
Species Extinction: 2050 तक संभावित प्रजाति लुप्तता: एक विस्तृत पर्यावरणीय वन्य जीव विश्लेषण
डॉ तेज प्रकाश पूर्णानन्द व्यास की विशेष रिपोर्ट
हमारी पृथ्वी, जीवन की एक अद्भुत विविधता का घर है, जिसमें अनुमानित 80 लाख से अधिक प्रजातियाँ शामिल हैं। यह जटिल जाल लाखों वर्षों के विकास का परिणाम है, जहाँ प्रत्येक जीव एक विशिष्ट भूमिका निभाता है और पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन में योगदान देता है। हालाँकि, मानव गतिविधियों के बढ़ते प्रभाव के कारण, यह नाजुक संतुलन गंभीर खतरे में है। वैज्ञानिक अध्ययनों और संरक्षण संगठनों के विश्लेषणों से यह स्पष्ट होता जा रहा है कि यदि वर्तमान रुझान जारी रहे, तो हम 2050 तक अभूतपूर्व प्रजाति विलुप्ति का सामना कर सकते हैं, जिसमें पृथ्वी की लगभग 50% प्रजातियाँ, यानी 110 करोड़ से अधिक जीव-जंतु और पौधे, हमेशा के लिए खो सकते हैं।
यह लेख, IUCN रेड लिस्ट, वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (WII) देहरादून, SSC स्पीशीज सर्वाइवल कमीशन, ज़ू आउटरीच ऑर्गनाइजेशन, कोयंबतूर ,सेंचुरी मैगज़ीन और विभिन्न वन्यजीव विशेषज्ञों के निष्कर्षों के आधार पर विश्लेषित है। इस आसन्न संकट का बिंदुवार विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत करता है।
1. वैश्विक संकट का अवलोकन
* विनाशकारी अनुमान: वैज्ञानिक मॉडलों और वर्तमान विलुप्ति दरों के विश्लेषण से पता चलता है कि 2050 तक पृथ्वी की आधी से अधिक प्रजातियाँ विलुप्त होने के कगार पर हैं या पहले ही विलुप्त हो चुकी होंगी। यह जैव विविधता के लिए एक भयावह परिदृश्य है, जिसके दूरगामी और अपरिवर्तनीय परिणाम होंगे।
* मानवजनित कारण: इस संकट के मूल में मानव गतिविधियाँ हैं। पर्यावास का विनाश, जिसमें वनों की कटाई, कृषि के लिए भूमि का रूपांतरण और शहरी विकास शामिल हैं, प्रजातियों के रहने के स्थानों को नष्ट कर रहा है। जलवायु परिवर्तन, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के कारण तापमान में वृद्धि और मौसम के पैटर्न में बदलाव, प्रजातियों के वितरण और अस्तित्व को बाधित कर रहा है। प्लास्टिक प्रदूषण, विशेष रूप से समुद्री और स्थलीय पारिस्थितिक तंत्र में, जीवों के लिए एक घातक खतरा बन गया है। अंधाधुंध वनों की कटाई न केवल आवासों को नष्ट करती है बल्कि कार्बन सिंक को भी कम करती है। वायु और जल प्रदूषण, औद्योगिक और कृषि अपशिष्टों के कारण, पारिस्थितिक तंत्र को जहरीला बना रहे हैं। अंत में, अवैध वन्यजीव व्यापार कई संकटग्रस्त प्रजातियों को विलुप्त होने के कगार पर धकेल रहा है।
2. प्रमुख जैववर्गों पर संकट
(i) मछलियाँ (Fishes)
* उच्च संकट दर: 2024 के IUCN डेटा के अनुसार, दुनिया भर में 20% से अधिक मछली प्रजातियाँ संकटग्रस्त हैं। यह आंकड़ा जलीय जैव विविधता के लिए एक गंभीर चिंता का विषय है।
* मीठे पानी की मछलियों पर सर्वाधिक खतरा: मीठे पानी के पारिस्थितिक तंत्र, जैसे नदियाँ और झीलें, विशेष रूप से खतरे में हैं। इन आवासों पर बांधों का निर्माण, प्रदूषण (औद्योगिक, कृषि और घरेलू), और प्लास्टिक कचरे का जमाव मछलियों की आबादी को बुरी तरह प्रभावित कर रहा है।
* विशेष संकटग्रस्त उदाहरण: भारत में महाशीर जैसी महत्वपूर्ण मछली प्रजातियाँ, जो कई जलीय खाद्य जालों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, गंभीर खतरे का सामना कर रही हैं।
गंगा की डॉल्फिन, एक शीर्ष शिकारी और स्वस्थ नदी पारिस्थितिकी तंत्र का संकेतक, भी अपनी भोजन आपूर्ति में कमी के कारण संकटग्रस्त है।

