अंबेडकर के साथ कांग्रेस राज के दलित नरसंहार का ध्यान भी हो

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अंबेडकर के साथ कांग्रेस राज के दलित नरसंहार का ध्यान भी हो

आलोक मेहता

संविधान निर्माता डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के नाम पर संसद में ओर संसद के बाहर लगातार राजनीति के दौरान इस बात की याद नहीं दिलाई गई की कांग्रेस के सत्ताकाल में दलितों के नरसंहार कि कितनी गंभीर घटनाएं हुई । हाल के लोकसभा और विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस पार्टी को अपने दलित वोट बैंक का कुछ हिस्सा वापस आता दिखाई दिया, इसलिए एसा लगता है की अगले वर्ष बिहार विधानसभा चुनाव के के दौरान पिछड़ों, दलितों और मुस्लिमों को प्रभावित करने के लिए कांग्रेस पार्टी और उसके साथियों को डॉक्टर अम्बेडकर के नाम पर भारतीय जनता पार्टी को कटघरे में खड़ा करने की रणनीति उनके सलाहकारों ने समझाई है । इसका एक कारण यह हो सकता है कि 1977 में बिहार के बेलछी दलित हत्या कांड के बाद श्रीमती इंदिरा गाँधी कठिन रास्ते से हाथी पर बैठकर किसी तरह गाँव में दलितों को सहानुभूति जताने गई थी और बाद में 1980 के चुनाव में कांग्रेस पार्टी को दलितों सहित व्यापक समर्थन से सत्ता वापस मिली | लेकिन राहुल गाँधी की कांग्रेस और बिहार सहित देश की स्थिति बहुत बदली हुई है | राहुल गाँधी ने पिछले दिनों मुस्लिम वोट के लिए तनावग्रस्त संभल जाने का प्रयास किया ,लेकिन सीमा पर रोके जाने के बाद अगले दिनों में वह दलित समुदाय को सहानुभूति जताने के लिए 2020 में हाथरस में दलित महिला से बलात्कार और हत्या की घटना पर शोक एवं सहायता की पहल के लिए पहुँच गए | इस तरह के राजनीतिक प्रयासों और अंबेडकरजी का नाम लेते रहने से क्या राहुल गाँधी और कांग्रेस पार्टी बिहार में मुस्लिम और दलित वोट बैंक पर पुनः कबजा कर सकेगी ?

राहुल गाँधी के सलाहकारों ने संभवतः इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि बिहार के शहरी या ग्रामीण क्षेत्रों में हजारों परिवार कांग्रेस या लालू यादव के राष्ट्रीय जनता दल के सत्ता काल में दलितों के नर संहार की अनेक घटनाओं के घाव अब तक नहीं भूले हैं | बिहार को जानने समझने वाले नेता कर्यकर्ता या हम जैसे पत्रकार कांग्रेस के शासनकाल में बिहार में दलितों पर हुए अत्याचारों और नरसंहार की घटनाओं का उल्लेख भी कर सकते हैं | बेलछी और उससे पहले के काले अध्याय के बाद भी कई भयावह दलित हत्या कांड बिहार में हुए | सबसे दिलचस्प बात यह है कि कुछ घटनाओं पर लालू यादव ने कांग्रेस की सरकार और नेताओं को दोषी बताया और दलितों पर अत्याचार एवं हत्या कांड के लिए कांग्रेस के प्रादेशिक ही नहीं केंद्रीय शीर्ष नेताओं ने लालू यादव की सरकार और समर्थक बाहुबली नेताओं को उत्तरदायी ठहराया था | इसका रिकॉर्ड उपलब्ध है |

बेलछी के बाद उसी इलाके के पारसबीघा गाँव में जमीन पर कब्जे के लिए 6 फरवरी 1980 को एक साथ 14 दलितों को जिन्दा जला दिया गया | इसके बाद के वर्षों में कंसारा , दरमिया , नोनहि – नगवा , मलबरिया , बारा , जहानाबाद में हुए भयावह हत्या कांड के गवाह आज भी हैं | इन हत्या कांडों में राजनेताओं के प्रश्रय वाले अपराधियों के नाम सामने आते रहे | सरकार ने कार्रवाई में ढिलाई की लेकिन सात वर्षों तक अदालती सुनवाई के बाद दलितों की हत्याओं के दोषी 34 अभियुक्तों को आजीवन कारावास की सजा दी गई थी | जहानाबाद में 16 जून 1988 को हरिजन टोले में हुए नर संहार की घटना का विवरण सुनाने और सुनने वाले आज भी रोने लगते हैं | इन हत्याओं के कारण बिहार के कुछ इलाकों में कम्युनिस्ट , इंडियन पीपुल्स फ्रंट और नक्सल संगठनों का प्रभाव बढ़ता गया | वे कांग्रेस सरकार को जिम्मेदार बताते रहे | तो कभी कांग्रेसी नेताओं ने कम्युनिस्ट पार्टी के सांसद को उत्तरदाई बताया |

