रविवारीय गपशप: सरकारी नौकरी में छुट्टियों की मारामारी और अफसरों का मिजाज

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रविवारीय गपशप: सरकारी नौकरी में छुट्टियों की मारामारी और अफसरों का मिजाज

आनंद शर्मा

मेरा बेटा जो पूना में रह कर किसी निजी कंपनी में “वर्क फ्रॉम होम” के तहत काम कर रहा है , पिछले दिनों हमसे मिलने इंदौर आया तो उसके प्रबंधक ने ऐतराज किया कि बिना जानकारी के वह पुणे से बाहर क्यों गया ? मुझे ये जान कर आश्चर्य हुआ कि निजी क्षेत्र में भी छुट्टियों की इतनी ही मारामारी है जितनी सरकारी नौकरी में।

मैं जब वल्लभ भवन में सचिव के रूप में पदस्थ था तो इंदौर संभाग में कलेक्टर रह चुके एक नवजवान आफिसर ने एक दिन अकेले में मेरे समक्ष दुखड़ा रोया कि प्रमुख सचिव की नाराजगी की वजह से उसे एक दो दिन की छुट्टी के लिए भी इतनी जद्दोजहद करनी पड़ रही है कि वह साल भर से अपने परिजनों से मिलने नहीं जा पाया है । मुझे याद आ रहा है कि जब मैं उज्जैन जिले के खाचरोद अनुविभाग में एसडीएम हुआ करता था तो वहाँ एक नवजवान युवक डीएसपी के रूप में पदस्थ होकर आया था । छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले का रहने वाला वणिक वर्ग का ये अफसर एसपी साहब के कड़े अनुशासन और तनिक भी छुट्टी ना देने से इतना परेशान हुआ कि नौकरी छोड़कर वापस दुर्ग चला गया ।

संयोग से मुझे अपनी नौकरी में हमेशा ऐसे बॉस मिले जो छुट्टियाँ देने में कोताही नहीं करते थे । कलेक्टरों में मुझे श्री आरसी सिन्हा आज भी याद हैं जो उज्जैन में मेरे कलेक्टर थे । मैं सागर से तबादला होकर उज्जैन पहुंचा था , और परिवार सागर में ही था , सो सप्ताहांत में कलेक्टर के पास छुट्टी का आवेदन देने पहुँचा । कलेक्टर साहब ने आवेदन देखा और बोले अभी कार्य आवंटन आदेश हुआ नहीं हैं , तुम चाहो तो आज ही निकल जाओ और आराम से सोम- मंगल तक आ जाना और यकीन मानें मेरे परिवार सहित उज्जैन आ जाने तक सिन्हा साहब का ये अनुग्रह मुझपे चलता रहा । छुट्टी देने में उदारमना जो दूसरे शख्स का मुझे ध्यान है , वे हैं एनके त्रिपाठी , जो परिवहन विभाग में मेरे आयुक्त थे । हालांकि इस मामले में मुझ पर ही नहीं बाक़ी अफसरों पर भी मेहरबान रहा करते थे । कई बार तो मैंने देखा कि समीक्षा बैठक के बीच ही कोई आरटीओ अफसर छुट्टी माँगता और वे बेहिचक उसे जाने देते । एकाद बार तो मैंने ही उनसे कहा , सर इसके काम की प्रोग्रेस ठीक नहीं थी , इसलिए छुट्टी लेकर भाग गया । त्रिपाठी साहब मुस्कुराए और बोले किसी को शर्मिंदा करने में भला अपने को क्या हासिल होगा , देखना अगली बार सुधार कर आयेगा । शायद ऐसे बॉस होने के कारण मैं भी इस विषय में हमेशा उदार बना रहा ।

