Chhatrapati Shivaji Maharaj: हर हृदय में स्वराज- अखंड भारत: शिवाजी और एकता का मंत्र

253
Chhatrapati Shivaji Maharaj
Chhatrapati Shivaji Maharaj

छत्रपति शिवाजी महाराज की पुण्यतिथि पर विशेष: 3 अप्रैल

Chhatrapati Shivaji Maharaj : हर हृदय में स्वराज- अखंड भारत: शिवाजी और एकता का मंत्र  

डॉ तेज प्रकाश पूर्णानन्द व्यास,

जन्म और प्रारंभिक जीवन:

शिवाजी महाराज का जन्म 19 फरवरी, 1630 को शिवनेरी किले में हुआ था। उनके पिता शाहजी भोंसले एक शक्तिशाली सरदार थे और माता जीजाबाई एक असाधारण उच्च उदात्त श्रेष्ठ गुणों की महिला थीं जिन्होंने शिवाजी को बचपन से ही वीरता, धर्म, ईमानदारी , मातृ शक्ति सम्मान और न्याय के मूल्यों की शिक्षा दी।

स्वराज का संकल्प:

युवावस्था में ही शिवाजी ने विदेशी शासन के अन्याय को महसूस किया और ‘स्वराज’ (अपना राज्य) स्थापित करने का दृढ़ संकल्प लिया। उन्होंने अपने साथियों को संगठित किया और युवाओं को अपनी सेना में भर्ती किया।

किलेबंदी और सैन्य संगठन:

शिवाजी ने अपनी दूरदर्शिता से महत्वपूर्ण किलों को जीता और उनका सुदृढ़ीकरण किया। उन्होंने एक अनुशासित और कुशल सेना का निर्माण किया, जिसमें घुड़सवार और पैदल सैनिक शामिल थे। उन्होंने तोपखाने और नौसेना की भी नींव रखी, जो उनके समय में एक क्रांतिकारी कदम था।

मुगलों से संघर्ष:

शिवाजी महाराज ने शक्तिशाली मुगल साम्राज्य को सीधी चुनौती दी। उन्होंने छापामार युद्ध (गनिमी कावा) की रणनीति का कुशलतापूर्वक उपयोग करके मुगल सेना को कई बार पराजित किया। अफजल खान का वध और औरंगजेब के दरबार से उनका सुरक्षित पलायन उनकी बहादुरी और बुद्धिमत्ता के अद्वितीय उदाहरण हैं।

स्वतंत्र राज्य की स्थापना:

अपने अथक प्रयासों से शिवाजी ने एक स्वतंत्र मराठा साम्राज्य की स्थापना की, जिसका अभिषेक 1674 में रायगढ़ में हुआ। उन्होंने ‘छत्रपति’ की उपाधि धारण की, जो उनकी संप्रभुता और स्वतंत्र शासक के रूप में पहचान थी।

2. स्त्री शक्ति के प्रति अद्वितीय सम्मान:

* सैनिकों को सख्त निर्देश: शिवाजी महाराज ने अपनी सेना को महिलाओं के प्रति अत्यंत सम्मानजनक व्यवहार करने के सख्त निर्देश दिए थे। उन्होंने आदेश दिया था कि युद्ध या अन्य किसी भी परिस्थिति में महिलाओं को किसी भी प्रकार की हानि नहीं पहुंचाई जानी चाहिए।

