राजस्थान, MP और UP के सांसद अफीम काश्तकारों को राहत दिलाने के प्रयासों में हर वर्ष होते है सक्रिय

अफीम की खेती करने वाले किसानों को कैसे मिले अधिक से अधिक राहत और रियायतें?

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राजस्थान, MP और UP के सांसद अफीम काश्तकारों को राहत दिलाने के प्रयासों में हर वर्ष होते है सक्रिय

गोपेन्द्र नाथ भट्ट की रिपोर्ट 

भारत में सबसे अधिक राजस्थान,मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के एक बड़े हिस्से में अफीम की खेती की जाती है। भारत सरकार इसके लिए अफीम की खेती करने वाले किसानों को हर वर्ष लाइसेंस और खेती के पट्टे जारी करती है। अफीम बहुत महँगी बिकती हैं और इसे काला सोना की संज्ञा भी दी जाती है। राजस्थान में इसे लेकर कई रोचक किस्से भी बताये जाते है जिसमें इंसान ही नहीं ईश्वर को भी इसमें पार्टनर बताया जाता हैं । साथ ही इसमें भागीदारी से कई राजनेताओं और अधिकारियों के मालामाल होने की कहानियाँ भी जुड़ी हुई हैं।

अफीम का उपयोग औषधियों के निर्माण जैसे अहम प्रयोजनों के साथ ही गैर औषधियों मनोरंजन एवं नशे जैसी प्रवृतियों आदि प्रयोजनों के लिए होता हैं। विशेष कर विश्व में बढ़ते नशा और ड्रग्स उद्योग को देखते हुए दुनिया के सभी देशों ने इसके दुरुपयोग को रोकने के लिए अपने अपने सख्त कानून बना रखें हैं। भारत सरकार द्वारा भी अफीम के अवैध उत्पादन को रोकने तथा गैर कानूनी प्रयोजनों पर अंकुश लगाने की दृष्टि से प्रति वर्ष एक अफीम नीति बना कर अफीम की खेती करने वाले किसानों के लिए दिशा निर्देश जारी किए जाते है। हालाँकि अफीम की खेती करने वाले किसानों को भी अनेक चुनौतियों और संकटों का सामना करना पड़ता है । इसके अलावा उन्हें कई बार इसकी खेती करने में घाटा और अन्य खामियाजा भी उठाना पड़ता हैं।

अफीम किसानों के हितों को ध्यान में रखते हुए राजस्थान,मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के सांसद हर वर्ष सक्रिय होकर अफीम काश्तकारों को राहत दिलाने के प्रयास में जुटते हैं और भारत सरकार से इन काश्तकारों के अनुकूल अफीम नीति बनाने की गुहार भी लगाते हैं। पिछलें दिनों वर्ष 2024-25 के लिये जारी होने वाली अफीम नीति के लिए विभिन्न सुझावों पर विचार विमर्श के लिये केन्द्रीय वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी की अध्यक्षता में आयोजित बैठक में चित्तौड़गढ़ सांसद सी.पी.जोशी (राजस्थान ), मन्दसौर-नीमच (म.प्र.) के सांसद सूधीर गुप्ता, उदयपुर सांसद डॉ. मन्ना लाल रावत (राजस्थान ) आदि ने आगामी अफीम नीति में किसानों को राहत पहुंचाने तथा किसानों के हितों को प्राथमिकता दिये जाने, किसानों के पुराने कटे हुये पट्टे भी बहाल किए जाने समेत अन्य कई सुझाव दिये हैं। इस बैठक में वित्त मंत्रालय के राजस्व विभाग के अतिरिक्त सचिव विवेक अग्रवाल, राजस्व विभाग के संयुक्त सचिव नवल किशोर राम, नारकोटिक्स कमीश्नर दिनेश बौद्ध, नारकोटिक्स कन्ट्रोल डायरेक्टर मनोज कुमार सिंह सहित राजस्व विभाग एवं नारकोटिक्स के अधिकारी उपस्थित रहे।

