मेरे मन/मेरी स्मृतियों में मेरे पिता
पिता को लेकर mediawala.in में शुरू की हैं शृंखला-मेरे मन/मेरी स्मृतियों में मेरे पिता।इस श्रृंखला की 30 th किस्त में आज हम प्रस्तुत कर रहे हैं इंदौर से सृष्टिकला कुञ्ज की संस्थापक, सुप्रसिद्ध लोक चित्रकार श्रीमती वन्दिता श्रीवास्तव को। उनके पिता शहडोल निवासी डॉ.नागेंद्र किशोर श्रीवास्तवजी नेत्र विशेषज्ञ चिकित्सक थे.
वन्दिता जी की सखी होने के कारण मुझे भी डॉक्टर अंकल का पितातुल्य स्नेह और आशीर्वाद मिला है. वे अद्भुत व्यक्तित्व थे. स्नेह और आत्मीयता उनकी आँखों और शब्दों से स्वत: महसूस होती थी. उनकी कविताओं की डायरी से कई कवितायें सुनने का भी अवसर मिला .उनकी बेटियों को लेकर यह स्नेहभरी संवेदना आज एक बार फिर सजीव हो उठी है. बेटी के मायके आने पर एक पिता अम्मा बन जाय, दरवाजे पर रंगोली सजाय,जाते वक्त बड़ी-बिजोरे,पापड़-अचार की पोटली बांधे, इससे मार्मिक कौन सा भाव हो सकता है. इसी भाव के साथ उन्हें अपनी भावांजलि दे रही हैं-वन्दिता श्रीवास्तव…..
माँ से कहना आसान है
माँ पर लिखना आसान है
आज पिता पर कविता लिखनी है
तो मेरी कलम भी कुछ हैरान है
पिता तो खामोश रहते हैं
पिता तो एक साया है
कुछ कहना ज़रूरी है क्या?
उनसे तो बिन कहे मैंने सब पाया है
पर चलो कुछ ख्याल समेट
पिता पर कविता लिख लूँ मैं – नितेश मोहन वर्मा
30.In Memory of My Father: हमारे आगमन पर हमेशा चाक से रंगोली बनाते,बन्दनवार सजाते मेरे डॉक्टर पिता
कहां से प्रारंभ करें प्यारे पापा की हंसती, मुसकाती, ठहकती व कुछ गम्भीर बातें।
चलिये सुनाती हूं पापा की अलबेली बातें___
मेरी दादी के गर्भ मे जब पिता जी थे तब बाबा का दुखद निधन हो गया।मेरे बडे पिताजी ने दादी व पूरे परिवार का पालन पोषण किया।बड़े पिताजी चिकित्सक थे। उन्होने मेरे पिता जी को अपनी बड़ी सन्तान माना व उनके सुख दुख का पूरा ध्यान रखा। पिताजी ने उनको ही अपना पिता माना।
पिता जी का जन्म नागपंचमी को हुआ था इसलिए उनका नाम नागेंद्र किशोर श्रीवास्तव रखा गया। बड़े पिता जी जीवन पर्यन्त उनका जन्मदिन नागपंचमी मे अत्यंत धूमधाम से मनाये।।वह दिन एक बड़े उत्सव से कम न होता था।
समय की धारा के साथ पिता जी नेत्र विशेषज्ञ चिकित्सक बने और सिविल सर्जन बनकर रिटायर हुए ।अत्यंत खुश दिल सामाजिक व्यक्ति पिता जी थे। हम उन्हे पापा कहते।बचपन की मीठी यादें आज भी जीवन्त हैं, सजीव हैं।। मेरे बहुत घने बाल थे तो वह झबरे कह बुलाते थे।गर्मियों की छुट्टियों मे हम सबके साथ समय बहुत बिताते व धारावाहिक कहानी व गप्पे खूब सुनाया करते।
हमारे पापा को घर सजाने का शौक था। कहीं जाते तो हम सबके लिए बहुत सामान व घर सजाने का समान लाते।
मां के साथ आनंद पूर्वक रहते व घर गृहस्थी मे उनकी मदद करते।.
