अंतरराष्ट्रीय मानव अधिकार दिवस पर विशेष: वरिष्ठ नागरिकों की देखभाल और सामाजिक जिम्मेदारी
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वरिष्ठ पत्रकार डॉ . घनश्याम बटवाल , मंदसौर का कॉलम
विश्व भर में युवा आबादी में चौथे स्थान पर शुमार हमारा देश भारत तेज़ी से बूढ़ा होने की और अग्रसर है । वर्तमान में देश के युवा अपनी तेजस्विता और ज्ञान कौशल से विश्वभर में डंका बजा रहे हैं । विभिन्न विधाओं में श्रेष्ठता प्रमाणित कर रहे हैं । भारत की प्रगति के सक्षम साझेदार बने हुए हैं पर यह चित्र आगामी दशक में बदलने जारहा है ।
सन 2022 के जारी अधिकृत आंकड़ों के मुताबिक 10 प्रतिशत से अधिक बुजुर्गों की संख्या रही जो बढ़ती जारही है । अब भारत की जनगणना प्रक्रिया होना तय हुआ है , इसके आंकड़ों से स्थिति अधिक स्पष्ट होगी
एक सर्वे के अनुसार 2024 में भारतीयों की औसत आयु बढ़कर
28 – 29 वर्ष होगई जो तीन साल पहले 2021 में 24 वर्ष थी अर्थात बुजुर्गों की संख्या बढ़ रही है और युवाओं की घट रही है ।
देश की जनगणना 2011 के रिकॉर्ड के अनुसार देश में 60 वर्ष से अधिक आयु के बुजुर्ग 8 . 4 % प्रतिशत थे जो 2024 में बढ़कर 10 . 7 % प्रतिशत तक पहुंच गए हैं । अर्थात कोई 15 करोड़ से अधिक वरिष्ठ नागरिकों की श्रेणी में आगये हैं । अनुमान के मुताबिक आने वाले दो दशकों 2050 में यह संख्या बढ़कर 35 करोड़ होना है ।
यही चिंतन का बिंदु है कि वर्तमान में ही वरिष्ठ नागरिकों , बुजुर्गों की देखभाल , स्वास्थ्य , सामाजिक जिम्मेदारी , सुरक्षा , कानूनी मदद और मानव अधिकारों , चिकित्सा आदि मामलों में समस्या होरही है तब बढ़ती बुजुर्गों की जनसंख्या के संरक्षण ओर देखभाल कैसे होगी ?
सरकारों और समाज को दीर्घावधि कार्ययोजना बनाने के साथ सतत क्रियान्वयन पर ध्यान देना होगा । आनेवाले दशक में 951 पुरूष बुजुर्गों की तुलना में 1078 बुजुर्ग महिलाएं होंगी , महिलाओं की ओसत आयु बढ़ने से विधवाओं की संख्या भी तेजी से बढ़ने जारही है ।
वृद्धावस्था ही अपने आप में परेशानी बन जाने से परिवार , समाज और राष्ट्र प्रभावित होता है । निजी क्षेत्र हो या सरकारी क्षेत्र सेवानिवृत्त होने पर व्यक्ति की शारीरिक , मानसिक , आर्थिक स्थितियों में बदलाव होता है और यह कई प्रभाव डालने वाला होता है । स्वास्थ्य समस्याओं के साथ आवश्यक गतिशीलता में कमी , थकान , रक्तचाप , मधुमेह , पार्किन्सन , शुष्क त्वचा , स्मृति दोष ,अवसाद , अल्जाइमर , हृदय रोग , केन्सर , डिमेंशिया , नेत्र रोग , हड्डी रोग आदि से अधिकांश ग्रसित होरहे हैं वहीं मानसिक स्थिति भी कमजोर होने , तनावपूर्ण पारिवारिक वातावरण , उपेक्षा , आर्थिक निर्भरता , पति पत्नी में से एक का वियोग , अलगाव , प्रथक्कीकरण , प्रताड़ना आदि समस्याओं से बुजुर्ग सामना कर रहे हैं
यह निश्चित है और प्रकृति का विधान है कि युवावस्था के बाद वृद्धावस्था और अन्ततः मृत्यु । स्वाभाविक और प्राकृतिक घटना है जो प्रत्येक के जीवन में आएगी । यह समन्वय पीढ़ियों के अंतराल के साथ युवा एवं वृद्धजनों परिवार और समाज में होने से सुखद परिणीति सम्भव है ।
बुजुर्गों को भी समय काल और परिस्थितियों के अनुसार अपने स्वभाव , व्यवहार में बदलाव करने की जरूरत है । हठधर्मिता , परंपरागत रूढ़ियों त्याग करते हुए अपनी , परिवार की आर्थिक और सामाजिक स्थितियों के अनुसार ढालना ही श्रेयस्कर है । युवा पीढ़ी से तालमेल और सामंजस्य श्रेष्ठ विकल्प है । अवश्य ही शारीरिक कमजोरी , स्वास्थ्य कारणों और आर्थिक निर्भरता से बुजुर्गों की परिवार और समाज में मुखिया की स्थिति नहीं रही है , ऐसे में समन्वय ही उपाय है ।
एक राष्ट्रीय सर्वेक्षण में कोई 47 प्रतिशत से अधिक बुजुर्ग अपने परिवार पर आर्थिक रूप से निर्भर हैं वहीं 34 प्रतिशत पेंशन और सरकारी योजनाओं पर आश्रित हैं ।
