धरती आबा से लेकर अमर शहीद तक: अलीराजपुर में दो महानायकों की प्रतिमाओं का अनावरण आज

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धरती आबा से लेकर अमर शहीद तक: अलीराजपुर में दो महानायकों की प्रतिमाओं का अनावरण आज

▪️Rajesh jayant▪️

ALIRAJPUR: 15 नवम्बर को अलीराजपुर में एक ऐतिहासिक सुबह का आगाज होने जा रहा है जब मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव अमर शहीद छीतू किराड़ और भगवान बिरसा मुंडा की प्रतिमाओं का संयुक्त अनावरण करेंगे। छीतू किराड़ वह अमर शहीद है जिन्होंने अकाल की दहलीज पर अपनी जन-भक्ति और अटल साहस से हजारों लोगों की जान बचाई, जबकि बिरसा मुंडा वह दिव्य-आत्मा है जिन्हें आदिवासी समाज ने ‘भगवान’ का दर्जा दिया क्योंकि उन्होंने अपने लोगों को न सिर्फ राजनीतिक आजादी का झंडा दिखाया, बल्कि सांस्कृतिक और धार्मिक स्वाभिमान की राह भी दिखाई। यह अनावरण समारोह न केवल अतीत की गाथा का जश्न है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को यह संदेश देता है कि सच्चा नेतृत्व वह है जो अपने लोगों के लिए जीवन दांव पर लगा दे।

▪️छीतू किराड़: अकाल के मसीहा और जनजातीय नायकों के सूत्रधार

▫️अलीराजपुर की पृष्ठभूमि में छीतू किराड़ का नाम लोक-इतिहास और शोध दोनों में अमर नायक के रूप में उभरता है। 1882 के भीषण अकाल के समय, राजा तथा ब्रिटिश शासन की नीतियों ने सामान्य जनजातीय लोगों को भूख और पीड़ा के आलिंगन में डूबो दिया था। ब्रिटिश-नियंत्रित गोदामों में अनाज भरा पड़ा था, लेकिन जरूरतमंदों तक पहुंचना नामुमकिन था क्योंकि शासन-नियंत्रण और कर नीतियां लोगों की मुट्ठियों में कुछ नहीं छोड़ रही थीं।

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ऐसे संकटपूर्ण समय में छीतू किराड़ ने सक्रिय कदम उठाया।

▫️उन्होंने युवाओं और गांव-बुजुर्गों को संगठित किया, गोदामों पर छापेमारी की और अनाज निकालकर गांवों में बांटा। उनकी यह कार्रवाई केवल भोजन वितरण नहीं थी, बल्कि यह जनजातीय एकता, आत्म-सम्मान और प्रतिरोध की भावना का प्रतीक बन गई।

▫️ब्रिटिश प्रशासन और उनकी सहयोगी रियासतों ने इस विद्रोह को गंभीर चुनौती माना और छीतू किराड़ का दमन करने के लिए सैनिक भेजे। गिरफ्तारी, यातनाएं और संघर्ष के दौरान उनकी आवाज दबाने की कोशिश की गई, लेकिन उनका आदर्श टूट न सका। आज उनकी स्मृति उन शिक्षा और प्रेरणा का स्रोत है, जो बताती है कि स्थानीय नेतृत्व और जन-भूमि के प्रति प्रतिबद्धता का कितना बल हो सकता है।

▫️उनकी प्रतिमा का अनावरण एक प्रतीकात्मक पुनर्स्थापना है, यह दर्शाता है कि इतिहास केवल राजाओं या शक्तिशाली नेताओं तक सीमित नहीं था, बल्कि स्थानीय जननायकों और जनजातीय सपूतों की आवाज़ से भी बना था। अलीराजपुर इस अनावरण के साथ अपने लोक-संघर्ष को फिर से गौरव के साथ याद करेगा।

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▪️भगवान बिरसा मुंडा: धर्म, विद्रोह और आदिवासी जागरण का पर्वतमंडल

▫️बिरसा मुंडा, जिनका जन्म 15 नवंबर 1875 को झारखंड (उलिहातू) में हुआ था, आदिवासी जगत के सबसे महान नेताओं में से एक हैं। उन्होंने न केवल ब्रिटिश औपनिवेशिक अत्याचार और जमींदारों के शोषण के खिलाफ विद्रोह किया, बल्कि एक धार्मिक और सांस्कृतिक आंदोलन की भी नींव रखी।

उनकी “उलगुलान” (मण्डा विद्रोह) की शुरुआत 1890 के दशक में हुई, जब वे अपने समुदाय को ब्रिटिश भूमि-विज्ञापन, विदेशी परोपकारी मिशनरियों और जमीन हड़पने की जमींदारी व्यवस्था के खिलाफ संगठित करने लगे। बिरसा ने ग्रामीण आंदोलन को गहन धार्मिक स्वरूप दिया; उन्होंने “बिरसाइट” नामक धार्मिक विचारधारा की स्थापना की, जिसमें पारंपरिक आदिवासी विश्वासों को आधुनिक प्रतिरोध आंदोलन के साथ जोड़ने की कोशिश की गई।