जब बिहार के हत्या कांडों का जिक्र आएगा तो कांग्रेस के ही बड़े नेता भीष्मनारायण सिंह और सुबोधकांत सहाय के क्षेत्र पलामू को कैसे भुलाया जा सकेगा ? भीष्म बाबू अब नहीं रहे और कुछ वर्ष जीवित रहते हुए दस जनपथ के दरवाजे उनके लिए बंद हो गए थे | लेकिन वे और सुबोधकांत सहाय लालू यादव के सत्ता काल के दौरान पलामू इलाके में हुई हिंसा अत्याचार हत्या काण्ड पर आक्रोश व्यक्त करते रहे | राहुल गांधी लालू तेजस्वी यादव के साथ गठबंधन से जातिवाद के आधार पर बिहार का अगला विधान सभा जीतने का सपना देख रहे हैं , उन्हें लालू राज के दौरान उनके अन्य कम्युनिस्ट समर्थकों द्वारा 20 दिसम्बर 1991 को प्रकाशित 42 पेज की वह रिपोर्ट पढ़ लेनी चाहिए या मैदान में उनके विरोधी लोगों को पढ़वा देंगें | इस रिपोर्ट में पुरे ब्योरेवार गिनाया गया है कि बिहार में किस तरह दलितों और पिछड़े वर्ग के गरीब असहाय लोगों को अंधाधुंध गोलियां बरसाकर मौत के घाट उतारा गया | इस रिपोर्ट के तीन दिन बाद 23 दिसम्बर 1991 की रात गया जिले के बेलागंज तथा टेकारी थाना क्षेत्र के दो गांवों मीन और बरसा में दस भूमिहीन दलितों को उनके घरों से बाहर निकालकर मौत के घाट उतार दिया था | राहुल गाँधी को मांसाहारी भोजन बनाने का पाठ पढ़ाने वाले लालू यादव मुख्यमंत्री के रुप में 13 नवम्बर 1991 को बेलागंज गए थे तब लालू यादव ने पत्रकारों से बात करते हुए आरोप लगाया था कि ” जहानाबाद के कांग्रेसी सांसद किंग महेंद्र के संरक्षण में ऊंची जाति वाले अपराधी तत्व जहानाबाद और गया जिलों में दलितों की हत्या करके कहर बरसा रहे हैं | ” तब गैर सरकारी टी वी चैनल या सोशल मीडिया नहीं था | प्रिंट मीडिया में इसका रिकॉर्ड मिल सकता है | हाँ प्रिंट में लालू के कारनामे प्रकाशित करने पर हम जैसे पत्रकारों के प्रेस पर पटना में लालू समर्थकों के हमलों का रिकॉर्ड भी उपलब्ध है | वी पी सिंह के सत्ता काल में भर्ती जयराम रमेश तब कांग्रेस पार्टी में शामिल नहीं हुए थे | इसलिए वह अब कैसे राहुल गाँधी को उन तथ्यों की जानकारी दे सकते हैं | तत्कालीन कांग्रेसी नेता जरुर लालू के आरोपों का खंडन करते थे | उस समय कांग्रेस का आरोप था कि दियारा क्षेत्र में लालू यादव दलित हत्या कांडों से जुड़े अपनी जाति के अपराधियों को सम्मानित कर पार्टी में नेता बना रहे हैं |

बिहार में दलितों पर अत्याचार से जुड़े कांग्रेसी नेता के सन्दर्भ में एक और तथ्य मेरी जानकारी में रहा है | इंदिरा राजीव गाँधी सत्ता काल के कांग्रेस के एक बाहुबली नेता पार्टी के लिए बिहार में फंडिंग में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे | जब वह लोक सभा का चुनाव नहीं जीत सके तो कांग्रेस सरकार ने 1993 में उन्हें राज्य सभा के नामजद सदस्य बनाए जाने की सिफारिश की | तत्कालीन राष्ट्रपति डॉक्टर शंकर दयाल शर्मा ने पहले इस प्रस्ताव की फाइल सरकार को अस्वीकार कर पुनः विचार के लिए वापस भेज दी | लेकिन सरकार ने दुबारा उसी नाम के साथ एक और रिक्त स्थान पर प्रसिद्द अभिनेत्री वैजयंती माला को भी राज्य सभा में नामजद करने की सिफारिश की | डॉक्टर शर्मा दुबारा विवादस्पद नेता के नाम की सिफारिश आने पर दुखी भी हुए | डॉक्टर शर्मा ने एक अनौपचारिक बातचीत में स्वयं मुझे बताते हुए कहा था कि” संवैधानिक प्रावधानों के तहत प्रधान मंत्री और मंत्रिमंडल की कोई सिफारिश या प्रस्ताव दुबारा आता है तो राष्ट्रपति को उसे स्वीकारना ही होता है | इसलिए इस नाम पर मुझे स्वीकृति देनी पड़ी | ” डॉक्टर शर्मा स्वयं कांग्रेस अध्यक्ष भी रहे थे और पार्टी के लोगों और उनके स्वार्थों को भी जानते थे | बहरहाल , उस प्रभावशाली नेता पर गंभीर आरोप सिद्ध भले ही नहीं हुए हों , लेकिन उन्हें देश के सर्वोच्च सदन में नामजद करने के कांग्रेस के निर्णय को क्या दलितों पर अत्याचार के आरोपी को सम्मानित करने के रुप में नहीं माना जाएगा | दिलचस्प बात यह है कि नामजद का कार्यकाल समाप्त होने के बाद वही नेता कांग्रेस तथा अन्य दलों के समर्थन से राज्य सभा में चुनकर भी आते रहे | इसलिए अंबेडकर , संविधान , पिछड़ों और दलितों के नाम पर राजनीति करते हुए राहुल गाँधी और उनके सहयोगियों को अपना राजनीतिक बहीखाता भी देख लेना चाहिए |