(ii) उभयचर (Amphibians)
* अत्यधिक भेद्यता: AmphibiaWeb और SSC स्पीशीज सर्वाइवल कमीशन की रिपोर्टें दर्शाती हैं कि 40% से अधिक उभयचर प्रजातियाँ संकटग्रस्त हैं, और इनमें से कई पहले ही विलुप्त हो चुकी हैं। उभयचर अपनी अर्ध-जलीय और अर्ध-स्थलीय जीवन शैली के कारण पर्यावरणीय परिवर्तनों के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील होते हैं।
* प्रमुख कारण: जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान और वर्षा के पैटर्न में बदलाव, फंगल संक्रमण, जो कई प्रजातियों के लिए घातक है, और जल स्रोतों की कमी उभयचरों के लिए मुख्य खतरे हैं।
* भारत में संकट: साइलेंट वैली का इंडियन पर्पल फ्रॉग (बैत्राचस सह्याद्रेंसिस) भारत में संकटग्रस्त उभयचरों का एक विशिष्ट उदाहरण है, जो अपने सीमित भौगोलिक वितरण और विशिष्ट आवास आवश्यकताओं के कारण खतरे में है।
(iii) सरीसृप (Reptiles – Snakes, Lizards, Turtles)
* बढ़ता संकट: ज़ू आउटरीच ऑर्गनाइजेशन , कोयंबतूर के अनुसार, सर्पों की 20% से अधिक प्रजातियाँ संकट में हैं। यह आंकड़ा सरीसृपों के बीच व्याप्त खतरे को उजागर करता है।
* स्थानीय खतरे: भारत में रसेल वाइपर और कोबरा जैसे विषैले सर्पों की आबादी में गिरावट देखी जा रही है, जिसके मुख्य कारण अंधविश्वास और कृषि क्षेत्रों में उन्हें मारना है।
* कछुओं की गंभीर स्थिति: कछुओं की अनेक प्रजातियाँ, जैसे कि रेड क्राउन रूफ टर्टल (बतागुर कचुगा), अत्यधिक संकटग्रस्त हैं। इनके आवास का विनाश और अवैध शिकार इनके अस्तित्व के लिए बड़ा खतरा है।

(iv) पक्षी (Birds)
* महत्वपूर्ण संख्या में संकटग्रस्त: BirdLife International के आंकड़ों के अनुसार, ज्ञात 10,000 से अधिक पक्षी प्रजातियों में से लगभग 1,400 संकटग्रस्त हैं। पक्षी पारिस्थितिक तंत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जैसे परागण और बीज का फैलाव, और उनकी हानि पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित कर सकती है।
* भारत में संकटग्रस्त प्रजातियाँ: भारत में गिद्धों की आबादी में भारी गिरावट आई है, जिसका मुख्य कारण पशुधन के इलाज में इस्तेमाल होने वाली डाइक्लोफेनाक जैसी दवाएं हैं। ग्रेट इंडियन बस्टर्ड, एक प्रतिष्ठित घास के मैदान का पक्षी, अपने आवास के नुकसान और शिकार के कारण खतरे में है। हूलॉक गिबन, भारत का एकमात्र एप, भी वनों की कटाई और शिकार के कारण संकट का सामना कर रहा है।
* व्यापक खतरे: कीटनाशकों का कृषि में अंधाधुंध उपयोग पक्षी आबादी को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर रहा है। विद्युत लाइनों से टकराव और शिकार भी कई पक्षी प्रजातियों के लिए महत्वपूर्ण खतरे हैं।
(v) स्तनधारी (Mammals)
* चौंकाने वाली दर: WWF और IUCN के अनुसार, दुनिया भर में प्रत्येक चार में से एक स्तनधारी प्रजाति संकटग्रस्त है। स्तनधारी विभिन्न पारिस्थितिक तंत्रों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, और उनकी हानि पारिस्थितिकी तंत्र के कार्यों को बाधित कर सकती है।
* भारत में प्रतिष्ठित संकट: बंगाल टाइगर, भारत का राष्ट्रीय पशु, अवैध शिकार और आवास के नुकसान के कारण खतरे में है। एशियाटिक लायन, जो अब केवल गुजरात के गिर वन में पाया जाता है, अपने सीमित वितरण के कारण कमजोर है। हिमालयन ब्राउन बीयर और स्नो लेपर्ड, उच्च ऊंचाई वाले पारिस्थितिक तंत्र के महत्वपूर्ण शिकारी, जलवायु परिवर्तन और मानव हस्तक्षेप के कारण खतरे का सामना कर रहे हैं।
