खरगोन जिले की बहुचर्चित सिंचाई परियोजना बिंजलवाडा का रिटायरमेंट से कुछ दिन पहले NVDA के वाइस चेयरमैन आईपीसी केसरी ने परियोजना योजना का स्थल का निरीक्षण कर निर्माण एजेंसी को ब्लैक लिस्ट कर दिया। लेकिन, इस योजना के निर्माण के प्रभारी कार्यपालन यंत्री अधीक्षण यंत्री चीफ इंजीनियर को बेदाग़ बताया। ब्लैक लिस्टे होने की स्थिति में पहुंचने तक के लंबे समय में प्रभारी इंजीनियरों ने कितने निरीक्षण किए!
एजेंसी को क्या निर्देश दिए! साइट इंस्पेक्शन बुक में खामियां अंकित की या नहीं, ऐसे सारे सवाल खामोश है। नर्मदा का जल केंद्रीय जल विवाद न्यायाधिकरण के निर्देश अनुसार 2024 तक करना अनिवार्य है। तैयारी यह है कि नर्मदा घाटी प्राधिकरण में प्रमुख अभियंता पद सेवानिवृत्त संविदा पर नियुक्त वाले इंजीनियर के हवाले है।मैदानी इलाकों के अधिकांश पद या तो खाली है या जूनियरों के चालू प्रभार में है। परियोजना की लेट लतीफी के लिए निर्माण एजेंसी को ब्लैक लिस्ट करने की घोषणा तो हो गई, लेकिन मलाई खाने वालों पर कोई कार्यवाही नहीं होने से सवाल उठने लगे। परियोजना के कर्ताधर्ता रहे इंजीनियर राजेंद्र मंडलोई कह रहे हैं, कि निर्माण एजेंसी को नोटिस दिए थे। लेकिन, कार्यवाही नहीं होना सबको कटघरे में खड़ा कर रहा है।
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तूफान के पहले की शांति!
सियासत में मौन के भी गहरे मायने होते हैं। कुछ ऐसा ही प्रदेश में कांग्रेस के शीर्ष नेता पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव की चुप्पी को लेकर चर्चाएं हो रही है। उन्होंने खंडवा संसदीय उपचुनाव में दावेदारी अचानक वापस ली, कांग्रेस के प्रत्याशी के लिए समर्थकों सहित काम किया। अभी भी अपने संसदीय क्षेत्र सहित प्रदेशभर में दौरे कर रहे हैं।
पार्टी कार्यकर्ताओं और अपने समर्थकों से खुलकर मिल रहे हैं। लेकिन, मीडिया से दूरी और बयानबाजी से परहेज हैं। सक्रियता और मौन का मिश्रण क्या उनकी किसी योजना का हिस्सा है! आखिर कांग्रेस के इस कद्दावर नेता के मन में क्या है? इन सवालों ने सबको हैरान कर दिया।
प्रदेश संगठन के चुनाव का कार्यक्रम घोषित होते ही कांग्रेस के शीर्ष नेता पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजयसिंह का दो दिवसीय निमाड़ दौरा भी कुछ और ही इशारा करता है। यादव परिवार में राजा का स्नेह भोज, प्रदेश कांग्रेस की सियासत में नए तेवरों के आगाज का संकेत है? प्रदेश कांग्रेस संगठन के चुनाव में दिग्गी राजा और अरुण यादव की जुगलबंदी का संकेत साफ है, कि सत्ता के रण के पहले संगठन का रण होगा।
पुनः मुख्यमंत्री के दावेदार होकर पार्टी अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष भी होना कमलनाथ की दिक्कतों की वजह बना हुआ है। प्रदेश की सत्ता में लौटी कांग्रेस की सफलता में अरूण यादव के जमीनी संघर्ष और आंदोलनों की बड़ी भूमिका रही। ऐसी स्थितियों में पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव का यह सियासी मौन के संकेत साफ हैं कि कोई न कोई बड़ी रणनीति बन रही है।
