Dog controversy: बहस के बीच-2. गली गली घूमे श्वान, कैसे सफल सफाई अभियान?

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Dog controversy:

Dog controversy: बहस के बीच-2 .गली गली घूमे श्वान, कैसे सफल सफाई अभियान?

मंजुला भूतड़ा

“अरे साब…”
“सड़क क्या तेरे बाप की है?”
मॉर्निंग वॉक जाने हेतु बिल्डिंग की लिफ्ट से निकलते हुए यही कुछ यही सुनाई दिया। अहाते में पहुंची तो गार्ड चुपचाप खड़ा था, मैं ने डांटा,”क्यों देखते नहीं हो आप? गेट के बिल्कुल सामने यह गन्दगी!”
“मैडम मैंने कहा तो साहब ने मुझे ही डांट दिया।”
सामने वाली बिल्डिंग का चौकीदार भी कहने लगा,”मैडम इन कुत्ते पालने वालों से कुछ कहो तो वे हमें ही सुनाते हैं और कुछ नहीं कहें तो आप लोग।” सुबह घूमने जाओ तो लोग अपना पालतू कुत्ता भी घुमाने निकलते हैं और यहां वहां पाॅटी करवा कर हल्का महसूस करते हैं । कोई उनके पालतू कुत्ते को कुत्ता भी कह दे तो उन्हें अच्छा नहीं लगता। “भई, हम तो इन्हें अपने बच्चों की तरह रखते हैं।” यही तर्क होता है।
सोचा शायद श्वान कहना उचित लगे। इसलिए अब मैं श्वान कह देती हूं। सच, श्वान पालते-पालते न जाने क्या हो जाता है कि व्यवहारिकता ही भूल जाते हैं या श्वान पालक होने का दंभ भारी हो जाता है। स्वयं चलते हुए अपने कुत्ते को खुला छोड़ देते हैं। मानो दोनों एक दूसरे पर नजर रख रहे हों। परन्तु आम जनता को तो डर ही लगता है, इसकी परवाह नहीं करते। वे यह नहीं सोच पाते क्योंकि वह तो उनका बच्चा ही है।

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आवारा कुत्तों से तो आम नागरिक परेशान हैं ही। वे जब गन्दगी करने के लिए पोजीशन लेते हैं तो कोई भी उन्हें हड़का देता है, फिर भी…कहीं न कहीं…?ये पालतू डाॅगी…?
सुबह सुबह सफाईकर्मी पूरी लगन से सफाई में लगे होते हैं। सफाई हो जाने बाद साहब-साहिबा अपने कुत्ते को घुमाने निकलते हैं। (वैसे कई बार समझ नहीं आता कि कौन किसे घुमा रहा है। खैर…)गन्दगी कराते हैं और पूरे दिन के लिए निवृत्त हो जाते हैं।हम सब दोष देते हैं सफाई करने वालों को। पूरे दिन उस रास्ते से निकलने पर उस गंदगी से सामना करना पड़ता है।यहां शहर की स्वच्छता धरी की धरी रह जाती है। लगता है स्वच्छता को नज़र न लग जाए, शायद इसीलिए…

