Muslim Youth Donated Land : ”यह अल्लाह का हुक्म है कि मेरी जमीन पर जैन संत की समाधि बने’

मुस्लिम युवक ने जैन संत की समाधि के लिए लाखों की जमीन दान दी

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Singoli (Neemuch) : राजस्थान की सीमा से लगने वाला MP का ये इलाका अभी तक अफीम की पैदावार के लिए जाना जाता था। पर, इन दिनों सिंगोली कस्बे का एक मुस्लिम युवक अशरफ मेव गुड्डू लोगों की नजर में चढ़ा हुआ है। उसने ऐसे माहौल में एक मिसाल पेश की, जब समाज में धार्मिक वैमनस्यता का जहर घोला जा रहा है। इस युवक ने एक जैन संत की समाधि के लिए अपनी जमीन दान की, जबकि जैन समाज उसकी मुंह मांगी कीमत देने को तैयार था। इस युवक ने जो जमीन दान की, वो सड़क से लगी लाखों की बेशकीमती है। अशरफ ने कहा कि ‘यह अल्लाह का हुक्म है कि मेरी जमीन पर जैन संत की समाधि बने। मेरे लिए इससे बड़ा सौभाग्य और क्या होगा!’

जैन समाज के लोग संत के निधन के बाद उनकी समाधि के लिए जमीन लेने अशरफ मेव गुड्डू (Ashraf Mev Guddu) के पास आए थे। वे उस जमीन की कीमत भी चुकाने को तैयार थे। लेकिन, अशरफ मेव ने राशि लेने से मना कर दिया। यह कहा कि यह जमीन मेरी तरफ से दान है। इससे बड़ा पुण्य का काम कोई और नहीं हो सकता। उनके इस काम को देखते हुए यहाँ आयोजित ‘विनयांजलि’ कार्यक्रम में मेव उर्फ गुड्डू (Ashraf Mev Guddu) को सम्मानित किया गया।

जमीन दान देने के मामले में अशरफ का कहना है कि यह सर्वधर्म सद्भाव है। मैं सभी धर्म के लोगों की सेवा को मजहबी इंसानियत मानता हूं। उन्होंने बताया कि संत श्री महाराज का देवलोक गमन हुआ, तो जैन समाज के लोग रात ढाई बजे हमारे पास आए। उन लोगों ने मुझसे कहा कि इस दिशा में आपकी जमीन आती है। हमें संत श्री का यहां दाह संस्कार करना है। अशरफ मेव ने उन्हें जवाब देते हुए कहा कि इससे अच्छी बात हमारे लिए और क्या हो सकती है कि संतश्री का दाह संस्कार हमारी भूमि पर हो।

गुरुवार की रात मुनि श्री शांतिसागर जी का देवलोक गमन हो गया। शुक्रवार को उनकी अंत्येष्टि संस्कार की जाना थी। दिशा शूल के मुताबिक कस्बे के दक्षिण पश्चिम में समाधि के लिए नीमच-सिंगोली सड़क मार्ग पर अशरफ मेव गुड्डू की जमीन को उचित माना। इसके बाद जैन समाज के लोग गुड्डू के पास पहुंचे और उन्होंने जमीन देने के लिए हामी भर दी। अब अशरफ मेव गुड्डू की खूब तारीफ हो रही है।

जैन समाज के लोगों से अशरफ ने कहा कि यह अल्लाह का हुक्म है कि जैन संत की समाधि मेरी जमीन पर बने। इससे बड़े सौभाग्य की बात और क्या हो सकती है। इसके बाद मैंने उन लोगों को कह दिया कि आपको जहां भी जगह चाहिए, आप ले लीजिए। मैंने समाज के लोगों से यह भी कहा कि आपको जहां समझ में आए, वहां की जमीन ले लो। वहां पर मेरी चार जमीन है। इसके लिए किसी से पूछने की जरूरत नहीं है।

अशरफ ने बताया कि दाह संस्कार के बाद वे लोग पैसे देने भी आए थे। मैंने कहा कि इसके लिए कोई जमीन की जरूरत नहीं है। यह जमीन नि:शुल्क है। यह किस्मत की बात है कि इतने बड़े संत महात्मा की समाधि हमारे जमीन में है। मैं सभी समाज के लोगों का सम्मान करता हूं।