
‘असुरों’ के लिए ‘काल’ हैं ‘माँ कालरात्रि’…
कौशल किशोर चतुर्वेदी
माँ दुर्गा की सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती हैं। नवरात्रि के सातवें दिन माँ कालरात्रि की उपासना का विधान है। इस दिन साधक का मन ‘सहस्रार’ चक्र में स्थित रहता है। इसके लिए ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों का द्वार खुलने लगता है। देवी कालरात्रि को व्यापक रूप से माता देवी – काली, महाकाली, भद्रकाली, भैरवी, मृत्यु-रुद्राणी, चामुंडा, चंडी और दुर्गा के कई विनाशकारी रूपों में से एक माना जाता है। माँ कालरात्रि को माँ दुर्गा का सबसे उग्र रूप माना गया है। माना जाता है कि देवी के इस रूप में सभी राक्षस,भूत, प्रेत, पिशाच और नकारात्मक ऊर्जाओं का नाश होता है, माँ कालरात्रि के आगमन से असुर पलायन करते हैं।
इनके शरीर का रंग घने अंधकार की तरह एकदम काला है। सिर के बाल बिखरे हुए हैं। गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है। इनके तीन नेत्र हैं। ये तीनों नेत्र ब्रह्मांड के सदृश गोल हैं। इनसे विद्युत के समान चमकीली किरणें निःसृत होती रहती हैं। माँ की नासिका के श्वास-प्रश्वास से अग्नि की भयंकर ज्वालाएँ निकलती रहती हैं। इनका वाहन गर्दभ (गदहा) है। ये ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ की वरमुद्रा से सभी को वर प्रदान करती हैं। दाहिनी तरफ का नीचे वाला हाथ अभयमुद्रा में है। बाईं तरफ के ऊपर वाले हाथ में लोहे का काँटा तथा नीचे वाले हाथ में खड्ग (कटार) है।
माँ कालरात्रि का स्वरूप देखने में अत्यंत भयानक है, लेकिन ये सदैव शुभ फल ही देने वाली हैं। इसी कारण इनका एक नाम ‘शुभंकारी’ भी है। अतः इनसे भक्तों को किसी प्रकार भी भयभीत अथवा आतंकित होने की आवश्यकता नहीं है।
माँ कालरात्रि दुष्टों और असुरों का विनाश करने वाली हैं। दानव, दैत्य, राक्षस, भूत, प्रेत आदि इनके स्मरण मात्र से ही भयभीत होकर भाग जाते हैं। ये ग्रह-बाधाओं को भी दूर करने वाली हैं। इनके उपासकों को अग्नि-भय, जल-भय, जंतु-भय, शत्रु-भय, रात्रि-भय आदि कभी नहीं होते। इनकी कृपा से वह सर्वथा भय-मुक्त हो जाते हैं।
माँ कालरात्रि का शुभ रंग नीला या ग्रे माना जाता है। माँ को लाल रंग के वस्त्र अर्पित करना भी शुभ माना जाता है। माँ को रातरानी के फूल भी अत्यंत प्रिय हैं। माँ कालरात्रि को गुड़ और चने का भोग लगाना शुभ माना जाता है। माँ को शहद का भोग भी अर्पित किया जा सकता है। गुड़ और चने का भोग लगाने से शोक और कष्ट दूर होते हैं।
माँ कालरात्रि से संबंधित कथा इस प्रकार है। एक बार दैत्य शुंभ, निशुंभ और रक्तबीज ने अपना आतंक तीनों लोकों में फैलाना शुरू कर दिया था। उस वक्त सभी देवगण, भगवान शिव के पास गए। जब भगवान शिव ने सभी देवताओं को चिंतित देखा, तो उनसे उनकी चिंता का कारण पूछा। तब देवताओं ने शिव शंकर से कहा “हे भोलेनाथ, शुंभ, निशुंभ और रक्तबीज नामक दानवों ने अपने उत्पात से हम सभी को परेशान कर रखा है। कृपया कर हमारी मदद करें।” यह सुनते ही भोलेनाथ ने अपने समीप बैठी माता पार्वती की ओर देखा और उनसे, उन दानवों का वध करने की प्रार्थना की। भगवान शंकर की विनती सुनकर, देवी पार्वती ने उनके सामने नतमस्तक होकर उनका आशीर्वाद लिया और वहां से जाने की आज्ञा मांगी और दानवों का वध करने निकल पड़ीं।
