Vallabh Bhawan Corridors to Central Vista: महाराजा ने करवाया राजा का दलबदल
कांग्रेस के बड़े नेता रहे आरपीएन सिंह अब भाजपा की नाव में सवार हो गए। समझा जा रहा है कि उन्हें उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के मद्देनजर कांग्रेस से तोडा गया। इस राजनीतिक तोड़फोड़ में केंद्रीय मंत्री ग्वालियर महाराजा ज्योतिरादित्य सिंधिया की महत्वपूर्ण भूमिका देखी गई। यानी राजा का दलबदल महाराजा ने करवाया।
आरपीएन सिंह कुशीनगर के सैंथवार के शाही परिवार से ताल्लुक रखते हैं। कांग्रेस से उनका रिश्ता पिता के कारण रहा है। पिता सीपीएन सिंह की तरह वे भी पडरौना के विधायक रहे हैं। उन्हें पडरौना का ‘राजा साहब’ भी कहा जाता है। सन् 1996 से 2009 तक विधानसभा में गरजने के बाद आरपीएन सिंह 15वीं लोकसभा सदस्य बने थे।
उत्तर प्रदेश की सियासत में पूर्वांचल सभी दलों के लिए काफी महत्व रखता है। यहां राजघरानों से लेकर बाहुबलियों का सियासत में काफी दबदबा है। राजनीतिक दल इन प्रभावशाली लोगों को अपने पाले में लाने के लिए हरदम मशक्कत करते रहते हैं। ऐसा ही एक नाम है कुंवर रतनजीत प्रताप नारायण सिंह (आरपीएन सिंह) का।
सिंह पूर्वांचल में कांग्रेस का बड़ा चेहरा रहे हैं। ‘हाथ’ का साथ छोड़ अब वह भाजपा का दामन थाम लिया। केंद्र की मनमोहन सिंह सरकार में मंत्री रहे पडरौना के ‘राजा साहब’ को कांग्रेस ने सोमवार को उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में पहले चरण के मतदान के लिए 30 सदस्यीय स्टार प्रचारकों की सूची में शामिल किया, लेकिन एक दिन बाद ही उन्होंने पार्टी छोड़ दी।
‘घर वापसी’ का खुला विरोध
कांग्रेस में अंदरूनी खींचतान सिर्फ कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के बीच ही नहीं है, दूसरे मोर्चे भी खुले हुए हैं। दोनों नेताओं के समर्थक भी तलवार भांजने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे। ताजा मामला विंध्य इलाके का है, जहां अजय सिंह राहुल ने कांग्रेस से भाजपा में गए लोगों को वापस पार्टी में लाने की मुहिम चलाने की कोशिश की।
अजय सिंह की ये कोशिश गलत नहीं थी, पर कमलनाथ के खासमखास सज्जन वर्मा ने इसका विरोध किया। उनका कहना है कि जो पार्टी से चले गए, उन्हें वापस क्यों लिया जाए! जबकि, अजय सिंह इस बहाने अपनी राजनीति चमकाना चाहते हैं। जबकि, सज्जन सिंह नहीं चाहते कि विंध्य में अजय सिंह को श्रेय मिले। वैसे अजय सिंह को दिग्विजय सिंह का समर्थक नहीं माना जाता, पर ठकुराई उनमें भी कूट कूटकर भरी है, जबकि सज्जन सिंह को बस कमलनाथ का इशारा चाहिए!
आखिर कहाँ हैं प्रभात झा!
