Ban on Old Vehicles Postponed : पुरानी गाड़ियों पर दिल्ली में बैन की तैयारी ढीली पड़ी, फैसले पर फिलहाल रोक!  

अभी यह तय नहीं है कि 62 लाख पुरानी गाड़ियों का क्या होगा, कोई विकल्प भी सामने नहीं!

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Ban on Old Vehicles Postponed : पुरानी गाड़ियों पर दिल्ली में बैन की तैयारी ढीली पड़ी, फैसले पर फिलहाल रोक!  

 

New Delhi : पुरानी गाड़ियों पर दिल्ली में लगने वाला बैन फिलहाल टल गया। लेकिन, हवा को साफ करने के लिए पुरानी गाड़ियों को हटाने का मुद्दा अभी भी चर्चा में है। एक जुलाई 2025 से दिल्ली में 15 साल पुरानी पेट्रोल और 10 साल पुरानी डीजल गाड़ियों में फ्यूल भरवाने पर रोक लगने वाली थी। यह फैसला कमीशन फॉर एयर क्वालिटी मैनेजमेंट (सीएक्यूएम) के आदेश पर लिया गया था। हालांकि, लोगों के विरोध को देखते हुए दिल्ली सरकार ने इस फैसले पर फिलहाल रोक लगा दी।

सरकार का कहना है कि अभी इसे लागू करने में दिक्कतें हैं। अभी यह तय नहीं है कि 62 लाख पुरानी गाड़ियों का क्या होगा। लेकिन, इस बात पर सवाल उठ रहे हैं कि क्या पुरानी गाड़ियों को हटाने का यह तरीका सही है? क्या सिर्फ गाड़ियों की उम्र देखकर उन्हें बैन कर देना ही सही है? क्या सिर्फ पुरानी गाड़ियों को हटाने से ही हवा साफ हो जाएगी?

पुरानी गाड़ियां चिंता का विषय
पुरानी गाड़ियों को हटाने और उनकी जगह नई गाड़ियां लाने की बात इसलिए हो रही है क्योंकि पुरानी गाड़ियां ज्यादा प्रदूषण करती हैं। पुराने मॉडल की गाड़ियां जब बनी थीं, तब प्रदूषण के नियम उतने सख्त नहीं थे। ऐसे में वे आज के भारत स्टेज-5 (बीएस VI) मानकों वाली गाड़ियों से ज्यादा धुआं छोड़ती हैं। उदाहरण के लिए, एक बीएस III डीजल कार (जो दिल्ली में 10 साल से ज्यादा पुरानी है) बीएस-5 गाड़ी के मुकाबले 11 गुना ज्यादा पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) छोड़ती है। पीएम हवा में मौजूद छोटे-छोटे कण होते हैं जो सांस लेने में दिक्कत करते हैं। इसी तरह एक बहुत पुराना डीजल ट्रक बीएस-I मानकों का है, वह बीएस-5 ट्रक के मुकाबले 36 गुना ज्यादा पीएम छोड़ सकता है। पुरानी गाड़ियों के इंजन कमजोर हो जाते हैं, जिससे वे और भी ज्यादा प्रदूषण करने लगते हैं।

आबादी पर गाड़ियों से कितना असर
अभी जो पॉल्यूशन अंडर कंट्रोल (पीयूसी) सर्टिफिकेट मिलता है, उससे यह सही पता नहीं चल पाता कि गाड़ी कितना प्रदूषण कर रही है। पीयूसी टेस्ट में सिर्फ यह देखा जाता है कि गाड़ी का इंजन धीरे-धीरे चलने पर कितना धुआं छोड़ रहा है। इससे यह पता नहीं चलता कि गाड़ी चलाते समय, जैसे कि तेज रफ्तार में या अलग-अलग स्पीड पर, वह कितना प्रदूषण करती है।

कौनसी गाड़ियों पर एक्शन होगा 
इंटरनेशनल काउंसिल ऑन क्लीन ट्रांसपोर्टेशन के एक अनुमान पर गौर करें तो 2003 से पहले की गाड़ियां कुल गाड़ियों का 20% से भी कम थीं। हालांकि, उनसे 2011 में लगभग आधा पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) और एक तिहाई नाइट्रोजन ऑक्साइड का उत्सर्जन होता था। इसलिए पुरानी गाड़ियां ज्यादा प्रदूषण का एक कारण बन सकती हैं। ऐसा नहीं हो इसके लिए एक अच्छा सिस्टम होना चाहिए जो ऐसी गाड़ियों को पहचान सके। यह भी सच है कि नई गाड़ियों की ठीक से मेंटेनेंस नहीं की जाए तो ये भी ज्यादा प्रदूषण कर सकती हैं। खास तौर पर उस समय जब उनकी देखभाल ठीक से न की जाए या उनमें कोई खराबी आ जाए। ऐसी गाड़ियों को भी पहचानना और ठीक करना जरूरी है।

