भी नहीं थे, जिन्हें किसी के यहां कन्या देखने जाना था। वे किसी बरात में घोड़ी पर सवार दूल्हा भी नहीं थे, जिसकी प्रतीक्षा बेताबी से की जा रही हो, लेकिन प्रतीक्षा तो तीव्रतर होती जा रही थी। वे मध्यप्रदेश की शासकीय मशीनरी के एक प्रमुख कलपुर्जे थे, जिसे कहीं से आना था। बस,यह उसका हल्ला था और हल्ला भी ऐसा कि दिल्ली के कान में भी शोर गूंजने लगा था। सो भेज दिया कि लो कमबख्तो । खुश भी हो जाओ। नाचो-कूदो,मंगल गीत गाओ।

 

एक वो समय था, जब किसी जिले में कोई नया कलेक्टर,एसपी आने वाला होता था तो खूब हल्ला मचता था। उसका इंतजार तो ऐसे होता था, जैसे किसान बादलों का करता है कि दादा अब बरस भी जा। इतना ही नहीं तो जाने वाले पर जिले वालों का दिल आया हुआ हो तो उन्हें गाजे-बाजे के साथ विदा करते थे। बाजे वाले भी ऐसे मौके पर कुछ गीत बजाते थे-ओ जाने वाले हो सके तो लौटकर आ…चले जाना, जरा ठहरो, किसी का दिल मचलता है… वगैरह। ठेठ गांव के बाहर तक वरघोड़ा निकालकर छोड़ने जाते। फिर जब आने वाला आ जाता तो गांव के बाहर से ही जुलूस बनाकर लाते।बाजे वालों के ये गीत भी गजब के होते थे…बहारो,फूल बरसाओ,मेरा महबूब आया है,मेरा महबूब आया है…। हार-फूल,चंदन-रोली करते। कचोरी-समोसे,मिर्ची के भजिये,कड़क-मीठी चाय की दावत उड़ती। खूब ढोल बजते और नागिन डांस तो ऐसा होता कि छोरी के ब्याव में भी नहीं किया हो। अलग ही माहौल होता था।

 

सच, उन्हीं दिनों की याद दिला दी इस बार भी । एक महीने से बावरों की तरह सुबह-शाम सूचनायें घुमड़ रही थीं। पता नहीं कितनों की तो रातों की नींद ही जैसे उड़ी हुई थी। वे ठीक से भोजन-हाजत भी कर रहे थे या नहीं , पता नहीं । कितना खूबसूरत है हमारा लोकतंत्र। किसी निर्वाचित नेता या नेता निर्वाचित होने वाला हो,उसकी प्रतीक्षा तो की जाना समझ में आती है,क्योंकि पेड कार्यकर्ताओं को रोजगार जो मिल जाता है, लेकिन ये बेचैनी तो किसी नये वायरस का संकेत दे रही थी। इससे बड़ी कोई सूचना,कोई खबर, कोई जानाकारी जैसे बची हो न हो,ऐसा वातावरण बना दिया गया था। कोई प्रेमी अपनी प्रेयसी का ऐसा इंतजार तो मॉल में भी नहीं करता। ज्यादा देर आने वाली लगाये तो वह अगल-बगल से गुजर रही किसी दूसरी, तीसरी को लेकर फिलम देखने निकल जाये और जब लौटकर आने पर पहली मिल जाये तो उसे भी पिज्जा खिलाकर और बिल का पेमेंट भी उसी से कराकर बिदा कर दे। इस प्रत्याशा में कि अभी चौथी,पांचवीं को भी तो आना है।

 

मप्र में एक नई संस्कृति के दर्शन लाभ हुए । यह धरती धन्य हुई। अब चारों तरफ उल्लास का वातावरण है। सब भाव विभोर हैं। उनके आने से सब कृतार्थ हुए। वे कोटि-कोटि धन्यवाद ज्ञापित करते हैं,उनका,जिन्होंने उन्हें भेजा। अब तो मप्र के दिन बहुरेंगे।

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रमण रावल

 

