तारसप्तक का एक सितारा…

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तारसप्तक का एक सितारा…

कौशल किशोर चतुर्वेदी

होंगे कामयाब, होंगे कामयाब

हम होंगे कामयाब एक दिन

हो-हो मन में है विश्वास, पूरा है विश्वास

हम होंगे कामयाब एक दिन

होंगी शांति चारो ओर

होंगी शांति चारो ओर

होंगी शांति चारो ओर एक दिन

हो-हो मन में है विश्वास, पूरा है विश्वास

होंगी शांति चारो ओर एक दिन

हम चलेंगे साथ-साथ

डाल हाथों में हाथ

हम चलेंगे साथ-साथ एक दिन

हो-हो मन में है विश्वास, पूरा है विश्वास

हम चलेंगे साथ-साथ एक दिन

नहीं डर किसी का आज

नहीं भय किसी का आज

नहीं डर किसी का आज के दिन

हो-हो मन में है विश्वास, पूरा है विश्वास

नहीं डर किसी का आज के दिन

हम होंगे कामयाब एक दिन

यह गीत हर किसी की जुबान पर आ ही जाता है, जब उसका मन सफलता पाने को बेताब होता है। जब वह सफलता पाने का दृढ़ निश्चय करता है। और यह बात मन को सुकून देने वाली है कि यह गीत अंग्रेजी से हिंदी में मध्यप्रदेश के अशोकनगर में जन्मे गिरिजाकुमार माथुर ने अनुवादित किया था। गिरिजाकुमार माथुर तार सप्तक में शामिल सात प्रख्यात हिंदी कवियों में से एक थे। कविताओं के अलावा, उन्होंने कई नाटक, गीत और निबंध भी लिखे। 1991 में, उन्हें उनके संकलन, “मैं वक्त के हूं सामने” के लिए उसी वर्ष व्यास सम्मान के साथ-साथ साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उन्हें लोकप्रिय अंग्रेजी गीत “वी शैल ओवरकम” के हिंदी में अनुवाद “हम होंगे कामयाब” के लिए जाना जाता है। माथुर ने अपनी आत्मकथा “मुझे और अभी कहना है” में अपने जीवन की यात्रा का वर्णन किया है। तार सप्तक एक काव्य संग्रह है। अज्ञेय द्वारा 1943 ई० में नयी कविता के प्रणयन हेतु सात कवियों का एक मण्डल बनाकर तार सप्तक का संकलन एवं संपादन किया गया। तार सप्तक नयी कविता का प्रस्थान बिंदु माना जाता है। इसका ऐतिहासिक महत्त्व इस रूप में है कि इसी संकलन से हिन्दी काव्य साहित्य में प्रयोगवाद का आरम्भ होता है। आज भी अनेक काव्य प्रेमियों में इस संग्रह की कविताएँ आधुनिक हिन्दी कविता के उस रचनाशील दौर की स्मृतियाँ जगाएँगी जब भाषा और अनुभव दोनों में नये प्रयोग एक साथ कर सकना ही कवि कर्म को सार्थक बनाता था। तार सप्तक में गजानन माधव मुक्तिबोध, नेमिचन्द्र जैन, भारतभूषण अग्रवाल, प्रभाकर माचवे, गिरिजाकुमार माथुर, रामविलास शर्मा एवं अज्ञेय सहित सात कवियों की कविताएँ संकलित की गई हैं। तार सप्तक का प्रकाशन भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा सन् 1943 ई० में किया गया है। इसी क्रम में अज्ञेय ने दूसरा सप्तक तथा तीसरा सप्तक प्रकाशित किया। बाद में अज्ञेय ने चौथा सप्तक भी प्रकाशित किया।

गिरिजा कुमार माथुर (22 अगस्त 1919 – 10 जनवरी 1994) एक कवि, नाटककार और समालोचक थे। गिरिजा कुमार माथुर का जन्म मध्यप्रदेश के अशोकनगर में हुआ था। उनके पिता देवीचरण माथुर स्कूल अध्यापक थे तथा साहित्य एवं संगीत के शौकीन थे। वे कविता भी लिखा करते थे। सितार बजाने में प्रवीण थे। माता लक्ष्मीदेवी मालवा की रहने वाली थीं और शिक्षित थीं। गिरिजाकुमार की प्रारम्भिक शिक्षा घर पर ही हुई। उनके पिता ने घर ही अंग्रेजी, इतिहास, भूगोल आदि पढ़ाया। स्थानीय कॉलेज से इण्टरमीडिएट करने के बाद 1936 में स्नातक उपाधि के लिए ग्वालियर चले गये। ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज से उन्होंने शिक्षा ग्रहण की तथा सन् 1938 में उन्होंने बी.ए. किया, 1941 में उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एमए किया तथा वकालत की परीक्षा भी पास की। सन 1940 में उनका विवाह दिल्ली में शकुन्त माथुर से हुआ, जो अज्ञेय द्वारा सम्पादित सप्तक परम्परा (‘दूसरा सप्तक’) की पहली कवयित्री रहीं। 1943 से ‘ऑल इंडिया रेडियो’ में अनेक महत्वपूर्ण पदों पर रहते हुए अंग्रेजी और उर्दू के वर्चस्व के बीच हिन्दी को पहचान दिलाई। लोकप्रिय रेडियो चैनल ‘विविध भारती’ उन्हीं की संकल्पना का मूर्त रूप है। माथुर जी दूरदर्शन के उप-महानिदेशक के पद से सेवानिवृत्त हुए।

गिरिजाकुमार की काव्यात्मक शुरुआत 1934 में ब्रजभाषा के परम्परागत कवित्त-सवैया लेखन से हुई। वे विद्रोही काव्य परम्परा के रचनाकार माखनलाल चतुर्वेदी, बालकृष्ण शर्मा नवीन आदि की रचनाओं से अत्यधिक प्रभावित हुए और 1941 में प्रकाशित अपने प्रथम काव्य संग्रह ‘मंजीर’ की भूमिका उन्होंने निराला से लिखवायी। उनकी रचना का प्रारम्भ द्वितीय विश्वयुद्ध की घटनाओं से उत्पन्न प्रतिक्रियाओं से युक्त है तथा भारत में चल रहे राष्ट्रीय स्वतंत्रता आन्दोलन से प्रभावित है। कविता के अतिरिक्त वे एकांकी नाटक, आलोचना, गीति-काव्य तथा शास्त्रीय विषयों पर भी लिखते रहे हैं। भारतीय सांस्कृतिक सम्बन्ध परिषद की साहित्यिक पत्रिका ‘गगनांचल’ का संपादन किया।

गिरिजाकुमार माथुर की बात आज इसलिए क्योंकि 10 जनवरी 1994 को 75 वर्ष की आयु में नई दिल्ली में निधन हो गया था। गिरिजाकुमार को साहित्य में योगदान के लिए जाना जाएगा और मध्यप्रदेश को गौरवान्वित करने वाले माथुर तारसप्तक का सितारा बन हमेशा साहित्यिक क्षितिज पर चमकते रहेंगे…।