गाड़ियों को हटाने से क्या फायदे
जो गाड़ियां बेकार हो चुकी हैं, ऐसी गाड़ियों स्क्रैप करने से कई फायदे हैं। इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी और नीति आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार, पुरानी गाड़ियों को रीसायकल करके और उनमें से जरूरी चीजें निकालकर कच्चे माल की लागत को 40% तक कम किया जा सकता है। हालांकि, भारत में अभी सिर्फ 70%-75% पुरानी गाड़ियां ही रीसायकल होती हैं, जबकि दुनिया में यह आंकड़ा 85%-95% है।

बैन लगाना सही नहीं
पुरानी गाड़ियों को बदलने से हवा साफ होती है, लेकिन सिर्फ उम्र देखकर गाड़ियों पर बैन लगाना सही नहीं है। यह एक अच्छा तरीका नहीं है। एक बेहतर तरीका यह होगा कि गाड़ी की उम्र के साथ-साथ उसकी फिटनेस, मेंटेनेंस और प्रदूषण की जांच भी की जाए। इसके साथ ही, जरूरत पड़ने पर कुछ खास गाड़ियों पर उम्र के आधार पर बैन लगाया जा सकता है।

2021 में बनाई स्क्रैपेज पॉलिसी   
2021 में सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने एक स्क्रैपेज पॉलिसी बनाई थी। इस पॉलिसी के अनुसार, एंड टू लाइफ व्हीकल्स (ईएलवी) वे हैं जिनका रजिस्ट्रेशन नहीं है या जो ऑटोमेटेड टेस्टिंग स्टेशन (एटीएस) में अनफिट पाई जाती हैं। अभी सभी कमर्शियल गाड़ियों को एटीएस में फिटनेस टेस्ट कराना जरूरी है, लेकिन इसकी आखिरी तारीख आगे बढ़ा दी गई है। दिल्ली सरकार कमर्शियल गाड़ियों के लिए एटीएस टेस्टिंग को लागू करके इसकी शुरुआत कर सकती है। प्राइवेट गाड़ियों के लिए भी ईएलवी के नियम सख्त होने चाहिए और प्रदूषण की निगरानी बेहतर होनी चाहिए।

कुछ सख्त कदम उठाना जरूरी
पीयूसी प्रोग्राम के अलावा, सड़कों पर चलने वाली गाड़ियों की निगरानी के लिए और भी बेहतर तरीके होने चाहिए। इसके लिए रिमोट सेंसिंग जैसी तकनीक का इस्तेमाल किया जा सकता है। सड़क के किनारे प्रदूषण की जांच वाली मशीन लगाकर भी ज्यादा पॉल्यूशन करने वाली गाड़ियों को आसानी से पकड़ा जा सकता है। सरकार को इसके लिए जल्द ही नियम बनाने चाहिए।

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शुरू हो गाड़ियों पर बैन कार्रवाई
स्क्रैपेज पॉलिसी की शुरुआत सबसे ज्यादा प्रदूषण करने वाली गाड़ियों से की जा सकती है, जैसे कि पुराने डीजल ट्रक और कमर्शियल गाड़ियां। धीरे-धीरे इसमें दूसरी ‘एंड-ऑफ लाइफ’ व्हीकल्स को भी शामिल किया जा सकता है। इसे सफल बनाने के लिए लोगों को पैसे देने होंगे। मंत्रालय की पॉलिसी में टैक्स छूट देने की बात कही गई है, जिसका इस्तेमाल दिल्ली जैसे राज्य कर रहे हैं। इसके साथ ही, गाड़ी बनाने वाली कंपनियां भी पुरानी गाड़ियों को वापस खरीद सकती हैं और नई गाड़ियां खरीदने पर छूट दे सकती हैं। इससे प्रदूषण को कम करने में मदद मिलेगी।

व्हीकल्स की निगरानी जरूरी
अगर फिटनेस टेस्टिंग, प्रदूषण की जांच और कुछ खास गाड़ियों पर बैन लगाने जैसे तरीकों को अपनाना है, तो प्रदूषण की निगरानी को बेहतर और सख्त करना होगा। ईएलवी को पहचानने के लिए सड़कों पर चलने वाली गाड़ियों की स्मार्ट तरीके से निगरानी करनी होगी और इसकी जानकारी लोगों को देनी होगी। मंत्रालय के वाहन डेटाबेस के अनुसार, जुलाई 2025 तक एटीएस में 8.7 लाख गाड़ियों का टेस्ट हुआ, जिनमें से सिर्फ 304 गाड़ियों को ही ईएलवी घोषित किया गया।

गाड़ी बैन पर लोगों का विरोध क्यों?
उम्र के आधार पर गाड़ियों पर बैन लगाने का लोग विरोध कर रहे हैं, क्योंकि उनके पास पब्लिक ट्रांसपोर्ट के अच्छे विकल्प नहीं हैं। दिल्ली में पब्लिक ट्रांसपोर्ट को बेहतर बनाना होगा। इसके लिए ज्यादा गाड़ियां चलाने की जरूरत है। इसके साथ ही, पार्किंग की व्यवस्था को भी ठीक करना होगा और पार्किंग की फीस बढ़ानी होगी, ताकि लोग अपनी गाड़ियों का इस्तेमाल कम करें।