व्यंग: जूतों में आपस मे जूते चले ,जूतों मे दाल बटने लगी,फिर क्या हुआ ?

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व्यंग: जूतों में आपस मे जूते चले ,जूतों मे दाल बटने लगी,फिर क्या हुआ ?

मुकेश नेमा

चलिये एक कहानी सुनिए। पसंद ना आये तब भी सुनिए। एक था देश ,प्राचीन,सभ्य ,समृद्ध और सुसंस्कृत।बाकी देशों से बेहतर था। इसलिए था क्योंकि वहाँ किताबें पढ़ीं जाती थी और जूते पहने ही जाते थे।पर चतुर लोग हर जगह होते ही हैं ,यहाँ भी थे ,वे जूतो की मदद से सामान खरीदने बेचने लगे।जितने करारे जूते उतना ज्यादा सामान।धीमे धीमे जूतो ने वहाँ की मुद्रा को विस्थापित कर उनकी जगह ले ली।यहाँ तक भी सब ठीक था ,पर जूतो के पास भी अपनी अकल थी ,अपना संगठन था ,उन्होने अपनी हैसियत पहचानी और आदमियों के हाथों इस्तेमाल होने से इनकार कर दिया।आदमियों के लिये जूतो से लडना कठिन था ,वे पराजित हुए और खुद ही जूता हो गये ,अब उस देश मे जूतातंत्र स्थापित हुआ।

चेल्सी जूते पुरुषों गाय चमड़े सर्दियों चलने के जूते पुरुषों के लिए

जाहिर है इस तंत्र मे किताबों,प्रशासन ,पुलिस और न्यायालयो की जरूरत रह नही गयी।अपराधी वो था जिसे जूते अपराधी कहे। न्याय वह था जो जूते तय करें।सबल जूते अपनी बात मनवाने लगे ,हर आपत्ति और सवाल का जवाब जूते देने लगे।जूता देख हर असहमति ,सहमति मे बदलने लगी।जूतों की बोली ,राजबोली हुई दूसरी किसी भाषा मे बोलने वालो के मुँह जूतो ने बंद कर दिए।खानपान ,उठने बैठने के जो सलीके जूतो ने तय किए ,वो जूते पड़ने के डर से सभी ने मानें।गजब की एकरूपता देखने को मिली इस देश मे ,और इसे ही सुशासन कहा गया।
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पर अराजकता अपनी चलाए बिना फिर भी नही मानी।होनी ने रंग दिखाया अपना। जूते भी छोटे बड़े हुए।रंग और जातियों मे बँटे। जूतों में आपस मे जूते चले ,जूतों मे दाल बटने लगी।समर्थ जूतो ने देख देख कर अपने वालो को दाल बांटी। जो भूखे थे वो और ज्यादा भूखे हुए सबसे पहले स्वाभिमानी किताबें भूख से मर गयी ,जो भूख सहन ना कर सकीं वो मन मार कर जूतों में तब्दील हो गईं ,किताबें भर नही मरी ,कमजोर जूते भी मरे ,और मरना मारना ही जीने का तरीका हो गया।
चाँदी के जूते पहले भी चलते थे अब भी चलते रहे।वे ज्यादा मजबूत और टिकाऊ थे ,इसलिये चमडे के जूते चाह कर भी उन्हे विस्थापित कर नही सके ,वे कब बिके ये वे खुद भी नही जान सके और चाँदी के जूतो के गुलाम हुए। चूँकि किताबे नही थी ,लिखने वाले सारे ही जूतो द्वारा पीटे जाकर अन्यत्र निर्वासित किये जा चुके थे ,इसलिये यह जूता राज कब तक चला यह बताना बडा मुश्किल है।पर सयाने बताते हैं कि कालान्तर मे एक जूता लगातार बड़ा होता गया ,बड़ा होता गया और एक ब्लैक होल मे बदल गया और यह पूरा देश अपने समुद्रो .पहाडो और रहने वालो सहित इस बडे जूते के पेट मे समा गया।
फिर क्या हुआ ? फिर क्या होना था ? कहानी खत्म ,पैसा हजम।

मुकेश नेमा