चित्तौड़गढ़ सांसद सी.पी.जोशी की अगुवाई में सांसदों ने सुझाव दिया कि अफीम की खेती के लाइसेसं को ऑनलाईन कर दिया जाने चाहिए तथा किसानों के नाम भी ऑनलाईन किए किया जाने चाहिये। इसके साथ ही कैम्प लगाकर किसानों के समस्त डाटा को विभाग के स्तर पर ही दुरस्त करना चाहिये, जिससे समस्त प्रकार की अशुद्धियां का एकबारगी में ही निराकरण हो सके। सभी प्रकार के पट्टे जोकि घटिया मार्फीन के कारण से हो या कम औसत से हो अथवा अन्य किसी प्रकार से कटे हों उन्हे फिर से बहाल किया जाये। साथ ही अफीम फसल की नपाई, कच्चे तौल, तौल एवं फैक्ट्री जाँच आदि के सिस्टम को पारदर्शी बनाया जाना चाहिए। सीपीएस पद्धति में जिन किसानों ने अच्छी फसल की पैदावार दी हो उनको पुरानी परम्परागत चीरा पद्धति में लाईसेंस दिये जाये। किसानों को दो प्लॉट में खेती करने का अधिकार दिया जाये। यदि किसान का खेत दो राजस्व ग्रामों के आता हैं तो वहॉ पर भी किसान को खेती करने का अधिकार प्रदान किया जाये। मार्फिन को घटाकर 4 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर किया जाये। अफीम फसल बुवाई के 45 दिनों के अन्दर गिरदावरी कार्य पूर्ण कर लिया जाये। वर्तमान लाईसेंस धारक का डेटा अपडेट हैं, इसलिये बार बार किसानों से डॉक्यूमेंट नही मांगे जाये। अफीम किसान की मृत्यु के उपरान्त नामान्तरण के बाद न्यूनतम क्षेत्र के लाईसेंस की बजाय उसकी उपज (योग्यता) के अनुसार अफीम लाईसेंस जारी किया जाये। लाईसेंस प्राप्त किसान को पानी की कमी के कारण अन्य गांव में फसल बोने की छूट पदान की जाये, या उसी तहसील में अन्य गांव में लीज पर जमीन लेकर बोने का अधिकार प्रदान किया जाये। किसानों को घटिया फसल के कारण पुराने पट्टे बहाल होने पर पैनल्टी आदेश अपने विभाग के स्तर पर ही प्राप्त करें, इसके लिये इसे किसान से नही मांगा जाये तथा शेष जो पट्टे पहले किसी कारण से कट गये एवं अभी तक बहाल नही हुए हैं उनको भी बहाल किये जाए। इसके अलावा अफीम खेती में अनियमितता बरतनें वालों पर कठोर कार्यवाही की जाये।

सांसदों ने केन्द्र सरकार का आभार व्यक्त किया कि पिछले 2014 से 2024 तक 10 वर्षो के दौरान मोदी सरकार ने अफीम किसानों के लाईसेंस 20 हजार से बढ़ा कर 1 लाख 7 हजार तक पंहुचाने का कार्य किया गया है। साथ ही केन्द्र सरकार द्वारा प्रत्येक वर्ष की अफीम पॉलिसी में किसानों को बड़ी राहतें भी प्रदान की गई हैं।

उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार प्रत्येक वर्ष चयनित क्षेत्रों को अधिसूचित करती है जहाँ अफीम खेती की अनुमति होती हैं। साथ ही भारत सरकार लाइसेंस की पात्रता के लिए सामान्य शर्तें भी निर्धारित करती है। लाइसेंस जारी करने के लिए आवश्यक शर्त न्यूनतम अर्हक उपज (एम क्यू वाई) मानदंड को पूरा करना है, जो प्रति हेक्टेयर किलोग्राम की संख्या में होती है। पिछले वर्ष कम से कम इस निर्धारित मात्रा में अफीम की खेती करने वाले किसान लाइसेंस के लिए पात्र होते हैं। लाइसेंस में अन्य शर्तों के साथ-साथ अधिकतम क्षेत्र भी निर्देशित किया जाता है जिसमें अफीम की फसल बोई जा सकती है।

