‘आ बैल मुझे मार’ की तर्ज पर मोल ली आफत….

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भाजपा सरकार के उच्च शिक्षा मंत्री मोहन यादव का नाता लगातार विवादों से जुड़ता जा रहा है। ताजा विवाद उनकी एक पोस्ट को लेकर पैदा हुआ। उन्होंने गणतंत्र दिवस की परेड के जरिए नाम लिए बिना पिता, चाचा, लौह महिला और कम्प्यूटर जैसे शब्दों का प्रयोग कर महात्मा गांधी, पंडित जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी पर निशाना साध दिया। वे महात्मा गांधी को छोड़ देते तो भी चल जाता लेकिन उन्हें भी लपेटे मे ले लिया। पोस्ट पर मोहन के खिलाफ कमेंट्स की झड़ी लग गई।

कांगे्रस ने भी उन पर हमला बोल दिया। खास बात यह है कि भाजपा का कोई नेता बचाव में सामने नहीं आया, उलटे पोस्ट का विरोध ही किया। अंतत: उन्हें अपनी पोस्ट हटाना पड़ी। साफ है, ‘आ बैल मुझे मार’ की तर्ज पर मोहन ने खुद आफत मोल ली। डा बीआर अंबेडकर विश्वविद्यालय महू के कुलपति को हटाने और नियुक्ति को लेकर भी वे आलोचना के केंद्र में हैं। इससे पहले छात्रों का एक प्रतिनिधि मंडल उनसे मिलने बंगले पहुंचा था तो उनके ओएसडी ने थप्पड़ जड़ने की धमकी दे डाली थी। यह वीडियो सोशल मीडिया में जमकर वायरल हुआ था। इसीलिए कहा जा रहा है कि मोहन और विवादों का साथ ‘चोली-दामन’ जैसा होता जा रहा है।

उमा की तारीफ संजीवनी या रणनीति का हिस्सा….
– इंदौर की प्रतिभाओं से बात करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा भाजपा नेत्री साध्वी उमा भारती का जिक्र उनके लिए संजीवनी है या उप्र विधानसभा के चुनाव में लोधी मतदाताओं को साधने की रणनीति का हिस्सा, इसे लेकर बहस जारी है। संजीवनी इसलिए क्योंकि उमा राजनीतिक तौर पर लूपलाइन में हैं। उन्होंने अगला चुनाव लड़ने की घोषणा कर रखी है लेकिन इस मसले पर भाजपा नेतृत्व का रुख साफ नहीं है।

चर्चा यह भी है कि उमा को किसी प्रदेश का राज्यपाल बनाया जा सकता है। उमा अपनी इच्छा सार्वजनिक कर चुकी हैं, इसीलिए उन्होंने बयान पर तत्काल प्रतिक्रिया दी और मोदी की जमकर तारीफ कर डाली। दूसरा, उप्र में विधानसभा के चुनाव चल रहे हैं। यह प्रदेश उमा का कार्यस्थली रहा है। 2012 का विधानसभा चुनाव उमा के नेतृत्व में लड़ा गया था। 2017 के चुनाव में भी कई पोस्टरों, बैनरों में उमा की फोटो थे, लेकिन इस बार वे प्रचार अभियान से दूर हैं। उन्हें स्टार प्रचारकों की सूची में भी स्थान नहीं मिला। इस कारण लोधी और पिछड़े वर्गों में नाराजगी हो सकती है। इसलिए प्रधानमंत्री मोदी के बयान को लोधी समाज के वोटरों को साधने की रणनीति के तौर पर भी देखा जा रहा है। सभी जानते हैं कि मोदी बिना सोचे-समझे कुछ नहीं बोलते।

बगावत के मूड में तो नहीं भाजपा के ये सांसद….
– केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थकों के भाजपा में बढ़ते रुतबे और अपनी उपेक्षा से आहत भाजपा सांसद केपी यादव पार्टी से बगावत कर सकते हैं। यह चर्चा आम हो चली है। एक समय सिंधिया और यादव दोनों कांग्रेस में थे और साथ भी। दोनों में दूरी ऐसी बढ़ी कि केपी ने कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थामा और सिंधिया को उनकी परंपरागत लोकसभा सीट गुना-शिवपुरी में पराजित भी कर दिया।

इसके बाद सिंधिया भी भाजपा में आ गए। कांग्रेस की सरकार गिरी और वे खुद केंद्रीय मंत्री बन गए। अब भाजपा में सिंधिया का रुतबा लगातार बढ़ रहा है। ऐसे में सांसद यादव खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। यह दर्द उन्होंने भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा को लिखी चिट्ठी में बया किया। चिट्ठी के मजमून से साफ है कि उनके अंदर असंतोष की आग धधक रही है। सिंधिया ने यह कह कर आग को ठंडा करने की कोशिश की है कि केपी भी हमारे परिवार के सदस्य हैं। बावजूद इसके राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि भाजपा सांसद कांग्रेस में फिर नया ठिकाना तलाश रहे हैं। इस बीच सिंधिया समर्थकों ने पार्टी नेतृत्व से केपी यादव की शिकायत कर दी है। साफ है मामला शांत नहीं हुआ, अभी और तूल पकड़ेगा।

 

 दिग्विजय के बाद शिव-नाथ आमने-सामने….
– पहले टेम और पार्वती नदियों पर बनने वाले बांधों की डूब में आने वाले किसानों के मसले पर पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह एवं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान आमने-सामने थे। इसे लेकर दिग्विजय और कमलनाथ के बीच खटास की खबरें सार्वजनिक हुर्इं। एक वायरल वीडियो के जरिए दोनों के मतभेद उजागर हुए। अचानक पांसा पलट गया। अब सागर जिले के खुरई में हुए विवाद को लेकर कमलनाथ और शिवराज सिंह आमने-सामने हैं। इसकी वजह हैं प्रदेश के नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेंद्र सिंह एवं कांग्रेस के पूर्व विधायक अरुणोदय चौबे।

भूपेंद्र को मुख्यमंत्री चौहान का सबसे खास माना जाता है जबकि कांग्रेस में अरुणोदय के माई-बाप कमलनाथ हैं। खुरई में विवाद इस कदर बढ़ा कि कांग्रेस आरोप लगा रही है कि जब वे एसडीएम को ज्ञापन देने गए तो भाजपाईयों और पुलिस ने मिलकर उन पर हमला किया। कई कार्यकर्ता घायल हो गए। दूसरी तरफ भूपेंद्र समर्थक भाजपाईयों का कहना है कि कांग्रेसियों ने उनके साथ मारपीट की। भूपेंद्र को मौके पर पहुंच कर भाजपाईयों के साथ धरने तक में बैठना पड़ गया। ऐसी भिड़ंत में स्वाभाविक तौर पर पलड़ा सत्तापक्ष का भारी रहना था, ऐसा ही हुआ। इसे लेकर कमलनाथ एवं शिवराज आमने-सामने हैं।