शिवाजी महाराज द्वारा एक सुंदर मुस्लिम स्त्री को सम्मानपूर्वक वापस लौटाने की घटना इतिहास में उनकी उच्च नैतिक मूल्यों और महिलाओं के प्रति सम्मान के प्रतीक के रूप में दर्ज है। इस घटना का मूल विवरण कुछ इस प्रकार है:
घटना का संदर्भ:
यह घटना 1679 के आसपास की है, जब शिवाजी महाराज का शासनकाल था। उनकी सेना ने कल्याण क्षेत्र में एक अभियान चलाया था। इस अभियान के दौरान, उनके सैनिकों ने लूटपाट के क्रम में एक सुंदर मुस्लिम महिला को पकड़ लिया और उसे शिवाजी महाराज के सामने प्रस्तुत किया। यह महिला कल्याण के सूबेदार की बहू थीं।
शिवाजी महाराज का उच्च उदात्त चरित्र का आचरण:
जब शिवाजी महाराज ने उस महिला को देखा, हतप्रभ रह गए। उन्होंने उस महिला से सम्मानपूर्वक पूछताछ की। उन्हें पता चला कि वह कल्याण के सूबेदार की बहू हैं।
इसके बाद शिवाजी महाराज ने जो कार्य किया, वह उनकी महानता और उच्च चरित्र का परिचायक है। उन्होंने तुरंत उस महिला को सम्मानपूर्वक उसके घर वापस भेजने का आदेश दिया। उन्होंने अपने सैनिकों को उस महिला को किसी भी प्रकार का कष्ट न पहुंचाने और पूरी सुरक्षा के साथ उसके ससुराल तक पहुंचाने का निर्देश दिया।
कहा जाता है कि इस अवसर पर शिवाजी महाराज ने पश्चाताप करते हुए यह शब्द कहे थे: “मेरी माँ भी इतनी ही सुंदर होतीं तो क्या मेरा विचलित होता? कदापि नहीं”
इस कथन से उनकी महिलाओं के प्रति गहरी श्रद्धा और सम्मान का पता चलता है, चाहे वह किसी भी धर्म या समुदाय की हों।
शिवाजी महाराज का यह कार्य उनकी न्यायप्रियता, धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण और महिलाओं के प्रति उच्च सम्मान को दर्शाता है। इस घटना ने उनके समकालीन शासकों और आम जनता पर गहरा प्रभाव डाला। यह घटना आज भी शिवाजी महाराज के महान चरित्र और आदर्शों की याद दिलाती है। यह सिखाती है कि युद्ध के समय भी मानवीय मूल्यों और नैतिकता को बनाए रखना कितना महत्वपूर्ण है।
इस घटना का उल्लेख कई ऐतिहासिक ग्रंथों और लोक कथाओं में मिलता है, जो शिवाजी महाराज की कीर्ति और उनके उच्च नैतिक सिद्धांतों का प्रमाण है। यह घटना उनकी जीवनी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो उन्हें एक महान योद्धा के साथ-साथ एक महान इंसान के रूप में भी स्थापित करती है।

अपहरण और दुर्व्यवहार के विरुद्ध कठोर कार्रवाई:

यदि किसी सैनिक द्वारा किसी महिला का अपहरण या दुर्व्यवहार किया जाता था, तो शिवाजी महाराज उस पर कठोर दंड लगाते थे। उनके शासन में महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान सर्वोपरि था।

जीजाबाई का प्रभाव:

उनकी माता जीजाबाई ने उन्हें महिलाओं के सम्मान और महत्व की शिक्षा दी थी, जिसका उनके जीवन और शासन पर गहरा प्रभाव पड़ा।

3. जीवन की महत्वपूर्ण घटनाएं और शिक्षाएं:

तोरणा किले पर विजय (1646): यह शिवाजी की पहली महत्वपूर्ण सैन्य सफलता थी, जिसने उनके आत्मविश्वास और अनुयायियों के उत्साह को बढ़ाया।

अफजल खान का वध (1659):
बीजापुर के शक्तिशाली सरदार अफजल खान को धोखे से मारने के प्रयास को विफल करते हुए शिवाजी ने अपनी बुद्धिमत्ता और साहस का परिचय दिया।

पुरंदर की संधि (1665):

मुगलों के साथ हुई इस संधि के तहत शिवाजी को अपने कई किले सौंपने पड़े, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और भविष्य में फिर से शक्ति अर्जित की।

आगरा से पलायन (1666):

औरंगजेब के बुलावे पर आगरा गए शिवाजी को बंदी बना लिया गया, लेकिन उन्होंने अपनी सूझबूझ से वहां से नाटकीय ढंग से पलायन किया, जिसने उनकी प्रतिष्ठा को और बढ़ाया।

राज्याभिषेक (1674):

यह मराठा साम्राज्य की स्वतंत्रता और शिवाजी के एक संप्रभु शासक के रूप में स्थापना का प्रतीक था।

शिक्षाएं:

शिवाजी महाराज के जीवन से हमें साहस, दृढ़ संकल्प, न्यायप्रियता, संगठन कौशल, देशभक्ति और महिलाओं के सम्मान जैसे महत्वपूर्ण मूल्यों की शिक्षा मिलती है।

4. राष्ट्र की एकता, अखंडता और अकाट्यता:

विभिन्न समुदायों को एकजुट करना:
शिवाजी महाराज ने अपने साम्राज्य में विभिन्न जाति और धर्म के लोगों को समान रूप से सम्मान दिया और उन्हें एक साथ लेकर चले। उनकी सेना और प्रशासन में सभी समुदायों के लोग शामिल थे।

सांस्कृतिक एकता का पोषण:

उन्होंने मराठी भाषा और संस्कृति को बढ़ावा दिया और एक साझा पहचान की भावना विकसित की, जिसने लोगों को एकजुट किया।

विदेशी हस्तक्षेप का विरोध:

शिवाजी ने विदेशी शासकों के हस्तक्षेप का कड़ा विरोध किया और भारत की स्वतंत्रता और संप्रभुता की रक्षा के लिए संघर्ष किया। उनका मानना था कि भारत भारतीयों का है और इस पर उनका ही शासन होना चाहिए।