अगर किसान को पता चलता है कि उपज एम क्यू वाई से कम होगी तो उनके पास सरकार की अनुमति से पूरी फसल नष्ट करने का ही विकल्प होता है। अगर कोई किसान एम क्यू वाई से कम उत्पादन करता है तो उसे कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है और उसका लाइसेंस भी रद्द हो सकता है।

नारकोटिक्स आयुक्त के अधीन केंद्रीय नारकोटिक्स ब्यूरो (सीबीएन), ग्वालियर (मध्य प्रदेश) के किसानों को अफीम पोस्त की खेती के लिए लाइसेंस जारी करता है। भारत में कुछ स्थान जहाँ अफीम उगाई जाती है, वे हैं – राजस्थान का कोटा, बारा, झालावाड़, चित्तौड़गढ़, भीलवाड़ा और प्रतापगढ़, मध्य प्रदेश में मंदसौर, रतलाम, नीमच और उत्तर प्रदेश में बाराबंकी, बरेली, लखनऊ और फ़ेज़ाबाद आदि क्षेत्र । केंद्रीय नारकोटिक्स ब्यूरो के अधिकारी प्रत्येक खेत को मापते हैं और यह सुनिश्चित करने के लिए नियंत्रण करते हैं कि कोई अतिरिक्त खेती न हो। अफीम फसल की खेती नवंबर से शुरू होती है और हर साल मार्च में समाप्त होती है। अफीम की निकासी फरवरी और मार्च के महीनों के दौरान की जाती है। देश के किसान अभी भी अफीम की खेती के लिए पारंपरिक विधि का उपयोग करते हैं, जहाँ वे प्रत्येक अफीम कैप्सूल को एक विशेष ब्लेड जैसे उपकरण से मैन्युअल रूप से छेदते हैं, इस प्रक्रिया को लैंसिंग के रूप में जाना जाता है। लैंसिंग देर दोपहर या शाम को की जाती है। अफीम लेटेक्स जो रात में बाहर निकलता है और जम जाता है, उसे अगली सुबह हाथ से खुरच कर इकट्ठा किया जाता है। प्रत्येक अफीम कैप्सूल को तीन से चार बार छेदा जाता है। एकत्र की गई ऐसी सभी अफीम को अप्रैल के प्रारंभ में विशेष रूप से स्थापित अफीम संग्रह केंद्रों पर अनिवार्य रूप से प्रस्तुत करना आवश्यक है। गुणवत्ता और स्थिरता के लिए अफीम की जांच की जाती है और संग्रह केंद्रों पर इसका वजन किया जाता है।इसके बाद किसानों को इनकी कीमतों का भुगतान किया जाता है, जो कि सरकार द्वारा स्लैब दरों में तय की जाता है और यह स्लैब अफीम की गुणवत्ता और मात्रा पर निर्भर करती है। किसानों को 90 प्रतिशत भुगतान ई-भुगतान पद्धति के माध्यम से सीधे उनके बैंक खाते में किया जाता है। अंतिम भुगतान अफीम कारखाने में प्रयोगशाला परीक्षण के बाद किया जाता है, जब यह पुष्टि हो जाती है कि इसमें कोई मिलावट नहीं पाई गई है। खरीदी गई सभी अफीम नीमच और गाजीपुर में स्थित सरकारी अफीम और अल्कलॉइड कारखानों में भेजी जाती है । इन कारखानों में अफीम को सुखाया जाता है और निर्यात के लिए संसाधित किया जाता लेकिन क्रूड कोकीन, एक्गोनिन और डायसिटाइल मॉर्फिन (जिसे आमतौर पर हेरोइन के रूप में जाना जाता है) और उनके लवण जैसी दवाओं का निर्माण अवैध माना गया है और पूरी तरह से प्रतिबंधित है। इस प्रकार अफीम काश्तकारों का कड़ी मेहनत और जटिल प्रक्रियाओं से गुजरना किसी अग्नि परीक्षा से कम नहीं हैं।

देखना है भारत सरकार अफ़ीम की खेती के कतिपय खतरों के साथ ही उसके दवाईयों आदि में उपयोग के महत्व को देखते हुए सांसदों की राय को अहमियत देते हुए देश के चुनिंदा अफीम काश्तकारों को कितनी राहत पहुँचाती है?

 

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