एक समय भाजपा के फायर ब्रांड नेता रहे प्रभात झा लम्बे समय से परिदृश्य से गायब हैं। वे कहां है, किसी को नहीं पता! पर, वे किसी राजनीति में व्यस्त नहीं है, ये तय है। एक समय वे प्रदेश में पार्टी के सर्वेसर्वा थे, राज्यसभा सदस्य रहे! नरेंद्र मोदी ने जब 2014 में पहली बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली और उसके तत्काल बाद गांधी समाधि गए, तब प्रभात झा अग्रणी नेता थे, जो साथ दिखाई दिए थे। लेकिन, कई महीनों से वे नेपथ्य से नदारद हैं।
इसके पीछे समझा जा रहा कि ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस में आने के बाद वे हाशिए पर चले गए या यों कहिए कि धकेल दिए गए। जब सिंधिया कांग्रेस में थे, उनके सबसे बड़े विरोधियों में प्रभात झा भी थे! लेकिन, सिंधिया के भाजपा में आने के बाद उन्हें इस विरोध का ही खामियाजा भुगतना पड़ा। न तो उनके कोई बयान ही सामने आ रहे और न उनका चेहरा दिखाई दे रहा है। वे सोशल मीडिया पर सक्रिय रहने वाले भाजपा नेताओं में से सबसे आगे रहने वालों में से थे और ट्वीटर पर अकसर तंज कसते रहते थे! लेकिन, अब न वे खुद दिखाई दे रहे हैं न उनका ट्विटर! वहां भी सन्नाटा छाया हुआ है।
कमलनाथ, दिग्विजय से आगे निकले भूपेश बघेल
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के प्रचार के लिए कांग्रेस ने जिन 30 नेताओं की लिस्ट जारी की, उसमें मध्यप्रदेश के किसी नेता का नाम नहीं है। यहाँ तक कि कमलनाथ और दिग्विजय सिंह जैसे बड़े नेता भी इस लिस्ट से बाहर हैं! लेकिन, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को ये मौका दिया गया।
इसका क्या कारण समझा जाए! जबकि, भूपेश बघेल मध्यप्रदेश के इन दोनों दिग्गजों जितने बड़े नहीं, पर जमीनी नेता हैं। कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की तरह वे हवा हवाई भी नहीं! छत्तीसगढ़ में उन्होंने कांग्रेस को जो ताकत दी, उससे प्रियंका और राहुल गांधी दोनों खुश हैं। लखीमपुर खीरी कांड के समय भी भूपेश बघेल ने लखनऊ पहुंचकर और प्रियंका गांधी के साथ खड़े होकर जो तत्परता दिखाई और भाजपा को चुनौती दी, उसने उनका कद जरूर बढ़ा और उसी का नतीजा है कि उन्हें प्रचार की जिम्मेदारी दी गई।
उमा भारती का जिक्र कोई इशारा तो नहीं!
पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा की फायर ब्रांड नेता उमा भारती अब राजनीति की मुख्य धारा से नदारद हैं। उनकी बातों को गंभीरता से नहीं लिए जाने के कई उदाहरण दिए जा सकते हैं! लेकिन, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त करने वाले बच्चों से वर्चुअल बातचीत के दौरान जिस तरह उमा भारती का जिक्र किया, वो राजनीतिक क्षेत्रों में कान खड़े करने के लिए काफी है।
उन्होंने उमा भारती की प्रतिभा, उनके शास्त्र ज्ञान और भाषण शैली की जमकर तारीफ की। उन्होंने 50 साल पुरानी घटना का भी उल्लेख किया, जब मोदी ने गुजरात में बच्ची उमा भारती का प्रवचन सुना था। इसे संकेत माना जाना चाहिए कि अभी ये फायर ब्रांड नेता राजनीति में चुकी नहीं है! वे कभी भी नई जिम्मेदारी के साथ सामने आ सकती है और नरेंद्र मोदी ने भी शायद यही इशारा किया हो!
इसका जवाब देते हुए उमा भारती ने भी कुछ ट्वीट किए। उन्हीं में से एक ट्वीट है ‘वे एक ऐसे पिता, जिनका हृदय स्नेह से भरा हुआ हैं। किंतु बहुत दूर हिमशिखर पर बैठा हुआ यह महायोगी हम सबको देख रहा हैं। हमारी रक्षा कर रहा हैं, ऐसा आभास मेरी तरह संसार की सभी स्त्रियों को नरेंद्र मोदी जी के प्रति होता होगा!’
क्या नरेश पाल के भाग्य चमकेंगे
मध्य प्रदेश में सहकारिता आयुक्त नरेश पाल कुमार 5 दिन बाद रिटायर हो रहे हैं। प्रशासनिक क्षेत्र में इस बात को लेकर काफी चर्चा में हैं कि क्या सीएम उन पर मेहरबान होंगे और रिटायरमेंट के बाद उन्हें किसी पद से नवाजेंगे। इन दिनों जिस प्रकार शिवराज का रिटायर्ड अधिकारियों के प्रति रुख है उसे देखते हुए नहीं लगता कि उन्हें कोई बड़ा पद मिल पाएगा।
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मीडियावाला को सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार राज्य सहकारिता निर्वाचन प्राधिकारी जैसे महत्वपूर्ण पद पर उन्हें नियुक्त कराने के लिए सहकारिता मंत्री ने मुख्यमंत्री को नोटशीट भी भेजी है। यह नोटशीट मुख्यमंत्री की टेबल पर पिछले कई दिनों से रखी हुई है। या तो इसे मुख्यमंत्री की व्यस्तता माने या यह माने की मुख्यमंत्री का इंटरेस्ट इस कार्य में नहीं है।
इसी बीच पता लगा है कि इस पद के लिए अब एसीएस स्तर के अधिकारी को नियुक्त किया जाएगा।
वैसे नरेश पाल सूचना आयुक्त बनने के लिए भी प्रयास कर रहे हैं।
रिटायर्ड अधिकारियों की ही बात निकली तो हम बताना चाहेंगे कि इस समय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान रिटायर्ड या रिटायर होने वाले अधिकारियों को तवज्जो नहीं दे रहे हैं। कवींद्र कियावत सहित कुछ और अधिकारियों के उदाहरण सबके सामने हैं।