संयुक्त राष्ट्र संघ ( UNO ) माध्यम से मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 की धारा 2 के अंतर्गत मानव अधिकार स्पष्ट किये हैं । इन्हें सार्वभौमिक रूप से सिटीजन चार्टर रूप से भारत सहित विश्व में मान्यता है । भारत में भी कानूनों का प्रावधान किया गया है , माता पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण पोषण कल्याण कानून 2007, स्वास्थ्य , सुरक्षा , नागरिक स्वतंत्रता , समानता आदि अधिकार शामिल हैं पर केवल कानूनी अधिकारों या विधि प्रावधानों से इस समस्या से नियंत्रित नहीं किया जासकता । आमतौर पर लोकलाज और सामाजिक व्यवहार , व्यवस्था के कारण 30 प्रतिशत बुजुर्ग ही दुर्व्यवहार , प्रताड़ना , मारपीट , आर्थिक संकट की शिकायत करते हैं , बदलते सामाजिक मूल्यों , उपभोक्तावादी संस्कृति , महंगाई , प्राथमिकताओं आदि में परिवर्तन भी बुजुर्गों की सुरक्षा , देखभाल को प्रभावित कर रहा है ।
हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा 70 वर्ष ओर अधिक आयु वर्ग के लिए वरिष्ठ नागरिक आयुष्मान चिकित्सा योजना अंतर्गत 5 लाख रुपये तक निःशुल्क उपचार लागू की है । पर निजी और सरकारी क्षेत्र के चिकित्सा संस्थानों ,हॉस्पिटल्स में निगरानी की माकूल व्यवस्था भी सरकारों को करना होगी तभी वास्तविक लाभ और उपचार बुजुर्गों को मिल सकेगा । रियल एस्टेट सेक्टर में बुजुर्गों की स्थितियों के अनुकूल आवासीय कॉलोनियों निर्माण में महानगरों , राजधानियों , बड़े शहरों में प्लान आकार लेरहे हैं । वृद्धाश्रम , केयर टेकर समूह , वृद्धजन सेवा केन्द्र , सेवानिवृत्त पेंशनर महासंघ जिले और तहसील स्तर पर क्रियाशील हैं , सामूहिकता के साथ स्वस्थ गतिविधियों को संचालित कर रहे हैं ।
देश में रोग और रोगी बढ़ रहे हैं पर साथ ही ओसत आयु भी बढ़ रही है । अब तो देश में ही शतायु वरिष्ठ जन सवा दो लाख से अधिक पंजीकृत हैं और हाल में हुए महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में ही कोई 50 हजार शतायु मतदाता रहे । ऐसे में वृद्धजनों एवं वरिष्ठ नागरिकों के लिये उनकी सेवा – सुरक्षा – चिकित्सा – स्वास्थ्य और आर्थिक सम्बल के अतिरिक्त प्रयास करते हुए दूरगामी योजनाओं पर समयबद्धता के साथ क्रियान्वयन की तत्काल आवश्यकता है ।
राज्यों और केंद्र सरकार को इन्हें सक्षम , सुदृढ़ और सक्रिय बनाये रखने , नवाचारों को लागू कराने में शीघ्र योजना बनाने की आवश्यकता है । पीड़ित बुजुर्गों , महिलाओं तक जरूरत अनुसार विधिक सहायता , मानव अधिकार सुरक्षा , आर्थिक और स्वास्थ्य संबंधित मदद मिले ऐसी चैनल विकसित करना आवश्यक प्रतीत होता है ।
यह सदैव स्मरण रहे चाहे सरकार हो या समाज , परिवार हो या संस्था वरिष्ठ नागरिकों , बुजुर्गों का अपना अनुभव है , उनका राष्ट्र , समाज , परिवार निर्माण में तत्कालीन समय अनुसार अतुलनीय योगदान रहा है । प्रत्येक में गुण रहे भिन्न क्षेत्रों में निर्णायक ओर अग्रणी भूमिका निर्वहन की है । देश की प्रगति में बुजुर्ग पीढ़ी का महत्वपूर्ण अवदान रहा है अपनी युवावस्था राष्ट्र और समाज को समर्पित की है , अब जब वे शारिरिक , मानसिक और आर्थिक रूप से कमजोर होरहे हैं तो उनकी देखभाल , उनकी सुरक्षा ओर उनकी बेहतरी के लिए जिम्मेदारी सरकारों और समाज की है ।
आनेवाले समय के इस गंभीर और बड़ा आकार लेती समस्या के समाधान के लिए त्वरित और सार्थक प्रयास करेंगे ।
आज के सोशल मीडिया युग में लिखी ये पंक्तियां प्रासंगिक हैं – – –
बहुत सेल्फी लेते हो , ज़रा मुस्कुराया करो ।
अपने चेहरे को आईना भी दिखाया करो ।।
अरे , ज़माने के तजुर्बे गूगल पर नहीं मिलेंगे
मिले जो वक़्त बुजुर्गों के पास बैठ जाया करो ।।