इंदौर कलेक्ट्रेट में जब मैं अपर कलेक्टर था , तो एससी शाखा के मोहन बाबू जिनका काम हमेशा बड़ा चाकचौबंद रहता , एक दिन सुबह सुबह मेरे पास आए और मुझे आवेदन देकर कहने लगे “ सर मुझे स्वैच्छिक सेवानिवृति चाहिए । मैंने उन्हें अपने सामने कुर्सी पर बैठने कहा और पूछा क्या ऑफिस में किसी से कोई तकलीफ़ है ? मोहन बाबू बोले नहीं साहब मेरी घरेलू मजबूरी है , और बिना नौकरी छोड़े मैं उसे पूरा न कर पाऊँगा । मैंने उससे कहा तुम छुट्टी क्यों नहीं ले लेते ? मोहन ने कहा , सर इतनी छुट्टी आप नहीं दे पाओगे । मैंने कहा तुम आवेदन पर लिखो कितनी छुट्टी चाहिये । उसने अविश्वसनीय आँखों से मुझे देखा और बोला , साहब छह महीने तो लगेंगे ही । मैंने मोहन से कहा तुम अभी एक माह की छुट्टी का आवेदन दो , और फिर जितना लगे उतने दिन की छुट्टी बढ़ाते रहना । मोहन बाबू कुछ देर में आकर आवेदन दे गये , और फिर तीन महीने बाद आकर जब उसने वापस अपना चार्ज ज्वाइन किया तो उसका चेहरा ग़ज़ब का खिला हुआ था । जब मेरा तबादला हुआ तो उसने मेरे पूरे सर्विस रिकार्ड को जिल्द कर मुझे दिया और मुझसे कहा “ सर ये मेरी छोटी से भेंट है ।

इसी तरह जब मैं परिवहन विभाग में उपायुक्त प्रशासन था तब एक दिन शाजापुर के आरटीओ साहब मेरे पास आए और मेरे सामने अपना इस्तीफा रख कर बोले सर आप मेरा त्यागपत्र मंजूर करा दो बड़ी मेहरबानी होगी । मैंने उनके परेशान चेहरे को देखा और उन्हें सामने बैठा कर पूछा , आखिर बात क्या है ? आपकी तो अभी काफ़ी नौकरी बाक़ी है । आरटीओ साहब कहने लगे “क्या बताऊँ साहब , मैं घरेलू और स्वास्थ्यगत कारणों से आरटीओ शिप छोड़ कर इंदौर के ऑफिस में अटैच होने के लिए तैयार हूँ , पर मेरी पुकार कोई सुन ही नहीं रहा है । विभाग में उन दिनों अफ़सरों की कमी थी और मेरे सामने बैठे अफ़सर की इंटीग्रिटी बढ़िया थी , भला ऐसी परिस्थिति में कौन उसे फील्ड से हटा कर ऑफिस अटैच करता । मैंने उसे कई तरीक़े से समझाया पर वो महाशय तो नौकरी छोड़ने पर अड़े थे । मुझे उपाय सूझा , मैंने कहा अच्छा तुम्हें फील्ड में काम नहीं करना तो तुम छुट्टी लेलो । उसने कहा थोड़ी छुट्टी से काम न चलेगा । मुझे पुरानी घटना याद आई , आज मेरे सामने दूसरा मोहन था । मैंने कहा जितने दिन की चाहो उतने दिन की । आरटीओ साहब ने मेरे सामने तीन माह की छुट्टी का आवेदन बना कर रखा , मैंने तुरंत नोटशीट लिख कर त्रिपाठी साहब को सिफारिश के साथ भेजी और कुछ ही देर में पड़ोस के जिले के आरटीओ को चार्ज देकर छुट्टी में जाने की मंजूरी आ गई । आरटीओ साहब उस दिन खुशी खुशी चले गए , पर बाद में कुछ ही महीने बाद ना केवल नौकरी ज्वाइन की बल्कि अपनी पूरी उम्र तक सभी प्रमोशन लेकर रिटायर हुए । मुझे मेरे वरिष्ठों ने यही सिखाया था , कुछ दिनों के लिए किसी काबिल अधीनस्थ अधिकारी कर्मचारी को छोड़कर आप उसे हमेशा के लिए खोने से बच सकते हो।