माता पार्वती ने दानवों का वध करने के लिए, माँ दुर्गा का रूप धारण किया। इस रूप में वह सिंह पर सवारी करती हुईं अति मनमोहक और शक्तिशाली प्रतीत हो रही थीं। माता को देख सभी राक्षस अचंभित हो गए। उन तीनों ने माता के साथ एक घमासान युद्ध शुरू किया। दैत्यों ने अपना पूरा बल लगा दिया, परंतु माता के सामने नहीं टिक पाए। आदिशक्ति ने शुंभ और निशुंभ का वध कर दिया। इसके पश्चात, माँ ने रक्तबीज के साथ युद्ध करना शुरू किया।
रक्तबीज कोई मामूली दानव नहीं था। उसने कठोर तपस्या कर ब्रह्मा जी से अमर होने का वरदान हासिल किया था। ब्रह्मा जी ने उसे यह वरदान दिया था, कि जब भी उसे कोई मारने का प्रयत्न करेगा,तब उसके शरीर से निकली खून की बूंदें जैसे ही धरती को स्पर्श करेंगी, वैसे ही अनेक रक्तबीजों का जन्म होगा। इसी वरदान के अनुसार,जैसे ही माता ने उस पर प्रहार किया, उसकी खून की बूंदे धरती पर गिरीं और अत्यंत रक्तबीज प्रकट हो गए।
उसी क्षण माता ने कालरात्रि का रूप धारण किया। माँ दुर्गा के शरीर से एक ऊर्जा का संचार हुआ और माँ कालरात्रि का निर्माण हुआ। भले ही वो दानव अति शक्तिशाली था, परंतु माता से जीत पाने का सामर्थ्य उसके अंदर नहीं था। माँ कालरात्रि ने रक्तबीज को अपनी कटार से मार गिराया और जैसे ही उसके शरीर से खून बहने लगा, उन्होंने उसका रक्त पान कर लिया। इस तरह रक्तबीज के साथ ही असुरों का अंत हो गया।
माँ दुर्गा का यह अति शक्तिशाली रूप हमें यह सिखाता है, कि बुराई कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो, परंतु उसे अच्छाई के आगे घुटने टेकने ही पड़ते हैं। माँ कालरात्रि हमेशा ही भक्तों के लिए शुभंकरी बन वरदान देने वाली और असुरों के लिए काल बन संहार करने वाली हैं…।
लेखक के बारे में –
कौशल किशोर चतुर्वेदी मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं। प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में पिछले ढ़ाई दशक से सक्रिय हैं। पांच पुस्तकों व्यंग्य संग्रह “मोटे पतरे सबई तो बिकाऊ हैं”, पुस्तक “द बिगेस्ट अचीवर शिवराज”, ” सबका कमल” और काव्य संग्रह “जीवन राग” के लेखक हैं। वहीं काव्य संग्रह “अष्टछाप के अर्वाचीन कवि” में एक कवि के रूप में शामिल हैं। इन्होंने स्तंभकार के बतौर अपनी विशेष पहचान बनाई है।
वर्तमान में भोपाल और इंदौर से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र “एलएन स्टार” में कार्यकारी संपादक हैं। इससे पहले इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में एसीएन भारत न्यूज चैनल में स्टेट हेड, स्वराज एक्सप्रेस नेशनल न्यूज चैनल में मध्यप्रदेश संवाददाता, ईटीवी मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ में संवाददाता रह चुके हैं। प्रिंट मीडिया में दैनिक समाचार पत्र राजस्थान पत्रिका में राजनैतिक एवं प्रशासनिक संवाददाता, भास्कर में प्रशासनिक संवाददाता, दैनिक जागरण में संवाददाता, लोकमत समाचार में इंदौर ब्यूरो चीफ दायित्वों का निर्वहन कर चुके हैं। नई दुनिया, नवभारत, चौथा संसार सहित अन्य अखबारों के लिए स्वतंत्र पत्रकार के तौर पर कार्य कर चुके हैं।





