सम्मानित यानी आधिकारिक लेखक होने की मान्यता!
हिंदी का लेखक कवि यदि सम्मानित होने की इच्छा नही रखता ,इस बाबत घुमा फिर कर जताता नही ,इसके लिए कोशिश नही करता तो मुझे उसके लेखक होने पर संदेह होता है। यह हमारे लेखकीय जगत का स्थाई भाव है। यह जरूरी है भी। आप तब तक किसी गिनती में नही जब तक आपके लिए कोई सम्मान समारोह आयोजित नही हो जाता। यदि जीवन मे कभी प्रशस्ति वाचन ,गेंदे की फूल मालाओं और गरिष्ठ भोजन के अवसर उपलब्ध नही हुए तो लेखन कर्म का कोई औचित्य शेष नही बचता।
हमारे देश मे आदमी या तो नेता है ,अफसर है ,लेखक है या जनता है। इसमें से पहले तीन सम्मानित किए जाते है। नेता का सम्मान करना जनता का फ़र्ज़ है। आप की इच्छा न हो तब भी नेता आपसे अपना सम्मान करवा सकता है। सरकारी हैं आप तो आपको असरकारी घोषित करने के लिए ठेकेदार मातहत उधार बैठे हैं। पर हिंदी लेखक कवियों को यह सुविधा उपलब्ध नही। उन्हें इसके लिए खुद उद्यम करना पड़ता है। वे करते हैं। सम्मानित होते हैं। खुद का लिखा प्रशस्ति पत्र का वाचन सुन गद्गद होते है। घर आकर उसे ड्राइंग रूम की दीवार पर टाँगते है। और ये तभी हटाए जा सकते हैं जब उनकी औलादों को उनकी फोटो लगाने के लिए जगह चाहिए होती है।
सम्मान जब तक समारोह आयोजित करके न किया जाए तो काहे का सम्मान। अकेले मे तो पत्नियाँ रोज ही सम्मान कर देती है आदमी का। जंगल मे मोर नाचा किसने देखा ? सम्मान चार लोगों के बीच हो। फूल मालाएँ हों। जनता में तालियाँ बजाने वाले अपने लोग शामिल हों। प्रशंसा के भजन हों। गरिष्ठ भोजन हो। तभी सम्मान को आधिकारिक माना जा सकता है ।
वो समय बीत गया जब प्रशंसाएँ ,हवा और पानी जैसी चीजें निःशुल्क उपलब्ध हुआ करती थी। अब इन सभी के लिए गाँठ से पैसा खर्च करना पड़ता है। ये सभी जिंदा बने रहने के लिए जरूरी। इनके लिए गाँठ से पैसा खर्च करना भी पड़े तो इससे कोई हर्ज नही। और फिर ये आपके समर्थ होने की घोषणा भी है। समर्थ की इज्जत हो इसका कोई बुरा भी नही मानता ,पर लेखकों के साथ दिक़्क़त यह कि वे या तो लेखक होते हैं या समर्थ होते हैं। ऐसे मे उन्हें सम्मानित होने के दूसरे तरीके अपनाने होते है।
लेखकों के मध्य सम्मानित होने की एकाधिक विधियां प्रचलित हैं हमारे देश में। सम्मान प्रायः भंडारे मे बँटने वाले गुलाब जामुन की तरह होता है। परोसने वाले से ,पड़ोस मे बैठे भैया की पत्तल मे गरम गरम दो गुलाब जामुन रखने का आग्रह किया जाता है। अहसान मे दबे भैया को भी यही बात कहनी पड़ती है परसोईए से। परोसने वाला दोनों के आग्रह का मान रखता है। दोनों की पत्तलों मे गुलाब जामुन पधारते है और दोनो ही आकंठ तृप्त होते है।
दूसरी विधि दोस्तों को डिनर पर निमंत्रित करने जैसी। डिनर पर बुलाने वाला अपने दोस्तों से उम्मीद रखता है कि उसके दोस्त भी उसके जैसे ही शरीफ हैं। और उसे भी जल्दी ही डिनर का न्योता मिलेगा। डिनर कर भूल जाने वाले दोस्तों को याद भी दिलाना पड़ता है बहुत बार। ऐसे एक दूसरे के यहां डिनर होते रहते है। चार लोगों के इस जमावड़े में पेट भी भरता है और सत्संग भी हो जाता है। हिंदी लेखक कवि इसी विधि से पारस्परिक सम्मानित होते हैं और प्रसन्न बने रहते है।
लेखकों को विशेष ध्यान रखना चाहिए इस बाबत कि वे जीते जी सम्मानित हो जाएँ मरने के बाद सम्मानित होने का रोईं मतलब नहीं । ये बस आपकी विधवा पत्नी तो अचरज मे ही डाल सकते है। वो इस बात पर हैरान हो सकती है कि उसके मरहूम शौहर मे यदि इतनी सारी खूबियाँ थी तो मुझे ये उसके जीते जी पता क्यों नही चली ?
आजकल लगभग हर लेखक सम्मानित है। जो बचे रह गए हैं वो या तो काबिल नही या वाक़ई लेखक हैं। सम्मानित आदमी फूला फूला घूमता है। सभी को अपना सम्मानित होना सूचित करता है। सम्मान रहित व्यक्ति को छोटा समझता है। छोटा बना रहना क़तई अच्छी बात नही। ऐसे में हिंदी लेखकों को जब भी मौका मिले सम्मानित हो लेना चाहिए। मौका न मिले तो मौका बना लेना चाहिए। क्योंकि जब तक सार्वजनिक सम्मान न हो तब तक लेखन कर्म का ,जीवन का कोई अर्थ है नहीं। ऐसे मे यदि आप लेखक है । भ्रम पाले हुए हैं लेखक होने का तो आपको जल्दी से जल्दी अपने लिए सम्मान समारोह आयोजित करवा लेना चाहिए। ये आपको आधिकारिक लेखक होने की मान्यता तो प्रदान करेगा ही अपनी पत्नी की नज़रों मे कुछ होने का अवसर भी होगा।