अकाट्य संकल्प:

उनका स्वराज का संकल्प अटूट था। विपरीत परिस्थितियों और चुनौतियों के बावजूद उन्होंने कभी हार नहीं मानी और अपने लक्ष्य को प्राप्त करके दिखाया। उनकी यह दृढ़ इच्छाशक्ति राष्ट्र की एकता और अखंडता की नींव बनी।

5. युवाओं के लिए प्रेरणा:

आत्मविश्वास और नेतृत्व क्षमता:

शिवाजी महाराज का आत्मविश्वास और नेतृत्व क्षमता युवाओं के लिए एक महान प्रेरणास्रोत है। उन्होंने कम उम्र में ही अपने साथियों को संगठित करके बड़े-बड़े लक्ष्यों को प्राप्त किया।

देशभक्ति और त्याग:

उनका अपने देश और लोगों के प्रति अटूट प्रेम और उनके लिए किए गए त्याग युवाओं को राष्ट्र सेवा के लिए प्रेरित करते हैं।

परिश्रम और लगन:

उन्होंने अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अथक परिश्रम किया और कभी भी कठिनाइयों से नहीं घबराए। यह युवाओं को मेहनत और लगन से अपने सपनों को साकार करने की प्रेरणा देता है।

नैतिक मूल्य:

शिवाजी महाराज के जीवन में सत्य, न्याय और धर्म जैसे उच्च नैतिक मूल्यों का पालन किया गया, जो युवाओं को चरित्र निर्माण और सही मार्ग पर चलने की शिक्षा देता है।

नवाचार और अनुकूलनशीलता:

उन्होंने अपनी युद्धनीतियों और प्रशासनिक व्यवस्था में समय के अनुसार बदलाव किए और नए तरीकों को अपनाया। यह युवाओं को रचनात्मक और अनुकूलनशील बनने की प्रेरणा देता है।

प्रेरक व्यक्तित्व

छत्रपति शिवाजी महाराज एक असाधारण योद्धा, कुशल प्रशासक और दूरदर्शी नेता थे। उनका जीवन और कार्य हमें साहस, न्याय, एकता और देशभक्ति के मूल्यों को अपनाने की प्रेरणा देते हैं। उनकी पुण्यतिथि पर हमें उनके आदर्शों को याद करना चाहिए और एक मजबूत और समृद्ध राष्ट्र के निर्माण में अपना योगदान देना चाहिए

छत्रपति शिवाजी महाराज की पुण्यतिथि के इस अवसर पर, आइए उनके जीवन और शिक्षाओं के गहरे अर्थों से युवा शक्ति को प्रेरणा देना उपयुक्त है। शिवाजी के व्यक्तित्व को समझना न केवल एक विशेष समय या समुदाय के लिए बल्कि सभी के कल्याण और सुख के लिए प्रासंगिक हैं।
03 अप्रैल – एक प्रेरणा दिवस: यह केवल एक तिथि नहीं, बल्कि एक स्मरण है उस महान आत्मा का जिसने ‘स्वराज’ की भावना को हर हृदय में जगाया। छत्रपति शिवाजी महाराज, एक महान मराठा योद्धा और शासक, ने अपने कार्यों से यह सिद्ध किया कि जन-जन के हृदय में यदि अपने अधिकारों और सम्मान की भावना जागृत हो जाए, तो कोई भी बाधा दुर्गम नहीं।

महान मराठा योद्धा व स्वराज की भावना को जन जन के हृदय में जागृत करने वाले महान शासक:

शिवाजी महाराज की पहचान केवल एक योद्धा तक सीमित नहीं थी। वे एक ऐसे दूरदर्शी शासक थे जिन्होंने लोगों को आत्मविश्वास और आत्म-सम्मान के साथ जीने की प्रेरणा दी। उनका ‘स्वराज’ का विचार केवल एक राज्य की स्थापना तक सीमित नहीं था, बल्कि यह हर व्यक्ति के आत्म-सम्मान, स्वतंत्रता और न्याय के अधिकार का प्रतीक था। उन्होंने लोगों को यह सिखाया कि अपनी पहचान और अधिकारों के लिए लड़ना न केवल आवश्यक है, बल्कि यह एक पवित्र कर्तव्य भी है।
छत्रपति शिवाजी महाराज जी की पुण्यतिथि पर उन्हें सादर वंदन: आज, उनकी पुण्यतिथि पर, हम उन्हें केवल श्रद्धांजलि ही नहीं अर्पित करते, बल्कि उनके आदर्शों को अपने जीवन में उतारने का संकल्प भी लेते हैं। उनका जीवन हमें सिखाता है कि नेतृत्व कैसा होना चाहिए – लोगों को साथ लेकर चलने वाला, उनकी सुरक्षा और कल्याण के लिए समर्पित।

