Rape Murder Case : बच्ची से दुष्कर्म और हत्या के आरोपी को मृत्युदंड, जज ने फैसले में कविता लिखी!

विशेष लोक अभियोजक ने भी अदालत में बच्ची का दर्द बताते हुए कविता सुनाई!

446

Rape Murder Case : बच्ची से दुष्कर्म और हत्या के आरोपी को मृत्युदंड, जज ने फैसले में कविता लिखी!

 

Seoni Malwa : 6 साल की बच्ची से बलात्कार एवं हत्या के दोषी को मृत्युदंड की सजा सुनाई गई। फैसला सुनाने के दौरान प्रथम सिवनी मालवा की जिला एवं अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश तबस्सुम खान ने मार्मिक कविता पढ़ते हुए कहा ‘पता नहीं था नींद में मुझे ले जाएगा वो मौत का साया बनकर।’ कोर्ट ने पीड़िता के माता-पिता को 4 लाख रुपए प्रतिकर स्वरूप देने के भी आदेश दिए। पुलिस ने 10 दिन में मामले का चालान पेश किया और 2 माह 28 दिन में कोर्ट का फैसला आ गया। सुनवाई के दौरान 41 गवाह पेश किए गए।
अंतिम बहस के दौरान पीड़िता की ओर से अभियोजन पक्ष ने मार्मिक कविता पेश की। इसके बाद जज ने भी फैसले में एक कविता लिखी। गौरतलब है कि 2 जनवरी को घर में सो रही 6 साल की बच्ची का अजय वाडिवा ने अपहरण कर दुष्कर्म किया। इसके बाद मुंह दबाकर हत्या कर दी। आरोपी ने रात को नशे में बालिका के घर जाकर मां से बच्ची को मांगा था।

विशेष लोक अभियोजक की कविता
अंतिम बहस के दौरान विशेष लोक अभियोजक मनोज जाट ने जो कविता सुनाई वो थी :
वो छोटी सी बच्ची थी, ढंग से बोल ना पाती थी।
देख के जिसकी मासूमियत, उदासी मुस्कान बन जाती थी।
छह साल की बच्ची पे, ये कैसा अत्याचार हुआ।
एक बच्ची को बचा सके ना, कैसा मुल्क लाचार हुआ।
गर अब भी हम ना सुधरे तो, एक दिन ऐसा आएगा।
इस देश को बेटी देने में, भगवान भी जब घबराएगा।

न्यायाधीश ने फैसले में कविता लिखी
फैसले में न्यायाधीश तबस्सुम खान ने यह कविता लिखी :
इठलाती, नाचती छ: साल की परी थी, मैं अपने मम्मी-पापा की लाडली थी!
2 से 3 जनवरी 2025 की थी, वो दरमियानी रात, जब कोई नहीं था मेरे साथ।
इठलाती, नाचती छ: साल की परी थी, मैं अपने मम्मी-पापा की लाडली थी।
सुला दिया था उस रात बड़े प्यार से मां ने मुझे घर पर।
पता नहीं था नींद में मुझे ले जाएगा। ‘वो’ मौत का साया बनकर।
जब नींद से जागी, तो बहुत अकेली और डरी थी मैं।
सिसकियां को लेकर मम्मी-पापा को याद बहुत करी थी मैं।
न जाने क्या-क्या किया मेरे साथ।
मैं चीखती थी, चिल्लाती थी, लेकिन किसी ने न सुनी मेरी आवाज।
थी गुड़ियों से खेलने की उम्र मेरी, पर उसने मुझे खिलौना बना दिया।
‘वो’ भी तो था तीन बच्चों का पिता, फिर मुझे क्यों किया अपनों से जुदा।
खेल खेलकर मुझे तोड़ा, फिर मेरा मुंह दबाकर, मरता हुआ झाड़ियों में छोड़ दिया।
हां मैं हूं निर्भया, हां फिर एक निर्भया, एक छोटा सा प्रश्न उठा रही हूं।
जो नारी का अपमान करे, क्या वो मर्द हो सकता है।
क्या जो इंसाफ निर्भया को मिला, वह मुझे मिल सकता है।