Film Review: ‘I Want to Talk’ -‘आई वॉन्ट टू टॉक’
‘आई वॉन्ट टू टॉक’ एक अप्रवासी भारतीय की प्रेरक कहानी है। अप्रवासी भारतीय अर्जुन सेन (अभिषेक बच्चन) मार्केटिंग की नौकरी करता। है।अर्जुन शब्दों से ही खेलता है। उसे पसंद नहीं कि कोई उसे मैनिपुलेटिव करने वाला बुलाए। पत्नी से उसका तलाक हो चुका है। उसकी करीब आठ साल की बेटी रेया (पर्ल डे) है। अचानक से उसे पता चलता है कि वह एक ऐसी स्वास्थ्य समस्या से ग्रस्त है जो उसके जीवन के लिए खतरा बन सकती है। उसे गले का कैंसर है। इससे उसकी बोलने की क्षमता भी प्रभावित हो सकती है।
डॉक्टरों के अनुसार, उसकी जिंदगी के सिर्फ 100 दिन बचे हैं। इस कठिन समय में, अर्जुन अपनी आठ साल की बेटी रेया (पर्ल डे) के साथ संबंधों को सुधारने और एक बेहतर पिता बनने की यात्रा पर निकलता है। फिल्म में अर्जुन की बीमारी, मेडिकल समस्याएं, और बेटी के साथ उसके संबंधों की परीक्षा का भावनात्मक चित्रण किया गया है।
अर्जुन के जीवन में 20 से अधिक सर्जरी और गहन संघर्ष के बावजूद, वह जीवन को जीने की जिद के साथ मौत को हराने की कोशिश करता है। कहानी में पिता-बेटी के संबंधों की गहराई को खूबसूरती से दिखाया गया है। बेटी के सवाल और उनके जवाब अर्जुन को अपनी जिम्मेदारियों का एहसास कराते हैं। अभिषेक बच्चन ने अर्जुन की दुविधा, दर्द और दृढ़ संकल्प को शानदार तरीके से पर्दे पर उतारा है। उनकी शारीरिक और भावनात्मक प्रस्तुति ने किरदार को जीवंत कर दिया। बाल कलाकार पर्ल डे और अहिल्या बमरू ने भी बेहतरीन अभिनय किया है। शूजित सरकार के निर्देशन और रितेश शाह की लेखनी ने इस संवेदनशील कहानी को सजीव कर दिया। शूजित ने मेडिकल संघर्षों और पिता-पुत्री के रिश्ते को सहजता से जोड़ा है। फिल्म मौत के डर के बीच भी जीवन को जीने की प्रेरणा देती है। यह सुसाइड, कैंसर और पारिवारिक रिश्तों जैसे संवेदनशील विषयों को संवेदनशीलता से पेश करती है।
शूजित सरकार की फिल्म की गति धीमी है, जिससे कुछ हिस्से असंगत महसूस हो सकते हैं। कहानी में अर्जुन की पूर्व पत्नी का पक्ष नहीं दिखाया गया, जो अधूरापन लगता है। कुछ संवाद अंग्रेजी में होने के कारण भावनात्मक जुड़ाव पर असर पड़ता है। ‘आई वॉन्ट टू टॉक’ जीवन के संघर्ष और उम्मीद की एक प्रेरणादायक कहानी है। अभिषेक बच्चन के करियर की बेहतरीन अदाकारी और शूजित सरकार के उत्कृष्ट निर्देशन ने इसे एक मार्मिक अनुभव बना दिया है। यह फिल्म दिल को छू लेने वाली भावना के साथ जीवन को नए नजरिए से देखने की प्रेरणा देती है।
अर्जुन ने अपने जीवन के इन खट्टे मीठे अनुभवों को ‘रेजिंग ए फादर नामक’ किताब में व्यक्त किया है। इसी किताब पर शूजित ने यह फिल्म बनाई है।