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अब रेल के प्रचार को लेकर रेलमपेल
पश्चिम निमाड़ में वर्षों से जनता रेल सेवाओं की बाट जोह रही है। विभिन्न चुनावों के पहले इसे मुद्दा बनाकर उम्मीदवारों ने सब्जबाग जरूर दिखाकर वोट जरूर हासिल किए हैं। क्षेत्र के नागरिक मनमाड़ इंदौर और खंडवा दाहोद रेल प्रोजेक्ट को रेल बजट में लेने, सर्वे और अन्य प्रक्रियाओं के संबंध में सूचनाएं और समाचार देख और पढ़कर उकता गए हैं। इस संबंध में श्रेय लेने की राजनीति से भी रूबरू हो रहे हैं! लेकिन, जनप्रतिनिधियों को समझना चाहिए कि अब नागरिक दोनों परियोजनाओं को फलीभूत होता देखना चाहते हैं। अन्यथा अब आगामी चुनाव में रेल मुद्दा बनते देर नहीं लगेगी।
मनमाड़-इंदौर रेलवे लाइन का सर्वे अंग्रेजों के जमाने में हो चुका था। यह मूर्त रूप लेता, इसके पहले भुसावल-सूरत प्रोजेक्ट को इसकी राशि देकर आगे बढ़ा दिया गया। इसके फलस्वरुप बरसों तक इस क्षेत्र की जनता रेल के लिए तरसती रही। महाराष्ट्र के धूलिया के बड़े नेता अनिल गोटे ने इंदौर-मनमाड़ रेलवे के लिए 20 साल पहले क्षेत्र में अलख जगाई थी। इसके अलावा सुमित्रा महाजन ने भी हल्के-फुल्के ढंग से इस परियोजना को आरंभ कराने को लेकर चिट्ठी-पत्री की।
केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने देश के व्यावसायिक क्षेत्रों को बंदरगाहों से जोड़ने की परियोजना के तहत इंदौर-मनमाड़ रेलवे लाइन को मूर्त रूप देने के लिए सबसे ठोस प्रयास आरंभ किए, लेकिन मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र दोनों राज्यों के समन्वय और जनप्रतिनिधियों की दृढ़ इच्छा शक्ति के अभाव में रेलगाड़ी की आवाज फिलहाल दूर ही दिखाई दे रही है। इस परियोजना के बारे में पूछे जाने पर क्षेत्र के जनप्रतिनिधि बगलें झांकते दिखाई पड़ते हैं।
खरगोन लोकसभा सांसद गजेंद्र सिंह पटेल ने समय-समय पर प्रधानमंत्री ,रेल मंत्री, परियोजनाओं से जुड़े बड़े अधिकारियों से मुलाकात कर क्षेत्र की इन महती परियोजनाओं को लेकर अपनी बात रखी। वे अपनी मुलाकातों और पत्रों का जिक्र मीडिया के विभिन्न प्लेटफार्म पर पुरजोर तरीके से रखते हैं। राहत की बात यह है कि खंडवा दाहोद अब (खंडवा धार) के 260 किलोमीटर लाइन के सर्वे के टेंडर जारी हो गए हैं। राज्यसभा सांसद डॉ सुमेर सिंह सोलंकी ने भी सोशल मीडिया पर अपने योगदान के बारे में बताया। जब सांसद गजेंद्र सिंह पटेल ने जानकारी दे दी, तो राज्यसभा सांसद सोशल मीडिया में ऐसे कूद गए जैसे रेल आ ही गई हो।
इतिहास गवाह है कि उन्हीं क्षेत्रों में रेल सेवाओं का विस्तार हुआ, जहां के जनप्रतिनिधि दमदारी से अपनी बात बनवाने की कूवत रखते रहे हैं। देश के दमदार जनप्रतिनिधियों की वजह से रेल पहाडी इलाको को खोदकर, समुद्री इलाकों से भी निकल गई है। लेकिन, दुर्भाग्य ही कहा जाएगा की निमाड़ अंचल में जनप्रतिनिधियों ने ताकतवर प्रयास नहीं किए। आज भी निमाड़ और विशेषकर खरगोन-बड़वानी के लोगों के लिए रेल सपना है। आजादी के इतने बरस बीत जाने के बाद भी इन परियोजनाओं का मूर्त रूप नहीं ले पाना क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों की सरकारों पर कमजोर पकड़ को ही दर्शाता है। रेल को लेकर रेलमपेल जारी है।