* मुख्य खतरा: वनों की कटाई स्तनधारियों के आवास को नष्ट कर रही है, जबकि मानव-वन्यजीव संघर्ष, अक्सर आवास के नुकसान के कारण होता है, कई प्रजातियों के लिए एक महत्वपूर्ण खतरा है।
3. भौगोलिक/पारिस्थितिक क्षेत्रों की विशेष चिंता
(i) मीठे पानी के जीव (Freshwater species)
* सर्वाधिक तीव्र गति से लुप्त होती प्रजातियाँ: नदियों, झीलों और दलदलों में रहने वाली प्रजातियाँ पृथ्वी पर सबसे तेजी से लुप्त हो रही हैं। मीठे पानी के पारिस्थितिक तंत्र अत्यधिक दबाव में हैं।
* प्रमुख कारण: जल प्रदूषण, जिसमें औद्योगिक कचरा और कृषि अपवाह शामिल हैं, इन नाजुक आवासों को जहरीला बना रहा है। अतिक्रमण, जैसे कि आर्द्रभूमि का विकास के लिए रूपांतरण, भी प्रजातियों के आवास को नष्ट कर रहा है।
* उदाहरण: गंगा की डॉल्फिन, जो एक स्वस्थ मीठे पानी के पारिस्थितिकी तंत्र का प्रतीक है, प्रदूषण और निवास स्थान के नुकसान के कारण गंभीर खतरे का सामना कर रही है। लोटिक (बहते पानी) में रहने वाली मछलियाँ, जो विशिष्ट पर्यावरणीय परिस्थितियों के अनुकूल होती हैं, भी बांधों और जल निकासी परियोजनाओं से खतरे में हैं।
(ii) समुद्री जीव (Marine animals)
* प्लास्टिक का कहर: प्लास्टिक कचरा समुद्री जीवन के लिए सबसे बड़ा खतरा बन गया है, जिससे 400 से अधिक समुद्री प्रजातियाँ प्रभावित हुई हैं। प्लास्टिक का अंतर्ग्रहण, उलझना और सूक्ष्मप्लास्टिक का प्रदूषण समुद्री खाद्य जाल को बाधित कर रहा है।
* प्रभावित प्रजातियाँ: समुद्री कछुए प्लास्टिक खाने के कारण दम घुटने या भुखमरी से मर रहे हैं। व्हेल और डॉल्फिन प्लास्टिक के मलबे में उलझ जाती हैं। कोरल रीफ्स, जो समुद्री जैव विविधता के हॉटस्पॉट हैं, प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन के कारण खतरे में हैं।
* अन्य खतरे: कोरल ब्लीचिंग, जो समुद्र के बढ़ते तापमान के कारण होती है, प्रवाल भित्तियों को नष्ट कर रही है। ओवरफिशिंग, अत्यधिक मछली पकड़ना, समुद्री खाद्य श्रृंखला को असंतुलित कर रहा है और कई मछली प्रजातियों को खतरे में डाल रहा है।
(iii) आर्कटिक और ध्रुवीय जीव (Arctic and Polar species)
* बर्फ का पिघलना: जलवायु परिवर्तन के कारण आर्कटिक और अंटार्कटिक क्षेत्रों में बर्फ का तेजी से पिघलना ध्रुवीय भालू, वॉलरस और सील्स जैसी प्रतिष्ठित प्रजातियों के अस्तित्व के लिए खतरा बन गया है, जो शिकार और प्रजनन के लिए बर्फ पर निर्भर हैं।
* पारिस्थितिक असंतुलन: आर्कटिक महासागर के तापमान में वृद्धि पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को असंतुलित कर रही है, जिससे खाद्य जाल प्रभावित हो रहे हैं और देशी प्रजातियों के लिए नए खतरे पैदा हो रहे हैं।
(iv) हिमालयी क्षेत्र के जीव (Himalayan species)
* अद्वितीय जैव विविधता खतरे में: हिमालयी क्षेत्र, अपनी अनूठी स्थलाकृति और जलवायु के साथ, कई स्थानिक प्रजातियों का घर है जो अब खतरे का सामना कर रही हैं, जिनमें हिम तेंदुआ, लाल पांडा, मस्क डियर और हिमालयी मोनाल शामिल हैं।
* मानवजनित दबाव: ग्लेशियरों का पिघलना, जो जलवायु परिवर्तन के कारण हो रहा है, इन प्रजातियों के आवास और जल स्रोतों को प्रभावित कर रहा है। पर्यटन की बढ़ती गतिविधियाँ और खनन परियोजनाएँ भी हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र पर दबाव डाल रही हैं।
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4. रेड डाटा बुक व संरक्षण प्राधिकरण