संपादक - वीकेंड पोस्ट

स्थानीय संपादक - पीपुल्स समाचार,इंदौर                               

संपादक - चौथासंसार, इंदौर

प्रधान संपादक - भास्कर टीवी(बीटीवी), इंदौर

शहर संपादक - नईदुनिया, इंदौर

समाचार संपादक - दैनिक भास्कर, इंदौर

कार्यकारी संपादक  - चौथा संसार, इंदौर

उप संपादक - नवभारत, इंदौर

साहित्य संपादक - चौथासंसार, इंदौर                                                             

समाचार संपादक - प्रभातकिरण, इंदौर      

                                                 

1979 से 1981 तक साप्ताहिक अखबार युग प्रभात,स्पूतनिक और दैनिक अखबार इंदौर समाचार में उप संपादक और नगर प्रतिनिधि के दायित्व का निर्वाह किया ।

शिक्षा - वाणिज्य स्नातक (1976), विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन

उल्लेखनीय-

० 1990 में  दैनिक नवभारत के लिये इंदौर के 50 से अधिक उद्योगपतियों , कारोबारियों से साक्षात्कार लेकर उनके उत्थान की दास्तान का प्रकाशन । इंदौर के इतिहास में पहली बार कॉर्पोरेट प्रोफाइल दिया गया।

० अनेक विख्यात हस्तियों का साक्षात्कार-बाबा आमटे,अटल बिहारी वाजपेयी,चंद्रशेखर,चौधरी चरणसिंह,संत लोंगोवाल,हरिवंश राय बच्चन,गुलाम अली,श्रीराम लागू,सदाशिवराव अमरापुरकर,सुनील दत्त,जगदगुरु शंकाराचार्य,दिग्विजयसिंह,कैलाश जोशी,वीरेंद्र कुमार सखलेचा,सुब्रमण्यम स्वामी, लोकमान्य टिळक के प्रपोत्र दीपक टिळक।

० 1984 के आम चुनाव का कवरेज करने उ.प्र. का दौरा,जहां अमेठी,रायबरेली,इलाहाबाद के राजनीतिक समीकरण का जायजा लिया।

० अमिताभ बच्चन से साक्षात्कार, 1985।

० 2011 से नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने की संभावना वाले अनेक लेखों का विभिन्न अखबारों में प्रकाशन, जिसके संकलन की किताब मोदी युग का विमोचन जुलाई 2014 में किया गया। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को भी किताब भेंट की गयी। 2019 में केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के एक माह के भीतर किताब युग-युग मोदी का प्रकाशन 23 जून 2019 को।

सम्मान- मध्यप्रदेश शासन के जनसंपर्क विभाग द्वारा स्थापित राहुल बारपुते आंचलिक पत्रकारिता सम्मान-2016 से सम्मानित।

विशेष-  भारत सरकार के विदेश मंत्रालय द्वारा 18 से 20 अगस्त तक मॉरीशस में आयोजित 11वें विश्व हिंदी सम्मेलन में सरकारी प्रतिनिधिमंडल में बतौर सदस्य शरीक।

मनोनयन- म.प्र. शासन के जनसंपर्क विभाग की राज्य स्तरीय पत्रकार अधिमान्यता समिति के दो बार सदस्य मनोनीत।

किताबें-इंदौर के सितारे(2014),इंदौर के सितारे भाग-2(2015),इंदौर के सितारे भाग 3(2018), मोदी युग(2014), अंगदान(2016) , युग-युग मोदी(2019) सहित 8 किताबें प्रकाशित ।

भाषा-हिंदी,मराठी,गुजराती,सामान्य अंग्रेजी।

रुचि-मानवीय,सामाजिक,राजनीतिक मुद्दों पर लेखन,साक्षात्कार ।

संप्रति- 2014 से बतौर स्वतंत्र पत्रकार भास्कर, नईदुनिया,प्रभातकिरण,अग्निबाण, चौथा संसार,दबंग दुनिया,पीपुल्स समाचार,आचरण , लोकमत समाचार , राज एक्सप्रेस, वेबदुनिया , मीडियावाला डॉट इन  आदि में लेखन।