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बदहाली की आंसू बहा रही है नमामि देवी नर्मदे
प्रशासनिक लापरवाही से जीवनदायिनी माँ नर्मदा बदहाली के आंसू बहा रही है। नमामि देवी नर्मदा की पीड़ा आमजन की जागरूकता की कमी से भी सामने आ रही है। शासन और प्रशासन स्तर पर खरगोन जिले के महेश्वर, मंडलेश्वर, बड़वाह और कसरावद के नर्मदा के किनारे बदस्तूर गंदगी जा रही है। कहने को तो माॅ नर्मदा की पवित्रता की दुहाई देने में कोई कसर नहीं छोड़ी जाती, लेकिन पिछले दिनो नर्मदा जयंति पर बड़वाह के नावघाटखेड़ी, कसरावद के नावडातोड़ी, महेश्वर और मण्डलेश्वर सहित दर्जनों घाटों पर श्रदालुओं ने अपने-अपने पाप धोने की कोशिश की।
नर्मदा की सुंदर सूरत धीरे-धीरे बदसूरती की और सरकार और श्रदालु धकेल रहे हैं। गंदे नालों का नर्मदा नदी में मिलना कोई बड़ी बात नहीं है। नर्मदा को माँ मानने वाली सरकार भी पीछे नहीं है। माँ नर्मदा की जयंती पर शासकीय स्तर पर आयोजन किए। सरकार ने इतना भी नहीं सोचा कि ऐसे आयोजनों से सरकार की माँ कितनी मैली हो जाएगी। सरकार को ऐसे आयोजनों के लिए नर्मदा तट से न सिर्फ सरकारी आयोजनों पर बेवजह श्रद्धा के नाम पर पॉलीथिन, दीए, कागज, फूलमालाएं, तेल और न जाने क्या क्या सामग्री नर्मदा माँ में उड़ेली जा रही है।
ये सब तो ठीक ठीक है जो श्रदालु माँ नर्मदा में अपने शरीर को निर्मल करने आते है वे माँ नर्मदा के किनारों पर अपने शरीर का सबसे बदबूदार और सबसे गंदा पदार्थ छोड़ जाते है। अगर वाकई सरकार नर्मदा को जीवन रेखा मानती है तो माँ नर्मदा के तट पर मानव के जाने पर रोक लगानी होगी। इसके लिए ग्राम पंचायत स्तर से राज्य स्तर तक निगरानी समिति वास्तविक कार्य करे। वरना धार्मिक मान्यता भी धरी की धरी रह जाएगी। नर्मदा की उपेक्षा जिला अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों की कार्यप्रणाली की पोल खोलती है।
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और अंत में
खरगोन, खंडवा और बुरहानपुर के दिग्विजय सिंह के दौरे में अरुण यादव का साथ होना निमाड़ अंचल ही नही, नही, प्रदेश में सुर्खियो में रहा। पहले दिन दिग्विजय सिह ने गोगांवा में प्रदेश कांग्रेस की महत्वपूर्ण बैठक में शामिल नही होने पर मीडिया को सफाई दी कि मैने पहले ही बैठक में शामिल नहीं होने पर माफी मांग ली है, मुझे कांग्रेस के 40 साल पुराने साथी मेहमूद सेठ के निधन पर शोक व्यक्त करने गोगांवा आना था।
दूसरे दिन मीडिया को दिग्विजय सिह का अलग जवाब था! उन्होंने कहा कि भोपाल में कांग्रेस के जिला अध्यक्षों की बैठक थी, क्या मैं और अरुण यादव जिला अध्यक्ष है। दिग्विजय सिंह दो दिनों में दो जबाब से राजनीतिक पंडित समझ रहे हैं कि कांग्रेस में खास तौर पर कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के बीच सबकुछ ठीकठाक नहीं चल रहा!
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