कुछ किस्से कहानी बचपन के जो वे स्वयं बडे चाव से सुनाते. एक किस्सा वे बड़े चाव से सुनाया करते थे .पापा के बडे पिता जी{ताउजी }चिकित्सक थे. उनकी गतिविधियो से पापा प्रभावित हो अपने मित्र के साथ डाक्टर का खेल खेलते। आपरेशन की टेबल सजती जिस पर होते कद्दू या तरबूज मरीज।पापा गम्भीरतापूर्वक डाक्टर का चोला{एप्रिन } पहन चाकू से आपरेशन करते। मित्र उनके कम्पाउंडर बनते। घन्टो खेल चलता। और तरबूज का पोस्टमार्टम हो जाता. संयोग यह रहा पापा चिकित्सक बने व उनके वे मित्र कम्पाउन्डर।हमें पापा ने एक बार मिलवाया था उनसे .तब भी यह किस्सा सुनाया था.
उनकी धारावाहिक कहानी के क्या कहने?
गंगोत्री से गंगासागर की यात्रा जिसमे पापा नाविक के रूप मे यात्रा कररहे है अत्यंत रोमांचकारी तरीके से कहते। इस यात्रा का पूरा भूगोल बचपन से ही हमारे दिमाग मे बैठ गया।अनेको कहानी, गप्प, चुटकुले पापा के खजाने मे रहते।समय समय पर हम सबको आनंदित करते।अस्पताल से आते पहले दादी की गोद मे लेट जाते और दादी से खूब दुलार कराते । हम सबको बहुत मजा आता। नाराज भी होते थे जब कोई बात सही नही होती थी।
पिताजी को महान पुरुषो की तस्वीरे बहुत पसंद थी ,उन्हें फ्रेम करवा कर कमरों मे लगाते।हम लोगो को उनके बारे मे बताते।ज्यादातर की जीवनी हमें पापा से सुन सुन कर ही याद हो गई थी हमे चित्रकारी का शौक था। हमेशा प्रोत्साहित करते। चित्र देख बहुत खुश होते।उनके आशीर्वाद से इस क्षेत्र मे हम कुछ कर पाये।
हमारे चित्रो की कई प्रदर्शनी मे उपस्थित रहे और अत्यंत ऊर्जावान हो हम कलाकारो को उत्साहित करते। उनका आशीर्वाद हमारे साथ साथ सभी कलाकारों को मिलता रहा है .
हमेशा कहते आत्म निर्भर बनो ,अपने काम खुद करो .वे अपने काम स्वयं करते व हम सबको भी प्रेरणा देते।रिटायर होने के बाद प्रतिदिन एक मरीज को सेवा भाव से देखते। उनका कहना था डॉक्टर को कभी रिटायर् नहीं होना चाहिए .अनुभवी होना ही डॉक्टर की विशेषता होती है .
हमारे जीवन से माँ पहले चली गई थी. मां के नही रहने पर वह हम सबकी अम्मा बन गये। जब भी हम सब पापा के पास जाते हर व्यवस्थाएं उचित रहती। वे घर में हर एक वस्तु का वैसा ही इंतजाम करते थे जैसे माँ किया करती थी .यहाँ तक की हमारे आगमन पर वे चाक से रंगोली बनाते प्रवेश द्वार पर, बन्दनवार सजाते। घर के हर गुलदस्तों मे सुगंधित पुष्प महकते रहते। जब हम भाई बहनों के बच्चे जाते तो वे नाती पोतो के साथ बहुत मगन रहते।
उन्हें अपने देश से बहुत प्यार था । उनकी लेखनी से देश भक्ति की अनेक रचनायें रची गयीं।उच्च कोटि की कविताए लिखीं। अवसर विशेष पर कविताओं को गाया करते।भक्तिभाव से ईश्वर की आराधना करते। सांध्य काल घर उनके कीर्तन से गूंज उठता।खाने के बहुत शौकीन। शाम को पकौड़े अक्सर बनवाते।
अनगिनत बाते है लेखनी मे समा नहीं सकती। क्या क्या लिखूँ, क्या छोडूँ ?समय के साथ चलते चलते चौरासी साल की उम्र में वे प्रभु चरणों मे समा गये। उनकी इच्छानुसार उनकी समाधि हमारी मां की समाधि के बगल बनी।
हम सब समय समय पर जाते है प्रणाम करके लौटते हैं तो आवाज सुनाई देती है_ झबरे।।आंखो से समंदर बह निकलता है। आकाश मे अम्मा पापा मुस्काते हुए दिखते हैं।
मेरे पापा…………!
वन्दिता श्रीवास्तव
9425169789
इन्दौर