उत्तराखंड : राजनीतिक ऊंट किस करवट बैठैगा?

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उत्तराखंड की राजनीति में सबकुछ ठीक नहीं है। राज्य के दो प्रमुख राजनीतिक दल – भाजपा और कांग्रेस को अपने आंतरिक झगडों से फुर्सत नहीं है। उत्तराखंड के राजनीतिक मैदान में इस बार आप भी पूरी तैयारी से उतरी है। आप ने उत्तराखंड में तमाम लुभावने वायदों की घोषणाऐ भी करके अन्य दलों को चुनौती दे दी है।

दल बदल का इतिहास समृद्ध रहा है 

राजनेताओं का राजनीति में पाला बदलना एक आम बात है। 22 साल पुराने उत्तराखंड में भी इस राजनीतिक परंपरा का निर्वाह बड़ी ईमानदारी से होता आ रहा है। विशेषकर चुनाव के दौरान दल बदल तेज हो हो जाता है। बताया जाता है कि राज्य के एक चौथाई नेता ऐसे हैं जो समय की नजाकत और सुविधानुसार दल बदल कर चुके हैं। दल बदल की ताजी कवायद पिछले छह महीने से चल रही है। सितम्बर 2021 में कांग्रेस के दो नेता – राजकुमार और प्रीतम सिंह पंवार – भाजपा में शामिल हो गए। नये साल की शुरुआत में उत्तराखंड कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष किशोर उपाध्याय भाजपा नेताओं से मिल चुके हैं। उनके अगले कदम का इंतजार हो रहा है।
कुछ महीने पहले ही कांग्रेस ने बडा दांव चलते हुए कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य और उनके विधायक बेटे संजीव आर्य को पार्टी शामिल करवा लिया। कल (रविवार) हरक सिंह रावत को मुख्यमंत्री ने मंत्री पद से बर्खास्त किया और भाजपा ने उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया। उनके कांग्रेस में जाने की संभावना है। चौबीस घंटे के भीतर ही प्रदेश महिला कांग्रेस की अध्यक्ष सरिता आर्य भाजपा में शामिल हो गयीं।

हरक सिंह रावत कई दल बदल चुके हैं 

हरक सिंह रावत का दल बदल का पुराना इतिहास रहा है। वे पहली बार अविभाजित उत्तर प्रदेश में  1991 में भाजपा टिकट पर पौड़ी से चुनाव जीते थे और कल्याण सिंह सरकार में सबसे युवा मंत्री थे। 1998 में उन्होंने ने बसपा का दामन थाम लिया। 2002 में वे कांग्रेस मे शामिल हुए और लैंसडौन से विधायक बने। हरक सिंह रावत ने ही 2016 मे तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत के विद्रोह किया, कांग्रेस छोड़ भाजपाई हो गये। भाजपा की सरकार मे पूरे पांच साल मंत्री रहे। बताया जाता है कि परिवार के कुछ सदस्यों के टिकट दिए जाने की जिद के चलते उन्हें सरकार और पार्टी से बाहर कर दिया गया।
पुष्कर सिंह धामी पिछले पांच सालों में भाजपा के तीसरे मुख्यमंत्री हैं। वे और पार्टी दोबारा चुनाव जीतने की जी तोड़ कोशिश में लगे हैं। 2017 में भाजपा ने 57 सीटें जीती थीं।
कांग्रेस के पास हरीश रावत के अलावा फिलहाल कोई बडा नेता उत्तराखंड में नहीं है। उनकी भी हाईकमान से खटपट चल रही है। ऊपर से नेताओं का आना जाना भी लगा है। कांग्रेस हाईकमान का सारा जोर उत्तर प्रदेश में ही। उत्तराखंड के मामले में कोई ठोस योजना नहीं दिखाई। वास्तव में उत्तराखंड में कांग्रेस किसके भरोसे है, खुद पार्टी नेताओं को भी लगता है नहीं पता। हरीश रावत यह जरुर कह चुके हैं कि राज्य की सभी 70 सीटों के लिए राज्य इकाई ने प्रत्याशियों की सूची तैयार कर ली है। उत्तराखंड में एक ही चरण में 14 फरवरी को मतदान होना है। लेकिन राजनीतिक ऊंट किस करवट बैठैगा, इसका पता 10 मार्च को ही पता चलेगा।