▫️उनकी सेना ने ब्रिटिश अधिकारियों, चर्चों और पुलिस स्टेशनों पर गुरिल्ला-हमले किए। यह विद्रोह इतना संगठित और मजबूत था कि स्थानीय आदिवासी और अन्य जनजातियां भी उनके नेतृत्व में एकजुट हो गईं।

▫️3 मार्च 1900 को ब्रिटिशों ने उन्हें जंगलों में पकड़ लिया और उन्हें रांची की जेल में बंद कर दिया। 9 जून 1900 को जेल में ही उनकी शहादत हुई, ब्रिटिश अधिकारियों के अनुसार यह कॉलरा के कारण था, लेकिन कुछ इतिहासकार इस दावे पर सवाल उठाते हैं।

▫️बिरसा मुंडा की विरासत आज भी जीवित है- उन्हें “धरती आबा” (धरती पिता) कहा जाता है, और उनका जन्मदिन, 15 नवंबर, अब “जनजातीय गौरव दिवस” के रूप में मनाया जाता है। उनके धार्मिक-आंदोलन और राजनीतिक संघर्ष ने आदिवासी समाज में आत्म-सम्मान, एकता और जमीनी अधिकारों की भावना को स्थायी रूप से जाग्रत किया।

▪️दो महानायक – एक संदेश

▫️छीतू किराड़ और बिरसा मुंडा दो विभिन्न भू-भागों और समयों के नेतृत्वकर्ता हैं, लेकिन उनकी लड़ाइयां और आदर्श एक ही धागे से बुने गए लगते हैं – स्वतंत्रता, स्वाभिमान, और न्याय की लड़ाई।

▫️छीतू किराड़ ने भूख और अकाल की स्थिति में साहस दिखाया और अपने लोगों के लिए जीवन दांव पर लगाया।

▫️बिरसा मुंडा ने एक धार्मिक-जागरूकता आंदोलन खड़ा किया, जिसने आदिवासी समाज को केवल भू-संपत्ति तक सीमित नहीं रहने दिया, बल्कि उनकी सांस्कृतिक और आत्मिक आज़ादी की जड़ें मजबूत कीं।

▫️ आज इन दो महान शख्सियत की प्रतिमाओं का संयुक्त अनावरण इस बात का प्रतीक है कि इतिहास में नायक केवल राष्ट्रीय नायकों तक सीमित नहीं हैं- स्थानीय, आदिवासी और उस समाज के भीतर के संघर्षों के नायक भी उतने ही महान होते हैं। यह समाज के वंचित वर्गों के लिए गौरव और प्रेरणा का क्षण है, और युवा पीढ़ी के लिए यह याद दिलाने का अवसर कि असली शक्ति उन मूल्यों में है जो इंसानियत, न्याय और सेवा में निहित हैं।

▪️समारोह का सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व

▫️संकेत एकता का: अलीराजपुर में दोनों प्रतिमाओं का एक साथ अनावरण यह दर्शाता है कि आदिवासी नायक अलग- अलग इतिहासों में संघर्ष तो करते थे, लेकिन उनका लक्ष्य और उनका दर्शन एक ही था- सामूहिक मुक्ति और स्वाभिमान।

▪️ऐतिहासिक पुनर्मूल्यांकन

▫️यह अनावरण इतिहास को वंचितों की दृष्टि से पुनर्स्थापित करने का प्रयास है, जहां केवल शासकों और राजाओं को नहीं, बल्कि जनजातीय योद्धाओं को भी उनकी असली पहचान मिलती है।

▫️युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा: आज के युवा आदिवासी और गैर-आदिवासी दोनों, इन प्रतिमाओं को देखकर सीख सकते हैं कि नेतृत्व और संकट के समय में साहस कैसे काम आता है, और सामाजिक परिवर्तन कैसे संभव है।

▫️लोक संस्कृति में सम्मान: प्रतिमाओं के माध्यम से छीतू किराड़ और बिरसा मुंडा की कहानियां स्थानीय और राष्ट्रीय स्मृति में स्थिर हो जाएँगी, ताकि आने वाली पीढ़ियां उनकी विरासत को जानें और जिएं।

15 नवम्बर को, अलीराजपुर का समारोह केवल दो प्रतिमाओं का अनावरण नहीं है – यह ऐतिहासिक न्याय, जनजातीय अस्मिता और मानवता की विजय का उत्सव है। अमर शहीद छीतू किराड़ और भगवान बिरसा मुंडा जैसे महानायकों को एक साथ मंच पर लाना यह संदेश देता है कि उनका संघर्ष आज भी जीवित है और आने वाले कल के लिए हमारी जिम्मेदारी है कि उनकी महिमा को भूलने न दें। यह दिन हमें याद दिलाता है कि असली महानता महान निस्वार्थता में है- जब कोई अपने लोगों के लिए लड़ता है, सिर्फ़ इसलिए कि वे उसके साथ इंसान हैं।