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सभी जानवर पालकों को विदेशों की तरह पाॅलीथिन लेकर जाना और गन्दगी उठाना चाहिए, वरना जुर्माना लगना चाहिए। हमें वहां की आधुनिकता का चोला पहनना अच्छा लगता है, डाॅगी पालना हमारी शान में शुमार है फिर वहां का यह गुण भी अंगीकार करना चाहिए कि अपने पालतू द्वारा की गई गंदगी उठाएं।
जैसे हमने गीला सूखा कचरा अलग रखना सीख लिया, अब कोई भी सड़क पर यूं ही कचरा नहीं फेंकता, न ही अब कहीं चलती कार से कभी केले का छिलका, बिस्किट,नमकीन आदि के खाली रैपर फेंके जाते। ऐसा कोई कर भी दे तो सहज कह देते हैं कि शर्म नहीं आती? कहीं भी गंदगी नहीं फैलाना, शहर को साफ स्वच्छ रखना ही तो हमारा उद्देश्य है तो फिर अपने पालतू की गंदगी क्यों? बस कुछ सवाल कभी-कभार हम स्वयं से ही कर लें।
समाचार पत्रों में नये जाॅब के अंतर्गत पढा। आजकल श्वान पालक, उनके लिए केयर टेकर भी रखते हैं। उनका वेतन हजारों में होता है। वे साहब के डाॅगी को सुबह घुमाने यानि नित्य कर्म से निवृत्त कराने ले जाते हैं। वही सवाल अभी जिन्दा है कि क्या वह कुत्ता केयर टेकर अथवा अभिभावक गन्दगी भी उठाकर ले जाते हैं? या केवल निवृत्त कराकर निवृत्त हो जाते हैं। उनकी प्रोफाइल में, उनके वेतन निर्धारण में इस बात का लिखित उल्लेख होना चाहिए। एक नियम बने कि कोई भी जानवर पालने के पूर्व रजिस्ट्रेशन अनिवार्य हो वह भी आवश्यक शर्तों के साथ, जैसे- गन्दगी न करें, जंजीर से बांधकर ले जाएं। नगर-निगम कोई कुत्ता पार्क बना दे, जहां उन्हें खुला छोड़ सकें। परन्तु, आम जनता का ख्याल अवश्य रखा जाए।

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कोई नया कुत्ता देखते ही सब कुत्ते उस पर भौंकने लगते हैं, जैसे परिचय पूछ रहे हों। पालतू को तो उनके मालिक खींचकर ले जाते हैं पर आवारा कुत्ते देर-सवेर जांच परख कर उसे अपने समूह में शामिल कर ही लेते हैं।कभी कोई आवारा कुत्ता किसी वाहन से शहीद ही हो जाए तो जल्दी से नगर-निगम को सूचना पर कहीं तो पालतू कुत्ते की अंतिम विदाई बड़े शान से की जाती है। आसपास के कुत्ता पालक शोक व्यक्त करने भी चले जाते हैं। सच कितना फर्क! बेचारे…
आवारा कुत्ते तो इतने चतुर हो गए हैं कि जब कुत्ता पकड़ने वाली गाड़ी आती है तो वे समझ जाते हैं और छुप जाते हैं। उनके लिए कोई दूसरी अनजान गाडी का प्रबन्ध होना चाहिए ताकि उन्हें पकड़ा जा सके। जैसे गायों के लिए गौशाला वैसे आवारा कुत्तों के लिए भी कुछ इन्तजाम हो जाए तो उनका और इन्सानों का भला हो जाए। सरल सहज घूमने निकले तो कुत्ते ने पीछे से झपट्टा मार दिया, दांत चुभा दिए। इंजेक्शन लगवाने पड़े। ऐसे उदाहरण रोज देखे जा सकते हैं।आवारा कुत्ते अब खूंखार भी हो रहे हैं क्योंकि उनको यहां वहां पड़ा हुआ कुछ खाने को नहीं मिल पाता। फिर भी गंदगी तो वे करते ही हैं। वह भी शहर की स्वच्छता पर बदनुमा दाग है। जिसका निदान होना चाहिए जैसे प्रायः गायें नहीं दिखती अब यत्र तत्र घूमती।
चलो बस, अब और नहीं, क्योंकि सुबह फिर घूमने भी तो जाना है पर हां,अंततः इस सवाल का जवाब तो अपेक्षित है कि श्वान पालक अपने पालतू , तथाकथित अपने बच्चे की गन्दगी उठाने में संकोच क्यों करते हैं?

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मंजुला भूतड़ा

लेखिका, इन्दौर

कहानी में कुत्ता प्रसंग : कुत्ता वाद-विवाद के क्रम में प्रेमचंद की कथा का स्मरण