सर्व जन हिताय, सर्व जन सुखाय – शिवाजी के आदर्श:

शिवाजी महाराज का दृष्टिकोण ‘सर्व जन हिताय, सर्व जन सुखाय’ के महान भारतीय दर्शन पर आधारित था। उनके कार्यों में यह सिद्धांत स्पष्ट रूप से दिखाई देता है:

न्याय और समानता:

उनका शासन न्याय और समानता पर आधारित था। उन्होंने बिना किसी भेदभाव के सभी नागरिकों के अधिकारों की रक्षा की। यह आज भी प्रासंगिक है, जहाँ हमें एक ऐसे समाज का निर्माण करने की आवश्यकता है जहाँ हर व्यक्ति को समान अवसर मिले और कानून का शासन हो।

कमजोरों का संरक्षण:

शिवाजी महाराज हमेशा कमजोर और जरूरतमंद लोगों के साथ खड़े रहे। उन्होंने अन्याय और अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाई। यह हमें सिखाता है कि एक सभ्य समाज की पहचान यह है कि वह अपने कमजोर सदस्यों की कितनी परवाह करता है।

प्रकृति और पर्यावरण का सम्मान:

उनके शासन में कृषि और पर्यावरण का विशेष ध्यान रखा जाता था। यह आज के समय में और भी महत्वपूर्ण है जब हम जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय चुनौतियों का सामना कर रहे हैं।

शिक्षा और संस्कृति का महत्व:

शिवाजी महाराज ने शिक्षा और संस्कृति को बढ़ावा दिया। उन्होंने यह समझा कि एक प्रगतिशील समाज के लिए ज्ञान और अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ा रहना आवश्यक है।

आत्मनिर्भरता और कौशल विकास:
उन्होंने स्थानीय उद्योगों और कौशल विकास को प्रोत्साहित किया, जिससे लोग आत्मनिर्भर बन सकें। यह आज के युवाओं के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश है कि वे अपने कौशल को विकसित करें और राष्ट्र निर्माण में योगदान दें।

शिवाजी महाराज का जीवन हमें सिखाता है कि एक सच्चा नेता वह होता है जो अपने लोगों की भलाई के लिए जीता है, जो न्याय और धर्म के मार्ग पर चलता है, और जो आने वाली पीढ़ियों के लिए एक बेहतर भविष्य छोड़कर जाता है। उनकी पुण्यतिथि पर, आइए हम सब मिलकर यह संकल्प लें कि हम उनके आदर्शों को अपने जीवन में अपनाएंगे और एक ऐसे समाज का निर्माण करेंगे जो ‘सर्व जन हिताय, सर्व जन सुखाय’ के सिद्धांत पर आधारित हो। यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी उस महान योद्धा और शासक के प्रति।

शिवाजी के व्यक्तित्व को समझने के लिए महत्वपूर्ण सूत्र प्रस्तुत हैं:

स्वराज का सिंहनाद: शिवाजी और स्वतंत्रता की ज्वाला है।

अदम्य साहस की गाथा: छत्रपति शिवाजी – प्रेरणा युगों युगों तक

हर हृदय में स्वराज: शिवाजी महाराज का अमर संदेश है।

रणभूमि और नीति के धनी: शिवाजी – युवाओं के लिए एक आदर्श प्रेरणा हैं।

स्त्री शक्ति का सम्मान, राष्ट्र का अभिमान: शिवाजी की जीवन यात्रा का अनुकरणीय पाठ है।

अखंड भारत का स्वप्न: शिवाजी और एकता का मंत्र भारत को अक्षुण्ण भारत को सदैव संरक्षित रहेगा।

पराक्रम और प्रगति के प्रतीक: छत्रपति शिवाजी महाराज हैं।

जब एक चिंगारी ने जगाया स्वराज: शिवाजी की प्रेरणादायक कहानी है।

न्याय, नीति और निर्भीकता: शिवाजी के स्वर्णिम सिद्धांत हैं।

युगों के नायक: छत्रपति शिवाजी – प्रेरणा का अनंत स्रोत है।

WhatsApp Image 2025 03 24 at 06.23.28 1

लेखक : भारतीय संस्कृत, संस्कृति, संस्कार, देव नागरी हिन्दी भाषा, और सनातन धर्म के प्रखर प्रवर्तक, वक्ता एवं लेखक
से नि प्राचार्य, शासकीय राजा भोज स्नातकोत्तर महाविद्यालय, धार, मध्य प्रदेश .
बी 12, विस्तारा टाउनशिप, ईवा वर्ल्ड स्कूल के पास, ए बी बायपास, इन्दौर
452010
proftpv49@gmail.com
7987713115

Travel memoirs: सोनागिर जहाँ साढ़े 5 करोड़ मुनियों ने मोक्ष प्राप्त किया!