* IUCN रेड लिस्ट: इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (IUCN) की रेड लिस्ट प्रजातियों की संरक्षण स्थिति का एक व्यापक वैश्विक डेटाबेस है। यह प्रजातियों को उनकी विलुप्ति के जोखिम के आधार पर लुप्तप्राय, संकटग्रस्त और अति-संकटग्रस्त जैसी विभिन्न श्रेणियों में वर्गीकृत करता है, जो संरक्षण प्रयासों को लक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
* WII (Wildlife Institute of India): भारतीय वन्यजीव संस्थान भारत के वन्यजीवों पर निगरानी और अनुसंधान करने वाला एक प्रमुख संस्थान है। यह संरक्षण रणनीतियों को विकसित करने और लागू करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
* SSC (Species Survival Commission): स्पीशीज सर्वाइवल कमीशन IUCN के भीतर एक नेटवर्क है जो प्रजातियों के संरक्षण के लिए वैज्ञानिक विश्लेषण और संरक्षण योजनाएँ बनाता है। यह विभिन्न प्रजाति समूहों पर विशेषज्ञता प्रदान करता है।
* Zoo Outreach Organisation: यह संगठन विशेष रूप से सरीसृपों और उभयचरों के संरक्षण पर केंद्रित है, जागरूकता बढ़ाने और जमीनी स्तर पर संरक्षण प्रयासों को बढ़ावा देने के लिए काम कर रहा है।
5. संरक्षण की चुनौतियाँ व समाधान
प्रमुख चुनौतियाँ:
* अवैध वन्यजीव व्यापार: यह एक बहु-अरब डॉलर का उद्योग है जो कई संकटग्रस्त प्रजातियों को विलुप्त होने के कगार पर धकेल रहा है।
* शहरीकरण: शहरों का विस्तार और बुनियादी ढांचे का विकास प्राकृतिक आवासों को नष्ट कर रहा है और वन्यजीवों के लिए बाधाएं पैदा कर रहा है।
* एकल फसल कृषि प्रणाली: जैव विविधता को कम करती है और कीटनाशकों के उपयोग से वन्यजीवों पर नकारात्मक प्रभाव डालती है।
* प्लास्टिक प्रदूषण: स्थलीय और जलीय पारिस्थितिक तंत्र के लिए एक सर्वव्यापी और लगातार बढ़ता खतरा है।
संभावित समाधान:
* स्थानीय सहभागिता आधारित संरक्षण: संरक्षण प्रयासों में स्थानीय समुदायों को शामिल करना महत्वपूर्ण है, क्योंकि वे अक्सर जैव विविधता के संरक्षक के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
* प्लास्टिक व CO₂ उत्सर्जन में कटौती: प्लास्टिक के उत्पादन और उपयोग को कम करना और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिए तत्काल कार्रवाई करना आवश्यक है।
* राष्ट्रीय पार्कों और जैवविविधता हॉटस्पॉट का विस्तार: संरक्षित क्षेत्रों के नेटवर्क को मजबूत करना और जैव विविधता हॉटस्पॉट का प्रभावी ढंग से प्रबंधन करना प्रजातियों को विलुप्त होने से बचाने में मदद कर सकता है।
* स्कूलों व कॉलेजों में ‘बायोडायवर्सिटी साक्षरता’ अभियान: युवा पीढ़ी को जैव विविधता के महत्व और संरक्षण की आवश्यकता के बारे में शिक्षित करना दीर्घकालिक सफलता के लिए महत्वपूर्ण है।
निष्कर्ष
2050 तक संभावित प्रजाति लुप्तता का परिदृश्य एक गंभीर चेतावनी है। यह इंगित करता है कि मानव गतिविधियों का पृथ्वी के नाजुक पारिस्थितिक तंत्र पर गहरा प्रभाव पड़ रहा है। यदि हम तत्काल और प्रभावी कार्रवाई नहीं करते हैं, तो हम जैव विविधता के एक विनाशकारी नुकसान का सामना करेंगे, जिसके हमारे ग्रह और भावी पीढ़ियों के लिए दूरगामी परिणाम होंगे। संरक्षण प्रयासों को तेज करने, स्थायी प्रथाओं को अपनाने और वैश्विक स्तर पर सहयोग करने की तत्काल आवश्यकता है ताकि इस संकट को कम किया जा सके और पृथ्वी पर जीवन की अद्भुत विविधता को बचाया जा सके
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