मैथिल समाज की नवविवाहिताओं ने मनाया मधुश्रावणी लोक पर्व

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मैथिल समाज की नवविवाहिताओं ने मनाया मधुश्रावणी लोक पर्व

इंदौर: मिथिला की सांस्कृतिक धरोहर को संजोए हुए इंदौर में मैथिल समाज की नवविवाहिताओं ने आज मधुश्रावणी लोक पर्व को पूर्ण पारंपरिक उत्साह तथा मिथिलांचल की परंपराओं के अनुरूप विधि-विधान से मनाया, जिसमें विषहरा मैथिली लोकगीतों की मधुर स्वरलहरियों ने माहौल को भक्तिमय बना दिया।

पर्व के दौरान सभी नवविवाहिताओं ने नव वस्त्र पहनकर एवं सोलह श्रृंगार कर फूल, बेलपत्र, करोटन के पत्तों एवं बासी फूल से बिषहरा एवं शिव-पार्वती की पूजा की।

विजय नगर, तुलसी नगर, सुखलिया, स्कीम नंबर 54, 78 सहित शहर के विभिन्न क्षेत्रों में निवास कर रहे मैथिल परिवारों के घरों और सामुदायिक स्थलों पर पूजा-अर्चना का आयोजन हुआ। नवविवाहिताएं पारंपरिक मैथिली परिधानों में सजकर सुबह ब्रह्म मुहूर्त में स्नान-ध्यान के बाद पूजा में शामिल हुईं। मिट्टी से बनी गौरी-शंकर और विषहरा की प्रतिमाओं की पूजा के साथ-साथ मैथिली भक्ति गीतों और लोक नृत्यों ने समारोह को और रंगीन बनाया। सावन मास के इस विशेष पर्व में नवविवाहिताएं अपने पति की दीर्घायु और वैवाहिक जीवन की सुख-समृद्धि के लिए 14 दिनों तक विशेष पूजा-अर्चना और व्रत करती हैं।

सखी बहिनपा मैथिलानी समूह की ऋतु झा, शारदा झा ने बताया, “मधुश्रावणी पर्व मिथिला की सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक है। यह पर्व प्राचीन काल से चला आ रहा है और नवविवाहिताओं के लिए उनके वैवाहिक जीवन की शुरुआत में पति की लंबी आयु और परिवार की सुख-शांति की कामना के लिए मनाया जाता है। इसकी शुरुआत माना जाता है कि मां पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए इस व्रत को किया था। यह पर्व न केवल धार्मिक है, बल्कि मिथिला की सामाजिक एकता और प्रकृति के प्रति प्रेम को भी दर्शाता है।”

मधुश्रावणी का माहात्म्य और लोक कथाएं

शहर के मैथिल समाज के वरिष्ठ के के झा ने कहा कि मधुश्रावणी का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व मिथिला में गहरा है। मान्यता है कि मां पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए इस व्रत की शुरुआत की थी। इसके अलावा, एक लोक कथा के अनुसार, कुरूप्रदेश के राजा श्रीकर की पुत्री ने अपने भाई की अल्पायु के निवारण के लिए इस व्रत को किया, जिससे उनकी दीर्घायु हुई। उन्होंने कहा कि यह व्रत नाग देवता और गौरी-शंकर की पूजा पर केंद्रित है, जिसमें नवविवाहिताएं सर्पदंश से पति की रक्षा और अखंड सौभाग्य की कामना करती हैं।